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आत्मानुशासन फोडा जो बहुत बढ़ जाता है वह गहरा घाव कर देता है । मोहकी गहराईका तो कुछ ठिकाना ही नहीं है । जो अनादि कालसे पैदा होकर सदा बढ रहा है उस मोहकी गहराईका क्या ठिकाना है ? ___ मोह नरकादि गतियोंको प्राप्त करानेवाला है और फोडेसे पीव वगैरह प्राप्त होते हैं। पीडा देनेवाले तो दोनो हैं ही । यदि यह इतना दुःखदायक है तो यह कैसे ठीक हो ? -
मोहके ठीक होनेका उपाय यह है कि, परिग्रहोंसे वासना हटालो, अपने शुद्ध स्वरूपमें लीन होजाओ । वस, इससे मोह धीरे धीरे निर्मूल हो जायगा। जबतक विषयवासना हटकर आत्मज्ञान नहीं होता तबतक मोहकी वृद्धि होती ही रहेगी । जिस प्रकार कि फोडेको सुखाना हो तो पीव वगैरह जो निकलता है उसे धो-धाकर हटाते रहना चाहिये और उत्तम लोनी आदि चीजोंकी बनी हुई मल्लम उसपर लगाते रहना चाहिये । ऐसा करनेसे फोडा भीतरसे साफ भी होता है व ऊपरसे भरकर चमडा पुरकर बराबर भी हो जाता है। ठीक, यही दशा मोहकी है । इसलिये मोहको भी आत्मानुभव के मल्लमसे साफ या नष्ट करदेना चाहिये।
अब यह देखना चाहिये कि मोह जहां उत्पन्न होता है वहांकी क्या अवस्था है ? जिन चीजोंसे मोह किया जाता है वे चीजें यदि परिपाकमें वास्तविक दुःखके साधक हों तो उनमें मोह करना वृथा है । देखोः
सुहृदः सुखयन्तः स्युर्दुःखयन्तो यदि द्विषः ।
सुहृदोपि कथं शोच्या द्विषो दुःखयितुं मृताः ॥१८४॥ __ अर्थ:-सुहृद व बंधु-जन यदि सुखी बनोनवाले होते हैं और जो दुःख हैं वे यदि शत्रुओंसे होते हैं तो सुहृद भी मरनेपर दुःख देते हैं, इसलिये जगमें जीवका कोई सुहृद हो ही नहीं सकता है। जब कि सुहृ. दोंका मरण होता है तब प्राणी इष्टवियोग समझकर दुःखी अवश्य होते हैं । अहो भाइयो, तुम इतना विचार नहीं करते कि बंधुजन तुझे