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हिंदी-भाव सहित ( तत्त्वोंका स्वरूप)। १७५ देखनेपर सदा एकसारखा दीख पडेगा । इसीलिये जगके सारे तत्त्वोंको सामान्यतया कहना हो तो वैसे हैं भी और वैसे नहीं भी हैं; अर्थात् , प्रत्येक पदार्थ तत् अतत्स्वरूपी हैं ऐसा कहनेमें आता है । और इसीलिये जगके कुल तत्त्व अनाद्यनंत हैं । विनष्ट होनेवाला एक भी तत्त्व नहीं है । इस प्रकार विश्वतत्त्वों का ज्ञानी मनुष्य सदा चितवन करै । एक ही पदार्थको तत् अतत्स्वरूपी मानना झूठा नहीं है । देखोः
एकमेकक्षणे सिद्धं ध्रौव्योत्पादव्ययात्मकम् । अबाधितान्यतत्पत्ययान्यथानुपपत्तितः ॥ १७२ ॥
अर्थः-एक एक पदार्थ प्रत्येक क्षणमें ध्रुव भी अनुभवसिद्ध जान पडता है और उत्पत्ति तथा नाशयुक्त भी उसी समयमें जान पडता है । यह कैसे मालूम करना चाहिये ? यों कि,
किसी भी वस्तुको लीजये; वह, परस्परके पूर्वोत्तरकालवर्ती पर्यायोंमें भेद देखनेसे एक दूसरेसे जुदा जान पडेगा परंतु वही पदार्थ सामान्य दृष्टि से देखनेपर एकसरखिा अथवा अखंड दीख पडेगा । इसलिये मानना पडता है कि जुदा जुदा दीख पडता है इस कारण पदार्थ सदा एकसा नहीं टिकता; किंतु पूर्व पर्यायोंका नाश व उत्तर पर्यायोंकी उत्पत्ति होती ही रहती है । और इसीलिये यावत् पदार्थ प्रतिक्षणमें उत्पत्तिनाशयुक्त मानने पडते हैं ।
___अब देखिये पदार्थों का नित्यस्वभाव । किसी पदार्थके पूर्वोत्तर पर्यायोंपर याद विशेष लक्ष्य न हो तो पदार्थ सर्वदा एकसा ही जान पडेगा । जब कि पूर्वोत्तर पर्यायोंमें जुदायगी दीख ही नहीं पडती तो प्रत्येक पदार्थको अनादिसे ध्रुव-शाश्वत या नित्य क्यों न माना जाय ! वस, इस प्रकार पदार्थों में तीनो स्वभाव सिद्ध होते हैं। इसका एक उदाहरण:
___ एक किसी माटीको लीजिये । वह माटी बिगडकर उसमेंसे घडा भी पैदा होता है और वह फूट जानेपर कपाल या टुकडे भी