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हिंदी-भाव सहित (स्त्रियोंमें फसना अज्ञान है)। १३९
काम यह मद्यसे भी अधिक उन्माद बढानेवाला है, विवेकका भ्रंश करनेवाला है । इसीलिये जिनको कामने सताया हो उन्हें विवेक कहांसे होगा ? यदि विवेक होता तो इतना विचार भी वे न करते कि हाड मांस आदि अपवित्र वस्तुओंसे बने हुए शरीरमें चंद्रादिकीसी योग्यता कहांसे आसकती है ? अथवा, यदि चंद्रादिकोंके तुल्य होनेसे स्त्रीको प्रेमका पात्र मानना हो तो उन असली चीजोंसे ही क्यों न प्रेम करो । आखिरको वे असल हैं और यह उनके एक एक गुणकी ही तुल्यता रखती है। जिसका एक एक गुण स्त्रीमें रहनेसे स्त्री प्रेमका पात्र होसकती है उसके सर्व निर्दोष गुण जिसमें मिलते हों वह मुख्य पदार्थ ही क्यों न प्रेमका पात्र हो । सिवा इसके एक दो गुणोंकी तुलना रहते हुए भी जब कि वाकी अनेक दोष स्त्रीमें भरे हुए हैं तो वह प्रेमका पात्र कैसे बन सकती है ? पर यह सूझता किसको है ? कामान्ध हुए जनोंको यह विचार कदापि नहीं उठ सकता है । काम जीवोंको असली अंधा या विवेकशून्य बनानेवाला है। पर यह कामवेदना ज्ञानियोंको पैदा नहीं होती । देखोः
प्रियामनुभवत् स्वयं भवति कातरं केवलं, परेष्वनुभवत्सु तां विषयिषु स्फुटं लादते । मनो ननु नपुंसकं त्विति न शब्दतथार्थतः, सुधीः कथमनेन सनभयथा पुमान् जीयते ॥१३७॥ १ पन्नगवेणी चंद्र मु आनन कंचनकलस युगलकुचभार। __ लट्ट कवि सब हुए जगतके देख मेरा यह रूप अपार ॥
यह एक कविका वचन है । यदि सचमुचके चंद्रमा आदिकी ही आकृति मुखादिकी जगह बनादी जाय तो कुछ भी सुंदरता नहीं दीखती। एक तो इसलिये चंद्रादिकी उपमा केवल फसानेके सववसे दी जाती है । दूसरे, यदि चंद्रादिकी तुल्यता हो भी, तो भी इतनेसे उसमें प्रेमपात्रता क्यों होनी चाहिये? क्या पन्नग कोई रमणीय वस्तु है ? इसपर कुछ लोगोंका कहना है कि एकेक गुणके साथ उपमा है, नकि सर्वथा । तो भी इतनेसे स्त्री प्रेमपात्र नहीं होसकती । जिन चीजोंकी इसे उपमा दी जाती है उन चीजोंसे ही प्रेम करना उत्कृष्ट तथा ठीक है । क्योंकि, वे मसल हैं और यह केवल उनकी नकल है।