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हिंदी-भाव सहित (कामसे जीवोंकी हानि)। १३७ इसीलिये विचारे तपोवनोंमें रहकर भी स्त्रियोंको छोड नहीं सकते हैं। जैसे वनोंमें विचरनेवाला हस्ती, जब विषय उसे सताते हैं तब अपने ही पकडनेकेलिये बनाये हुए खड्डेमें विषयोंके वश जाकर गिर पडता है। क्या उसे वहां कोई खींचकर डालता है ? नहीं, अपने आप ही उसमें विषयोंके पराधीन होकर जा पडता है ।
मनुष्य तो विना प्रेरणा व विना उपदेशके ही इस प्रकार स्त्रियोंमें आसक्त होकर हित साधनेसे भ्रष्ट होरहे हैं । किंतु इतनेपर भी बहुतसे कुकवियोंने उलटी इसकी प्रशंसा की है। जिस योनिमेंसे मनुष्य जन्म लेता है वह योनि मनुष्यकी जननी कहनी चाहिये । पर उसीमें प्रीति करनेको जो कवि उत्साहित करते हैं उनकी नचिताका क्या ठिकाना है ? ऐसे ही नीच मनुष्योंके वचनोंसे जग फस रहा है । हमारा अनुमान है कि यदि ऐसे मनुष्योंके उपदेश जीवोंको सुननेमें न आये होते तो जीव ऐसे निकृष्ट स्त्रियोंके शरीरमें प्रेमके बलि होकर न पडते । यह सब दुष्ट प्रवृत्तिका प्रचार उन्ही नीच जनोंकी निरर्गल वासनाओंसे तथा उपदेशोंसे हुआ है। इन ठगोंके बहकानेमें कभी किसीको न पडना चाहिये । स्त्री, विषसे भी अधिक दुःखदायक है। देखो:
कण्ठस्थः कालकूटोपि शम्भोः किमपि नाकरोत् । सोपि दन्दह्यते स्त्रीभिः स्रियो हि विषमं विषम् ॥१३५॥
अर्थः-लोग कालकूट नामके विषको बडा ही जालिम बताते हैं । उसे खाते ही मनुष्य प्राणान्त होता है । साथ ही इसके कुछ लोग यह भी कहते हैं कि महादेवने अपने गलेमें उसे बहुत दिनोंतक इसलिये रक्खा कि वह बहुत जालिम है । लोगोंको इससे दुःख न हो। जब यह लोकमें रहेगा ही नहीं तो लोगोंको इससे दुःख भी कैसे होगा ! गलेमें उसे रखते हुए भी महादेवको उससे कुछ पीडा नहीं हुई । इससे मालूम होता है कि शक्तिशाली मनुष्योंपर उसका असर न पड पाया ।
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