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आत्मानुशासन. ___ अर्थ:-कितने ही लोगोंका यह कहना रहता है कि मन बडा ही बलाढ्य है । जब उसकी प्रवृत्ति विषयोंकी तरफ होने लगती है तब उसे कोई भी रोक नहीं सकता । इसीलिये चाहे स्त्रीका संबंध परिपाकमें दुःखदायक ही हो पर उससे निवृत्ति होना असंभव है। इस शंकाका उत्तरः
जो स्त्रियोंको आप तो भोग न सकता हो किंतु दूसरोंको भोगते देखकर प्रसन्न होता हो और स्वयं भोग न सकने पर भी इच्छा भोगनेवालेसे भी अधिक रखता हो वह नपुंसक या हीजडा कहा जाता है । वह वास्तवमें कायर होता है । शूरताके काम उसके हाथसे कभी नहीं बन पाते हैं । यह बात जगप्रसिद्ध है ।
मन, यह भी नपुंसक ही है। मन यह शब्द भी नपुंसक है व मन जिसको कहते हैं वह भी नपुंसक ही है । मनकी जितनी क्रियाएं हैं वे सब निस्सत्त्व नपुंसक प्राणियोंकीसी ही हैं । देखिये, आप तो यह स्त्रियोंको भोग भी नहीं सकता है । भोगनेवाले इंद्रिय दूसरे ही हैं । उन्हें देख-देखकर केवल प्रसन्न होता है । तो भी भोगनेकी इच्छा उन इंद्रियोंसे भी अधिक सदा बनी रहती है। इसलिये मन, यह केवल शब्ददृष्टि से ही नपुंसक नहीं है किंतु काम भी इसके कुल निस्सत्व नपुंसकोंकसे ही हैं । तब ? यह हर तरह नपुंसक ही समझना चाहिये । नपुंसकके हाथसे पुरुषार्थी पुरुष कभी जीता नहीं जासकता है । पुरुष क्या पुरुषार्थी है ? हाँ। .
जो मोक्ष-पुरुषार्थमें लगनेवाला व उसको हितकारी समझनेवाला पुरुष है वही सच्चा विवेकी है और वहीं सच्चा पुरुष है । जब कि वह विवेकी है तो उसके हाथसे मोक्ष-पुरुषार्थकी सिद्धि होनी ही चाहिये । इस प्रकार जब कि वह पुरुष अपने यथार्थ कर्तव्यमें प्रवृत्त हो रहा हो
और उस प्रवृत्तिमें इतना दृढ रहै कि विषयोंके संबंध उसे उस प्रवृत्तिसे डिगा न सकें तो वह पुरुष सच्चा पुरुष है,-पुरुषके कर्तव्यको पालनेवाला होनेसे पुरुषार्थका सच्चा आश्रय है । और पुरुष यह शब्द तो