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हिंदी-भाव सहित (स्त्रियोंकी सरोवरोंसे तुलना)। १३१ किनारेपर खडे होते हैं। और जो यह नहीं समझते हैं कि गहरे पानी में कहीं कहींपर मगर रहते हैं जो कि आदमियोंको गिल जाते हैं । जो पानीके भीतरी इस छिपे हुए धोखेको समझते हैं वे वहां खडे भी नहीं होते हैं।
इधर स्त्रियोंमें भी यही बात है। बे जो वचन बोलती हैं वह जल समझना चाहिये । बडे बडे सरोवरोंका जल अतिस्वच्छ रहता है। इनके वचनोंमें भी साथ ही साथ मंद मंद हास्य उत्पन्न होता है जो कि अतिस्वच्छ जान पडता है । कवियोंने हास्यका वर्णन स्वच्छ ही माना है । इस वचनके वीचमें लहरोंके समान अतिचंचल विनश्वर विषयसुख प्रगट होता रहता है । स्त्रियों के मुख तो कमलों के समान माने ही जाते हैं । इसलिये कमलोंकी भी यहां कमी नहीं है । इस प्रकार स्त्रियोंका बाहिरी स्वरूप ठीक सरोवरोंके ही तुल्य रमणीय रहता है । पर साथ ही जो सरोवरोंमें जलचर जीवोंका संचार रहता है वह भी यहां कम नहीं है । इंद्रियोंके विषय मगरादि जलचर प्राणियोंसे भी अधिक भयंकर हैं; जो कि स्त्रियों के साथ पूर्णतया वास करते हैं, उनके भीतर छिपे हुए सदा मुख फाडे हुए तयार रहते हैं । जो भोले मनुष्य केवल वाहिरी सौन्दर्य देखकर उनके पास जाकर अपनी तृप्ति करना चाहते हैं वे जाते ही उनमें ऐसे गडप होते हैं कि फिर बाहिर वचकर नहीं आसकते हैं, उन्हीके भीतर प्राण गमाते हैं। आत्मकल्याणसे वंचित होकर वे दुर्गतिके पात्र बनते हैं।
अर्थात् , विषयसुखोंमें मन होनेवाले मनुष्य, आत्मबल व ज्ञानादि आत्मीय संपत्तिको खो बैठते हैं; जो कि मरनेसे भी अधिक अनिष्ट है। इसलिये आत्माकी सर्वोच्च उन्नति करनेवाले व मोक्षकी इच्छा रखनेवाले मनुष्योंको स्त्रियों के बंधनसे वचना चाहिये । स्त्रियोंका सहवास करना मानों एक जंजालमें फसना है । अथवा, जैसे गोरखधंदा ऊपरसे देखनेपर सीधासा दीख पडता है पर उससे हाथ लगाया कि उसमें और