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हिंदी-भाव सहित ( मुक्तिलाभके बाधक)। १२७ किया जाय तो वह साधुको निष्कंटक अवश्य अपने अभीष्ट मोक्षस्थानको पहुचा सकता है । इन आठो बातोंमें सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र व तप ये चार मुख्य साधन हैं और वाकी इन्ही चारोंके अंग उपांग हैं । इसलिये यदि उक्त चार आराधनाओंको ही मोक्षप्राप्ति करादेनेवाले मुख्य कारण कहें तो भी ठीक ही है । मोक्ष प्राप्त होनेमें बाधकः
मिथ्या दृष्टिविषान् वदन्ति फणिनो दृष्टं तदा सुस्फुट, यासामर्धविलोकनैरपि जगद्दन्दह्यते सर्वतः। तास्त्वय्येव विलोमवर्तिनि भृशं भ्राम्यन्ति बद्धक्रुधः, स्त्रीरूपेण विषं हि केवलमतस्तद्गोचरं मास्म गाः ॥१२६।।
अर्थ:-हमने अच्छी तरह देखलिया कि जिनके देखनेमात्र विष चढ जाता है ऐसे दृष्टिविष जातिके सर्प भी होते हैं यह कहना सर्वथा झूठ है। असली दृष्टिविष सर्प स्त्रियां हैं कि जिनके आधे उघडे हुए नेत्र ही कामवेदना उत्पन्न करके मनुष्यके सर्वाङ्गको जलाने लगते हैं । इसीलिये उन स्त्रियोंके वशीभूत सारा ही जग होरहा है। जो उनसे विरुद्ध होना चाहता है उसपर उन्हें क्रोध आता है और वे उसे हर तरह अपने वश करनेकी चेष्टा करती हैं तथा दुःख देती हैं । तू भी उनसे विरुद्ध हुआ है इसलिये तेरे ऊपर भी वे क्रुद्ध हुई हैं और अपने विषका असर डालनेकेलिये फिर रही हैं । ये स्त्रियां असली विष हैं। तू इनके दृष्टिगोचर हुआ कि उस विषने तेरे ऊपर असर किया । और इस विषका नतीजा इतना ही है कि जीव विषयोंमें मोहित होकर मोक्षमार्गसे पतित होजाता है । इसलिये यदि तुझै मोक्षमार्गमें रहकर मुक्ति प्राप्त करना है तो उनके दृष्टिगोचर कभी मत हो। यह एक मुख्य बाधक कारण मोक्ष प्राप्त करनेवालेकेलिये समझना चाहिये । क्योंकि, ये स्त्रियां सर्पसे भी अधिक भयंकर हैं । देखोः
क्रुद्धाः प्राणहरा भवन्ति भुजगा दष्ट्वैव काले कचित्, तेषामौषधयश्च सन्ति बहवः सद्यो विषव्युच्छिदः ।