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हिंदी-भाव सहित (शुभाशुभ रागका फल)। १२५ करनेवाले विषयोंमें प्रीति करने लगा हो तो वह साधु अवश्य अज्ञानमोहादिक अंधकारमें फसकर नरकादिके दुःखोंमें जाकर पडता है ।
भावार्थ:-सूर्यकी प्रातःकालसंबंधी लालिमा सूर्यके उदयका कारण है, और संध्याकालसंबंधी अंधकारमें फसाकर उसे गिरादेनेवाली है। क्योंकि, पूर्ण प्रकाशरूप शुद्ध अवस्थाको पाकर भी उससे विमुख होकर जो रागान्ध बनता है उसने पाया हुआ उदय हाथसे खो दिया, यों कहना चाहिये । इसीलिये उसकी दुर्दशा होना, हीन दशामें पडना साहजिक बात है । इसी प्रकार साधु भी जो तत्त्वज्ञानादिक अध्यात्म प्रकाशमें साक्षात् पहुचकर उससे विमुख होकर संध्यारागकी तरह मोह अज्ञान उत्पन्न करनेवाले विषयरागमें आसक्त होता है उसकी दुर्गति होना साहजित बात है । किंतु जो अध्यात्म विचार तथा श्रुतज्ञानादिकमें प्रीति करता है, जिससे कि आत्माकी साक्षात् शुद्धि प्राप्त होकर संसार-क्लेश नष्ट होनेवाले हैं और आत्मीय प्रतिबोध तो जिससे तत्काल ही प्राप्त होता है; वह प्रीति उस साधुकेलिये आत्मोदय या शाश्वत सुखका कारण है । यह प्रीति सूर्यकी प्रातःकालसंबंधी लालीके तुल्य है। इससे उदय व पूर्ण प्रकाश क्यों न उत्पन्न हो ?
___ यद्यपि शुद्ध दशा प्राप्त हो जानेपर आगामी उदय बढानेवाला प्रातःकालकी लालिमातुल्य जो शुभ राग है वह भी त्याज्य है परंतु जबतक शुद्ध दशा प्राप्त नहीं हुई हो तबतक वह प्राय भी है। और जो संध्याकालके रागतुल्य विषयसंबंधी रागभाव है वह सदैव अहितकारी है, पापकर्म बढानेवाला है । इसलिये सदा ही हेय है । किसी समय भी वह ग्रह्य नहीं होसकता है। चारो आराधना पूर्ण हो चुकनेपर फल?
ज्ञानं यत्र पुरःसरं सहचरी लज्जा तपः संबलं, चारित्रं शिविका निवेशनभुवः स्वर्गो गुणा रक्षकाः। पन्थाश्च प्रगुणं शमाम्बुबहलं छाया दया भावना, यानं तं मुनिमापयेदभिमतं स्थानं विना विप्लवैः ॥१२५॥ , 'बहुल ' ऐसा भी पाठ है।