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हिंदी-भाव सहित (शुभ रागकी परीक्षा)। १२३ है । इसीको कुछ लोग राजसी वृत्ति या रजोगुण कहते हैं । ऐसी शुभ अवस्था प्राप्त होनेपर जब जीवकी प्रवृत्ति आत्मतत्त्वकी तलासमें और भी आधिक झुकती है तब वह साधुसमागमादिक शुभ कामोंसे भी मन को हटाकर केवल निर्विकार शुद्ध आत्माके. चितवन करनेमें लगा देता है । तब इसीका नाम शुद्ध अवस्था है।
प्रीति या राग उत्पन्न होनेसे आत्मा संसारमें फसता है । इसीलिये राग द्वेषको बुरा व हेय माना जाता है । परंतु संसारविषयोंके रागसे साधुसमागम, तत्त्वज्ञानादि-संबंधी राग बहुत कुछ अच्छा है । यह राग ऐसा है कि अपने विषयमेंसे भी रागको एक दिन नष्ट कराकर आत्माको शुद्ध अवस्थामें पहुचा देता है, जहां कि किसी बातका संकल्प नहीं रहता, तथा भीतरी आत्मतत्त्वके अवलोकनके सिवा बाहिरी बुरी भली सभी चीजोंसे मन एक-दम हटजाता है। इसीलिये संसारविषयसंबंधी रागको अशुभ व अन्धकारके तुल्य कहा है
और तत्त्वज्ञानादिसंबंधी रागको शुभ कहा है । क्योंकि, यह आगे चलकर जीवकी परिणतिको शुभ कर देता है।
जैसे सूर्यमें लाली प्रातःकाल भी होती है व संध्याकाल भी होती है । लालिमा दोनो एकसी ही दीख पडती हैं। परंतु संध्याकालकी लालिमा कुछ ही आगे चलकर सूर्यको अँधेरेमें पटक देती है, जगमें अँधेरा ही अँधेरा छादेती है। इसलिये वह अत्यंत निकृष्ट लालिमा है । परंतु प्रातःकालकी लालिमा ऐसा नहीं करती है। वह कुछ ही देरवाद सूर्यको अत्यंत शुद्ध प्रकाशमान बना देती है, जगमें भी प्रकाश ही प्रकाश फेला देती है। इसीलिये वह लालिमा बुरी नहीं है। क्योंकि, वह सूर्यको शुद्ध बनानेवाली है। उस लालीके वाद सूर्य अंधकारमें फसता नहीं है। इसी प्रकार तत्त्वज्ञानादिकमें राग उत्पन्न होनेसे जीव संसार विषयसंबंधी अशुभ रागवासना छोडकर शुभमें प्रवेश करता है और वही राग आगे चलकर जीवको शुद्ध बना देता है । इसलिये वह राग