________________
आत्मानुशासन.
अर्थः-जिनका विवाह होना निश्चित होगया, तो भी विवाह न करके जो बाल्यावस्थासे ही ब्रह्मचारी बनगये उनके लिये हमारा नमस्कार है । केवल ब्रह्मचारी ही नहीं बने किंतु वंशपरंपरागत लक्ष्मी तथा राज्यसंपदाको पाकर भी विना भोगे जिन्होंने छोड दिया और दीक्षा धारण करली। किसी चीजको भोगनेका अधिकार पाकर या भोगनेके लिये सामने आजाने पर यद्यपि न भोगकर ही छोड दिया जाय तो भी वह चीज उच्छिष्ट या झूठन मानली जाती है । क्योंकि, कोई चीज चाहें भोगलेनेपर वाकी रह जाय या न भोगकर ही छोड-दी जाय, पर उसे भोगनेसे वाकी रही हुई तो कहना ही पडेगा । वस, वाकी रहे हुए। का ही नाम उच्छिष्ट है । उत् नाम वाकी, शिष्ट नाम छूटगया । इन्ही दोनो शब्दोंके मिलानेसे · उच्छिष्ट ' बन जाता है । इसीलिये जो चीज न भोगकर भी छोडदी गई हो वह उच्छिष्ट होगई समझना चाहिये । जिसने उसे पाकर छोड दिया उसके लिये वह उपभुक्त भी हो ही चुकी । इसीलिये उन ब्रह्मचारियोंने चाहें जगकी विभूतिको न भोगकर ही छोड दिया, पर वह विभूति, वह जग उनका उपभुक्त हो चुका । जगकी रीतिकी तरफ देखें तो जो भोगलिया हो उसे उपभुक्त कहते हैं और जो भोगते भोगते वाकी रह जाय उसे उच्छिष्ट कहते हैं । पर इन्होंने भोगा ही नहीं तो भी जगभर उपभुक्त हो गया और छूट गया इसलिये उच्छिष्ट भी होगया यह आश्चर्यकीसी बात है। और सच्चा आश्चर्य यह है कि विना भोगे हुए पाई हुई संपदाको तृणवत् समझकर उन्होंने त्याग कैसे किया ? भोगसंपदा न मिलते हुए भी जीव जहां कि शतशः मनोराज्य बनाता रहता है और विषयोंसे लालसा छूट नहीं पाती; यों करूंगा तब ये सुख मिलेंगे, ऐसा उद्योग करूंगा तब ऐसी धन-दौलत मिलेगी ऐसी मानसिक भावना सदा ही इस जीवके अंतरंगमें लह लहाती रहती है, और चाहें मिलै रत्ती भर भी नहीं; वहां पाकर भी अतुल संपत्तिको छोड जाना और आत्माके समाधि-सुखमें जाकर रत होना कितने