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आत्मानुशासन, प्रकार सम्यग्दर्शन तथा सम्यग्ज्ञान ये मोक्षके दो साधन जब कि मिल चुके तो तीसरे एकमात्र चारित्रका मिलाना वाकी रहगया । यह तीसरा साधन जब प्राप्त हो जाता है तब मोक्षका प्राप्त होना दूर नहीं और उसमें विलम्ब नहीं समझना चाहिये । परिग्रहोंका त्याग होनेसे चारित्र प्राप्त होता है । या यों कहिये कि, परिग्रहका त्याग होना ही चारित्र है; क्योंकि, विषयोंमें रागद्वेष होनेसे संसार बढता है इसलिये संसारके असार स्वरूपसे जो विरक्त होगा उसका परिग्रहोंसे मन हटेगा और इसीलिये परिग्रहका छूटजाना उसके लिये एक सहज बात है । जो जिसे अच्छा बुरा समझता है उसका उसमें रागद्वेष होना सहजसिद्ध है । इसी प्रकार जो जिसे निस्सार समझता है उसका उससे मोह छूट जाना भी सहन बात है । इसीलिये जो विषयों के दुःखदायक फलको समझ चुका है वह उनसे क्यों न उदास होगा ? जब कि विषयोंसे उदास होगया तो विषयोंके ही लिये इकट्ठे किये जानेवाले परिग्रहोंसे क्यों न हटेगा ? वस, इसीलिये परिग्रहोंका छूटजाना अंतरंगके चारित्र परिणामका प्रकाशक होसकता है । जब कि इतनी सूक्ष्म दृष्टि से विचार न करना हो तो यों कहलीजिये कि, परिग्रहोंका त्यागना ही चारित्र है। जब ये तीनों रत्न प्राप्त हो चुके तो समझना चाहिये कि मोक्ष-प्राप्तिके पूरे साधन जुडगये । ऐसी अवस्थामें जरामरणादि शरीरसंबंधी दुःखोंसे रहित मोक्षपदकी प्राप्ति क्यों न होगी? क्योंकि, कुल कारणोंके मिलजानेपर कार्यका सिद्ध होना अवश्य ही न्याययुक्त है । इसके लिये एक दृष्टान्त कहते हैं जिससे कि ऊपरका अर्थ खुलासा हो,
___ वह यह कि, जैसे दूषित शरीरको शुद्ध करनेकेलिये योगके ग्रंथोंमें पवनसाधनका विधान दिखाया गया है । उसी पवनसाधनके अंतर्गत सर्व विधि समाप्त हो जाने पर अंतमें कुटी-प्रवेश नाम एक क्रिया की जाती है । वह क्रिया पूरी हुई कि शरीरकी शुद्धि हो जाती