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हिंदी-भाव सहित (विषयोंसे सावधानी)। ७९ मरण पाते हैं । पर व्यसनी जनोंको व्यसनके सामने अपने हिताहितका भान प्राय कहां रहता है ? नहीं। इसीलिये तो यह कहावत है कि व्यसनी जनोंको अपने हिताहितका विवेक प्राय नहीं रहता । अरे जीव, तू ऐसे निरर्थक, उलटे दुःखदायक विषयोंमें भेोरेकी तरह फसकर प्राण क्यों गमाता है ? ये विषय भोगते समय तो ठीक कमलकी तरह कोमल लगते हैं । पर कमल जिस प्रकार फसे हुए भोरेको आखिर मारकर छोडता है उसी प्रकार ये विषय अपनेमें फसे हुए जीवोंको अनेक वार प्राणान्तके दुःख देनेवाले हैं। इसीलिये हंससदृश श्रेष्ठ पुरुषोंने इन्हें दूरसे ही छोड रक्खा है।
___ अथवा ये विषयभोग उस पत्थरके समान हैं कि जिस पर पानीके संसर्गसे काई लग जाती है । छूते तो वह काई अति कोमल जान पडती है पर, पैर रखते ज्यों ही मनुष्य गिरता है कि सारे अंजर पंजर टूट जाते हैं । व्यसन भी प्रथम स्पर्शके समय तो आपात रमणीय जान पडते हैं पर, ज्यों ही प्राणी उनमें फसा कि आधि व्याधि निर्धनता आदि अनेक दुःखमय कीचडमें गिर पडता है कि जहांसे निकलना तथा संभलना कठिन । देखते ही ऐसे दुःख तो भोगने पड़ते हैं किंतु पापसंचित करके जब परभवमें पहुचता है तो और भी अधिक दुःखोंकी खानिमें पडना पडता है। इसलिये विषयोंसे प्रीति करना अच्छा नहीं है।
विवेक तथा सावधानीकी दुर्लभताःप्रझैव दुर्लभा सुष्टु दुर्लभा सान्यजन्मने । तां प्राप्य ये प्रमाद्यन्ति ते शोच्याः खलु धीमताम् ॥१४॥
अर्थः-प्रथम तो विचार होना ही कठिन है, पर परलोकके सुधारकी तरफ विचार जाना और भी कठिन है । भाग्यवश यदि उस तरफ विचार लग भी गया हो तो भी करनेमें मनुष्य आलसी बने रहते
. १ 'सेवालशालिन्युपले छलेन पातो भवेत् केवलदुःखहेतु: ' इसका भाव है ।