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आत्मानुशासन.
कदाचित् उससे मार खारहेगा । परंतु कितने कष्टकी बात है कि प्रचण्ड काम, धनुषके विना ही प्राणियोंको विदीर्ण करता है; शस्त्रादि अनिष्ट साधन नहीं लेता किंतु अतिप्रिय वस्तु जो कान्ता, उसीसे लेकर विखण्डित करता रहता है और इसीलिये किसी भोले मनुष्यको ही नहीं किंतु, उन मनुष्यों को भी कि जो अपनेको ज्ञानी मानते हैं। और फिर भी देखो यह आश्चर्य है कि, उस कामकी वेदनाओंको लोग धीरताके साथ सहलेते हैं, पर तपश्चरणरूप अग्निको प्रदीप्त कर कामको भस्म करदेनेका साहस कभी नहीं करते । ___ ठीक ही है, उसके धोखेमें चाहे जो आजाता है कि जो प्रत्यक्ष विरोध प्रकाशित न करके किसीको मारनेका प्रयत्न करता हो, एवं विना शस्त्र लिये ही किसी गुप्त चीजसे मारना चाहता हो । काम भी ठीक ऐसा ही ठग है। वह मारनेके लिये कोई शस्त्र धारण नहीं करता, किसीसे विरोध जाहिर नहीं करता । जीवोंको जो इष्ट जान पड़ते हैं ऐसे वनिता आदि साधनोंके द्वारा जीवोंको सताता है, और जीव तो भी उसे मित्रतुल्य ही मानते हैं । इसीलिये उसके नाशका प्रयत्न न करके उलटा उसे सबल बनानेकी फिक्रमें रहते हैं । तभी तो कामके उत्पादक शरीरको जहां कि तपश्चरण-द्वारा सुखा देना चाहिये वहां उसको हरतरह पुष्ट बनानेकी प्राणी चेष्टा करते हैं । यह कितना विपर्यय है ?
यदि वह काम नष्ट करना हो तो क्या करें ?..अर्थिभ्यस्तृणवद्विचिन्त्य विषयान् कश्चिच्छ्रियं दत्तवान्, पापां तामवितर्पिणीं विगणयन्नादात् परस्त्यक्तवान् । मागेवाकुशलां विमृश्य सुभगोप्यन्यो न पर्यग्रही,देते ते विदितोत्तरोत्तरवराः सर्वोत्तमास्त्यागिनः ॥१०२॥
अर्थः-भोगोंकी प्रवृत्त तथा इच्छाको काम कहते हैं । इस कामका मुख्य साधन लक्ष्मी है । इस लक्ष्मीके छोड देनेसे काम नहीं रह सकता । इसलिये लक्ष्मीका त्यागना यही कामके नाशका यथार्थ