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हिंदी-भाव सहित (धर्म कब होगा?)। ७५ __अर्थः-बाल्य अवस्थामें तो पूरा समर्थ न होनेसे तू अपने हिताहितको थोडासा भी समझ नहीं पाता; किंतु युवावस्थामें जब कि समझने योग्य हुआ तब, जैसे कोई वनमें क्रीडा करता फिरै, तू स्त्रियों के झुंडमें कामान्ध हुआ विचरने लगता है । यौवन अवस्थाके आगे जब कि बाल बच्चे होगये तब, उस मध्यावस्थामें तृष्णा बढती है जिससे कि खेती या व्यापारादि काम करके धन कमानेकी चिंतासे व्याकुल होता है। उस समय भी तू ठीक पशुओंकी तरह अज्ञानी और भारवाही बन जाता है । अब जब कि बुढापा आगया तो संपूर्ण इंद्रियां शिथिल होगईं; स्मरणशक्ति तथा शरीरशक्ति अतिक्षीण होचली। मनभी उस समय स्थिर विचार नहीं करसकता । इस लिये वह बुढापा क्या है, आधा मरण ही हो चुका समझना चाहिये । अब कहिये, धर्म कब होसकेगा ? भावार्थ, विषयासक्त प्राणीका जन्मसे लेकर अंत हुएतक सारा आयुष्य यों ही वीत जाता है, धर्म एक रत्तीभर भी सध नहीं प.ता । पर यह खूब ध्यान रक्खो कि, जन्म धारण करनेका निर्मल फल एकमात्र धर्म ही है। इसमें लेशमात्र भी मल- दुःख, संकट नहीं रहते इसीलिये यह धर्म निर्मल माना गया है । इसके विना जन्म लेना सफल नहीं हो सकता।
वर्तमान पर्यायके दुःखःबाल्यस्मिन् यदनेन ते विरचितं स्मर्तुं च तमोचितं, मध्ये चापि धनार्जनव्यतिकरैस्तनापितं यत्वयि । वार्द्धक्येप्यभिभूय दन्तदलनाधाचेष्टितं निष्ठुरं, पश्याद्यापि विधेर्वशेन चलितुं वाञ्छस्यहो दुर्भते ॥ ९ ॥
अर्थः-अरे दुर्बुद्धे, बाल्यावस्थामें तुझै अज्ञानी बनाकर जो कुछ दुःख इस कर्मने दिये-जो जो वेहाल किये उनका विचारना भी
१ स्तन्नापितं (प्रापितं ) ऐसा पाठ सटीक पुस्तकम है। २ 'दाचेष्टितं' ऐसा पाठ सटीक पुस्तकमें है।