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आत्मानुशासन.
एक अंधा आदमी रस्सीको आगे आगे तो वटता जाता है और पीछेसे उसके बल खुलते जाते हैं । अथवा हस्ती प्रथम तो स्नान करता है और पीछेसे अपने ऊपर धूल डाल लेता है। ठीक, गृही मनुष्यकी भी सर्व चेष्टाएं इसी तरहकी होती हैं। इसका कारण केवल गृहाश्रमका संबंध है। जब कि ऐसा है तो इस गृहाश्रमसे किस प्रकार हितसिद्धि हो सकती हैं ? इस. लिये जब कि तू हित चाहता है तो गृहाश्रमका संबंध सर्वथा छोड ।
बहुतसे मनुष्य समझते हैं कि हम गृहस्थी होकर अपने पुरुषार्थसे धन कमाकर स्वतंत्र होकर भोगोंको भोगते हुए भी सुखी रहेंगे; घर त्यागनेसे क्या कल्याण हो सकता है ? घरमें रहकर तो जैसा अधिक पौरुष करेंगे वैसा ही अधिक धन मिलनेसे अधिक सुखी होंगे । उनको दिखाते हैं कि गृहाश्रममें जो कार्य आजीविकार्थ किये जाते हैं वे सभी दुःखदायक हैं । देखो,
कृष्टोप्त्वा नृपतीनिषेव्य बहुशो भ्रान्त्वा वनेऽम्भोनिधी, किं क्लिश्नासि सुखार्थमंत्र सुचिरं हा कष्टमज्ञानतः । तैलं त्वं सिकतासु यन्मृगयसे वाञ्छेविषाज्जीवितुं,
नन्वाशाग्रहनिग्रहात्तव सुखं न ज्ञातमेतत् त्वया ॥ ४२ ॥ ___ अर्थः-तू अपने उदर-निर्वाहार्थ तथा इंद्रिय-भोगोंके सेवनार्थ खेत जोतनेमें और बीज बोनेमें, एवं राजसेवा करनेमें तथा व्यापारके लिये जंगलों जंगलों भटकनेमें अथवा समुद्रमार्गसे भ्रमण करनेमें चिरकालसे क्यों क्लेश उठा रहा है ? अरे, हा, अज्ञानके वश यह सब कष्ट तुझै भोगना पडता है । क्या इस प्रकार बहुतसा उद्योग करनेपर भी तू सुखी हो सकता है ? नहीं । क्योंकि उद्योगमात्र सुख मिलनेका कारण नहीं है । सुखका कारण धर्म है । इसीलिये जबतक धर्म है तबतक अनायास भी सुख मिलता है । नहीं तो बहुतसा क्लेश करनेपर भी कभी सुख प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिये तेरी ये सब क्रियाएं जबतक कि धर्मसे शून्य हो रही हैं तबतक तू ऐसा समझ कि मैं बालूमेंसे तेल