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हिंदी-भाव सहित ( कालका स्वरूप )। ६३ हैं उनमेंसे निश्चय-नयाश्रित काल तो द्रव्यस्वरूप है जिसको कि वस्तुभोंकी उत्पत्ति तथा विपत्तिमें सीधा सहायक माना ही नहीं जाता है । रहा व्यवहार-नयाधीन काल, परंतु वह भी जान-बूझकर किसीका कर्ता हर्ता नहीं है; क्योंकि, वह जड वस्तु है। जडमें करने हरनेकी कल्पना तात्त्विक विचारसे नितान्त दूर है । वस्तुकी स्थिति उसके बंधनादिकी योग्यतापर रहती है । जैसे एक घडेको यदि खूब ठोंककर मजबूत बनाया या अग्निमें खूब अच्छा पकाया अथवा उसमें कोई आघात जल्दी न लग गया हो तो वह अधिक समयतक ठहरता है, नहीं तो नहीं । इसी प्रकार सभी वस्तुओंकी स्थिति निरनिराले कारणवश हीनाधिक हुआ करती है । इसलिये कालमें कुछ भी समर्थ कारणता नहीं है । यथार्थ देखा जाय तो व्यवहार काल कोई निराली चीज भी तो नहीं है किंतु निश्चय कालके द्वारा उत्पन्न हुई जो वस्तुओंमें निरनिराली स्थिति वही व्यवहार काल कहाता है । उसे कहींपर तो उन उन वस्तुओंका ही पर्याय कहा है और कहीं कहीं पर वस्तु-पर्यायोंकी मर्यादा सूचित करने बाला, परंतु निश्चय कालासंबंधी पर्याय ऐसा कहा है । वस्तुकी स्थिति. पूर्ण होनेपर अवश्य ही पलटन होगी । इसी अर्थका भयंकर रूप दिखानेके लिये लोगोंमें यह कल्पना चलगई है कि काल जीवोंको मारता है, उसके आजानेपर जीवको कोई भी बचा नहीं सकता है; इत्यादि, इत्यादि।
दूसरा दृष्टान्तःउत्पाद्य मोहमदविभ्रममेव विश्वं, वेधाः स्वयं गतघृणष्ठगवद्यथेष्टम् । संसारभीकरमहागहनान्तराले, हन्ता निवारयितुमत्र हि का
समर्थः ॥ ७७॥
अर्थः–वेधा नाम पूर्वोपार्जित कर्मका है । यह पूरा ठग है । निर्दय ठग जिस तरह लोगोंको मादक वस्तु खिला पिलाकर असावधान १ 'विलसितविधे:' ऐसा भी पाठ है । एसा पाठ जानन — विलासतो भुक्तो, विधिरायः कर्म छस्य तस्य पुंसः' अर्थात् भागकर खतम होगया है आयुकर्म जिसका उस पुरुषका ऐसा नाम बन जाता है।