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हिंदी -भाव सहित ( भोगों की निस्सारता ) । ३७
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तुझे विवेक नहीं रहा । इसलिये तू ऐसा समझता है कि घरमें रहकर उद्योगसे धन कमाकर विषय भोगना सहज भी है और उससे सुख भी होता है । पर खूब पक्का समझले कि, इससे अविनाशी सच्चे मोक्ष सुखकी प्राप्ति होना नितान्त असंभव है । इस विषय - सुखको तू सहज और सच्चा सुख समझता है । इसीसे तेरी इच्छा परिग्रह - जालसे हटती नहीं है | परंतु यह तू निश्चय समझ कि, विषयसंग्रहके लिये जितना तू क्लेश निरंतर सहता है और तो भी वे विषय इच्छित प्राप्त नहीं होपाते, उतना ही कष्ट यदि मोक्षसुखार्थ तेने कभी एक वार भी किया होता तो अवश्य अविनश्वर सुख प्राप्त हो गया होता। यदि अव भी वैसा करे तो अब भी कुछ विगडा नहीं है। तू डरै मत, विषयोंके उपार्जन से मोक्ष - सुखका उपार्जन करना सहज हैं और वही असली सुख है ।
बाह्य पदार्थोंसे राग द्वेष हटानेका उपदेश:संकल्प्येदमनिष्टमिष्टमिदमित्यज्ञात प्राथात्म्यको, बाह्ये वस्तुनि किं वृथैव गमयस्यासज्य कालं मुहुः १ अन्तः शान्तिमुपैहि यावदऽदयप्राप्तान्तकप्रस्फुरज्-, saroraणारानलमुखे भस्माभिवेन्नो भवान् ||४८॥ अर्थ :- अरे भव्य, तू वस्तुओं का यथार्थ स्वरूप नहीं समझता। इसी - लिये स्त्रीपुत्रादि इतर वस्तुओंमें मोहित होकर स्त्री पुत्रादि या रत्न सुवर्णादिको हितकारी समझता है, शत्रु सर्प विषादिको अहितकर्ता समझता है । पर ऐसा मानकर क्यों कालको यों ही गमाता है ? ऐसी कल्पना तेरी तभी तक होती है जबतक कि तू असली आत्मीय शांतिको प्राप्त नहीं हुआ। ये तेरी सभी कल्पनाएं झूठी हैं; क्योंकि, अन्य पदार्थों में तुझे सुख दुःख देने की शक्ति नहीं है ? जो कुछ सुख दुःख होते तुझे दीखते हैं वे तेरी ही संकल्पवासना के फल हैं। देख, इधर तो तू यों ही फसा रहेगा किंतु काल किसी समय आकर अचानक ही तुझें दवा लेगा। इस लिये उससे बचनेका उपाय देख । वह यह है कि जबतक, चाहें जब आजाने