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हिंदी-भाव सहित ( संसारकी असारता )।
. विषयोंकी क्षणिकता दिखाते हैं:श्वो यस्याऽजनि यः स एव दिवसो ह्यस्तस्यं संपद्यते, स्थैर्य नाम न कस्यचिजगदिदं कालानिलोन्मूलितम् । भ्रातभ्रान्तिमपास्य पश्यासितरां प्रत्यक्षमणोन किं, येनात्रैव मुहुर्मुहुर्बहुतरं बद्धस्पृहो भ्राम्यसि ॥५२॥
अर्थ:-अरे भाई, जो दिवस जिसके लिये आनेबाला था वही दिवस उसीके लिये कुछ समय बाद ही बीता हुआ हो जाता है । यह बात, क्या तू भ्रम दूर करके साक्षात् अपने ही नेत्रोंसे नहीं देख रहा है, जो कि तू इन्हीं क्षणभंगुर स्त्री-पुत्रादिकोंमें फिर फिरसे अत्यंत आसक्त होकर भटकता है ? भावार्थ, सभी वस्तुएं क्षण क्षणमें औरसे और हो जाती हैं। एक भी वस्तु क्षणमात्रके लिये भी स्थिर नहीं है। जगत भरकी जड कालरूप वायुके वेगसे हली हुई है । अर्थात्, जिस दिवसका एक समय प्रभात होता है उसीका थोडे समय वाद जिस प्रकार अंत हो जाता है उसी प्रकार संसारकी सभी चीजें क्षणभंगुर समझनी चाहिये, एक भी चीज चिरस्थायी नहीं है । जब कि ऐसा है तो संसारके लोग क्षणनश्वर इन स्त्रीपुत्रादिकोंमें ही वार वार क्यों अत्यंत आसक्त होकर अपने आपेको भूल रहे हैं?
जगकी क्षणभंगुरता न समझनेसे क्या होता है ?-- संसारे नरकादिषु स्मृतिपथेप्युद्धेगकारीण्यलं, दुःखानि प्रतिसेवितानि भवता तान्येवमेवासताम् । तत्तावत् स्मरासि स्मरस्मितशितापाङ्गैरनङ्गायुधै -, . र्वामानां हिमदग्धमुग्धतरुवद्यत् प्राप्तवान् निर्धनः ॥५३॥
अर्थः-अरे, संसारमें भ्रमते हुए तेने, नरकादि गतियोंमें, जिनके स्मरणमात्रसे भी अत्यंत भय उत्पन्न होता है ऐसे जो दुस्सह दुःख अभी तक भोगे उन्हें तो तू यों ही रहने दे; क्योंकि, वे अब साक्षात् दीखते नहीं हैं । परंतु जैसे तुषारके पडनेसे छोटे छोटे पौधे दग्ध हो जाते हैं