Book Title: Vividh Pujan Sangraha
Author(s): Champaklal C Shah, Viral C Shah, 
Publisher: Anshiben Fatehchandji Surana Parivar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HDGOISOYOYAY SNOOOOOOOOONE । विविध पूजन संग्रह । OMGOOOOOOOO YA प्रेरिका गोडवाडदिपीका प.पू. साध्वी श्री ललितप्रभाश्रीजी म.सा. सा. श्री दक्षरत्नाश्रीजी म.सा. सिद्धचक्र महापूजन शांतिस्नात्र bar श्री १०८ पार्श्वनाथ अभिषेक पूजन पार्श्व-पद्मावती महापूजन अट्ठारह अभिषेक वार्षिक ध्वजारोहण गौतमस्वामी महापूजन प्रकाशक:- अ.सौ. अंशीबेन फतेचंदजी सुराणा परिवार Paintidubaticn. For PersonaAPrivana.org P l eariiry.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *** ** *** ****** ** |॥ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः ॥ ॥ श्री नीति-हर्ष-महेन्द्र-मंगल-अरिहंतसिद्ध-हेमप्रभसूरि गुरुभ्यो नमः ॥ ॥ विविध पूजन संग्रह ॥ श्री सिद्धचक्र महापूजन, श्री १०८ पार्श्वनाथ अभिषेक पूजन, अट्ठारह अभिषेक, वार्षिक ध्वजारोहण, श्री गौतमस्वामी महापूजन, श्री पार्श्व-पद्मावती महापूजन दिव्य आशीर्वाद दाता :- प.पू. आचार्य भ. श्री विजयअरिहंतसिद्धसूरीश्वरजी म.सा. आशीर्वाद दाता :- वर्तमान गच्छाधिपति आ.भ. हेमप्रभसूरीश्वरजी म.सा. प्रेरिका :- गोडवाडदिपीका प.पू. साध्वी श्री ललितप्रभाश्रीजी म.सा. संशोधक-संपादक:- विधिकार शिरोमणि पंडितवर्य चंपकलाल सी. शाह (खीमाणावाला) एवं युवाविधिकार विरलकुमार सी. शाह - शिवगंज प्रकाशक :- अ.सौ. अंशीबेन फतेहचंदजी सुराणा परिवार ** **NNNNNNNNNNAR**** in Education For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ २ ॥ प्राप्तिस्थान वि.सं. २०६५ नीति सं. ६० श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ धाम वीर सं. २५३५ ई.स. २००९ नेशनल हाईवे नं. १४, मु.पो. विरामी (ढाणी), राज. चम्पकलाल सी. शाह कुटुम्ब कोलोनी, शिवगंज-३०७०२७ (राज.) फोन : ०२९७६-२२२२२३, मो : ०९४६००७२७८०, ०९४१४९२४५०५, मूल्य : वीतराग भक्ति ०९८२९१५३७०४, ०९९२९११७०२८ श्री लुणावा मंगल भुवन तलेहटी रोड, पालीताणा (गुजरात) . फोन : ०२८४८-२५२३१६ सलोनी ज्वेलर्स मुद्रक : भरत ग्राफिक्स पटवा चाल, दूसरा माला, मुम्बादेवी मन्दिर के सामने, न्य मार्केट, पांजरापोळ, रिलीफ रोड, अहमदाबाद-१. मुंबई । फोन : २५६६४३२४ फोन : ०७९-२२१३४१७६, मो : ९९२५०२०१०६ ॥२॥ in Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह me R सहजत्यागी-मृदुभाषी-सरलस्वभावी-वंदनीय-तप तेज से देदिप्यमान मुखारविन्द गोडवाड दिपिका अनेक जीवों को सन्मार्गप्रेरिका, शंखेश्वर धाम तीर्थ प्रेरिका श्री ललितप्रभाश्रीजी (लहेरा म.) को सादर समर्पण नहीं जरूरत सूर्य की, आपके नाम को रोशन करने के लिए नहीं जरुरत आसमा की, आपके शोहरत की ऊँचाइ बढ़ाने के लिए नहीं जरूरत समुद्र की, आपके जीवन की गहराई नापने के लिए नहीं जरुरत धरती की, आपकी सहनशीलता परखने के लिए तो क्या जरूरत है फूलों की, आपके तप सौरभ को महकाने के लिए __ क्यों कि जो स्वयं ही पुण्यनिधान है, तपस्वी है सहनशीलता व मधुरता की मूरत है ऐसे श्रमणी पंथ के सुकानी पुण्यपनोता मेरे परम उपकारी संयम जीवन के नाविक आपकी चरणकिङ्करा साध्वी दक्षरत्ना MRAPD XAP सादर समर्पण PAR ॥३॥ For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह 118 11 जन्म जन्म स्थान सांसारिक नाम पिता माता गोत्र दीक्षा वडी दीक्षा गुरुदेव श्रीमद् विजयनीतिसूरीश्वरजी जीवन सौरभ : संवत १९३० पोष सुदी ११ : वांकानेर (सौराष्ट्र, गुजरात) : निहालचंद (मोंघा रत्न) : फूलचन्दभाई : चोथीबाई : पारेख : सं. १९४९ अषाढ़ सुदी - ११ सोमवार : सीपोर गाम में पं. श्री प्रतापविजयजी म. : श्री नीतिविजयजी म. दीक्षा नाम तीर्थोद्धारक : चित्तोड- गिरनार आदि अनेक पांच रत्न की प्राप्ति : याने जवाहरलालजी संप्रदाय के पांच संतने जो ३५ से १२ वर्ष दीक्षा पर्याय वाले थे वे गुरुदेव के पास मूर्तिपूजक मार्ग याने गुरुदेव के शिष्य बने । पंन्यासपद आचार्यपद स्वर्गवास For Personal & Private Use Only : सं. १९६२ का. वदी ११ : सं. १९७६, मा. सुदी ११ : सं. १९७८ पोष वदी - ३ जीवन सौरभ ॥ ४ ॥ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ५ ॥ · • .... ए उपकारी ! ए उपकार तुम्हारा कदि अणविसरे परम कृपालु करुणासागर भूत- भावि वर्तमान तीर्थंकर सीमन्धरस्वामी एवं विरामी ढाणी तीर्थे बिराजमान श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान बालब्रह्मचारी तीर्थोद्धारक शासनदीपक आचार्य श्री विजयनीतिसूरीश्वरजी म.सा. कलिकाल के अप्रमत्त संयमी परम पूज्य आचार्य श्री मंगलप्रभसूरिजी म. सा. अढीद्विप तीर्थ व सिद्धाचलशणगार ट्रंक निर्माता आचार्य भ. श्रीमद् विजयअरिहन्तसिद्धसूरीश्वरजी म.सा. वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यदेव हेमप्रभसूरीश्वरजी म.सा. बाल्यकाल से अविरत स्नेहगंगा वर्षाकर हम सब के तरण तारण जहाज समान परम पूज्य गुरुवर्या साध्वी श्री सुशीलाश्रीजी एवं सा. श्री भक्ति श्रीजी म. अन्त में मेरे जैसे अनेक को ज्ञानदान देनेवाले एवं शासन के अनेक महापूजन प्रतिष्ठा-अंजनशलाका द्वारा जिन्हों ने पूरे भारत में अद्वितीय यशः प्राप्त किया है। ऐसे हमारे सर्व के ज्ञानदाता पण्डितवर्य विधिकार शिरोमणि श्री चम्पकलाल सी. शाह (खिमाणावाले) अभी शिवगंज (राज.) सा. श्री दक्षरत्नाश्रीजी म. For Personal & Private Use Only ॥ ५ ॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥६॥ BL ॐ नमः શ્રી નીતિ - હર્ષ - મહેન્દ્રસૂરીયાર ગુરુભ્યો નમઃ આચાર્ય વિજય હેમપ્રભસૂરિ આદિमुक्ति प्रदायिनी भक्ति पालीताएग अ. ५.१८ -20 १. Corte जिनशासन के उपासक प्रमुख निरंतर यह प्रार्थना करता है की " मुक्तिधा अधिक तुज मेसिन मुजमन बस्त" बहे! परमपिता परमेश्वर मे आपसे मुक्ति की प्रार्थना नहीं करता हु लेकीन मैक्ति की याचना करता हुंकी इस संसार में जबतक खुं तबतक तेरे चरण की रूपा निरंतर प्राप्त होती रहे। यही भनिन मुनिया की दुति है। मेकित मार्ग में मैक्ग को जोडने के लीये अनेक आलंबन बताये है। जिनमें प्रसिद्ध चक्रादि पूजन मर्यात्कार आलंबन है जिन माधना में आपाल- मवणा व मेवमें पड़ोचने में समर्थ बने एक अधिक पूजनों से युक्त विधिविधान के लीये अत्यंत आवश्यक पुस्तिका (प्रत) प्रकाशीत हो रही है जानकर अलाव अख़ुशी हुर आरे यह मंगल प्रार्थना करते है की आप सब यह मैक्तिको पाप्त करके शीघ्रातिशीघ्र युक्ति प्रति प्रयाण करे यही मंगल कामना यह For Personal & Private Use Only छ-कमलवारिक CACIM ॥ ६ ॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह सं पा मकान की मजबूती नींव पर निर्भर है. शरीर की मजबूती आत्मा पर निर्भर है, वैसे मुक्ति के अभिलाषीओं को पूजन-भक्ति ही मुक्ति का मार्ग है। "विविध पूजन संग्रह" नामक प्रत का द्वितीय आवृत्ति आपके हाथ में समर्पण करते असीम आनन्द हो रहा है। अनेक विद्याओं के धनि लंकापति रावण ने अष्टापद पर भक्ति करते हुए उत्कृष्ट भावों के कारण ही तीर्थंकर गोत्र कर्म का उपार्जन किया था । वर्तमान में भी अनेकानेक जीव परमात्मा-गुरु और सम्यग्दृष्टि-देव-देवी के महापूजनों द्वारा अनेक दुःखमय जीव पंचम आरे में भक्ति द्वारा स्वद्रव्य से पूजन करके आत्म-कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर रहे है। मैं स्वयं वर्ष में २५० दिन से ज्यादा पूजन-प्रतिष्ठा-अंजनशलाका विधानों में रत रहता हूँ। साथ में चि. विरल-भाणेज कुणाल मिलन होते हुए भी - सभी को सन्तोष नहीं दे सकते । वर्ष में अनेकानेक आचार्य भगवंतों-पू. साधु साध्वीजी भगवन्त और अनेक श्रेष्ठिवर्यों - चाहे भेरुतारक वाले ताराचंदजी, बोरीजवाले मुकेशभाई, धानेराभुवन ट्रस्टी चन्द्रकान्तभाई, सेलोवाले घीसुभाई, मोन्टेक्षवाले | रमणभाई, मंडारवाले भंवरभाई, दिल्ही-मानसरोवर गार्डन मन्दिर, लुधीयाना, समाधिमन्दिर, वालकेश्वर - जयेशभाई, नागेश्वर ह्रींकार धाम तीर्थ के ट्रस्टी कल्याणभाई, धानेरा पद्मावती मन्दिर निर्माता ॥ सेवन्तीभाई, चेन्नईवाले शान्तीभाई एस. देवराज. वाले एवं नाकोडा दरबार वाले मनोजभाई आदि एवं संपादकीय कलम से ॥ ७ ॥ लम For Personal Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह 11 2 11 Jain Education Internati एक साथ में ३० सिद्धचक्र पूजन कराने वाले के. पी. संघवी परिवार पावापुरी में, ऐसे अनेकानेक श्रेष्ठिवर्यो चाहें धजा का दिन हो - दीपावली पर्व हो, या कोई व्यावहारिक प्रसंग लेकर प्रतिवर्ष पूजन पढाने का आग्रह रखते है । प.पू.आ.भ. श्री सुशीलसूरीश्वरजी म.सा., प.पू. जिनोत्तमसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में एक साथ में सलंग सात सात प्रतिष्ठाएँ अंजनशलाका एवं प.पू. नित्यानन्दसूरीश्वरजी म.सा. आदि की निश्रा में पंजाब में अमृतसर - लुधीयाना, जलंधर, सामाना आदि जगह एक साथ में दो दो महिना तक सलंग अंजनशलाका प्रतिष्ठा पूजनादि एवं नाकोडाजी में प्रत्येक मास में प्रायः चार चार महापूजन में ऐसे कितनेय आचार्य भगवन्त पू. साधु-साध्वी भगवन्त की निश्रा में प्रतिवर्ष एक साथ में चाहे ओलीजी की आराधना या गुरुदेव की पुण्यतिथि हो तो नव नव महापूजन होते है । कैसी अनुपम परमात्मा की भक्ति का भाव है । वैसे ही "लहेरा म." के हुलामणा नाम से राजस्थान के बालगोपाल से लगाकर युवा - वृद्ध तक जिनका नाम कंठ पर है वे पू.सा. श्री ललितप्रभाश्रीजी म. ( लहेरा म.) का भी प्रतिवर्ष अनेक पूजन कराने का प्रसंग उपस्थित होता है। जिसका निमित्त उनकी मंत्री समान उदारमना गुरु के लिए पूर्ण समर्पणभाववाले पू. श्री दक्षरत्नाश्रीजी म. को जाता है। जिन्होंने आज तक अनेक दानवीरों को उपदेश देकर गुरु का ऋण चुकाया है और एसे अनेकानेक पुस्तको द्वारा ज्ञानमार्ग की अनुपम भक्ति की है । इस विविध पूजन संग्रह द्वारा परमात्म-देव- गुरु और धर्म की आराधना द्वारा जल्दी से जल्दी महाविदेह क्षेत्र के पथिक बनें यही अभ्यर्थना । For Personal & Private Use Only चम्पकलाल चिमनलाल शाह खिमाणावाले, हाल शिवगंज (राज.) संपादकीय कलम से 11 2 11 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ९ ॥ गोडवाड का प्रवेश द्वार सम श्री शंखेश्वर धाम ( विरामी ढाणी ) यह महामहिम तीर्थधाम अहमदाबाद-दिल्ही नेशनल हाईवे नं. १४, सान्डेराव से ७ किलोमीटर हाईवे पर एवं रानी स्टेशन से १२ किलोमीटर दूरी पर है । भव्यातिभव्य शंखेश्वर धाम (विरामी ढाणी) में मूलनायक दादा जिनका दर्शनमात्र से ही प्रसन्नता के साथ मनमयुर नाच उठते है एवं जहाँ परम शांति का अहेसास होता है ऐसे श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ मूलनायक एवं ५५ इंच की ध्यानारूढ श्री नागेश्वर पार्श्वनाथ, एवं गुरुमन्दिर में श्री नीतिसूरीश्वरजी, हर्षसूरीश्वरजी, महेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. एवं मंगलप्रभसूरीश्वरजी म.सा. आदि एवं शासन के अनेक अधिष्ठायक देव-देवी युक्त जिनमंदिर सह श्रावक-श्राविका के लिए विशाल त्रण उपाश्रय (आराधना भवन), साधर्मिक भक्ति हेतु कायमी भोजनशाला गरम पाणी, यात्रिओं के ठहरने के लिए दो बडे होल, सोलह ब्लोक एवं सात रुम-पेढी कार्यालय-दो प्याउ जीवदया के लिए कबूतरचोतरा - ज्ञान के लिए ज्ञानमन्दिर आदि अनेकानेक दर्शन - ज्ञान चारित्र के आराधना हेतु स्व. प.पू. आ. भ. श्री अरिहन्तसिद्धसूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्ती गोडवाड दिपिका श्री शंखेश्वर धाम तीर्थ प्रेरिका सा. श्री ललितप्रभाश्रीजी म. की प्रेरणा से यह धाम बना है । सो अवश्य एक दफे दर्शन करके अपना जीवन सफल बनाएं । सम्पर्क सूत्र श्रीमान् शा चन्द्रभाणजी रतनचंदजी पूनमीआ राजेन्द्र मार्केट, सुमेरपुर (राज.) मो : ९४१३८७७०५८ For Personal & Private Use Only शंखेश्वर पार्श्वनाथ धाम नेशनल हाईवे नं. १४, विरामी ढाणी फोन : ०२९३८-२८३७३२ श्री शंखेश्वर धाम ॥ ९ ॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह गोडवाडदीपिका प.पू.सा. श्री ललितप्रभाश्रीजी म.सा. के शुभार्शीवाद से एवं कार्यकुशली सा. श्री दक्षरत्नाश्रीजी म.सा. की शुभ प्रेरणा से विधिकार शिरोमणि पंडितवर्य श्री चम्पकलाल सी. शाह द्वारा संपादित प्रकाशनो १. विविध पूजन संग्रह (दो आवृत्ति) ५. मंगल-अरिहंत-स्तोत्रादि संग्रह २. ललित स्वाध्याय - तीन आवृत्ति ६. पंच प्रतिक्रमण ३. ललित सुवास ७. नित्य आराधनादि - दो आवृत्ति ४. ललित झरणा ८. सुशीला-भक्ति-श्रद्धांजलि ॥ १० ॥ संपादित प्रकाशनो ॥१०॥ Join Education International For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ११ ॥ ॥ नमो वीतरागाय ॥ ॥ श्री सिद्धचकाय नमः ॥ ॥ श्री नीति - हर्ष महेन्द्र-मंगल- अरिहंतसिद्ध- हेमप्रभसूरिभ्यो नमः ॥ ॥ श्री सिद्धचक्रपूजनविधिः ॥ 蛋蛋蛋 यस्य प्रभावाद्विजयो जगत्यां सप्ताङ्गराज्यं भुवि भूरिभाग्यम् । परत्र देवेन्द्रनरेन्द्रता स्यात्, तत् सिद्धचक्रं विदधातु सिद्धिम् ॥१॥ (१) प्रथम पूजनमां उपयोगी सर्व द्रव्योने मंत्रपूर्वक वासक्षेप करवो । (२) वाजते - गाजते प्रभुजीने पधराववा । (३) श्री सिद्धचक्रजीनी त्रण चोवीशीओ मधुरस्वरे ( समय होय तो ) भणवी । For Personal & Private Use Only श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ ११ ॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १२ ॥ चोवीशी पहेली। 'ॐ ह्रौं अहँ नमः' स्मृत्वा, मूलमन्त्रमथार्हतः । वक्ष्ये श्रीसिद्धचक्रस्य, यन्त्रोद्धारं यथाविधि ॥१॥ पद्ममष्टदलाकार, कल्पयेत् तत्र कर्णिकाम् । ॐ हीं अनाहतैर्वृत्तम्, अहँ बीजं स्वरैर्वृतम् ॥२॥ सिद्धाः पूर्वदले स्थाप्या, दक्षिणे सूरयस्तथा । पाठकाः स्युः प्रतीचीने, साधवस्तूत्तरे दले ॥३॥ आग्नेय दर्शनं सम्यग्-ज्ञानश्च नैऋते दले । वायव्ये शुद्धचारित्र-मैशाने पल्लवे तपः ॥४॥ नवपदमिदं पद्म-मद्वितीयं जगत्त्रये । परीतोऽस्य दलानि स्युः, षोडशान्तरिते दले ॥५॥ अष्टौ स्वरादयो वर्गा, मन्त्रः सप्ताक्षरस्तथा । वर्गाः सानाहता ज्ञेया, मंत्रमूलं यतोऽक्षरम् ॥६॥ अष्टावनाहता स्थाप्या-स्तृतीये वलये क्रमात् । मध्येऽनाहतमष्टाढ्या-श्चत्वारिंशच्च लब्धयः ॥७॥ ह्रींकारेण त्रिरेखेण, वेष्टयेत् परितः समम् । क्रौंकारान्तमिदं ज्ञेयं, वेष्टनं सर्वरक्षणम् ॥८॥ परिधावस्य संस्थाप्या, अष्टौ गुर्वादिपादुकाः । आराध्योऽयं क्रमः पूर्णो, वक्ष्येऽथो यन्त्ररक्षकान् ॥९॥ स्थाप्या दिक्षु जयामुख्या, जम्भामुख्या विदिक्षु च । विमलवाहनाद्याः स्यु-देवताश्चक्ररक्षकाः ॥१०॥ १. शरूआतनां १३ श्लोको मूळ प्रतिनुं प्रथम पत्र अप्राप्त होवाथी त्रुटक हता, ते पूर्ति कर्या छे. श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥१२॥ For Personal use only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १३ ॥ ततश्च वलये विद्या-देव्यः षोडश निर्मलाः । दक्षिणेऽतो विभागे स्यु-श्चतुर्विंशतियक्षपाः ॥११॥ चतुर्विंशतियक्षिण्यो, वामपार्श्वे स्थिता वरम् । वीराश्च द्वारपालाश्च, चतुर्दिक्षु शिवङ्कराः ॥१२॥ इन्द्राद्या दशदिक्पाला, दशस्वपि दिशासु ते । राजन्ते यन्त्रमूले च, सूर्यादयो नव ग्रहाः ॥१३॥ नवापि निधयः कण्ठे, नैसर्पिकादयः स्थिताः । सन्तु प्रत्यूहनाशाय, दिक्पालाः सपरिच्छदाः ॥१४॥ इत्थं श्रीसिद्धचक्रं ये, सबीजे क्षोणिमण्डले । आराधयन्ति तेषां स्यु-वंशे सर्वार्थसिद्धयः ॥१५॥ एतदेव परं तत्त्वमेतदेव परं पदम् । एतदाराध्यमेतच्च, रहस्यं जिनशासने ॥१६॥ सुगन्धैः कुसुमैः शालि-तन्दुलैर्वाऽस्य साधकाः । शुचिशीला ध्रुवं सिद्धिं, लभन्ते लक्षजापतः ॥१७॥ सिद्धे चास्मिन् महामन्त्रे, देवो विमलवाहनः । अधिष्ठाताऽस्य चक्रस्य, पूरयत्येव वाञ्छितम् ॥१८॥ शान्तिके पौष्टिके शुक्लं, वश्ये चाकर्षणेऽरुणम् । पीतं स्तम्भेऽसितं द्वेष्ये, ध्येयमेतच्च साधकैः ॥१९॥ अर्हमात्मानमौअग्नि-शुद्धं मायाऽमृतप्लुतम् । सुधाकुम्भस्थमाकण्ठं, ध्यायेच्छान्तिककर्मणि ॥२०॥ आह्वानं स्थापनं चैव, सन्निधानं च रोधनम् । अर्चनं च विधायात्र, ततः कार्यं विसर्जनम् ॥२१॥ लेखनं पूजनं चैव, कुम्भकेनैव कारयेत् । आह्वानं पूर केणैव, रेचकेन विसर्जनम् ॥२२॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥१३॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १४ ॥ एक-द्वि-त्रि-चतुः-पञ्च-शतैरष्टोत्तरैः क्रमात् । स्याच्छिवास्याक्षिभूसङ्ख्य-वर्णजापो महाफलः ॥२३॥ दिक्कालासनमुद्रादि-विधिपीयूषसेकतः । श्रीसिद्धचक्रकल्पद्रुर्वाञ्छितं फलति ध्रुवम् ॥२४॥ ॥ इति श्रीसिद्धचक्रयन्त्रोद्धारे विधिचतुर्विंशतिका समाप्ता ॥ चोवीशी बीजी। श्रीमते सिद्धचक्राद्य-बीजाय परमाईते । नत्वा तत्पूर्वसेवाया-स्तपोविधिरथोच्यते ॥१॥ | आश्विनस्य सिताष्टम्यां, निर्दोषायां यथाविधि । कृत्वा श्रीसिद्धचक्रार्चा-माद्याचाम्लो विधीयते ॥२॥ ततश्चाष्टाह्निकोत्सवं, कृत्वाऽऽशु नवमे दिने । कृते पञ्चामृतस्नात्रे ह्याचाम्लो नवमो भवेत् ॥३॥ एवं चैत्रे नवाचाम्ला, भवन्त्येव निरन्तराः । ततोऽर्धपञ्चवर्षेषु, सम्पूर्णं पूर्यते तपः ॥४॥ एकाशीतिर्भवत्येव-माचाम्लानामिहाथवा । अशक्तैरेकभक्ताना-मेकाशीतिर्विधीयते ॥५॥ इत्थं श्रीसिद्धचक्रस्य, तपः कृत्वा ह्युपासकैः । कार्यमुद्यापनं तस्य, यथाशक्त्या विवेकिभिः ॥६॥ १. शिवस्याक्षि-३ भू-१-१३ वर्णना मंत्रनो जाप १०८ । शिव-११ वर्णना मंत्रनो जाप-२०८ । शिवास्य ५ वर्णना मंत्रनो जाप ३०८ । शिवास्याक्षि-३ (अथवा अक्षि-२) वर्णना मंत्रनो जाप ४०८ । भू-१. वर्णना मंत्रनो जाप ५०८ ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥१४॥ in Education For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १५ ॥ मण्डलं सिद्धचक्रस्य, चैत्यादौ शुद्धभूतले । सन्मन्त्रपूतैः पञ्चाभ-धान्यैरालिख्यते स्फुटम् ॥७॥ तत्राहमिति बीजोर्ध्व-स्थापितप्रतिमाऽग्रतः । स्थाप्यं सन्ना लिकेरस्य, सखण्डाज्योरुगोलकम् ॥८॥ सिद्धाद्यष्टदलश्रेणि-रपि पूज्या च गोलकैः । शर्करालिङ्गकैरा, षोडशानाहतावली ॥९॥ द्राक्षाश्चैकोनपञ्चाश-दष्ट वर्गाक्षरोपरि । बीजपूराष्टकं सप्ता-क्षरमन्त्रेषु मण्डयेत् ॥१०॥ खारिकाख्यफलान्यष्ट -चत्वारिंशत्सु लब्धिषु । जयादिषु च जंभीरी-फलान्यष्टौ तु योजयेत् ॥११॥ गुर्वादिपादुकास्वष्टौ, दाडिमीनां फलानि च । चक्राधिष्ठायके चैकं, न्यसेत् कुष्माण्डमुत्तमम् ॥१२॥ यक्षादिषु चतुःषष्टि-पदेषु क्रमुकावलिम् । नवाक्षोटफलानीह, निधिस्थानेषु कल्पयेत् ॥१३॥ ग्रहेभ्यो ग्रहवर्णानि, फलानीहोपढौकयेत् । चतुर्यों द्वारपालेभ्यो, बलिकूटाँश्च पीतभान् ॥१४॥ वीरेभ्यस्तिलवर्तेश्च, देयं कूटचतुष्टयम् । दिक्पालेभ्यश्च तद्वर्ण-बलिपिण्डफलादिकम् ॥१५॥ ह्रींकारकलशाकारा, रेखा भूमण्डलस्य च । धान्येनैव विशुद्धेन, तत्तद्वर्णेन साधयेत् ॥१६॥ ततः श्रीसिद्धचक्रस्य, पटस्थप्रतिमादिषु । कृत्वा पञ्चामृतस्नात्रं, पूजां चैव सविस्तराम् ॥१७॥ सबृहवृत्तपाठं च, विहिते मण्डलार्चने । गुरौ तपोविधातृणां, कुर्वाणे चोपबृंहणाम् ॥१८॥ |श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥१५॥ Jain Education international For Personal Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। १६ ।। Jain Education Internat मुख्येन्द्रोऽपि समादाय, पीठान्नवसराः स्रजः । तपः कर्तृपुरो भूत्वा प्राह प्राञ्जलिरीदृशम् ॥१९॥ धन्याश्च कृतपुण्याश्च, यूयं यैर्विहितं तपः । एतत्तपःप्रभावाच्च, भूयाद् वो वाञ्छितं फलम् ॥२०॥ एवमुच्चैःस्वरं जल्प-न्ननल्पाकल्पधारिणाम् । तपोविधातृबन्धूनां, करे यच्छति मालिकाः ॥२१॥ ते चार्हन्तं नमस्कृत्य, सानन्दं स्वकरैः स्त्रजः । स्वस्वसम्बन्धिनां कण्ठे, क्षिपन्ति समहोत्सवम् ॥२२॥ ततश्चेन्द्रेण पीठाग्रे, कृते मङ्गलदीपके । शक्रस्तवादिकं कृत्वा, श्रोतव्या गुरुदेशना ॥२३॥ गीतनृत्यादिकं कृत्वा, दत्त्वा दानं स्वशक्तितः । सोत्सवं च गृहे गत्वा, कार्यं संघार्चनादिकम् ॥२४॥ ॥ इति श्रीसिद्धचक्रतपोविधानोद्यापनचतुर्विंशतिका ॥२॥ चोवीशी त्रीजी । एवं श्रीसिद्धचक्रस्या- राधको विधिसाधकः । सिद्धाख्योऽसौ महामन्त्र - यन्त्रः प्राप्नोति वाञ्छितम् ॥१॥ धनार्थी धनमाप्नोति, पदार्थी लमते पदम् । भार्यार्थी लभते भार्यां पुत्रार्थी लभते सुतान् ॥२॥ सौभाग्यार्थी च सौभाग्यं, गौरवार्थी च गौरवम् । राज्यार्थी च महाराज्यं, लभतेऽस्यैव तुष्टितः ॥३॥ एतत्तपोविधातारः, पुमांस स्युर्महर्द्धयः । सुर-खेचर-राजानो, रूपसौभाग्यशालिनः ॥४॥ For Personal & Private Use Only श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ १६ ॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १७ ॥ अस्य प्रभावतो घोरं, विषं च विषमज्वरम् । दुष्टं कुष्टं क्षयं क्षिप्रं, प्रशाम्यति न संशयः ॥५॥ तावद् विपन्नदी घोरा, दुस्तरा यावदङ्गिभिः । नाप्यते सिद्धचक्रस्य, प्रसादविशदा तरी ॥६॥ बद्धा रुद्धा नरास्तावत् तिष्ठन्ति क्लेशवर्तिनः । यावत् स्मरन्ति नो सिद्ध-चक्रस्य विहितादराः ॥७॥ एतत्तपोविधायिन्यो योषितोऽपि विशेषतः । वन्ध्या-निन्द्वादिदोषाणां, प्रयच्छन्ति जलाञ्जलिम् ॥८॥ वैकल्यं बालवैधव्यं, दुर्भगत्वं कुरूपताम् । दुर्भगत्वं च दासीत्वं, लभन्ते न कदाचन ॥९॥ यद्यदेवाभिवाञ्छन्ति, जन्तवो भक्तिशालिनः । तत्तदेवाप्नुवन्ति श्री-सिद्धचक्रार्चनोद्यताः ॥१०॥ एतदाराधनात् सम्य-गाराद्धं जिनशासनम् । यतः शासनसर्वस्व-मेतदेव निगद्यते ॥११॥ एभ्यो नवपदेभ्योऽन्य-नास्ति तत्त्वं जिनागमे । ततो नवपदी ज्ञेया, सदा ध्येया च धीधनैः ॥१२॥ ये सिद्धा ये च सेत्स्यन्ति, ये च सिध्यन्ति साम्प्रतम् । ते सर्वेऽपि समाराध्य, पदान्येतान्यहर्निशम् ॥१३॥ त्रिधा शुद्ध्या समाराध्य, मे (चै)षामेकतरं पदम् । भूयांसोऽपि भवन्ति स्म, पदं राज्यादिसम्पदाम् ॥१४॥ अस्याद्यपदमाराध्य, प्राप्ताः स्वामित्वमुत्तमम् । नरेषु देवपालाद्याः, कार्तिकाद्याः सुरेषु च ॥१५॥ द्वितीयपदमाराध्य, ध्यायन्तः पञ्चपाण्डवाः । सिद्धाचले समं कुन्त्या, संप्राप्ताः परमं पदम् ॥१६॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥१७॥ Jain E cation in For Personal Price Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १८ ॥ नास्तिकः कृतपापोऽपि यत् प्रदेशी सुरोऽभवत् । तदस्यैव तृतीयस्य, पदस्योपकृतं महत् ॥१७॥ चतुर्थपदमस्यैवा-राधयन्तो यथाविधि । धन्याः सूत्रमधीयन्ते, शिष्याः सिंहगिरेरिव ॥१८॥ विराध्याराध्य चैतस्य, पञ्चमं पदमेव हि । दुःखं सुखं च संप्राप्ता, रुक्मिणी चाथ रोहिणी ॥१९॥ षष्ठं पदं च यैरस्य, निर्मलं कलितं सदा । कृष्ण-श्रेणिकमुख्यास्ते, श्लाघनीयाः सतामपि ॥२०॥ सप्तमं पदमेतस्य, समाराध्य समाधितः । महाबुद्धिधना जाता, धन्या शीलमती सती ॥२१॥ पदमस्याष्टमं सम्यग्, यदाराद्धं पुरादरात् । तत् श्रीजम्बूकुमारेण, सुखेनाप्तं शिवं पदम् ॥२२॥ अस्यैव नवमं सुद्धं, पदमाराध्य सम्पदात् । वीरमत्या महासत्या, प्राप्तं सर्वोत्तमं फलम् ॥२३॥ किं बहूक्तेन भो भव्या, अस्यैवाराधकैनरैः । तीर्थकृन्नामकर्माऽपि, हेलया समुपायंते ॥२४॥ ॥ इति श्रीसिद्धचक्राराधनफलचतुर्विंशतिका ॥३॥ 卐卐卐卐 श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥१८॥ Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १९ ॥ ॥ अथ श्रीसिद्धचक्रपूजनविधिः ॥ अर्हन्तो भगवन्त इन्द्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिता । आचार्या जिनशासनोन्नतिकराः पूज्या उपाध्यायकाः ॥ श्रीसिद्धान्तसुपाठका मुनिवरा, रत्नत्रयाराधकाः । पञ्चैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मङ्गलम् ॥१॥ आ श्लोक सर्वे ऊंचे स्वरे प्रथम बोले ( १ ) ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं । ( ३ ) ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं । (५) ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसाहूणं । (२) ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं । ( ४ ) ॐ ह्रीँ नमो उवज्झायाणं । ( ६ ) ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्राय नमः ॥ आ पाठ त्रण वखत बोली नमस्कार करवा । For Personal & Private Use Only श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ १९ ॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ २० ॥ ॥ श्रीसिद्धचक्रस्तोत्रम् ॥ (उपजातिच्छन्दः) - ॐ ह्रीं स्फुटानाहतमूलमन्त्रं, स्वरैः परीतं परितोऽस्ति सृष्ट्या ॥ यत्राहमित्युज्ज्वलमाद्यबीजं, श्री सिद्धचक्रं तदहं नमामि ॥१॥ सिद्धादयो दिक्षु विदिक्षु सम्यग-दृग-ज्ञान-चारित्र-तपःपदानि ॥ साधन्तबीजानि जयन्ति यत्र, श्रीसिद्धचक्रं तदहं नमामि ॥२॥ सानाहतं यत्र दलेषु वर्गा-ष्टकं निविष्टं च तदन्तरेषु ॥ सप्ताक्षरो राजति मन्त्रराजः श्रीसिद्धचक्रं तदहं नमामि ॥३॥ अनाहतव्याप्तदिगष्टके यत्, सल्लब्धिसिद्धर्षिपदावलीनाम् ॥ . त्रिपतिभिः सृष्टितया परीतं, श्रीसिद्धचक्रं तदहं नमामि ॥४॥ | त्रिरेखमायापरिवेष्टितं य-ज्जयाद्यधिष्ठायकसेव्यमानम् ॥ स् विराजते सद्गुरुपादुकाकं, श्रीसिद्धचक्रं तदहं नमामि ॥५॥ श्री सिद्धचक्र | पूजन विधि ॥ २०॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ २१ ॥ मूलग्रहं कण्ठनिधिं च पार्श्व-द्वयस्थयक्षादिगणं गुणज्ञैः ॥ यद् ध्यायते श्रीकलशैकरूपं, श्रीसिद्धचक्रं तदहं नमामि ॥६॥ सद्वाःस्थबीजं स्फुटबीजवीरं, सबीजदिक्पालमलं नृणां यत् ॥ भूमण्डले ध्यातमभीष्ट दायि, श्रीसिद्धचक्रं तदहं नमामि ॥७॥ यत्रार्चिते यत्र नमस्कृते च, यत्र स्तुते यत्र नमस्कृते (पुरस्कृते) च ॥ | जना मनोवाञ्छितमाप्नुवन्ति, श्रीसिद्धचक्रं तदहं नमामि ॥८॥ इत्यतित्रिदशगोमणिद्रुमो-द्यत्प्रभावपटलं शिवप्रदम् ॥ अर्हदादिसमलङ्कृतं पदैः, सिद्धचक्रमिदमस्तु नः श्रिये ॥९॥ (रथोद्धता) स्वस्ति-नमोऽर्हत्-सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुभ्यः, सम्यग्-दर्शन-ज्ञान-चारु-चारित्र-सत्तपोभ्यश्च । (१) ॐ ह्रीं वातकुमाराय विघ्नविनाशकाय महीं पूतां कुरु कुरु स्वाहा ॥ . आ मंत्र बोली दाभ (दर्भ )ना घासथी भूमिर्नु प्रमार्जन करवू । श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥२१॥ Join Education international For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ २२ ॥ (२) ॐ ही मेघकुमाराय धरां प्रक्षालय प्रक्षालय हूँ फुट् स्वाहा ॥ आ मंत्र बोली डाभ पाणीमां बोळी भूमि उपर छांटवू । (३) ॐ भूरसि भूतधात्रि सर्वभूतहिते भूमिशुद्धिं कुरु कुरु स्वाहा । आ मंत्र बोली भूमि उपर चंदनना छांटणा करवा-भूमिशुद्धि । (४) ॐ नमो विमलनिर्मलाय सर्वतीर्थजलाय पाँ पाँवा वा ज्वी क्ष्वी अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा ॥ आ मंत्र बोली चेष्टापूर्वक स्नान करवू । (५) ॐ विद्युत्स्फुलिंगे महाविद्ये सर्वकल्मषं दह दह स्वाहा ॥ आ मंत्र बोली बन्ने भूजाओने स्पर्श करवो-कल्मषदहन । (६) क्षि प ॐ स्वा हा, हा स्वा ॐ प क्षि ॥ ए मंत्राक्षरो अनुक्रमे चडउतर आरोहावरोह क्रमे नीचेना अवयवो ढींचण १, नाभि, २, हृदय ३, मुख ४ अने ललाट-मस्तक ५ एम पांच स्थळे स्थापी-आत्मरक्षा करवी। |श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥२२॥ Jain Education in For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ २३ ॥ श्रीवज्रपञ्जरस्तोत्रम् ॥ ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वज्रपञ्जराभं स्मराम्यहम् ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं, अङ्गरक्षाऽतिशायिनी । ॐ नमोउवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ॥३॥ ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे। एसो पञ्चनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले ॥४॥ सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिराङ्गारखातिका ॥५॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मङ्गलं । वप्रोपरि वज्रमयं पिधानं देहरक्षणे ॥६॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रक्षां, परमेष्ठिपदैः सदा । तस्य न स्याद् भयं व्याधि- राधिश्चापि कदाचन ॥८ ॥ आ वज्रपंजर स्तोत्र चेष्टापूर्वक बोली- आत्मरक्षा करवी । पछी श्री सिद्धचक्रना संपूर्ण मंडलनुं हृदयमां चिंतवन करतां साफ करेला बाजोठ उपर श्री सिद्धचक्रनो मंत्रपट्ट स्थापन करी For Personal & Private Use Only श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ २३ ॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ २४ ॥ पूजा शरु करवी. तेमां सौथी प्रथम मंडलमां क्षेत्रपालने स्थानके एक नाळियेर स्थापन करवुं ने तेना उपर चमेलीना तेलना छांटणा करवा ॥ ॐ अत्रस्थ क्षेत्रपालाय स्वाहा ॥ ए मंत्र बोली क्षेत्रपालनी अनुज्ञा करवी । पछी सात वार नीचेनो मंत्र बोली सरसव रक्षा मंत्रवी ॥ ॐ हूँ (क्षू ) क्षू फुट् किरिटि किरिटि घातय घातय, परकृतविघ्नान् स्फेटय स्फेटय, सहस्रखण्डान् कुरु कुरु, परमुद्रां छिन्द छिन्द, परमन्त्रान् भिन्द भिन्द हूँ क्षः फुट् फुट् स्वाहा ॥ ॐ नमोऽर्हते रक्ष रक्ष हुँ फुट् स्वाहा ॥ ए मंत्र बोलीने पूजन करनाराओने हाथे राखडी बांधवी । ॐ ह्रीं अर्ह श्रीसिद्धचक्र अत्र मेरुनिश्चले वेदिकापीठे तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा ।। ए मंत्र बोली जे पीठ उपर श्री सिद्धचक्र यंत्र स्थापन कर्यो छे ते पीठने हस्तस्पर्श करवो । ॐ ह्रीं अर्ह सिद्धाधिपतये नमः ॥ ए मंत्र बोली श्रीसिद्धचक्रयंत्रने हस्तस्पर्श करवो ॥ पछीथी मधुर स्वरे (पं. श्री वीरविजयजीकृत ) स्नात्रपूजा भणाववी । For Personal & Private Use Only श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ २४ ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ २५ ॥ ॥ अथ पूजनम् ॥ पूजन करनाराओए कुसुमांजलि लइने यंत्र सन्मुख ऊभा रहेवू परमेश्वर ! परमेष्ठिन् ! परमगुरो ! परमनाथ परमार्हन् ! परमानन्तचतुष्टय ! परमात्मस्तुभ्यमस्तु नमः । (आर्या) ए श्लोक-बोली जिनसन्मुख कुसुमांजलि करवी, पछी शक्रस्तव-नमुत्थुणं स्तोत्र भणदुं । ॐ ह्रां ह्रीं हूँ ह्रौ हुः असिआउसा सिद्धपरमेष्ठिनः अत्र अवतरत अवतरत, संवौषट् । नमः सिद्धपरमेष्ठिभ्यः स्वाहा ॥ आह्वान-मुद्राए आह्वान करवू । 'हः असिआउसा सिद्धपरमेष्ठिनः अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः । नमः सिद्धपरमेष्ठिभ्यः स्वाहा ॥ स्थापन-मुद्राए स्थापन करवू । ॐ हाँ ह्रीं हूँ ह्रौं हुः असिआउसा सिद्धपरमेष्ठिनः मम सन्निहिता भवत भवत, वषट् । नमः सिद्धपरमेष्ठिभ्यः स्वाहा ॥ सन्निधान-मुद्राए सन्निधान करवू । श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥२५॥ For Personal Price Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ २६ ॥ ॐ ह्रां ही हूँ ह्रौं हः असिआउसा सिद्धपरमेष्ठिनः पूजां यावदत्रैव स्थातव्यम् । नमः सिद्धपरमेष्ठिभ्यः स्वाहा ॥ सन्निरोध-मुद्राए सन्निरोध करवू । ॐ हाँ ह्री ह हौ हः असिआउसा सिद्धपरमेष्ठिनः परेषामदृश्या भवत भवत, फट् । नमः - सिद्धपरमेष्ठिभ्यः स्वाहा ॥ अवगुंठन-मुद्राए अवगुंठन करवू ।। हः असिआउसा सिद्धपरमेष्ठिनः इमां पूजां प्रतीच्छत प्रतीच्छत । नमः सिद्धपरमेष्ठिभ्यः स्वाहा ॥ पूजनमुद्रा (अंजलि) करी पूजन करवू । प्रथमवलयम् (मूलनवपदपूजा) ___ दरेक पदना मंत्रो बोली अष्टप्रकारी पूजा करवी । (१) ॐ ही सप्रातिहार्यातिशयशालिभ्यः श्री अर्हद्भ्यो नमः स्वाहा ॥ (२) ॐ ही प्राप्तानन्तचतुष्टयेभ्यः श्रीसिद्धेभ्यो नमः स्वाहा ॥ (३) ॐ हौं पञ्चाचारपवित्रेभ्यः श्री सूरिभ्यो नमः स्वाहा ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ २६ ॥ Jain Education Internationa l For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ २७ ॥ ( ४ ) ॐ ह्रीँ शुद्धसिद्धान्ताध्यापनप्रवणेभ्यः श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः स्वाहा ॥ (५) ॐ ह्रीँ सिद्धिमार्गसाधनसावधानेभ्यः श्रीसर्वसाधुभ्यो नमः स्वाहा ॥ (६) ॐ ह्रीं तत्त्वरुचिरूपाय श्रीसम्यग्दर्शनाय नमः स्वाहा ॥ (७) ॐ ह्रीँ तत्त्वावबोधरूपाय श्रीसम्यग्ज्ञानाय नमः स्वाहा ॥ (८) ॐ ह्रीं तत्त्वपरिणतिरूपाय श्रीसम्यक्चारित्राय नमः स्वाहा ॥ (९) ॐ ह्रीं केवलिनर्जरारूपाय श्रीसम्यक्तपसे नमः स्वाहा ॥ दरेक पदनी पूजा थया पछी एकेक नवकारवाळी गणवी । ॥ इति प्रथमवलयम् ॥ द्वितीयवलयम् ॥४९ द्राक्षो ने ८ बीजोरा ॥ ( १ ) ॐ ह्रीँ अवर्गाय स्वाहा ( २ ) ॐ ह्रीँ कवर्गाय स्वाहा ( ३ ) ॐ ह्रीँ चवर्गाय स्वाहा ( द्राक्षा-१६ ) ( द्राक्षा-५ ) ( द्राक्षा- ५ ) For Personal & Private Use Only नमो अरिहंताणं ( बीजोरुं ) नमो अरिहंताणं ( बीजोरुं ) नमो अरिहंताणं ( बीजोरुं ) श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥। २७ ॥ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध चूजन संग्रह ॥ २८ ॥ (४) ॐ ही टवर्गाय स्वाहा (द्राक्षा-५) नमो अरिहंताणं (बीजोरूं) (५) ॐ हीं तवर्गाय स्वाहा (द्राक्षा-५) नमो अरिहंताणं (बीजोरूं) (६)ॐ ह्रीं पवर्गाय स्वाहा (द्राक्षा-५) नमो अरिहंताणं (बीजोळं) (७) ॐ ह्रीं यवर्गाय स्वाहा (द्राक्षा-४) नमो अरिहंताणं (बीजोळं) (८) ॐ ह्रीं शवर्गाय स्वाहा (द्राक्षा-४) नमो अरिहंताणं (बीजोरु) ॐ ह्रीं अनाहतदेवाय स्वाहा-बोली १६ अनाहतोर्नु पूजन करवू (शर्करालिङ्ग शर्करामेरुथी) ॥ इति द्वितीयं वलयम् ॥ तृतीयं वलयम् ॥४८ लब्धिपदपूजनम् ॥ (४८ खारेक) ॥ श्रीलब्धिषदगर्भितमहर्षिस्तोत्रम् ॥ (उपजातिच्छन्दः) जिनास्तथा सावधयश्चतुर्धा, सत्केवलज्ञानधनास्त्रिधा च । द्विधा मनःपर्ययशुद्धबोधा, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥१॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥२८॥ For Personal & Preise Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ २९ ॥ सुकोष्ठसद्बीजपदानुसारि-धियो द्विधा पूर्वधराधिपाश्च । एकादशाङ्गाष्ट निमित्तविज्ञा, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥२॥ संस्पर्शनं संश्रवणं समन्ता-दास्वादन-घ्राण-विलोकनानि । संभिन्नसंश्रोततया विदन्ते, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥३॥ आमर्श-विग्रण्मल-खेल-जल्ल-सौषधि-दृष्टि -वचोविषाश्च । आशीविषा घोर-पराक्रमाश्च, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥४॥ प्रश्नप्रधानाः श्रमणा मनोवाक्-वपुर्बला वैक्रियलब्धिमन्तः । श्रीचारण-व्योमविहारिणश्च, महर्षय सन्तु सतां शिवाय ॥५॥ घृतामृत-क्षीर-मधूनि धर्मो-पदेशवाणीभिरभिस्त्रवन्तः । अक्षीणसंवासमहानसाश्च, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥६॥ सुशीत-तेजोमय-तप्तलेश्या, दीप्रं तथोग्रं च तपश्चरन्तः । विद्याप्रसिद्धा अणिमादिसिद्धा, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥७॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ २९ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ३० ॥ अन्येऽपि ये केचन लब्धिमन्त-स्ते सिद्धचक्रे गुरुमण्डलस्था: । ॐ ह्रीं तथाऽर्हं नम इत्युपेता, महर्षयः सन्तु सतां शिवाय ॥८॥ इत्यादिलब्धिनिधानाय श्रीगौतमस्वामिने स्वाहा । गणसंपत्समृद्धाय श्रीसुधर्मस्वामिने स्वाहा । उपरनुं स्तोत्र अने बे मंत्र बोली एकेक खारेकथी एकेक लब्धिपदनुं पूजन करवुं । पूजन करतां लब्धिपदोनां नाम बोलवां, ते आ प्रमाणे - ( १ ) ॐ ह्रीँ अर्हं णमो जिणाणं । (२) ॐ ह्रीँ अर्ह णमो ओहिजिणाणं । ( ३ ) ॐ ह्रीँ अर्हं णमो परमोहिजिणाणं । ( ४ ) ॐ ह्रीँ अर्हं णमो सव्वोहिजिणाणं । (५) ॐ ह्रीँ अर्ह णमो अणंतोहिजिंणाणं । ( ६ ) ॐ ह्रीं अर्हं णमो कुट्टबुद्धीणं । ( ७ ) ॐ अर्हं णमो बीयबुद्धीणं । ( ८ ) ॐ ह्रीँ अर्ह णमो पयाणुसारीणं । (९) ॐ ह्रीँ अर्हं णमो आसीविसाणं । (१०) ॐ ह्रीं अर्हं णमो दिट्ठिविसाणं । ( ११ ) ॐ अर्हं णमो संभिन्नसोयाणं । (१२) ॐ ह्रीँ अर्ह णमो संयंसंबुद्धाणं । (१३) ॐ For Personal & Private Use Only श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ ३० ॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह । (२०) * ॥ ३१ ॥ ही अर्ह णमा आगासगार्म ही अहँ णमो पत्तेयबुद्धाणं । (१४) ॐ ह्रीं अहँ णमो बोहिबुद्धाणं । (१५) ॐ ह्रीं अर्ह णमो उज्जुमईणं । (१६) ॐ ह्रीं अहँ णमो विउलमईणं । (१७) ॐ ह्रीं अ णमो दसपुव्वीणं । (१८) ॐ ह्रीं अर्ह णमो चउद्दसपुवीणं । (१९) ॐ ह्रीं अर्ह | णमो अटुंगनिमित्तकुसलाणं । (२०) ॐ ह्रीं अहँ णमो विउव्वणइडिपत्ताणं । (२१) ॐ ह्रीं अहँ णमो विज्जाहराणं । (२२) ॐ ह्रीं अर्ह णमो चारणलद्धीणं । (२३) ॐ ह्रीं अर्ह णमो पण्हसमणाणं । (२४) ॐ ह्रीं अहँ णमो आगासगामीणं । (२५) ॐ ह्रीं अर्ह णमो खीरासवीणं । (२६) ॐ ह्रीं अर्ह णमो सप्पियासवीणं । (२७) ॐ ह्रीँ अहँ णमो महुआसवीणं । (२८) ॐ ह्रीं अहँ णमो अमियासवीणं । (२९) ॐ ह्रीं अहँ णमो सिद्धायणाणं । (३०) ॐ ह्रीं अर्ह णमो भगवओ महइमहावीर-वद्धमाण-बुद्धरिसीणं । (३१) ॐ ह्रीं अहँ णमो उग्गतवाणं । (३२) ॐ ही अर्ह णमो अक्खीणमहाणसियाणं (३३) ॐ ह्रीं अर्ह णमो वढ्दमाणाणं । (३४) ॐ ह्री अर्ह णमो दित्ततवाणं । (३५) ॐ ही अर्ह णमो तत्ततवाणं । (३६) ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥३१॥ JainEducation intemational For Personal Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ३२ ॥ अर्ह णमो महातवाणं । (३७) ॐ ह्रौं अहँ णमो घोरतवाणं । (३८) ॐ ह्रीं अहँ णमो घोरगुणाणं । (३९) ॐ ह्रीं अर्ह णमो घोरपरक्कमाणं । (४०) ॐ ह्रीं अर्ह णमो घोरगुणबंभयारीणं । (४१) ॐ ह्रीं अर्ह णमो आमोसहिपत्ताणं । (४२) ॐ ही अहँ णमो खेलोसहिपत्ताणं । (४३) ॐ ह्रीं अर्ह णमो जल्लोसहिपत्ताणं । (४४) ॐ ह्रीं अर्ह णमो विप्पोसहिपत्ताणं । (४५) ॐ ह्रीं अहँ णमो सव्वोसहिपत्ताणं । (४६) ॐ ह्रीं अर्ह णमो मणबलीणं । (४७) ॐ ही अर्ह णमो वयणबलीणं । (४८) ॐ ह्रीं अहँ णमो कायबलीणं ॥ ॥ इति लब्धिपदानि ॥ इति तृतीयं वलयम् ॥ चतुर्थवलयम् । गुरुपादुका पूजनम् (आठ दाडम) . १. ॐ हीं अर्हत्पादुकाभ्यः स्वाहा ॥ २. ॐ ह्री सिद्धपादुकाभ्यः स्वाहा ॥ ३. ॐ ही गणधरपादुकाभ्यः स्वाहा ॥ ४. ॐ ह्री गुरुपादुकाभ्यः स्वाहा ॥ ५. ॐ ह्रीं श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥३२॥ in Education For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ३३ ॥ परमगुरुपादुकाभ्यः स्वाहा ॥ ६. ॐ ह्रीं अदृष्टगुरुपादुकाभ्यः स्वाहा ॥ ७. ॐ ह्रीं अनन्तगुरुपादुकाभ्यः स्वाहा ॥ ८. ॐ ह्रीं अनन्तानन्तगुरुपादुकाभ्यः स्वाहा ॥ नीचेनो श्लोक बोली कुसुमांजलि करवी. सानाहताः स्वरा वर्गा, लब्धिमन्तो महर्षयः ॥ गुरुणां पादुकाश्चैव, सर्वे पूजां प्रतीच्छत ॥१॥ ॥ इति चतुर्थं वलयम् ॥ ॥ अथ अधिष्ठायकाह्वानादिकम् ॥ (आह्वानम् ) श्री अर्हदादिसमलङ्कृतसिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहनमुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, सर्वे समावतरत द्रुतमुत्सवेऽत्र ॥१॥ संवौषट् ॥ आह्वानमुद्राए आह्वान करवू । (संस्थापनम्) श्री अर्हदादिसमलङ्कृतसिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहनमुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, सर्वेऽपि तिष्ठत सुखेन निजासनेषु ॥२॥ ठः ठः ॥ स्थापनी मुद्राए स्थापन करवू । श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥३३॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥३४॥ (संनिधानम्) श्री अर्हदादिसमलङ्कृतसिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहनमुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, सर्वेऽपि मे भवत सन्निहिताः प्रमोदात् ॥३॥ वषट् ॥ संनिधापनी मुद्राए संन्निधान करवू । (संनिरोधनम् ) श्री अर्हदादिसमलङ्कृतसिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहनमुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, स्थातव्यमेव यजनावधिरत्र सर्वैः ॥४॥ संनिरोधनी मुद्राए सन्निरोध करवो । 4 (अवगुंठनम् ) श्री अर्हदादिसमलङ्कृतसिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहनमुख्यदेवाः । | देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, सर्वे भवन्तु परदेहभृतामदृश्याः ॥५॥ फट् ॥ - अवगुंठनी मुद्राए अवगुंठन करवू । (पूजनम् ) श्री अर्हदादिसमलङ्कृतसिद्धचक्रा-धिष्ठायका विमलवाहनमुख्यदेवाः । देव्यश्च निर्मलदृशो दिगिना ग्रहाश्च, पूजां प्रतीच्छत मया विहितां यथावत् ॥६॥ पूजनमुद्राए अंजली करी पूजन करवू । |श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥३४॥ in Education For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ३५ ॥ अथ अधिष्ठायकादिपूजा ॥ (पांचमुं वलय) . १. ॐ ह्रीं अहँ श्रीसिद्धचक्राधिष्ठायकाय श्रीविमलवाहनाय स्वाहा ॥ कोळु ॥ २. ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्रेश्वर्यै स्वाहा ॥ कोळु ॥ ३. ॐ ह्रीं श्रीअप्रसिद्धसिद्धचक्राधिष्ठायकाय स्वाहा ॥ कोळु ॥ हवे पछी आगळ दरेक पदोनुं पूजन पान सोपारीथी करवू ।। ४. ॐ ह्रीं अर्ह जिनप्रवचनाधिष्ठायकाय श्रीगणिपिटकयक्षराजाय स्वाहा ॥ ५. ॐ ह्रीं अर्ह श्रीस्फुरत्-प्रभावाय श्रीधरणेन्द्राय स्वाहा ॥ ६. ॐ ह्रीं तीर्थरक्षादक्षाय श्रीकपर्दियक्षाय स्वाहा ॥ ७. ॐ ह्रीं श्री शारदायै स्वाहा ॥ ८. ॐ ह्रीं श्रीशान्तिदेवतायै । स्वाहा ॥ ९. ॐ ह्रीं श्रीअप्रतिचक्रायै स्वाहा ॥ १०. ॐ ह्रीं श्रीज्वालामालिन्यै स्वाहा ॥ ११. ॐ ह्रीं श्रीत्रिभुवनस्वामिन्यै स्वाहा ॥ १२. ॐ ह्रीं श्री श्रीदेवतायै स्वाहा ॥ १३. ॐ ह्रीं श्रीवैरोट्यायै स्वाहा ॥ १४. ॐ ह्रीं श्रीपद्मावत्यै स्वाहा ॥ १५. ॐ ही श्रीकुरुकुल्लायै स्वाहा ॥१६. ॐ ह्रीं श्री अम्बिकायै स्वाहा ॥ १७. ॐ ह्रीं श्रीकुबेरदेवतायै स्वाहा ॥ १८. ॐ ह्रीं श्रीकुलदेवतायै स्वाहा ॥ ॥ इति अधिष्ठायकदेवतापूजनम् ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥३५ ॥ For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ३६ ॥ ॥ अथ जयाद्यर्चा ॥ (छ्टुं वलय ) ॐ ह्रीँ जयायै स्वाहा ॥१॥ ॐ ह्रीँ जम्भायै स्वाहा ॥२॥ ॐ ह्रीँ विजयायै स्वाहा ॥३॥ ॐ ह्रीँ स्तम्भायै स्वाहा ॥४॥ ॐ ह्रीं जयन्त्यै स्वाहा ॥५॥ ॐ ह्रीँ मोहायै स्वाहा ॥६॥ ह्रीँ अपराजितायै स्वाहा ॥७॥ ॐ ह्रीँ बन्धायै स्वाहा ॥८॥ जये च विजये चेव, जिते चाप्यपराजिते ॐ जम्भे स्तम्भे तथा बन्धे, मोहे पूजां प्रतीच्छत ॥१॥ जयादि आठ देवीनी पूजा नारंगीना आठ फळो मूकीने करवी । ॥ इति जयाद्यर्चा ॥ इति जयादिवलयम् ॥ ॥ अथ षोडशविद्यादेवीपूजा ॥ ( सातमुं वलय ) (१) ॐ ह्रीँ श्रीरोहिण्यै स्वाहा । ( २ ) ॐ ह्रीँ श्री प्रज्ञप्त्यै स्वाहा । ( ३ ) ॐ श्रीवज्रशृङ्खलायै स्वाहा । ( ४ ) ॐ ह्रीं श्री वज्राङ्कश्यै स्वाहा । ( ५ ) ॐ ह्रीं श्रीचक्रेश्वर्यै स्वाहा । (६) ॐ ह्रीँ श्रीपुरुषदत्तायै स्वाहा । ( ७ ) ॐ ह्री श्रीकाल्यै स्वाहा । ( ८ ) ॐ For Personal & Private Use Only श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ ३६ ॥ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ही श्रीमहाकाल्यै स्वाहा । (९) ॐ ह्रीं श्री गौर्यै स्वाहा । (१०) ॐ ह्रीं श्री गान्धार्यै स्वाहा । (११) ॐ ह्रीँ श्री सर्वानामहाज्वालायै स्वाहा ।(१२) ॐ ह्रीँ श्रीमानव्यै स्वाहा । (१३) ॐ ह्रीं श्रीवैरुट्यायै स्वाहा । (१४) ॐ ह्रीं श्रीअच्छुप्तायै स्वाहा । (१५) ॐ ह्रीं श्रीमानस्यै स्वाहा । (१६) ॐ ह्रीं श्रीमहामानस्यै स्वाहा । आ रीते सोळ विद्यादेवीओ- पूजन सोळ 'सोपारीथी करवू । ॥ इति विद्यादेवी वलयम् ॥ ॥ अथ यक्षयक्षिणी पूजनम् ॥ (आठमुं वलय) १. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीगोमुखाय स्वाहा । २. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौ हूँ फुट ॐ श्रीमहायक्षाय स्वाहा । श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥३७॥ १. ॐ ह्रीं श्री रोहिणी-प्रज्ञप्ति-वज्रशृङ्खला-चक्रेश्वरी-पुरुषदत्ता-काली-महाकाली-गौरीगान्धारी-सर्वास्त्रमहाज्वाला-मानवीवैरुट्य-ऽच्छुप्ता-मानसी-महामानसीषोडशविद्यादेवताभ्यः स्वाहा । (इति मूलप्रतिपाठः) । For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ३. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हूँ फुट् ॐ श्रीत्रिमुखाय स्वाहा । ४. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीयक्षनायकाय स्वाहा (ईश्वर) । ५. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीतुम्बरवे स्वाहा । ६. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीकुसुमाय स्वाहा । ७. ॐ क्रौं हाँ हौ ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीमातङ्गाय स्वाहा । ८. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीविजयाय स्वाहा । ९. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हूँ फुट् ॐ श्रीअजिताय स्वाहा । १०. ॐ क्रौं हाँ हौ ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीब्रह्मणे स्वाहा । ११. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं हुँ फुट् ॐ श्रीयक्षराजाय स्वाहा । १२. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीअसुरकुमाराय स्वाहा ।(मनुजाय-ईश्वर) १३. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हूँ फुट् ॐ श्रीषण्मुखाय स्वाहा । १४. ॐ क्रौं ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीपातालाय स्वाहा । १५. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीकिन्नराय स्वाहा ।। hen shcon dhon sheey dhan phorn pheory, ॥ ३८ ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥३८॥ Inn Education International For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ३९ ॥ १६. ॐ १७. ॐ १८. ॐ १९. ॐ २०. ॐ २१. ॐ २२. ॐ २३. ॐ २४. ॐ क्रौं ह्रीँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ क्रौं ह्रीँ ह्रीँ ग्लौं हूँ फुट् ॐ क्रौं ह्रीँ ह्रीँ ग्लौं हूँ फुट् ॐ क्रौं ह्राँ ह्रीँ ग्लौं हुँ फुट् ॐ क्रौं ह्रीँ ह्रीँ ग्लौं हूँ फुट् ॐ क्रौं ह्रीँ ह्रीँ ग्लौं हुँ फुट् ॐ क्रौं ह्राँ ह्रीँ ग्लौं फुट् ॐ क्रौं ह्रीँ ह्रीँ ग्लौं हूँ फुट् ॐ क्रौं ह्रीँ ह्रीँ ग्लौं हुँ फुट् ॐ ॥ १. ॐ क्रौं ह्रीँ ह्रीँ ग्लौं हुँ फुट् ॐ २. ॐ क्रौं ह्रीँ ह्रीँ ग्लौं हूँ फुट् ॐ क्रौं ह्रीँ ह्रीँ ग्लौं हुँ फुट् ॐ ३. ॐ I 1 I श्रीगरुडाय स्वा श्रीगन्धर्वाय स्वाहा I श्रीयक्षराजाय स्वाहा श्रीकुबेराय स्वाहा I श्रीवरुणाय स्वाहा 1 श्रीभ्रूकुटये स्वाहा श्रीगोमेधाय स्वाहा I श्रीपार्श्वाय स्वाहा I श्री ब्रह्मशान्तये स्वाहा यक्षिणी पूजन ॥ श्रीचक्रेश्वर्यै स्वाहा I श्रीअजितबलायै स्वाहा 1 श्रीदुरितायै स्वाहा 1 For Personal & Private Use Only 1 श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ ३९ ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ४० ॥ ४. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीकालिकायै स्वाहा । ५. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीमहाकालिकायै स्वाहा । ६. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीश्यामायै स्वाहा । ७. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीशान्तायै स्वाहा । ८. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीभ्रूकुट्यै स्वाहा । ९. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीसुतारिकायै स्वाहा । १०. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीअशोकायै स्वाहा । ११. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीश्रीमानव्यै स्वाहा । १२. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौ हुँ फुट् ॐ श्रीचण्डायै स्वाहा । १३. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीविदितायै स्वाहा । १४. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीअङ्कशायै स्वाहा । १५. ॐ क्रौं ग्लौं हूँ फुट् ॐ श्रीकन्दर्पायै स्वाहा । हुँ फुट् ॐ श्रीनिर्वाण्यै स्वाहा । श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥४०॥ Januationen For Personal Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह १७. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हूँ फुट् ॐ श्रीबलायै स्वाहा । १८. ॐ क्रौं हाँ हौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीधारिण्यै स्वाहा । १९. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीधरणप्रियायै स्वाहा । २०. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीनरदत्तायै स्वाहा । २१. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीगान्धायै स्वाहा । २२. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीअम्बिकायै स्वाहा । २३. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीपद्मावत्यै स्वाहा । २४. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीसिद्धायिकायै स्वाहा ।। आ रीते चोवीश यक्ष-यक्षिणीनुं एकेक सोपारीथी पूजन करवू ।' ॥ इतियक्ष-यक्षिणीवलयम् ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥४१॥ १. ॐ क्रौं हाँ ह्रौं ग्लौं हुँ फुट् ॐ श्रीगोमुख-महायक्ष-त्रिमुख-यक्षनायक-तुम्बरु-कुसुम-मातङ्ग-विजय-अजित-ब्रह्मयक्षराज-कुमार-षण्मुख-पाताल-किन्नर-गरुड-गन्धर्व-कुबेर-वरुण-गोमेध-पार्श्व-ब्रह्मशान्ति-चतुर्विंशतियक्षेभ्यः स्वाहा । Inn Education in For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ४२ ॥ ॥ अथ चतुरपाल-चतुर्वीरपूजा ॥ (नवमुं वलय) ___ ॐ क्लौं ब्लौं लाँ वाँ ही कुमुदाय स्वगणपरिवृत्ताय इदमर्थ्य पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरुं फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा ॥१॥ ॐ क्लौ ब्लौ लाँ वाँ ह्रीं अञ्जनाय स्वगणपरिवृत्ताय इदमयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरुं फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्य तामिति स्वाहा ॥२॥ ॐ क्लौ ब्लौ लाँ वाँ ह्रीं वामनाय स्वगणपरिवृत्ताय इदमयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरुं फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा ॥३॥ ॐ क्लौं ब्लौ लाँ वाँ ह्रीं पुष्पदन्ताय स्वगणपरिवृत्ताय इदमयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरुं फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा ॥४॥ आ चार द्वारपालनी पूजा चणाना चार लाडवा, पीळा फूल अने फलथी करवी । ॥ इति द्वारपालपूजा ॥ १. ॐ क्रौं हाँ ह्रौ हुँ फुट् ॐ श्रीचक्रेश्वरी-अजितबला-दुरितारी-महाकाली-श्यामा-शान्ता-भृकुटि-सुतारिका-अशोकामानवी-चंडा-विदिता-अङ्कशा-कन्दर्पा-निर्वाणी-वला-धारिणी-धरणप्रिया-नरदत्ता-गान्धारी-अम्बिका-पद्मावती-सिद्धायिकाचतुर्विंशतियक्षिणीभ्यः स्वाहा (मूलप्रतिगतपाठः) श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥४२॥ For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ४३ ॥ ॐ ही हम्ल्यूँ माणिभद्राय स्वगणपरिवृत्ताय इदमयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चलं फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्य तामिति स्वाहा ॥१॥ ॐ ह्रीं ह्म्ल्यूँ पूर्णभद्राय स्वगणपरिवृत्ताय इदमयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरुं फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्य तां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा ॥२॥ ॐ ही हम्ल्यूँ कपिलाय स्वगणपरिवृत्ताय इदमयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरुं फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्य तां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा ॥३॥ ॐ ह्रीं ह्म्ल्यूँ पिङ्गलाय स्वगणपरिवृत्ताय इदमर्थ्य पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरुं फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्य तां प्रतिगृह्य तामिति स्वाहा ॥४॥ आ चार वीरनुं पूजन तलवट ना लाडवा चार अने श्याम फूल-फळ थी करवू । विमलस्तत्परिवारो, देवा देव्यश्च सदृशः । बलिपूजां प्रतीच्छन्तु, सन्तु संघस्य शान्तये ॥१॥ आ थोक बोली विमलवाहन वगेरे देवो उपर कढसुमांजलि करवी । ॥ इति द्वारपाल वीरवलयम् ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥४३॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ४४ ॥ ॥ अथ दिक्पालपूजनम् ॥ ॐ हीं अः वनाधिपतये स्वगणपरिवृत्ताय इदमयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरुं फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा ॥१॥ (आगळ पहेलांनी माफक बोलवू) 7 ॐ ऊँ ऊँ रः सः अग्नये स्वगण...॥२॥ ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं क्षः फट् यमाय स्वगण...॥३॥ ॐ ग्लौं हाँ नैर्ऋताय स्वगण...॥४॥ ॐ म्लौं हूँ वरुणाय स्वगण...॥५॥ ॐ म्लौं जौ वायवे स्वगण...॥६॥ ॐ ब्लौं हाँ कुबेराय स्वगण...॥७॥ ॐ हाँ हूँ ह्रौं हुः ईशानाय स्वगण...॥८॥ ॐ क्षौ ब्लौं सोमब्रह्मणे स्वगण...॥९॥ ॐ क्षौ ब्लौं पद्मावतीसहिताय नागेन्द्राय स्वगण...॥१०॥ इन्द्रस्तस्य परिवारो, देवा देव्यश्च सदृशः । बलिपूजां प्रतीच्छन्तु, सन्तु सङ्घस्य शान्तये ॥१॥ अग्निस्तस्य परिवारो, देवा देव्यश्च सदृशः । बलिपूजां प्रतीच्छन्तु, सन्तु सङ्घस्य शान्तये ॥१॥ यमस्तस्य परिवारो, देवा देव्यश्च सदृशः । बलिपूजां प्रतीच्छन्तु, सन्तु सङ्घस्य शान्तये ॥१॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥४४॥ For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ४५ ॥ नैर्ऋतस्तत्परिवारो, देवा देव्यश्च सदृशः । बलिपूजां प्रतीच्छन्तु, सन्तु सङ्घस्य शान्तये ॥१॥ वरुणस्तत्परिवारो, देवा देव्यश्च सदृशः । बलिपूजां प्रतीच्छन्तु, सन्तु सङ्घस्य शान्तये ॥१॥ वायुस्तस्य परिवारो, देवा देव्यश्च सदृशः । बलिपूजां प्रतीच्छन्तु, सन्तु सङ्घस्य शान्तये ॥१॥ कुबेरस्तत्परिवारो, देवा देव्यश्च सदृशः । बलिपूजां प्रतीच्छन्तु, सन्तु सङ्घस्य शान्तये ॥१॥ ईशस्तस्य परिवारो, देवा देव्यश्च सदृशः । बलिपूजां प्रतीच्छन्तु, सन्तु सङ्घस्य शान्तये ॥१॥ सोमब्रह्मपरिवारो, देवा देव्यश्च सदृशः । बलिपूजां प्रतीच्छन्तु, सन्तु सङ्घस्य शान्तये ॥१॥ नागेन्द्रस्तत्परिवारो, देवा देव्यश्च सदृशः । बलिपूजां प्रतीच्छन्तु, सन्तु सङ्घस्य शान्तये ॥१॥ आ दश श्लोको हाथ जोडीने बोलवा । ॥ इति दिक्पालवलयम् ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ ४५ ॥ wwww.jainelibrary.pro For Personal & Private Use Only Join Education international Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - दिक्पाल पूजन सामग्री- कोष्टक - फूल विविध पूजन संग्रह ॥ ४६ ॥ नाम | वर्ण | पूजन द्रव्य फळ नैवेद्य । शेष इन्द्र | पीळो केसर चंपो पीलो नारंगी मोतीओ अथवा चणानो लाडु अक्षत-नाणुं अग्नि | पीळो लाल | केसर जासुद लाल लाल सोपारी | चूरमा अथवा घउंनो लाडु | अक्षत-नाणुं यम | श्याम | कंकु दमणो मरुओ |काळी सोपारी| अडदनो लाडु अक्षत-नाणुं नैऋत | लीलो चुओ सुखड मालती बोलसरी | दाडम | तलवटनो लाडु अक्षत-नाणुं वरुण | सफेद | चुओ सुखड दमणो बोलसरी | | दाडम मगदळनो लाडु अक्षत-नाणु वायु | सफेद वास चुओ-कस्तूरी| चंपो नारंगी ममरानो लाडु अक्षत-नाणुं कुबेर | पंचवर्ण सुखड बरास जाई . बीजोकै ममरानो लाडु अक्षत-नाणुं ईशान | सफेद सुखड कुमुद सफेद शेलडी ममरानो लाडु अक्षत-नाj ब्रह्म | सफेद सुखड सेवन्त्रा (लीला)| बीजोरूं घेबर अक्षत-नाणुं नाग | श्याम सुखड मोगरो बदाम | पेंडा . अक्षत-नाणु श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥४६ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ४७ ॥ ॥ अथ नवग्रहपूजनम् ॥ . ॐ ह्रीं हुः फट् आदित्याय स्वगणपरिवृत्ताय इदमर्थ्य पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरुं फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा ॥१॥ आगळ पूर्वनी जेमॐ ह्रीं हः फट् सोमाय स्वगण ॥२॥ ॐ ह्रीं ह्रः फट् मङ्गलाय स्वगण ॥३॥ ह्रीं ह्रः फट् बुधाय स्वगण ॥४॥ ॐ ह्रीं हुः फट् बृहस्पतये स्वगण ॥५॥ ह्रीं हः फट् शुक्राय स्वगण ॥६॥ ह्रीं हुः फट् शनैश्चराय स्वगण ॥७॥ ह्रीं ह्रः फट् राहवे स्वगण ॥८॥ ही हुः फट् केतवे स्वगण ॥९॥ हाथ जोडीने आ स्तुति श्लोक बोलवो जिनेन्द्रभक्त्या जिनभक्तिभाजां, जुषन्तु पूजाबलिपुष्पधूपान् । ग्रहा गता ये प्रतिकूलभावं, ते मेऽनुकूला वरदाश्च सन्तु ॥१॥ __दरेक स्थळे अक्षत तथा त्रांबानाणुं मूकवू । ॥ इति ग्रहपूजनम् ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥४७॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ४८ ॥ नवग्रह पूजन सामग्री- कोष्टक १ ग्रह १ रवि २ चंद्र ३ मंगल ४ बुध, | ५ गुरु ६ शुक्र शनि | ८ राहु | ९ केतु २ वर्ण | लाल श्वेत लाल पीळो | पीळो श्वेत श्याम | श्याम श्याम ३ पूजन द्रव्य | केसर लाल सुखड बरास केसर (लाल)| वासक्षेप | वासक्षेप | सुखड कंकु | कंकु । कंकु ४ पुष्प कणेर | कुमुद जासुद चंपो | चमेली | जुई-मोगरो बोलसरी मचकुंद ड.| पंचवर्णा ५ फळ द्राक्ष शेरडी राती सोपारी | नारंगी | नारंगी बीजोकै खारेक | श्रीफळ | दाडम ६ नैवेद्य लाडु लाडु लाडु लाडु लाडु | लाडु लाडु लाडु लाडु (चूरमानो) (ममरानो) (गोळ.धा.नो) (मगनो)| (चणानो) (ममरानो) (अडदनी दाळनो) ॥ अथ नवनिधिपूजनम् ॥ ॐ हीं नवनिधिभ्यः स्वाहा ।(१) ॐ नैसर्पिकाय स्वाहा ।(२) ॐ पाण्डुकाय स्वाहा । (३) ॐ पिङ्गलाय स्वाहा । (४) ॐ सर्वरत्नाय स्वाहा । (५) ॐ महापद्माय स्वाहा ।(६) ॐ कालाय स्वाहा । (७) ॐ महाकालाय स्वाहा । (८) ॐ माणवकाय स्वाहा ।(९) ॐ शंखाय स्वाहा। नवनिधि पदो उपर नव अखरोड मूकी पूजन करवू । ॥ इति नवनिधिपूजनम् ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥४८॥ For Personal & Private Use Only Jan Education International Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ४९ ॥ भूतबलि- भूता भूमिचरा व्योम-चरास्तिर्यकचरा अपि । बलिपूजां प्रतिच्छन्तु, सन्तु संघस्य शान्तये ॥१॥ • पंचवर्णा बलि-बाकळा देवा । दुष्ट-वित्रासन-ये दुष्टा बलिदानेन, न शाम्यन्ति कदाचन । तेषां मुद्राभिरेताभिः कार्यं वित्रासनं स्फुटम् ॥१॥ भौमान् पाष्णित्रिघातेन, दिव्यान् दृष्टिनिपातनैः । दिक्चारिणस्त्रितालाभि-दुष्टान् वित्रासयाम्यहम् ॥२॥ ठः ठः ठः ॥ (१) दुष्ट भूमिदेवोनुं जमीन उपर त्रण वार पानी पछाडवापूर्वक वित्रासन करवू । (२) दुष्ट दिव्य देवोनुं ऊंची क्रूर दृष्टि फेंकवापूर्वक वित्रासन करवू । (३) दुष्ट दिशाचर देवोनुं त्रण ताळी पाडवापूर्वक वित्रासन करवू । ॥ इति दुष्टवित्रासनम् ॥ ॥ अथ स्नात्रम् ॥ कुसुमांजली करवी । स्वस्ति स्वस्ति नमोऽस्तु ते भगवते, त्वं जीव जीव प्रभो ! भव्यानन्दन ! नन्द नन्द भगव-न्नहँस्त्रिलोकीगुरो ! त्वन्मूलाक्षरमन्त्रमण्डलमयश्रीसिद्धचक्रक्रम-प्राप्तस्नात्रमिदं शुभोदयकृतेऽस्माभिः समारभ्यते ॥१॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥४९॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ५०॥ ॥ अथ कलशाधिवासनम् ॥ ॐ ही श्री धृति-कीर्ति-बुद्धि-लक्ष्मी-शान्ति-तुष्टि-पुष्टयः एतेषु नवकलशेषु कृताधिवासा भवन्तु भवन्तु स्वाहा ॥ आ मंत्र बोलवापूर्वक दरेक स्नात्र पूर्वे नवे कलशोनुं अधिवासन करवू । ॐ क्षा क्षौं क्षीरसमुद्रोद्भवानि क्षीरोदकान्येषु स्नात्रकलशेष्ववतरन्त्ववतरन्तु संवौषट् ॥ आ मंत्रथी दूध मंत्रीने कळशोमां भरवू । ॥ अथ क्षीरस्नात्रम् ॥ ॐ नमोऽर्हत्-सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॥ श्री सिद्धचक्र 15 पूजन विधि (१) पुण्याहं तदहः क्षणोऽयमनघः पूजास्पदं तत्पदं, सर्वास्तीर्थभुवोऽपि ता जलभृतस्तद्वारि हारि प्रभोः । तेऽनर्घा घुसृणादिगन्धविधयः कौम्भास्तु कुम्भाश्च ते, धन्या यान्ति कृतार्थतां जिनपतेः स्नात्रोपयोगेन ये ॥१॥ ॥५०॥ Join Education International For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ५१ ॥ (२) कुम्भाः काञ्चनरत्नराजतमयाः, स्त्रक्चन्दनैश्चर्चिताः कर्पूरागरुगन्धबन्धुरतराः, क्षीरोदनीरोदयाः । भव्यैः स्नात्रकृते जिनस्य पुरतो, राजन्ति राजीकृताः सार्वाः स्वीयशुभर्द्धिसङ्गममये, माङ्गल्यकुम्भा इव ॥२॥ (३) श्रेणीभूय समुत्थिताः करधृतैः, कुम्भैर्हदने मुदा, भव्या भान्ति जिनस्य मज्जनकृते, पौरन्दर श्रीजुषः । संसारौघमिवोत्तरीतुमनसौ-ऽहंदैवते मानस-प्रासादे कलशाधिरोपमिव वा, ते कर्तुकामा इव ॥३॥ (४) गीतातोद्योरुनादैः सरभसममरारब्धनाट्यप्रबन्धे, नानातीर्थोदकुम्भै रजतमणिमयैः शातकुम्भर्जिनः प्राक् । मेरोः शृङ्गे यथेन्द्रैः सजयजयरवैर्मज्जितो जन्मकाले, कल्याणीभक्तयस्तं विधिवदिह तथा भाविनो मज्जयन्तु ॥४॥ (५) जैने स्नात्रविधौ विधूतकलुषे, विश्वत्रयीपावने, क्षुद्रोपद्रवविद्रवप्रणयिनां, ध्यातं त्वतिप्राणिनाम् । श्रीसले सुजने जने जनपदे, धर्मक्रियाकर्मठे, देवाः श्रीजिनपक्षपोषपटवः, कुर्वन्तु शान्तिं सदा ॥५॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥५१॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ५२ ॥ हाथमां कळशो राखीने आ पांच श्लोक- स्तोत्र मधुर-तारस्वरे भणदुं । पछी चार जणा जमणी बाजु अने चार जणा डाबी बाजु अने एक जण सन्मुख ऊभा रहे ने नीचे प्रमाणे श्लोकमंत्र बोलीने स्नान करे। (१) कलशाकारश्रीसिद्ध-चक्रविहितावतारमर्हन्तम् ।। शिवशान्तिकृते भक्त्या, स्नपयामः क्षीररसकलशैः ॥ ही श्री क्षीररसकलशेन श्रीसिद्धचक्रं स्नपयामति स्वाहा ॥ ॥ इति क्षीरस्नात्रम् ॥ ॥२ अथ दधिस्नात्रम् ॥ ॐ हाँ ही दधिसमुद्रोद्भवानि दध्युदकान्येतेषु स्नात्रकलशेष्ववतरन्त्ववतरन्तु संवौषट् ॥ आ मंत्र बोली दहीं भरवू । कलशाकारश्रीसिद्धि-चक्रविहितावतारमर्हन्तरम् । शिवशान्तिकृते भक्त्या, स्नपयामः सुदधिरसकलशैः ॥२॥ ॐ ही श्री दधिरसकलशेन श्रीसिद्धचक्रं स्नपयामीति स्वाहा ॥ ॥ इति दधिस्नात्रम् ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥५२॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ५३ ॥ ॥३ अथ घृतस्नात्रम् ॥ ॐ ह्रीं घ्राँ घी घृतसमुद्रोद्भवानि घृतोदकान्येतेषु स्नात्रकलशेष्वतरन्त्वतरन्तु संवौषट् ॥ आ मंत्रे घी मंत्रीन कलशोमां भरवू । कलशाकारश्रीसिद्ध-चक्रविहितावतारमर्हन्तम् । । शिवशान्तिकृते भक्त्या, स्नपयामः सुघृतरसकलशैः ॥३॥ - ॐ ह्रीं श्रीं सुघृतरसकलशेन श्रीसिद्धचक्रं स्नपयामीति स्वाहा ॥ ॥ इतिघृतस्नात्रम् ॥ ॥४ अथेक्षुरसस्नात्रम् ॥ ॐ ह्रीं आँ इ इक्षुरससमुद्रोद्भवानि इक्षुदकान्येतेषु स्नात्रकलशेष्ववतरन्त्ववतरन्तु संवौषट् ॥ आ मंत्रे शेरडीनो रस मंत्रीने कलशोमां भरवो । कलशाकारश्रीसिद्ध-चक्रविहितावतारमहन्तम् । शिवशान्तिकृते भक्त्या, स्नपयामः इक्षुरसकलशैः ॥ ॐ ह्रीँ श्री इक्षुरसकलशेन श्रीसिद्धचक्रं स्नपयामीति स्वाहा ॥ ॥ इति इक्षुरसस्नात्रम् ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥५३॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ५४ ॥ ॥ ५ अथ गन्धोदकस्नात्रम् ॥ ॐ ह्रीँ पाँ पाँ पवित्रतीर्थोद्भवानि गन्धोदकान्येतेषु स्नात्रकलशेष्ववतरन्त्ववतरन्तु संवोषट् ॥ आ मंत्रे गंधोदक मंत्रीने कलशोमां भरवुं । कलशाकार श्रीसिद्ध-चक्रविहितावतारमर्हन्तम् । शिवशान्तिकृते भक्त्या, स्नपयामो गन्धरसकलशैः ॥५॥ ॐ श्रीं गन्धरसकलशेन श्रीसिद्धचक्रं स्नपयामीति स्वाहा ॥ ॥ इति गन्धोदकस्नात्रम् ॥ ॥ ६ अथ शुद्धजलस्नात्रम् ॥ कलशोमां नव नवाणनुं शुद्ध जल भरवुं । नद्यः समुद्रा गिरिनिर्जराश्च तीर्थानि कुण्डानि सरांसि वाप्यः । कूपा हृदाश्चोत्तमवारिपूरैः स्नात्रं प्रकुर्वन्त्विह सिद्धचक्रे ॥६॥ ॐ ह्रीँ श्रीँ तीर्थादिशुद्धजलेन श्रीसिद्धचक्रं स्नपयामीति स्वाहा ।। ॥ इति स्नात्र महोत्सवः ॥ For Personal & Private Use Only ॥ इति शुद्धजलस्नात्रम् ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ ५४ ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ५५ ॥ ए प्रमाणे स्नात्र करीने श्रीसिद्धचक्रने चोक्खा अंगलूंछणाथी साफ करी बृहद्वृत्तपाठपूर्वक अष्टप्रकारी पूजन करवू । . ॥अथाष्टप्रकारपूजनम् ॥ पहेली जलपूजा ॥ १. ॐ ही श्रीपरमेष्ठिने नम इति क्लेशापहैः शीतलैः श्रीवल्लीं बहुपल्लवां बहुफलां तन्वद्भिरेभिर्नरैः (जलैः) ॥ ॐ ह्रीं अर्हमनाहताख्यममलं सारं रहस्यं श्रुते-रस्योसा नम इत्यभीष्टफलदं श्रीसिद्धचक्रं यजे ॥१॥ ॐ ही श्री श्रीसिद्धचक्रं जलेन अर्चयामीति स्वाहा ॥ कलश करवो ॥ ॥ इति जलपूजा ॥ बीजी चंदनपूजा ॐ ह्रीं श्रीपरमात्माने नम इति प्रोल्लासिभावोद्भवैः, श्रीवश्याद्भुतयोग-सिद्धिजनकैर्गन्धैः सुगन्धोल्बणैः ॥ ॐ ह्रीं अर्हमनाहताख्यममलं सारं रहस्यं श्रुते-रस्योसा नम इत्यभीष्टफलदं श्रीसिद्धचक्रं यजे ॥ ॐ ह्रीं श्रीं श्रीसिद्धचक्रं चन्दनगन्धेन अर्चयामीति स्वाहा ॥ ॥ इति चन्दनगन्धपूजा ॥ | श्री सिद्धचक्र पूजन विधि For Personal Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ५६ ॥ त्रीजी पुष्पपूजा ॥ ॐ ह्रीं श्रीपरमात्माने नम इति श्रेयःसमाकर्षणैः, श्रीहस्तोद्धृतरत्नपात्रकलितैः पुष्पैः सपुष्पन्धयैः ॥ ॐ ही अहंमनाहताख्यममलं सारं रहस्यं श्रुते-रस्योसा नम इत्यभीष्टफलदं श्रीसिद्धचक्रं यजे । | ॐ ह्रीं श्रीं श्रीसिद्धचक्रं पुष्पेण अर्चयामीति स्वाहा ॥ ॥ इति पुष्पपूजा ॥ चोथी धूपपूजा ॥ ____ॐ ही तुभ्यमनन्तसौख्य ! नम इत्युच्चाटनैः कर्मणां, श्रीखण्डागुरुधपपिण्डविततै—मैः कपोतप्रभैः । ॐ ह्रीं अर्हमनाहताख्यममलं सारं रहस्यं श्रुते-रस्योसा नम इत्यभीष्टफलदं श्रीसिद्धचक्रं यजे ॥ ॐ ह्रीं श्रीं श्रीसिद्धचक्रं धूपेन अर्चयामीति स्वाहा ॥ ॥ इति धूपपूजा ॥४॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥५६॥ For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पांचमी दीपपूजा ॥ ॐ ह्रीँ तुभ्यमनन्तचिन्मय ! नमो विश्वप्रकाशात्मकै-र्दीप्तिश्रीस्वकरप्रयत्नरचितैर्दीप्रैः प्रदीपोत्करैः । विविध ॐ ह्रीं अर्हमनाहताख्यममलं सारं रहस्यं श्रुते-रस्योसा नम इत्यभीष्टफलदं श्रीसिद्धचक्रं यजे ॥ पूजन संग्रह RI ॐ ह्रीं श्रीं श्रीसिद्धचक्रं दीपकेन अर्चयामीति स्वाहा ॥ ॥ इति दीपपूजा ॥ ॥ ५७॥ छट्ठी अक्षतपूजा ॥ ॐ ह्रीं श्रीपरमर्द्धये नम इति ध्यानैकशुद्धाशयैः, श्रीपीठार्चनलाभमोदविशदैः शाल्यक्षतरक्षतैः। ॐ ह्रीं अर्हमनाहताख्यममलं सारं रहस्यं श्रुते-रस्योसा नम इत्यभीष्टफलदं श्रीसिद्धचक्रं यजे ॥ ॐ ह्रीं श्रीं श्रीसिद्धचक्रं दीपकेन अर्चयामीति स्वाहा ॥ ॥ इति अक्षतपूजा ॥ सातमी नैवेद्यपूजा ॥ ॐ हौँ तुभ्यमनन्तचिन्मय! नम श्रीतुष्टि-पुष्टिप्रदः, पुण्यश्रीत्वरितार्पितैश्चरुचयैश्चञ्चद्रसौधाञ्चितैः । ॐ ह्रीं अर्हमनाहताख्यममलं सारं रहस्यं श्रुते-रस्योसा नम इत्यभीष्टफलदं श्रीसिद्धचक्रं यजे ॥ ॐ ह्रीं श्रीं श्रीसिद्धचक्रं दीपकेन अर्चयामीति स्वाहा ॥ ॥ इति नैवेद्यपूजा ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥५७॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। ५८ ।। आठमी फलपूजा ॥ ॐ ह्रीं तुभ्यमनन्तवीर्य! नम इत्युच्चैः पदप्रापकैः, श्रीहस्तग्रहणोचितैः फलशतैः सन्नालिकेरादिभिः ॥ ॐ ह्रीँ अर्हेमनाहताख्यममलं सारं रहस्यं श्रुते-रस्योसा नम इत्यभीष्टफलदं श्रीसिद्धचक्रं यजे ॥ ह्रीं श्रीं श्रीसिद्धचक्रं दीपकेन अर्चयामीति स्वाहा ॥ ॐ ॥ इति फलपूजा ॥ अर्ध्यपूजा ॥ ॐ ह्रीं सर्वगताय ते नम इति स्पष्टाष्टभेदार्चना-रूपैर्माङ्गलिकैः कृतार्घरचनैः सर्वार्थसम्पादकैः ॥ ॐ ह्रीँ अर्हृमनाहताख्यममलं सारं रहस्यं श्रुते-रस्योसा नम इत्यभीष्टफलदं श्रीसिद्धचक्रं यजे ॥ ॐ ह्रीं श्रीं श्रीसिद्धचक्रं दीपकेन अर्चयामीति स्वाहा ॥ कुसुमांजलि करवी ॥ इति अर्घ्यपूजा ॥ इति बृहद्वृत्तान्वितमष्टप्रकारपूजनम् ॥ नीरैर्निर्मलता सुभैः सुभगतां गन्धैः शुभैः स्वामितां, लक्ष्मीं माङ्गलिकाक्षतैश्च चरुभिर्भोज्यं प्रदीपैर्महः । धूपैर्व्याप्तजगद्यशःपरिमलं, श्रेयः फलं सत्फलै-र्भव्या निश्चलमाप्नुवन्ति संततं श्रीसिद्धचक्रार्चनात् ॥१॥ For Personal & Private Use Only श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ ५८ ॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ५९॥ ॥ अथ मन्त्रध्यानम् ॥ नीचेना मंत्रना १०८ जाप करवा । ॐ अ सि आ उ सा द ज्ञा चा ते भ्यो नमः ॥ इति मन्त्रः ॥ अथ देववन्दनम् । (चैत्यवंदन) - इरियावही करी खमा० देवू ।। जो धुरि सिरिअरिहंतमूलदढपीठपइट्ठिओ, सिद्ध-सूरि-उवज्झाय-साहु चिहुं साह गरिट्ठिओ ॥१॥ दसण-नाण-चरित्त-तव हि पडिसाहासुन्दरु तत्तक्खरसरवग्गलद्धि-गुरुपयदलदुम्बरु ॥२॥ दिसिवाल-जक्ख-जक्खिणी, पमुहसुरकुसुमेहिं अलंकिओ। सो सिद्धचक्कगुरुकप्पतरु, अम्ह मणवंछिय फल दिओ ॥३॥ जं किंचि-नमुत्थणं-अरिहंतचेइयाणं-अन्नत्थ-एक नवकारनो काउस्सग्ग पारी नमोऽर्हत् कही नीचे प्रमाणे स्तुति बोलवी । श्रीसिद्धचक्रपीठस्थमर्हमित्युज्ज्वलं पदम् । ॐ ह्रीं अनाहतोपेतं वन्दे मन्त्रस्वरावृत्तम् ॥१॥ लोगस्स-सव्वलोए-अन्नत्थ-एक नवकारनो काउ० पारी नमोऽर्हत्, स्तुति बीजीश्रीसिद्धचक्राष्टदलस्थसिद्धा-दिसत्पदाराधनतत्पराणाम् । विधीयते यैः स्वपदप्रसाद-स्ते तीर्थनाथा मम शं दिशन्तु ॥२॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥५९ ॥ Join Education International For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह पक्खरवरदी-सअस्स भगवओ-अन्नत्थ-काउ० १ नवकार पारी नमोऽर्हत्-स्तुति त्रीजी । श्री सिद्धचक्रगुरुमण्डलमूलमन्त्र-वर्गाक्षरस्वरपदावलिवर्णरूपम् । ज्ञानं जिनप्रवचनस्य रहस्यभूतं, भूयान्मुदे मम सदा विशदावदातम् ॥३॥ सिद्धाणं बुद्धाणं, वेयावच्चगराणं-अन्नत्थ-काउ० १ नवकार पारी नमोऽर्हत्-स्तुति चोथी । श्रेयः श्रीसुविलासवासभवनश्रीसिद्धचक्रस्थिता-हत्सिद्धादिपदप्रभावविभव-प्राग्भारविस्तारकाः । देवाः श्रीविमलेश्वरप्रभृतयो, देव्यो जयाद्या ग्रहा, दिक्पालाश्च भवन्तु निर्मलदृशः, श्रीसङ्गरक्षाकराः ॥४॥ नमुत्थुणं, जावंति, खमा० जावंत-नमोऽर्हत्-स्तवन- नीचे प्रमाणेसचमहोदधिममलं, स्तुत्या प्रणिपत्य सिद्धचक्राह्वम् । तद्यन्त्रस्यैव विधिं, गणधररचितस्य वक्ष्येऽहम ॥१॥ ऊष्माक्षरं चतुर्थ, सप्तमवर्गद्वितीयवर्णेन । अध उपरि यदाक्रान्तं, सबिन्दु सकलं सदा ध्येयम ॥२॥ प्रणवादिबीजवर्णै-स्तत्तत्त्वं वलयितं समीपस्थम् । पञ्चनमस्कृत्यैतत्, सत्साधकसिद्धिदं वन्दे ॥३॥ प्रथमेऽथ ततो वलये, प्रसिद्धपरमेष्ठिमन्त्रपदतत्त्वम् । प्रत्येकं प्रणवाद्यं, ध्यायककल्पद्मं नौमि ॥४॥ पणौमि द्वितीयवलये, श्रीगणधरसेवितं प्रभुत्वकरम् । पञ्चविधं स्वाचारं, सम्यग्ज्ञानाय नम आद्यम् ॥५॥ |श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥६०॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ६१ ॥ • षोडशविद्यादेवी- स्तृतीयवलये स्मरामि वर्णमिषात् । पद्मं बहिरष्टदलं दलान्तरेष्वष्टवर्गाश्च ॥६॥ अष्टसु दलेषु बीजाक्षराण्यनाहतप्रवर्तीनि । वर्गाश्च मातृकाया, ध्यायामोऽनाहतं चान्ते ॥७॥ अथ रेखात्रयवृत्तं, तत्परिधौ चक्रमानम् । ॐ ह्रीं अर्हत्-सिद्धगुरुणां, तथा च परमगुरोः सुकल्याणी ॥८॥ अदृष्टानन्तयोर्गुर्वी-रनन्तानन्तसद्गुरोः । गणभृत्सिद्धचक्रस्य, सबीजानाहतपादुकाः ॥९॥ तस्मादथ रेखाद्वय - वृत्तं कलशानुकारि सद्यन्त्रम् । तन्मूले ग्रहनवकं, विघ्नहरं भव्यसत्त्वानाम् ॥१०॥ कुम्भस्य च स्थितान् कण्ठे, चिन्तयामि निधीन् नव । दिक्पालान् बहिरिन्द्राद्यान्, स्वस्वस्थानस्थितान् वन्दे ॥११॥ ततो लकारमूर्ध्वाध- स्तटयोरुभयोर्बहिः । सिद्धचक्रमिदं यन्त्रं, ध्यायतां कल्पितप्रदम् ॥१२॥ स्तम्भे पीतं सितं शान्तौ विद्वेषे धूमसन्निभम् । वश्ये रक्तं, शिवेऽभ्राभं, खेचरत्वे मणिप्रभम् ॥१३॥ ज्ञात्वा गुरुमुखाद् ध्यानं षट्कर्मसु यथोचितम् । त्यजन् निन्द्यं भजन् वन्द्यं, ध्याता कुर्यान्निरन्तरम् ॥१४॥ ॥ इति श्रीसिद्धचक्रस्वरूपस्तवनम् ॥ जयवीयराय संपूर्ण कहेवा ॥ इति देववन्दन ॥ पछी सिद्धचक्रस्तोत्र हाथ जोडीन कहेवुं । For Personal & Private Use Only श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ ६१ ॥ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ६२ ॥ ॥ अथ सिद्धचक्रस्तोत्रम् ॥ ऊर्ध्वाधोरयुतं सबिन्दु सकलं ब्रह्म स्वरावेष्टितं, वर्गापूरितमष्टपत्रममलं, सत्सन्धितत्त्वार्पितम् । अन्तः पत्रतटेष्वनाहतपदं, ह्रीकारसंवेष्टितं, देवं ध्यायति यः पुमान् स भवति, वैरीभकण्ठीरवः ॥१॥ यद्वर्गाष्टकपूरितं वरदलं, सानाहतं नीरजं, यच्चौंकारकलापबिन्दुकलितं, मध्ये त्रिरेखाञ्चितम् । यत्सर्वार्थकरं परं गुणवतां, कालत्रये वर्तिनां, तत् क्लेशौघविनाशनं भवतु नः, श्रीसिद्धचक्रेश्वरम् ॥२॥ शब्दब्रह्मैकलीनं प्रबलबलयुतं सर्वतत्त्वप्रभावं, सानन्दं सर्वभद्रं गणधरवलयं दुःखपाशप्रणाशम् ॥ यन्नैमित्तं वरिष्ठं विपदि हृदि धृतं सज्जनानां च नित्यं, तद् दत्तं यस्य बाहौ रिपुकुलमथनं सिद्धचक्रं नमामि ॥३॥ यच्छुद्धं व्योमबीजं ह्यध उपरियुतं रा( या )न्तसिद्धाक्षरेण, यत्सन्धौ तत्त्वयुक्तं स्वरपरमपदैर्वेष्टितं मध्यबीजम् ॥ यत् सीमन्तं निरन्तं विगतकलिमलं मायया वेष्टिताङ्गं, जीयात् तत् सिद्धचक्रं विमलवरगुणं देव-नागेन्द्रवन्धम् ॥४॥ यद् वश्यादिककारकं बहुविधं, कामार्थिनां कामदं, यलक्षाधिकजापसिद्धविमलं, सत्सम्पदा दायकम् ॥ . यत् कुष्ठादिकदुष्टदोषदलनं, दुःखाभिभूतात्मनां, यत् तत्त्वैकफलप्रदं विजयतां श्रीसिद्धचक्रं भुवि ॥५॥ ऊध्वोधोरेफयुक्तं गगनमुपहतं बिन्दुनाऽनाहतेन, ह्रींकारेण प्रकृष्टं स्वरसुगुरुपदैर्वेष्टितं बाह्यदेशे ॥ पद्मं वर्गाष्टकाढू दलमुखविवरेऽनाहताढ्यं तदित्थं, ह्रींकारेण त्रिवेष्टं कलशवलयितं सिद्धिदं सिद्धचक्रम् ॥६॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥६२॥ For Personal Price Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ६३ ॥ व्योमोर्ध्वाधोरयुक्तं शिरसि च विलसन् नादबिन्द्वर्धचन्द्रं, स्वाहान्तोंकारपूर्वेर्गुरुभिरभिवृतं सस्वरं चाष्टवर्गम् ॥ अन्तस्थानाहतश्रीगणधरवलयालङ्कृतं ध्यानसाध्यं वन्दे श्रीसिद्धचक्रं सुरगणमहितं मायया त्रिः परीम् ॥७॥ यत् सर्वाङ्गिहितं मनुष्यमहितं सौख्यालयं धर्मिणां यद्दोषः परिवर्जितं सुगदितं ध्यानाधिरूढाङ्कितम् । यत् कर्मक्षयकारकं सुधवलं मन्त्राधिपाधिष्ठितं तन्नः पातु वरं भवाब्धिशमनं श्रीसिद्धचक्रं सदा ॥८॥ ॥ इति श्रीसिद्धचक्रनमस्कारस्तोत्रम् ॥ पछी आरति मंगलदेवो उतारी, शान्तिकलश करे-भरे-शान्तिदंडक भणवापूर्वक । ॥ अथ शान्तिदण्डक ॥ नवकार महामंत्र ॐ ह्रीँ ब्रह्मरुचिब्रह्मबीजभूताय परमार्हते नमो नमः । ॐ पञ्चरुक् ह्रीँकारस्थ, श्रीऋषभादिजिनकदम्बाय नमो नमः। ॐ धवलनिर्मलमूलानाहतरूपाय त्रिकालगोचरानन्तद्रव्यगुणपर्यायात्मकवस्तुपरिच्छेदक-जिन-प्रवचनाय नमो नमः । ॐ सिद्धचक्रमूलमन्त्राराध्यपदाधाररूपाय श्रीसङ्घाय नमो नमः । ॐ अर्हद्भ्यो नमः । ॐ सिद्धेभ्यो नमः । ॐ सूरिभ्यो नमः । ॐ उपाध्यायेभ्यो नमः । ॐ सर्वसाधुभ्यो नमः । ॐ सम्यग्दर्शनाय नमः । ॐ सम्यग्ज्ञानाय नमः । ॐ सम्यक्चारित्राय नमः । ॐ सम्यक्तपसे नमः । ॐ स्वरेभ्यो नमः । ॐ वर्गेभ्यो नमः । ॐ सर्वानाहतेभ्यो नमः । ॐ सर्वलब्धिपदेभ्यो नमः । ॐ अष्टविधगुरुपादुकाभ्यो नमः । ॐ पुण्याहं पुण्याहं For Personal & Private Use Only श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ ६३ ॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ६४ ॥ प्रीयन्ताम् प्रीयन्ताम् । अर्हदादयो भगवन्तो मयि प्रसन्ना भवन्तु भवन्तु । श्रीसिद्धचक्राधिष्टायकदेवा देव्यो नागयक्ष-गण-गन्धर्व-वीरग्रहलोकपालाश्च सानुकूला भवन्तु भवन्तु । समस्तसाधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाणांराजा ऽमात्य-पुरोहितसामन्त-श्रेष्ठि सार्थवाहप्रभृति-समग्रलोकानां च स्वस्ति-शिव-शान्ति-तुष्टि-पुष्टि-श्रेयः-समृद्धिवृद्धयो भवन्तु । चौरारि-मारि-रोगोत्पातानीति-दुर्भिक्ष-डमर-विग्रह-ग्रह-भूत-प्रेत-पिशाच-मुद्गलशाकिनीप्रभृतिदोषाः प्रशाम्यन्तु । प्रशाम्यन्तु । राजा विजयी भवतु भवतु । प्रजास्वास्थ्यं भवतु भवतु । श्रीसङ्घो विजयी भवतु भवतु । ॐ स्वाहा ॐ स्वाहा । भूः स्वाहा । भूवः स्वाहा । स्वः स्वाहा । ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहाः । शिवमस्तु सर्वजगतः, परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः । दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवतु लोकः ॥१॥ सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याणकारणम् । प्रधानं सर्व धर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥२॥ ॥ इति शान्तिदण्डकः ॥ ॐ आज्ञाहीनं क्रियाहीनं, मन्त्रहीनश्च यत् कृतम् । तत् सर्वं कृपया देवाः ! क्षमन्तु परमेश्वराः ॥१॥ आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनम् । पूजाविधिं न जानामि, प्रसीद परमेश्वर ! ॥२॥ इत्यपराधक्षामणम् । त्रण खमासमण देवापूर्वक अपराधक्षामण करवू । ॥ अथ विसर्जनम् ॥ श्रीसिद्धचक्राधिष्ठायकदेवा देव्यश्च स्वस्थानाय गच्छन्तु गच्छन्तु पुनरागमनाय प्रसीदन्तु प्रसीदन्तु स्वाहा । (इति विसर्जनम्) ॥ इति श्रीसिद्धचक्रयन्त्रोद्धार पूजनविधिः ॥ श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ ६४ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह श्री १०८ पार्श्वनाथ प्रगट प्रभावी अभिषेक महापूजन प्रथम स्नात्र पूजा पढानी - चार पाट पर फुट-मिठाई आदि जमाना । पाट पर १०८ साथीया लाल कपडा बिछाकर करना । दरेक पूजा पर श्लोक बोलकर पार्श्वनाथ भगवान का नाम क्रमवार बोलना । स्वाहा शब्द पर थाली बजाना । परमात्मा को अष्टप्रकारी पूजा करना । साथीये पर पानसुपारी-श्रीफल-पेडे-१। रुपीया अर्पण करना । अन्त में १०८ पूजा होने के बाद पूरा पक्षाल-आंगी अष्टप्रकारी पूजा विस्तृत करनी । फिर १०८ दिपक आरती मंगल दिवो-शान्तिकलश-चैत्यवंदन-फिर विसर्जन अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडम् । (नमोऽर्हत्...) सुपवित्र तीर्थनीरेण, संयुतं गन्धपुष्प संमिश्रम् । पततु जलं बिम्बोपरि, सहिरण्यं मन्त्र परिपूतम् ॥१॥ जिनबिम्बोपरिनिपतद्-घृत दधिदुग्धादि द्रव्य परिपूतम् । दर्भोदक संमिश्र, पञ्चसुधा हरतु दुरितानि ॥२॥ ॐ रोग जल जलण विसहर-चोरारिमइँद गय रण भयाइँ । पास जिण नाम संकित्तणेण, पसमंति सव्वाइँ स्वाहा ॥३॥ ॐ ही श्री परमपुरुषाय, परमेश्वराय, अनन्तानन्तज्ञानशक्तये, जन्मजरामृत्युनिवारणाय धरणेन्द्र श्री १०८ पार्श्वनाथ अभिषेक पूजन ॥६५॥ For Personal Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ६६ ॥ पद्मावती परिपूजिताय श्रीमते... पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय जलं चन्दनं पुष्पं धूपं दीपं अक्षतं नैवेद्यं फलानि यजामहे स्वाहा ॥ ( आखी थाळी) सूचना : आ त्रण गाथा तथा मंत्र दरेक अभिषेक पहेला बोली एक एक पार्श्वनाथ प्रभुना नाम साथे बोली प्रभुनो पक्षाल तथा पूजा मांडलामां फळ-नैवेद्य चडावी अष्टप्रकारी पूजा करवी । संकल्प शान्ति- उद्घोषणा महापूजन दरम्यान ३ थी ५ वार बोलाववी । [ १ ] ( १ ) नवसारी पार्श्वनाथ, (२) उमरवाडी पार्श्वनाथ, (३) सहस्त्रफणा पार्श्वनाथ, (४) दुःखभंजन पार्श्वनाथ, [२] ( ५ ) सुरजमंडन, (६) विघ्नहरा, (७) कल्हारा, (८) अमीझरा, [३] (९) प्रगट प्रभावी, (१०) लोढण, (११) विमल, (१२) स्तंभन, [४] (१३) कंसारी, (१४) रत्नचिंतामणि, (१५) सोमचिंतमणी, (१६) भुवन, [५] (१७) भीडभंडन, (१८) शामला, ( १९ ) मुलेवा, ( २० ) ह्रीँकार, [ ६ ] (२१) सुखसागर, (२२) पद्मावती, (२३) मुहरी, (२४) पोसीना, [७] (२५) विघ्नोपहार, (२६) स्फुल्लिंग, (२७) नागफणा, ( २८ ) कल्याण, [८] (२९) मनोरञ्जन, (३०) सुलतान, (३१) डोसला, (३२) पल्लवीया, [ ९ ] ( ३३ ) भीलडीया, (३४) आनंदा, (३५) चारूप, ( ३६ ) पंचासरा, [१०] (३७) कोका, (३८) कंकण, (३९) महादेवा, (४०) कंबोइया, [ ११ ] ( ४१ ) धींगडमल्ल, (४२) वाडी ( ४३ ) नारंगा, (४४) टांकला, For Personal & Private Use Only श्री १०८ पार्श्वनाथ अभिषेक पूजन ।। ६६ ।। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। ६७ ।। [ १२ ] ( ४५ ) चंपा, (४६) गंभीरा, (४७) भटेवा, ( ४८ ) मनमोहन, [१३] (४९) झोटींगडा, (५०) शंखला, (५१) शंखेश्वर, (५२ ) गाडलीया, [१४] (५३) शेरीसा, (५४) कलिकुंड, (५५) नवखंडा, (५६) अजारा, [१५] (५७) दोकडीया, (५८) चोरवाडी, (५९) नवपल्लव, (६०) बरेजा, [ १६ ] (६१) अमृतझरा, (६२) सप्तफणा, (६३) भाभा, (६४) भद्रेश्वर, [ १७ ] (६५) घृतकल्लोल, (६६) भयभंजन, (६७) नाकोडा, (६८) लोद्रवा [१८] (६९) संकटहरण, (७०) कुंकुमरोल, (७१) आशापूरण, (७२) जीरावला, [१९] (७३) सीरोडीया, (७४) हमीरपुरा, (७५) पोसली, (७६) कच्छुलीका, [२०] (७७) लोटाणा, (७८ ) दादा, ( ७९ ) राणकपुरा, ( ८० ) (८१) सोगठीया (८२) वरकाणा, ( ८३) नवलखा, ( ८४) स्वयंभू, [२२] (८५) फलवृद्धि, ( ८६) विजय चिंतामणि, ( ८७) मंडोवरा, ( ८८ ) करेडा, [२३] (८९) वही, (९०) समीना, (११) चंदा (९२) नागेश्वर, [२४] (९३) कुकडेश्वर, (९४) कामितपूरण, ( ९५ ) अवंती, ( ९६ ) अलौकिक, [ २५ ] (९७) मक्षी, (९८ ) रावण, (९९) कल्पद्रुम, (१००) सम्मेतशिखर, [ २६ ] ( १०१ ) वाराणसी, (१०२) अंतरिक्ष, (१०३ ) केशरीया, (१०४) जगवल्लभ, [२७] (१०५ ) गीरूवा, (१०६) मनोवांछित, (१०७) चिंतामणि, ( १०८ ) गोडी । For Personal & Private Use Only श्री १०८ पार्श्वनाथ अभिषेक पूजन ।। ६७ ।। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ६८ ॥ अठारह अभिषेक भूमिका हम अठारह अभिषेक इसलिए करते हैं कि इस दुषमकाल में अज्ञानता के कारण, प्रमाद के कारण परमात्मा की पूजा-सेवा करते हुए बहुत सी भूलें हो जाती हैं और अविधि हो जाती है, जिससे आशातना का दोष लगता है। परमात्मा को स्पर्श करने से परमात्मा की दिव्य शक्ति जो अंजनशलाका प्राण प्रतिष्ठा के विधान में परम पूज्य आचार्य भगवन्तों द्वारा आरोपित की जाती है, वह हमारे स्पर्श करने से नष्ट हो जाती है। क्योंकि हमारा शरीर आशुचि से भरा हुआ है। परमात्मा का शरीर दिव्य शरीर है, इसलिए परमात्मा को कभी भी स्पर्श नहीं करना चाहिए । परमात्मा की पूजा-सेवा दायें हाथ की अनामिका अंगुली से परमात्मा की आंगी (नव अंग के ऊपर चांदी/सोने के टीका) ऊपर केसर चंदनयुक्त द्रव्य से की जाती है। जब हम परमात्मा को चंदन पूजा करते हैं तब ध्यान रखना कि परमात्मा को नाखुन स्पर्श नहीं होना चाहिए और कटोरी के अंदर चंदन है उसको भी नाखुन स्पर्श नहीं होना चाहिए और आराम से पूजा करना चाहिए । श्री अठारह अभिषेक ॥६८॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ६९ ॥ मंदिर जी में गुटका, पान, मद्यपान आदि का सेवन करके नहीं आना चाहिए । उससे भयंकर आशातना होती है। किसी भी प्रकार की चमड़े की वस्तु धारण करके नहीं आना चाहिए । जैसे टोपी, पर्स एवं पेटी आदि । जब हम परमात्मा के श्री चरणों को मस्तक झुकाकर हाथ से स्पर्श करते हैं तब सिर के बाल स्पर्श नहीं होने चाहिए । उससे भयंकर आशातना होती है। परमात्मा की पूजा-सेवा परमात्मा की आज्ञा के अनुसार ही करनी चाहिए, अपनी मन-मर्जी से नहीं । हमें परमात्मा स्वरूप बनना है इसीलिए परमात्मा की पूजा-सेवा की जाती है। वैसे तो हम से मंदिर जी में विधि करते हुए, परमात्मा की पूजा करते हुए बहुत सारी भूलें अविधि हो जाती है। जिससे हमें आशातना का दोष लगता है। अविधि आशातनाओं के निवारण हेतु शुद्धिकरण स्वरूप परमात्मा के अठारह अभिषेक का विधान पूर्वाचार्यों द्वारा बताया गया है। आज के दुषमकाल में वर्ष में एक बार अवश्य ही श्री जिन मंदिर जी में अठारह अभिषेक का विधान करवाया जाना चाहिए । अठारह अभिषेक मिनी (छोटी) अंजनशलाका कहलाती है। श्री अठारह अभिषेक ॥६९॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वप्रथम स्नात्रपूजा का विधान सम्पन्न करना चाहिए। आरती, मंगलदीपक एवं शांति कलश अठारह अभिषेक के सम्पन्न होने के बाद करने चाहिए । (स्नात्र पूजा के पश्चात् मंगलाचरण से अठारह अभिषेक का विधान प्रारम्भ किया जाता है।) विविध पूजन संग्रह ॥ ७० ॥ मंगलाचरण आदिमं पृथिवीनाथमादिमं निष्परिग्रहम्, आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः ॥१॥ श्रीमते शान्तिनाथाय नमः शान्तिविधायिने त्रैलोक्य स्यामराधीश-मुकुटाभ्य-चिंताङ्ग्रये ॥२॥ या शान्तिः शान्तिजिने, गर्भगतेऽथाजनिष्ट वा जाते, सा शान्तिरत्रभूयात् सर्वसुखोत्पादनाहेतुः ॥३॥ कमठे धरणेन्द्रे च स्वोचितं कर्म कुर्वति, प्रभुस्तुल्यमनोवृत्तिः पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः ॥४॥ श्रीमते वीरनाथाय सनाथायाद्भुतश्रियाः, महानन्दसरोराज मरालायार्हते नमः ॥५॥ मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतम प्रभुः, मंगलं स्थूलभद्राद्याः, जैनधर्मोस्तु मंगलं ॥६॥ . श्री अठारह अभिषेक ॥ ७०॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ७१ ॥ सर्वारिष्ट-प्रणाशाय, सर्वाभीष्टार्थदायिने, सर्वलब्धिनिधानाय श्री गौतमस्वामिने नमः ॥७॥ | अंगुठे अमृतवसे लब्धितणा भंडार, श्री गुरु-गौतम समरीए वांछित फल दातार ॥८॥ "अर्हन्तो भगवन्त इन्द्रमहिताः, सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताः,आचार्या जिनशासनोन्नतिकराः, पूज्या उपाध्यायकाः । श्री सिद्धान्तसुपाठकाः मुनिवराः, रत्नत्रयाराधकाः, पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं, कुर्वन्तु वो मङ्गलम् ॥९॥ सर्वेऽपि सन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिदुःखभाग् भवेत् ॥१०॥ शिवमस्तु सर्वजगतः परहितनिरताः भवन्तु भूतगणाः, दोषाः प्रयान्तु नाशं, सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकाः ॥११॥ "ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः असिआउसा, त्रैलोक्यललाम-भूताय क्षुद्रोपद्रव-शमनाय अर्हते नमः स्वाहा ॥१२॥ तीन बार महामंत्र नवकार का सामूहिक उच्चारण (१) ॐ हौँ नमो अरिहंताणं ॥ (२) ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं ॥ (३) ॐ ही नमो आयरियाणं ॥ (४) ॐ ह्रीं नमो उवज्झायाणं ॥ (५) ॐ ह्रीं नमो लोएसव्वसाहूणं ॥ (६) ॐ ह्रीं श्री... जिनेंद्राय नमः ॥ श्री अठारह अभिषेक ॥७१ ॥ Jain Education in For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ७२ ॥ अंगशुद्धि जब हम मंदिर जी में पूजा करने के लिये आते हैं तो अवश्य ही स्नान करके आते हैं, जिससे शरीर की शुद्धि होती है उसे द्रव्यशुद्धि कहते हैं । अब हम शरीर की विशेष शुद्धि के लिये मंत्रों द्वारा भाव शुद्धि करेंगे । जैसे-जैसे मंत्र बोला जाये वैसे-वैसे सभी को जांघ, नाभि, हृदय, मुख, ललाट (मस्तक) को क्रमशः आरोह-अवरोह तीन बार स्पर्श करना है। मंत्र :- क्षि स्वा हा (जांघ) (नाभि) (हृदय) (मुख) (ललाट) श्री आत्मरक्षा नवकार मंत्र (श्री वज्रपंजर स्तोत्र) ॐ परमेष्ठि नमस्कारं, सारं नवपदात्मकम्, आत्मरक्षाकरं वज्र-पंजराभं स्मराम्यहम् ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम्, ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षाऽतिशायिनी, ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ॥३॥ श्री अठारह अभिषेक ॥७२॥ For Personal Price Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥७३॥ Sil ॐ नमो लोए-सव्व-साहूणं, मोचके पादयोः शुभे, एसो पंच नमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले ॥४॥ सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः, मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगार-खातिका ॥५॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलम्, वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देह-रक्षणे ॥६॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रव-नाशिनी, परमेष्ठि-पदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा, तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ॥८॥ अठारह अभिषेक की विधि प्रारम्भ कुसुमांजलि नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः नानासुगन्धि-पुष्पौध-रञ्जिता चञ्चरीक-कृतनादा, धूपामोद-विमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलि-बिम्बे ॥१॥ (आर्या) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा । यह मंत्र बोलकर पुष्पांजलि पूजन करना । श्री अठारह अभिषेक ॥७३॥ Jain contentional For Personal Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ७४ ॥ पहेलु (हिरण्योदक) स्नात्र (स्वर्ण चूर्ण) नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः पवित्रतीर्थनीरेण, गन्धपुष्पादिसंयुतैः, पतज्जलं बिम्बोपरि, हिरण्यं मन्त्रपूतनम् ॥१॥(आर्या) सुवर्णद्रव्यसम्पूर्ण चूर्णं कुर्यात्सुनिर्मलम्, ततः प्रक्षालनं वाभिः, पुष्पचन्दनसंयुतैः ॥२॥(अनुष्टुप) ॐ हाँ ह्रीं परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पाक्षत-धूप-संमिश्र-स्वर्ण-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । इस मंत्रोच्चारण के साथ स्नात्र करें, अंगलूछना करें, बिंबने तिलक, पुष्प, वास, धूप वगेरे से पूजन करें। इस प्रकार प्रत्येक बार स्नात्र अभिषेक करवाना । ॥ इति प्रथम स्नात्रम् ॥ बीजी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ..................बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ श्री अठारह अभिषेक ॥ ७४॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ७५ ॥ .. बीजुं (पंचरत्नचूर्ण) स्नात्र १. मोती, २. सोना, ३. चांदी, ४. मूंगा, ५. तांबा । नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः यन्नामस्मरणादपि श्रुतिवशादप्यक्षरोच्चारतो, यत्पूर्ण प्रतिमा-प्रणाम-करणात्, संदर्शनात्स्पर्शनात् । भव्यानां भवपङ्कहानिरसकृत्, स्यात्तस्य किं सत्पयः, स्नात्रेणापि तथा स्वभक्तिवशतो, रत्नोत्सवे तत्पुनः ॥१॥ (शार्दूल) नानारत्नौघसंयुतं, सुगन्धपुष्पाभिवासितं नीरम् । पतताद् विचित्रचूर्णं, मन्त्राढ्यं स्थापनाबिम्बे ॥२॥ (आर्या) ॐ हाँ ही परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-मुक्ता-स्वर्ण-रौप्य-प्रवाल-ताम्ररूपपंचरत्न-चूर्ण-संयुत-जलेन-स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति द्वितीय स्नात्रम् ॥ | श्री अठारह अभिषेक ॥७५ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ७६ ॥ त्रीजुं कुसुमांजलि नानासुगन्धि- पुष्पौघ. .. बिम्बे ॥ १ ॥ ( पूर्व अनुसार ) ॐ ह्रां ह्रीँ हूँ हूँ ह्रौं ह्रः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ त्रीजुं ( कषायचूर्ण) स्नात्र कषाय चूर्ण १. पीपर, २. पीपली, ३. शिरीष, ४. उंबर, ५. बड, ६. चंपक, ७. अशोक, ८. आम्र, ९. जांबु, १०. बकुल, ११. अर्जुन, १२. पाटल, १३. बीली, १४. दाडम, १५. केसूडां अने, १६. नारिंग । नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः प्लक्षाश्चत्थोदुम्बर - शिरीषवल्कादिकल्कसंमिश्रम्, बिम्बे कषायनीरं, पततादधिवासितं जैने ॥१॥ ( आर्या ) पिप्पली पिप्पलश्चैव, शिरीषोम्बरकस्तथा, वटादिछल्लियुग्वार्भिः, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥२॥ (अनुष्टुप ) For Personal & Private Use Only श्री अठारह अभिषेक ।। ७६ ।। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ७७ ॥ ॐ ह्रीँ ह्रीँ परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि - संमिश्र - पिपल्यादि-महाछल्ली - कषाय- चूर्ण-संयुतजलेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति तृतीय स्नात्रम् ॥ चोथी कुसुमांजलि ... बिम्बे ॥ १ ॥ ( पूर्व अनुसार ) नानासुगन्धि- पुष्पौघ. ॐ ह्रीँ ह्रीँ हूँ हूँ ह्रीँ हूः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ चोथुं ( मंगलमृत्तिका ) स्नात्र - मंगलमृत्तिका - १. हाथीना दांतनी, २. बलदना शिंगडांनी, ३. पर्वतनी, ४. उधेहीना राफडानी, ५. नदीना कांठानी, ६. नदीओना संगमनी, ७. सरोवरनी अने ८. तीर्थोनी । नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः परोपकारकारी च, प्रवरः परमोज्जवलः, भावनाभव्यसंयुक्तो, मृच्चूर्णेन च स्नापयेत् ॥१॥ ( अनुष्टुप ) For Personal & Private Use Only श्री अठारह अभिषेक ॥ ७७ ॥ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ७८ ॥ पर्वतसनोरनदीसंगमादि-मृद्भिश्च मन्त्रपूताभिः, उद्वर्त्य जैनबिम्बं, स्नापयाम्यधिवासनासमये ॥२॥ (आर्या) ॐ हाँ ही परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-नदी-नग-तीर्थादि-मृच्चूर्ण-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति चतुर्थ स्तात्रम् ॥ पांचमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ.......................बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ हाँ हीं हूँ हूँ ह्रौं हुः परमाईते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ चोथु (मंगलमृत्तिका) स्नात्र - सदौषधि - १. सहदेवी, २. सतावरी, ३. कुंवार, ४. वालो, ५. मोटी नानी रिंगणी, ६. मोरशिखा, ७. अंकोल, ८. शंखावली, ९. लक्ष्मणा, १०. आजोकालो, ११. थोर, १२. तुलसी, १३. मरवो, १४. कुंभी, १५. गली, १६. सरपंखो, १७. राजहंसी, १८. पीठवणी, १९. शालवणी, २०. गंधनोली, २१. महानीली । श्री अठारह अभिषेक ॥७८॥ Join Education International For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ७९ ॥ नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः सहदेवी शतमूली, शंखपुष्पी शतावरी, कुमारी लक्ष्मणा चैव, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥१॥ (अनुष्टुप) सहदेव्यादिसदौषधि-वर्गेणोद्वर्तितस्य बिम्बस्य । संमिश्रं बिम्बोपरि, पतज्जलं हरतु दुरितानि ॥२॥ (अनुष्टुप) ॐ हा हो परमाईते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-नदी-नग-तीर्थादि-मृच्चूर्ण-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति पंचम स्नात्रम् ॥ छठी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ.....................बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ हाँ हाँ हूँ हैं हौ हः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ श्री अठारह अभिषेक ॥७९॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥८० ॥ छठे (प्रथमाष्टवर्ग) स्नात्र - अष्टकवर्ग १ लो - १. उपलोट, २. वज, ३. लोद्र, ४. हीरवणीनां मूल, ५. देवदार, ६. जेठीमध, ७. दुर्वा, ८. ऋद्धिवृद्धि।। मनमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः नानाकुष्ठाद्यौषधि-सम्मृष्टे तद्युतं पतन्नीरम् । बिम्बे कृतसन्मिश्र, कौघं हन्तु भव्यानाम् ॥१॥ (आर्या) उपलोट-वचालोद्र-हीरवर्णीदेवदारवः । ज्येष्ठीमधुऋद्धिदूर्वाभिः, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥२॥ (आर्या) ॐ हाँ ह्रीं परमाईते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-कुष्ठाद्यष्टकवर्ग-चूर्ण-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति षष्ठ स्नात्रम् ॥ सातमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ... ..........बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) |श्री अठारह अभिषेक ॥८०॥ Join Education international For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥८१ ॥ ॐ हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ सातमु (द्वितीयाष्टकवर्ग) स्नात्र - अष्टकवर्ग २ जो - १. पतंजारी, २. विदारिकंद, ३. कचूरो, ४. कपूरकाचली, ५. नखला, ६. कंकोडी, ७. खीरकंद, ८. मुसली-काली (धोली)। | नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः मेदाद्यौषधिभेदो-ऽपरोऽष्टवर्गः सुमन्त्रपरिपूतः । जिनबिम्बोपरि निपतत्, सिद्धिं विदधातु भव्यजने ॥१॥ (आर्या) पतञ्जारी विदारी च, कच्चुरः कच्चुरी नखः । कङ्कोडी क्षीरकन्दश्च, मुसल्या स्नापयाम्यहम् ॥२॥ (अनुष्टुप) ॐ हाँ ही परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-पतञ्जर्यादि-द्वितीयाष्टक-वर्ग-चूर्ण-संयुत-| जलेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति सप्तम स्नात्रम् ॥ श्री अठारह अभिषेक ॥८१ ॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ८२ ॥ आठमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि- पुष्पौघ. .. बिम्बे ॥ १ ॥ ( पूर्व अनुसार ) ॐ ह्रीँ ह्रीँ हूँ हूँ ह्रीँ हूः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ आठमुं (सवौषधि) स्नात्र - सर्वौषधि - १. प्रियंगु, २. हलदर, ३. वज्र, ४. सूचा, ५. वालो, ६. मोथ, ७. अतिकली, ८. मुरमांसी, ९. जटामांसी, १० उपलोट, ११. एलची, १२. लवंग, १३. तज, १४. तमालपत्र, १५. नागकेशर, १६. जायफल, १७. जावंत्री, १८. कंकोल, १९. सेलारस, २०. चंदन, २१. अगर, २२. पत्रज, २३. छड, २४. नखला, २५. घउंला, २६. कचुरो, २७. विरहाली, २८. छडोली, २९. मरचकंकोल, ३०. वरधारो, ३१. आसंधि, ३२. वडीऔषधि अने ३३. सहस्रमूली । नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः सुपवित्रमूलिकावर्ग-मर्दिते तदुदकस्य शुभधारा । बिम्बेऽधिवाससमये, पे, यच्छतु सौख्यानि निपतन्ती ॥१॥ ( आर्या ) For Personal & Private Use Only श्री अठारह अभिषेक ॥ ८२ ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥८३ ॥ प्रियङ्ग-वत्स-कङ्केलीरसालादितरूद्भवैः । पल्लबैः पत्रभल्लातै-रेलचीतजसत्फलैः ॥२॥ (अनु.) विष्णुक्रान्ताहिप्रवाल-लवङ्गादिभिरष्टभिः ।। मूलाष्टकैस्तथा द्रव्यैः, सदौषधिविमिश्रितैः ॥३॥ (अनु.) सुगन्धद्रव्यसन्दोहा-मोदमत्तालिसंकुलैः । विदधेऽर्हन्महास्नात्रं, शुभसन्ततिसूचकम् ॥४॥ (अनु.) ॐ हाँ ही परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-प्रियंग्वादि-सौंषधि-चूर्ण-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति अष्टम स्नात्रम् ॥ आठ स्नात्र करने के पश्चात् मुद्राओं के द्वारा परमात्मा का आह्वान करना । यह क्रिया गुरु भगवंत हो तो उनके द्वारा की जाती है नहीं तो विधिकारक करते हैं। तीन प्रकार की मुद्राओं के द्वारा मंत्र बोलते हुए परमात्मा का आह्वान किया जाता है। श्री अठारह अभिषेक ॥८३ ॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ८४ ॥ (२) गरुड मुद्रावडे (१) परमेष्ठि मुद्रावडे (३) मुक्तशक्ति मुद्रावडे निम्न मंत्र बोलते हुए मुद्राओं को बनाते हुए परमात्मा का आह्वान करना । ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय, त्रैलोक्यगताय, अष्टदिक्कुमारीपरिपूजिताय देवेन्द्रमहिताय, देवाधिदेवाय, दिव्यशरीराय, त्रैलोक्यपरिपूजिताय आगच्छ आगच्छ स्वाहा ॥ नवमी कुसुमांजलि .. बिम्बे ॥ १ ॥ ( पूर्व अनुसार ) नानासुगन्धि- पुष्पौघ.. ॐ ह्रीँ ह्रीँ हूँ हूँ हूँ हूः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ नवमं (पंचगव्य अथवा पंचामृत ) स्नात्र नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः For Personal & Private Use Only - श्री अठारह अभिषेक ॥ ८४ ॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ८५ ॥ जिनबिम्बोपरि निपतत्, घृत-दधि-दुग्धादिद्रव्यपरिपूतम् । दर्भोदकसंमिश्र, पञ्चगव्यं हरतु दुरितानि ॥१॥ (आर्या) वरपुष्पचन्दनैश्च, मधुरैः कृतनि:स्वनैः । दधि-दुग्ध-घृतमित्रैः, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥२॥ ॐ हाँ ही परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-पञ्चामृतेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति नवम स्नात्रम् ॥ दशमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्यौघ.. .................बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः परमाईते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ दशमुं (सुगंधौषधि) स्नात्र - सुगंधौषधि - १. अंबर, २. वालो, ३. उपलोट, ४. कुष्ट, ५. देवदार, ६. मुरमांसी, ७. वास, ८. अगर, १०. कस्तूरी, ११. कपूर, १२. एलची, १३. लविंग, १४. जायफल, १५. जावंत्री, १६. गोरोचन, १७. केसर । श्री अठारह अभिषेक ॥८५ ॥ in Educatio n For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः सर्वविघ्नप्रशमनं, जिनस्नात्रसमुद्भवम् । वन्दे सम्पूर्णपुण्यानां, सुगन्धैः स्नापयेज्जिनम् ॥१॥ (आयु.) .. सकलौषधिसंयुक्तः, सुगन्ध्या घर्षित सुगतिहेतोः । स्नापयामि जैनबिम्बं, मन्त्रिततन्नीरनिवहेन ॥२॥ (आर्या) ॐ ह्रां ह्रीं परमाईते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्रऽम्बरोसीरादि-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति दशम स्नात्रम् ॥ अगीयारमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ........................बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ श्री अठारह अभिषेक ॥८६॥ Join Education International For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥८७॥ अगीयारमुं (पुष्प) स्नात्र - . पुष्प - १. सेवंत्री, २. चमेली, ३. मोगरा, ४. गुलाब, ५. जुई नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः अधिवासितं सुमन्त्रैः, सुमनः किञ्जल्कराजितं तोयम् । । तीर्थजलादिसुपृक्तं, कलशोन्मुक्तं पततु बिम्बे ॥१॥ (आर्या) सुगन्धिपरिपुष्पौधै-स्तीर्थोदकेन संयुतैः । भावनाभव्यसन्दोहै:, स्पापयामि जिनेश्वरम् ॥२॥ ॐ ह्रां ही परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-पुष्पौघ-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा। ॥ इति एकादश स्नात्रम् ॥ बारमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्यौघ.... ................बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ हाँ ही हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ | श्री अठारह अभिषेक ॥८७॥ Jain Education in For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥८८ ॥ बारमुं (गन्ध) स्नात्र - गन्ध - १. केसर, २. कपूर, ३. कस्तूरी, ४. अगर, ५. चंदन नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः गन्धाङ्गस्नानिकया, सम्मृष्टं तदुदकस्य धाराभिः । स्नपयामि जैनबिम्बं, कौघोच्छित्तये शिवदम् ॥१॥ (आर्या) कुङ्कुमाद्यैश्च कर्पूरै-मूंगमदेन संयुतैः । अगरुचन्दनमित्रैः, स्नापयामि जिनेश्वरम् ॥२॥ (अनु.) ॐ हाँ हाँ परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-यक्षकर्दमादि-गन्ध-चूर्ण-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति द्वादश स्नात्रम् ॥ तेरमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ.... .....बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) श्री अठारह अभिषेक ॥८८॥ For Personal Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ८९ ॥ ॐ हाँ ही हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ तेरमुं (वास) स्नात्र - वास - १. चंदन, २. केशर अने ३. कपूरनुं चूर्ण नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः हृद्यैरालादकरैः स्पृहणीयैर्मन्त्रसंस्कृतैर्जेंनम् । स्नपयामि सुगतिहेतो-र्वासैरधिवासितं बिम्बम् ॥१॥ (आर्या) शिशिरकरकराभैश्चन्दनैश्चन्द्रमिङ्-र्बहुलपरिमलौघैः प्रीणितं प्राणगन्धैः । विनमदमरमौलिःप्रौक्तरत्नांशुजालै-र्जिनपतिवरशृङ्गे, स्नापयेद् भावभक्त्या ॥२॥ (मालिनी) ॐ हाँ ही परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-सुगन्ध-वास-चूर्ण-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति त्रयोदश स्नात्रम् ॥ श्री अठारह अभिषेक ॥८९ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ९० ॥ चौदमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ...................बिम्बे ॥१॥(पूर्व अनुसार) ॐ हाँ ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ चौदU (चंदनदुग्ध) स्नात्र - नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः शीतलसरससुगन्धि-मनोमतश्चन्दनद्रुमसमुत्थः । चन्दनकल्कः सजलो, मन्त्रयुतः पततु जिनबिम्बे ॥१॥ (आर्या) क्षरेणाऽऽक्षतमन्मथस्य च महत्-श्रीसिद्धिकान्तापतेः, सर्वज्ञस्य शरच्छशाङ्कविशद-ज्योत्स्नारसस्पर्द्धिना । कुर्मः सर्वसमृद्धये त्रिजगदा-नन्दप्रदं भूयसा, स्नात्रं सद्विकसत्कुशेशयपद-न्यासस्य शस्याकृतेः ॥२॥ (शार्दूल) ॐ हाँ ह्री परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-क्षीर-चन्दन-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । श्री अठारह अभिषेक ॥९०॥ For Personal Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ९१ ॥ ॥ इति चतुर्दश स्नात्रम् ॥ .. पंदरमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ........................बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ पंदरमुं (केसर-साकर) स्नात्र - नमोऽर्हसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः कश्मीरजसुविलिप्तं, बिम्बं तन्नीरधारयाऽभिनवम् । सन्मन्त्रयुक्तयाशुचि, जैनं स्नपयामि सिद्ध्यर्थम् ॥१॥(आर्या) वाचःस्फारविचारसारमपरैः, स्याद्वादशुद्धामृतस्यन्दिन्याः परमार्हतः कथमपि, प्राप्यं न सिद्धात्मनः । मुक्तिश्रीरसिकस्य यस्य सुरस-स्नात्रेण किं तस्य च, श्रीपाद-द्वय-भक्ति-भावित-धिया, कुर्मः प्रभोस्तत्पुनः ॥२॥ (शार्दूल) श्री अठारह अभिषेक ॥९१ ॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ९२ ॥ ॐ हाँ ह्रीं परमार्हते परमेश्वराय गन्ध- पुष्पादि संमिश्र कश्मीरज-शर्करा संयुत - जलेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति पंचदश स्नात्रम् ॥ पंदरह अभिषेक पश्चात् विशेष विधान चन्द्र-सूर्य का दर्शन करवाना होता है । चंद्रदर्शन मंत्र ॐ अर्ह चन्द्रोऽसि, निशाकरोऽसि, सुधाकरोऽसि, चन्द्रमा असि, ग्रहपतिरसि, नक्षत्रपतिरसि, कौमुदीपतिरसी, मदनमित्रमसि, जगज्जीवनमसि, जैवातृकोऽसि, क्षीरसागरोद्भवोऽसि, श्वेतवाहनोऽसि, राजाऽसि, राजराजोऽसि, औषधिगर्भोऽसि, वन्द्योऽसि, पूज्योऽसि, नमस्ते भगवन् ! अस्य कुलस्य ऋद्धिं कुरु कुरु, वृद्धिं कुरु कुरु, तुष्टिं कुरु कुरु, पुष्टिं कुरु कुरु, जयं कुरु कुरु, विजयं कुरु कुरु, भद्रं कुरु कुरु, प्रमोदं कुरु कुरु, श्रीशशाङ्काय नमः । ॐ अर्हम् । सर्वौषधिमिश्रमरीचिजालः सर्वापदां संहरणप्रवीणः । करोतु वृद्धिं सकलेऽपि वंशें, युष्माकमिन्दुः सततं प्रसन्नः ॥१॥ For Personal & Private Use Only श्री अठारह अभिषेक ॥ ९२ ॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ९३ ॥ सूर्यदर्शन मंत्र . ॐ अर्ह सूर्योऽसि, दिनकरोऽसि, सहस्त्रकिरणोऽसि, विभावसुरसि, तमोऽपहोऽसि, प्रियङ्करोऽसि, शिवङ्करोऽसि, जगच्चक्षुरसि, सुरवेष्टितोऽसि, विततविमानोऽसि, तेजोमयोऽसि, अरुणसारथिरसि, मार्तण्डोऽसि, द्वादशात्माऽसि, चक्रबान्धवोऽसि, नमस्ते भगवन् ! प्रसीदास्य कुलस्य तुष्टिं पुष्टिं प्रमोदं कुरु कुरु, सन्निहितो भवभव, श्रीसूर्याय नमः ॥ ॐ अहँ सर्वसुरासुरवन्द्यः, कारयिता सर्वधर्मकार्याणाम्, भूयात् त्रिजगच्चक्षु-र्मङ्गलदस्ते सपुत्रायाः ॥१॥ . सोलमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ...........................र्बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ सोलमुं (तीर्थोदक) स्नात्र (एक सौ आठ तीर्थों का जल) नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः जलधिनदीद्रहकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि सिद्धध्यर्थम् ॥१॥ (आर्या) श्री अठारह अभिषेक ॥९३॥ Jain Education interna For Personal & Private Use Only www.inneby.org Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ९४ ॥ नाकनदीनदविहितैः, पयोभिरम्भोजरेणुभिः सुभगैः । श्रीमज्जिनेन्द्रपादौ, समर्चयेत् सर्वशान्त्यर्थम् ॥२॥ (आर्या) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-तीर्थोदकेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति षोडश स्नात्रम् ॥ सत्तरमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ.....................बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ हाँ ह्रीं हूँ हैं हौं हः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ।। सत्तरमुं (कर्पूर) स्नात्र - नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः . शशिकर-तुषारधवला, उज्ज्वलगन्धा सुतीर्थ-जलमिश्रा कर्पूरोदकधारा, सुमन्त्रपूता पततु जिनबिम्बे ॥१॥ (आर्या) कनक-करकनाली-मुक्तधाराभिरद्भिः, मिलित-निखिलगन्धैः केलि-कर्पूरभाभिः । अखिल-भुवन-शान्तिं शान्तिधारां जिनेन्द्र-क्रमसरसिज-पीठे स्नापयेद्वीतरागान् ॥२॥(मालिनी) श्री अठारह अभिषेक ॥१४॥ Jain Education national For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ९५ ॥ ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-कर्पूर-चूर्ण-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति सप्तदश स्नात्रम् ॥ अठारमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ...... ................बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ अठारमुं (केशर-चंदन-पुष्प) स्नात्र - नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः सौरभ्यं घनसार-पङ्कज-रजो-निःप्रीणितैः पुष्करैः, शीतै-शीतकरावदात-रुचिभिः काश्मीर-सन्मिश्रितैः । (अर्हन्तो) श्रीखण्ड-प्रसवाचलैश्च मधुरैः नित्यं लभेष्टवरैः, सौरभ्योदक-सख्य-सार्ध्व-चरण-द्वन्द्वं यजे भावतः ॥१॥ (शार्दूल) श्री अठारह अभिषेक ॥ ९५ Jain Education interna For Personal & Private Use Only www.inneby.org Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॐ हाँ ही हु हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-मृगमद-श्रीखण्ड-कश्मीरीजादिसंयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । कुसुमांजलि यह मंत्र बोलते हुए सम्पूर्ण कुसुमांजलि अर्पण कर देना । नानासुगन्धि-पुष्पौध-रञ्जिता चञ्चरीक-कृतनादा । धूपामोद-विमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलि बिम्बे ॥१॥ (आर्या) ॐ हाँ ही हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ ए मंत्र बोली पुष्पांजलिथी पूजन करवू । ॥ इति अष्टादश स्नात्रम् ॥ शुद्ध जल से परमात्मा का प्रक्षाल करना तीन अंगलूछणा करवाना । मंत्रोच्चार पूर्वक अष्टप्रकारी पूजा या का विधान करना । तत्पश्चात् आरती, मंगल दीपक, शांति स्नात्र करना, भाव पूजा करना । विधिकारक देव वन्दन करें । सभी चैत्यवंदन करें। अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं । श्री अठारह अभिषेक ॥९६ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री गुरुगौतमस्वामी महापूजन ॥ पूर्व भूमिका विविध पूजन संग्रह ॥ ९७ ॥ सर्व प्रथम जिस भूमि पर पूजन कराना हो उस भूमि को दूध से मिश्रित जल के छांटने के द्वारा शुद्ध करके दशांग धूप आदि करके पूर्व या उत्तर दिशा अथवा मूलनायक भगवान के सम्मुख श्री गौतमस्वामी महापूजन का पंच धान्य से मण्डल बनाना फिर मण्डल के आगे सिंहासन (तिगड़ा) रखकर उसमें शान्तिनाथ भगवान या पंचतीर्थी एवं सिद्धचक्र (नवपदजी) का गट्टा स्थापन करके स्नात्रपूजा पढ़ाना एवं अन्त में अष्ट प्रकारी पूजा करना । मण्डल के अन्त में परनालिका बाजोट रखकर उसके मध्य श्री महावीरस्वामी भगवान की प्रतिमा एवं गुरु श्री गौतमस्वामी की मूर्ति या गौतमस्वामी यंत्र स्थापन करना । फिर मण्डल के चारों तरफ संपूर्ण | पूजन सामग्री बरख लगाकर पाटले पर लाल कपडा बिछाकर रखना । गुरुदेव से सभी पूजन सामग्री पर वासक्षेप कराना उसके पश्चात् पूजन प्रारंभ करना । श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ ९७॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ९८ ॥ श्री वर्धमानस्वामी की स्तुति वीरः सर्व-सुरा-सुरेन्द्रमहितो, वीरं बुधाः संश्रिता । वीरेणाभिहतः स्वकर्म-निचयो, वीराय नित्यं नमः । वीरात्तीर्थमिदं प्रवृत्तमततुलं, वीरस्य घोरं तपो । वीरे श्री धृतिकीर्तिकान्तिनिचयः, श्री वीर भद्रं दिश । (थाली बजाना) (सभी साथ में धुन लगाना) जय बोलो महावीरस्वामी की । घट-घट के अंतर्यामी की ॥ जय०॥ जिस जगति का उद्धार किया । जो आया शरण वो पार किया ॥ जिस पीर सुनी हर प्राणी की ॥ जय०॥ महावीर बोलो ॥ महावीर बोलो ॥ त्रिशलानंदन बोलो ॥ महावीर बोलो ॥ सिद्धार्थनंदन बोलो ॥ महावीर बोलो ॥ वीर बोलो बोलो ॥ महावीर बोलो ॥ श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥२८॥ For Personal & Private Use Only wwww.janelibrary.org Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ९९ ॥ ॥ श्री गौतमस्वामी की स्तुति ॥ सर्वाभिप्सितदातारं, लब्धिनामधिनायकम्, पुष्पाञ्जलिं प्रयच्छामि, संघकल्याण हेतवे । अंगुठे अमृत वसे, लब्धितणा भण्डार । श्री गुरु गौतम समरीए वांछित फल दातार ॥ कुसुमांजलि से वधाना और थाली बजाना ॥ शुद्धिकरण विधान (१)- सर्वप्रथम असुरनिकाय के वायुकुमार देवता का अठान मुद्रा द्वारा आह्वान करना । “ॐ ह्रीं वातकुमाराय विघ्नविनाशकाय महीं पूतां कुरु कुरु स्वाहा ॥" (थाली बजाकर मण्डल के चारों तरफ मोर पीछी या खेस (दुपट्टा) से भूमि प्रमार्जन करना ।) (२) मेघकुमार देव से प्रार्थना "ॐ ह्रीं मेघकुमाराय धरां प्रक्षालय प्रक्षालय हु फुट् स्वाहा ॥" (पूरी थाली बजाकर चारो तरफ सुवर्ण जल की वर्षा (वृष्टि ) करना । गौतमस्वामी पूजनविधि ॥९९ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १०० ॥ (३) भूमिपूजन : "ॐ भूरसि भूतधात्रि ! सर्वभूतहिते । भूमि शुद्धिं कुरु कुरु स्वाहा ॥" (४) देह (शरीर) का शुद्धिकरण विधान : (अंजलि मुद्रा करके दोनों हाथों में सभी तीर्थों का पानी है ऐसी कल्पना कर निम्नोक्त मंत्र द्वारा मस्तक से लेकर सभी अंगों पर स्नान करना ) “ ॐ अमले विमले सर्वतीर्थजलोपमे पाँ पाँ वाँ वाँ ज्वीं क्ष्वीं अशुचिः शुचिर्भवामि स्वाहा ॥" (५) हृदय शुद्धि विधान : ( दोनों हाथ हृदय पर स्पर्श करते हढए निम्नोक्त मंत्र बोलना ) " ॐ विमलाय विमलचित्ताय ज्वीं क्ष्वीं स्वाहा ॥ " (६) वस्त्र शुद्धि विधान (पूजा के वस्त्रों को स्पर्श करते हढए । ) 11 "ॐ ह्रीँ आँ क्रों नमः For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ १०० ॥ Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १०१ ॥ (७) आज्ञा धारण करना . (परम कृपालु परमात्मा की आज्ञा स्वीकार करने हेतु तिलक विधान निम्नोक्त मंत्र से करना ॥) "ॐ आँ ह्रीं क्रौ अर्हते नमः॥" (८) स्वस्तिक मुद्रा द्वारा दोनों भुजाओं पर हाथ रखकर मन-वचन-काय की एकाग्रता द्वारा दुष्ट कर्म जलकर भस्मीभूत हो रहे है ऐसी कल्पना करना "ॐ विद्युत् स्फुलिंगे महाविद्ये सर्वकल्मषं दह-दह स्वाहा ॥" (९) आत्म रक्षा मंत्र A (उर्ध्व) B (अधो) बीज-वर्ण बीज-वर्ण "क्षि"-पृथ्वि-पीत दोनों पैर की जांघ पर| "हा"-आकाश-श्याम- ललाट पर | "प"-जल-श्वेत-नाभिपर "स्वा"-वायु-नील-मुखपर "ॐ"-अग्नि-रक्त-हृदयपर "ॐ"-अग्नि-रक्त-हृदयपर श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१०१॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १०२ ॥ "स्वा"-वायु-नील-मुखपर "प"-जल-श्वेत-नाभिपर "हा"-आकाश-श्याम-ललाट पर। "क्षि"-पृथ्वि-पीत-दोनों पैर की जांघ पर (इस मंत्रबीज के द्वारा क्रमानुसार आरोह एवं अवरोह क्रम में तीन बार अंग स्पर्श करके आत्म रक्षा करनी ।) | (१०) आत्मरक्षा (वज्रपंजर स्तोत्र) इस स्तोत्र के द्वारा नवकार महामंत्र के एक-एक पद को हमारे शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों के उपर स्थापन करते हैं । एवं कल्पना की जाती है कि शरीर के चारों तरफ एक खाई बनी हढई है । और उसके उपर लोहे की किलेबंदी की जा रही है । आत्म-रक्षा करने से पंच परमेष्ठि भगवंतों की महान् कृपा व आधि-व्याधि और उपाधिओं में समभाव की प्राप्ति एवं आसुरी तत्त्वों का विनाश होता है । ॐ परमेष्ठि नमस्कारं , सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षा करं वज्र-पञ्जराभं स्मराम्यहम् ॥ १॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् । ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी । ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढं । ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे, एसो पंच नमुक्कारो, शिलावजमयीतले । गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१०२॥ For Personal Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १०३ ॥ सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज़मयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिराङ्गारखातिका । स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवई मंगलं, वप्रोपरि वजमनं, पिधानं देह रक्षणे । महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी, परमेष्ठि-पदोद्भूता, कथितापूर्वसूरिभिः । यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठि-पदैः सदा, तस्य न स्याद् भयं व्याधि, राधिश्चापि कदाचन । (११) जिस भूमि पर पूजन पढ़ाते है उस भूमि के मालिक, उसकी रक्षा करनेवाले क्षेत्रपालदेवता उनकी आज्ञा के लिए हरा नारियल, चमेली का तेल, लालपुष्प व ११ रूपीया एवं यंत्र मे अंगुठे के द्वारा केसर से तिलक करना व लाल पुष्प चढ़ाना । “ॐ क्षा क्षीं हूं क्षौं क्षः श्री क्षेत्रपालदेव ! इदं स्थानं आगच्छ आगच्छ तिष्ठ-तिष्ठ पूजा बलिं गृहाण गृहाण स्वाहा ॥" (१२) रक्षापोटली विधान (गुरुदेव से रक्षापोटली वासक्षेप के द्वारा मंत्रित कराना ।) वासक्षेप मंत्र "ॐ हूँ फूट किरिटि किरिटि घातय घातय, परकृतविघ्नान् स्फेटय स्फेटय, श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१०३॥ Jain contentional For Personal Print Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविय पूजन संग्रह सहस्र-खण्डान् कुरु कुरु, परमुद्रां छिन्द-छिन्द, परमन्त्रान् भिन्द-भिन्द हूँ क्षः फूट् स्वाहा ॥" (सात बार बोलकर मंत्रित करना) (१३) रक्षापोट ली बाँधने का विधान कम से कम एक आयंबिल और तीन दिन ब्रह्मचर्य पालन का नियम-अशक्त वृद्ध-बाल की परिस्थिति में कम से कम नवकारशी-पूजा-सामायिक का नियम लेकर ही मंत्र के द्वारा रक्षा पोटली बांधना। “ॐ नमोऽर्हते रक्ष स्वाहा ॥" (थाली बजने पर रक्षापोट ली बांधना) (१४) पीठ स्थापना (श्री महावीर परमात्मा व गुरु श्री गौतमस्वामी या यंत्र जिस थाले या बाजोठ पर बिराजित हो उस पर हाथ रख कर मंत्र बोलना ।) "ॐ अर्ह महावीरजिनेन्द्र, गुरु गौतमस्वामी अत्र सहस्रपत्रकनककमलपीठे तिष्ठतिष्ठ ठः ठः स्वाहा ॥" श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१०४॥ . 1 For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १०५ ॥ ( १५ ) यंत्र स्थापन ॐ अर्ह ऐं ह्रीँ लब्धिसंपन्न श्री गौतमस्वामिने नमः स्वाहा ॥ (१६) श्री महावीर परमात्मा की अष्ट प्रकारी पूजा नमोऽर्हत् सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्व-साधुभ्यः बोलकर निम्नोक्त स्तुति करना । श्रीमते वीरनाथाय सनाथायाद् भुतश्रियाः । महानंदसरोराज, मरालायाऽर्हते नमः । कल्याणपादपारामं श्रुतगंगाहिमाचलम् । विश्वाम्भोजरविं देवं वन्दे श्री ज्ञातनंदनं । वर्धमान जिनेन्द्रस्य जननी जनकौ मुदा । त्रिशलाभूपसिद्धार्थो दिशतां मंगलावलिं ॥ "ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म जरा मृत्यु निवारणाय सिंहलाञ्छन सुशोभिताय अष्टप्रातिहार्ययुक्ताय केवलज्ञानभास्कराय देवाधिदेवाय श्रीमते वीरजिनेन्द्राय जलं चंदनं पुष्पं धूपं दीपं अक्षतं नैवेद्यं फलं यजामहे स्वाहा ॥ " अष्ट प्रकारी पूजा करके प्रतिमाजी सिंहासन अथवा मण्डल के बीच में स्थापित करना । For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ १०५ ॥ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। १०६ ।। गुरु गौतमस्वामी यंत्र - मण्डल पूजन आह्वानादि विधान (दोनों हाथ से अठान मुद्रा द्वारा पधारने की प्रार्थना ) ॐ आँ क्रोँ ह्रीँ अनंत लब्धि निधान गुरु गौतमस्वामिन् अस्मिन् जंबूद्वीपे भरतक्षेत्रे दक्षिणार्धभरते मध्य खंडे गूर्जरदेशे पालिताणानगरे गुरु गौतमस्वामी मण्डपे परम पूज्य श्री नीति - हर्ष महेन्द्र-मंगलप्रभसूरीश्वराणां पुण्य प्रभाव साम्राज्ये गच्छाधिपति आ. दे. अरिहंत सिद्धसूरीश्वर - शुभ- निश्रायां गोडवाड दिपिका सा. श्री ललितप्रभाश्रीजी सत्प्रेरणायाः अत्र सहस्त्र पत्र कमले आगच्छ आगच्छ स्वाहा संवौषट् ( पधारो पधारो ) ॥ (२) ...अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा । ( बिराजमान हो । ) (३) .... अत्र मम सन्निहिताभव भव वषट् स्वाहा । ( समीप में रहो । ) (४) अत्र पूजान्तं यावत् अत्रेव स्थातव्यम् ( पूरी पूजा तक हमारे पास रहना । ) (५) अत्र परेषामदृश्या भव भव स्वाहा । (दुष्ट देव-देवीओं का प्रवेश न हो । ) (६) अत्र इमां पूजां गृहाण गृहाण स्वाहा ( अर्पण विधान 1 ) For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ १०६ ॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १०७ ॥ इस प्रकार छ मुद्राए दिखाकर गुरु गौतमस्वामी का स्तोत्र, छन्द आदि बोलकर अष्ट प्रकारी पूजा करना । श्री इन्द्रभूतिं वसुभूति - पुत्रं, पृथ्वीभवं गौतम - गौत्र - रत्नम् । स्तुवन्ति देवासुर मानवेन्द्राः, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥ १॥ श्री वर्द्धमानात् त्रिपदीमवाप्य, मुहूर्त-मात्रेण कृतानि येन । अङ्गानि पूर्वाणि चतुर्दशापि, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥ २॥ श्री वीरनाथेन पुरा प्रणितं, मंत्रं महानंद सुखाय यस्व । ध्यायन्त्यमी सूरिवरा समग्राः, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥ ३॥ यस्याभिधानं मुनयोपि सर्वे, गृह्णन्ति भिक्षा भ्रमणस्य काले । मिष्टान्न-पानाम्बर पूर्णकामाः, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥ ४॥ अष्टापदाद्रौ गगने स्वशक्तया, ययौ जिनानां पद वन्दनाय । निशम्य तीर्थातिशयं सुरेभ्यः, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥ ५॥ त्रिपंच संख्या शत तापसानां तपःकृशानाम - पुनर्भवाय । अक्षीण लब्ध्या परमान्नदाता, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥ ६॥ For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ १०७ ॥ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १०८ ॥ स दक्षिणं भोजनमेवदेयं, साधर्मिकं संघ सपर्ययेति । कैवल्यवस्त्रं प्रददौ मुनीनां, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥ ७॥ शिवं गते भर्तरि वीरनाथे, युगप्रधानत्वमिहैव मत्वा । पट्टाभिषेको विदधे सुरेन्द्रैः, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥ ८॥ त्रैलोक्यबीजं परमेष्ठिबीजं, सद्ध्यानबीजं जिनराजबीजम् । यन्नाममंत्रं विदधाति सिद्धिं, स गौतमो यच्छतु वांछितं मे ॥ ९॥ श्री गौतमस्याष्टकमादरेण, प्रबोधकाले मुनिपुङ्गवाये य । पठन्ति ते सूरिपदं सदैवा, नन्दं लभन्ते सुतरांक्रमेण ॥ १०॥ सर्वारिष्टप्रणाशाय, सर्वाभिष्टार्थदायिने । सर्वलब्धिनिधानाय गौतमस्वामिने नमः ॥ अंगूठे अमृत वसे, लब्धि तणा भण्डार । श्री गुरु गौतम समरीए वांछित फल दातार । अक्षीणमहानसी लब्धि, केवल श्री करां भुजे । प्रगे लक्ष्मीर्मुखे वाणी, तमहं गौतमं स्तुवे । गौतम प्रणम्या पातकटले, उत्तम नरनी संगत मले।गौतम नामे निर्मलज्ञान, गौतम नामे वाधे वान। श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१०८॥ in Educatio n For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १०९ ॥ ॐ ह्रीं श्रीं अरिहंत उवज्झाय परम विनय रूपाय सूरी मंत्र रचना कारकाय वाणी त्रिभुवन स्वामीनी गणिपिटक यक्षराज संसेविताय अनन्त लब्धिनिधानाय प्रथमगणधराय श्री गौतमस्वामिने जलं चन्दनं पुष्पं धूपं दीपं अक्षतं नैवेद्यं फलं यजामहे स्वाहा ॥ ( ११-११ नंग फल नैवेद्य मण्डल में और यंत्र पर पक्षाल, पूजा, पुष्प आदि चढ़ाना ) गुरु पादुका पूजन: गुरु कृपा बिना किसी भी कार्य में सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती है अपने-अपने गुरुदेवो का स्मरण करके उनके उपकारों को याद करके मंत्रोच्चार के साथ मण्डल पर दाडम, (अनार), १ । रूपिया नैवेद्य व यंत्र पर गुरु पूजा करना । गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुदेवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः । ब्रह्मानंद परम सुखदं केवल ज्ञान मूर्तिम् । द्वन्दातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम् । एकं नित्यं विमलाचलं सर्वदासाक्षीभूतम् । भावातीतं त्रिगुणरहितं, सद्गुरुं तं नमामि । ॐ ह्रीं अनन्तानन्त गुरुपादुकाभ्यो नमो नमः स्वाहा ॥ For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ।। १०९ ।। Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ११० ॥ अधिष्ठायक देव - देवी पूजन: मण्डल के आठ देरीओ (मंदिर) में श्रीफल १। रूपीया व नैवेद्य यंत्र पर पक्षाल पूजादि करना । (१) सरस्वती पूजन ( प्रथम देरी ) कुन्दिन्दुगोक्खीर, तुसारवन्ना । सरोज हत्था कमले निषण्णा । वाएसिरि पुत्थय वग्ग हत्था । सुहाय सा अम्ह सया पसत्था । ॐ ह्रीँ क्लीँ ब्लीं श्रीं ह्स्कल ह्रीं ऐं श्रीगुरुगौतमस्वामी पूजने श्रुतज्ञान अधिष्ठायिका सरस्वत्यै इदं अर्ध्यं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरु फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा । (२) महालक्ष्मीपूजन ( द्वितीय देरी ) यत्कृपालेशमात्रेण, निर्धनो धनदो भवेत्, श्री जिनार्चनामतां सौम्यां, लक्ष्मीदेवीं भजाम्यहम् । ॐ ह्रीँ क्लीँ ब्लीँ श्रीं ह्स्कल ह्रीं ऐं श्रीगुरुगौतमस्वामिपूजने पद्मद्रहनिवासिनी For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ ११० ॥ Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। १११ ॥ जिनशासनअधिष्ठायिका महालक्ष्मीदेव्यै इदं अयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरु फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्य तामिति स्वाहा ॥ (३) जयादेवी पूजन (तृतीय देरी) जयं धर्मस्य कुर्वन्तीं जिनशासनवल्लभां । तुष्टिं पुष्टिं करी संघे जयादेवीं प्रपूजये । ___ ॐ ह्रीं क्लीं ब्लौं श्री हुस्क्ल ह्रीं ऐं श्रीगुरुगौतमस्वामिपूजने जिनशासन अधिष्ठायिका जयायै इदं अयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरु फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा ॥ (४) विजयादेवी पूजन (चतुर्थ देरी) विजयालङ्कतां पूतां विघ्नविध्वंसकारिणीं । प्रणमन्तीं गणाधीशं भजेऽहं विजयादेवीं ॥ ॐ ह्रीं क्ली ब्ली श्री इस्क्ल ह्रीं ऐं श्रीगुरुगौतमस्वामिपूजने मानदेवसूरिवल्लभा विजयायै इदं अयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरु फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्य तामिति स्वाहा ॥ श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१११॥ For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ११२ ॥ (५) अपराजितादेवी (पंचम देरी) ध्यायति या सदाऽर्हन्तं, भक्तानामिष्टसिद्धये । संतुष्टापराजिता देवी गौतमस्वामिनं पूजये मुदा ॥ ॐ ह्रीं क्लीं ब्लीं श्रीं ह्स्क्ल ह्रीं ऐं श्री गुरुगौतमस्वामिपूजने जिनशासनवल्लभा-अपराजितायै इदं अयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरु फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा ॥ (६-७) त्रिभुवनस्वामीनी-गणिपिटक यक्ष (षष्ठ व सप्तम देरी पूजन) वाणी तिहअणसामिणि, सिरिदेवीजक्खरायगणिपिडगा । गहदिसिपालसुरिंदा, सयावि रक्खंतु जिणभत्ते ॥ ॐ ह्रीं क्लीं ब्लीं श्रीं ह्स्क्ल ह्रीं ऐं श्री गुरुगौतमस्वामिपूजने जिनशासनवल्लभा| गणिपिटकयक्ष-त्रिभुवनस्वामिन्यै इदं अयं पाद्यं गन्धं पुष्पं धूपं दीपं चरु फलं स्वस्तिकं यज्ञभागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा ॥ श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥११२॥ For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ११३ ॥ दश गणधर पूजन द्वितीयवलय. ये गणधर श्रीगौतमस्वामि जैसे ही महानविद्वान् थे । और सबके मन के अंदर एक-एक संशय | रहा हुआ था। लेकिन अहं के कारण बता नहीं सकते है, परम कृपालु महावीर परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त होते ही गुरुगौतमस्वामी की तरह दश गणधरोने परम कृपालु परमात्मा का शरण स्वीकारा, अपने संशयों का निवारण किया और परमात्मा ने दशों को गणधर पद पर स्थापन किया । वो हमारे लिए परमगुरु परम आदरणीय है । इस लिए दश गणधरों के नाम पूर्वक इनका पूजन किया जा रहा है। ह्रीं श्रीं अग्निभूतये नमो नमः स्वाहा ॥ २. ॐ ह्रीं श्रीं वायुभूतये नमो नमः स्वाहा ॥ ही श्री व्यक्ताय नमो नमः स्वाहा ॥ ह्रीं श्रीं सुधर्मस्वामिने नमो नमः स्वाहा ॥ ___ श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥११३॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ११४ ॥ ॐ ह्रीँ श्री मण्डिताय नमो नमः स्वाहा ॥ ६. ॐ ह्रीं श्री मौर्यपुत्राय नमो नमः स्वाहा ॥ ७. ॐ ह्रीं श्रीं अकम्पिताय नमो नमः स्वाहा ॥ ८ ॐ ह्रीं श्री अचलभात्रे नमो नमः स्वाहा ॥ ९ ॐ ह्रीं श्रीं मेतार्याय नमो नमः स्वाहा ॥ १० ॐ ह्रीं श्री प्रभासाय नमो नमः स्वाहा ॥ (मण्डल में एक-एक दाडम (अनार), मिठाई और १। रूपिया और यंत्र में कुसुमांजलि से पूजन करना ॥) लब्धिपद पूजन :- तीसरा वलय ज्ञान ध्यान तपादि करने से आत्मा में अनन्य प्रकार की शक्ति प्रगट होती है । जिससे अनेक महापुरुष जैनशासन की अनुपम प्रभावना करते हैं । ऐसी लब्धियां अनन्त है । उनमें से विशेष प्रकार की २८ लब्धियाँ श्री गौतमस्वामीजी को प्राप्त थी । मण्डल के अन्दर एक-एक खारेक और यंत्र के उपर वासचूर्ण द्वारा पूजन करना है ॥ श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥११४॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। ११५ ।। १. ॐ ह्रीँ अर्हं आमोसहिपत्ताणं झीँ झीँ स्वाहा ॥ २. ॐ ह्रीं अर्ह विप्पोसहिपत्ताणं झौ झो स्वाहा ॥ ३. ॐ ह्रीँ अर्ह खेलोसहिपत्ताणं झीँ झीँ स्वाहा ॥ ४. ॐ ह्रीँ अर्हं जल्लोसहिपत्ताणं झीँ झीँ स्वाहा ॥ ५. ॐ ह्रीं अर्ह सव्वोसहिपत्ताणं झौ झीँ स्वाहा ॥ ६. ॐ ह्रीँ अर्ह संभिन्नसोयाणं झीँ झीँ स्वाहा ॥ ७. ॐ ह्रीं अर्ह ओहिनाणाणं झीँ झीँ स्वाहा ॥ ८. ॐ ह्रीं अर्ह मनः पज्जवनाणाणं झौं झ्रों स्वाहा ॥ ९. ॐ ह्रीँ अर्ह विउलमईणं झीँ झीँ स्वाहा ॥ १०. ॐ ह्रीँ अईं चारणलद्धीणं झीँ झीँ स्वाहा ॥ ११. ॐ ह्रीं अर्हं आसीविसाणं झीँ झीँ स्वाहा ॥ १२. ॐ ह्रीँ अर्हं केवलनाणाणं झीँ झीँ स्वाहा ॥ १३. ॐ ह्रीँ अर्हं गणहरपयाणं झीँ झीँ स्वाहा ॥ १४. ॐ ह्रीं अर्ह पुव्वहरपयाणं झीँ झीँ स्वाहा ॥ For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ ११५ ॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ११६ ॥ ही अहँ अरिहंतपयाणं झौं झों स्वाहा ॥ १६. ॐ ह्रीं अर्ह चक्कवट्टि पयाणं झौ झो स्वाहा ॥ अर्ह बलदेवपयाणं झौं झों स्वाहा ॥ अहँ वासुदेवपयाणं झौ झौं स्वाहा ॥ अर्ह अमियासवीणं झौं झौं स्वाहा ॥ अहँ कुट्ठ बुद्धीणं झौं झौ स्वाहा ।। अहँ पयाणुसारीणं झौं झौं स्वाहा ॥ अहँ बीयबुद्धीणं झौं झौ स्वाहा ॥ ही अहँ तेउलेस्साणं झौं झौं स्वाहा । ही अर्ह आहारकाणं झौं झों स्वाहा ।। ॐ ह्री अर्ह सीतलेस्साणं झौं झौं स्वाहा ॥ . २६. ॐ हीं अहँ विक्कियलद्धीणं झौं झों स्वाहा ॥ २७. ॐ ही अहँ अक्खीणमहाणसिलद्धीणं झौं झों स्वाहा ॥ २८. ॐ ह्रीं अहँ पुलागलद्धिणं नौं झों स्वाहा ॥ her the ther the the hce ther the the ther श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥११६ ।। For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ११७ ॥ Jain Education international चतुर्थ वलय अष्ट महासिद्धिपूजन योग साधना के द्वारा प्राप्त होनेवाली सिद्धियों को महासिद्धि कहा जाता है जो कि आठ प्रकार की है ॥ १. ॐ ह्रीँ अणिमादि महासिद्ध्यै स्वाहा ॥ २. ॐ ह्रीँ महिमादि महासिद्ध्यै स्वाहा ॥ ३. ॐ ह्रीँ लधिमादि महासिद्ध्यै स्वाहा ॥ ४. ॐ ह्रीँ गरिमा महासिद्ध्यै स्वाहा ॥ ५. ॐ ह्रीँ प्राप्ति महासिद्ध्यै स्वाहा ॥ ६. ॐ ह्रीँ प्राकाम्य महासिद्ध्यै स्वाहा ॥ ७. ॐ ह्रीँ ईशिता महासिद्ध्यै स्वाहा ॥ ८. ॐ ह्रीं वशिता महासिद्ध्यै स्वाहा ॥ ( मण्डल के अंदर बदाम एवं यंत्र के उपर कढसुमांजलि करना ॥ ) For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ ११७ ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। ११८ ।। 1321 नवनिधि पूजन - पंचम वलय महापद्माय स्वाहा ॥ कालाय स्वाहा ॥ ५. ॐ ६. ॐ ७. ॐ महाकालाय स्वाहा ॥ ८. ॐ माणवकाय स्वाहा ॥ १. ॐ नैसर्पिकाय स्वाहा ॥ २. ॐ पाण्डुकाय स्वाहा ॥ ३. ॐ पिंगलाय स्वाहा ॥ ४. ॐ सर्वरत्नाय स्वाहा ॥ ९. ॐ शंखाय स्वाहा ॥ (मण्डल के अंदर अखरोट एवं यंत्र के उपर कुसुमांजलि द्वारा पूजन करना ॥ ) सोलह विद्यादेवी पूजन:- (६) षष्ठ वलय जिनशासन में प्रत्येक महापूजन एवं अंजनशलाका प्रतिष्ठादि महाविधानों में जिनका पूजन अवश्य किया जाता है । विशेष प्रभावशाली संतिकरं तिजयपहुत्त और बड़ी शांति आदि अनेक स्तोत्रो में जिनका स्मरण किया जाता है ॥ ( मण्डल में १६ पान १६ सुपारी एवं यंत्र पर कुसुमांजलि करना ॥ ) For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ ११८ ॥ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह श्री रोहिण्यै स्वाहा ॥ ९. ॐ ह्रीं श्री गौर्ये स्वाहा ॥ १०. ॐ ह्रीं श्रीं गान्धार्यै स्वाहा ॥ ह्रीं श्रीं वज्रशृंखलायै स्वाहा ॥ ११. ॐ ह्रीं श्रीं सर्वास्त्रामहाज्वालायै स्वाहा ॥ श्री वज्रांकुश्यै स्वाहा ॥ १२. श्री मानव्यै स्वाहा ॥ श्री अप्रतिचक्रायै स्वाहा ॥ १३. श्री वैरुट्यायै स्वाहा ॥ ॐ ह्रीं श्री पुरुषदत्तायै स्वाहा ॥ १४. ॐ ह्रीं श्रीं अच्छुप्तायै स्वाहा ॥ ॐ ह्रीं श्री काल्यै स्वाहा ॥ १५. ॐ ह्रीं श्रीं मानस्यै स्वाहा ॥ ह्रीं श्री महाकाल्यै स्वाहा ॥ १६. ॐ ह्रीं श्रीं महामानस्यै स्वाहा ॥ प्रार्थना:रोहिण्यादि महादेव्यै, सर्वविघ्नोपशान्तये । श्रीगौतमस्वामी पूजायां, यच्छामि कुसुमांजलिं (कुसुमांजलि से वधाना) (७) सप्तमवलय . ४५ आगम पूजन:-इस पाँचवे आरे के अंदर भवसमुद्र से तिरने का कोई श्रेष्ठ मार्ग हो तो वह जिनबिम्ब और जिनागम है । परमकृपालु महावीर परमात्माने गुरुगौतमस्वामी आदि shaher kharkha her ther the ॥ ११९ ॥ ther the ther thatharthee गौतमस्वामी पूजनविधि ॥११९॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १२० ॥ गणधर भगवंतों को उपगमई वा विगमई वा धुवेई ऐसे तीन पद दिए, इन तीनपदों के आधार पर गणधर भगवंतों ने इन आगमों की रचना की इसमें पूरे विश्व का सार आ जाता है । प्रथम पाट आदि लगाकर उसके उपर उत्तम कपड़ा बिछाकर ४५ ठवणी (सापड़ा) उसके उपर ४५ आगम की पुस्तके एवं उसके सामने ४५ दीपक रखना, प्रथम ज्ञान का दोहा बोलकर एक-एक आगम का नामरूपी मंत्र बोलकर चांदी के सिक्के या ११-१॥ रूपीया फल मिठाई रखकर पूजा करनी । तथा आगम पुस्तक पर वासक्षेप द्वारा पूजा एवं दीपक प्रगट करना । जिन जोजन भूमि, वाणीनो विस्तार । प्रभु अर्थ प्रकाशे, रचना गणधर सार । सौ आगम सुणतां, छेदीजे गति चार । प्रभु वचन वखाणी, लहिए भवनो पार ॥१॥ निव्वाणमग्गे, वरजाणकप्पं । पणासिया सेस कुवाई दप्पं । मयं जिणाणं सरणं बुहाणं । नमामि निच्चं ति जगप्पहाणं ॥२॥ बोधागाधं सुपद पदवी नीर पूराभिरामं । जीवाहिंसा विरल लहरी संगमागाहदेहं । चूलावेलं गुरुगममणि संकुलं दूर पारं । सारं विरागमजलनिधि, सादरं साधु सेवे ॥३॥ श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१२०॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १२१ ॥ १. ॐ ५. ॐ ह्रीं अर्ह अर्हं श्री आचारांगसूत्राय नमः स्वाहा ॥ २. ॐ ह्रीँ अईं श्री सूर्यगडांगसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ३. ॐ ह्रीँ अर्हं श्री ठाणांगसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ४. ॐ ह्रीँ अर्हं श्री समवायांगसूत्राय नमः स्वाहा ॥ श्री भगवतीसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ६. ॐ ह्रीँ अर्हं श्री ज्ञाताधर्मकथांगसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ७. ॐ ह्रीँ अर्हं श्री उपासकदशांगसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ८. ॐ ह्रीँ अर्ह श्री अंतकृद्दशांगसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ९. ॐ ह्रीं अर्हं श्री अनुत्तरोपातिकसूत्राय नमः स्वाहा ॥ १०. ॐ ह्रीँ अर्ह श्री प्रश्नव्याकरणसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ११. ॐ ह्रीँ अर्ह श्री विपाकसूत्राय नमः स्वाहा ॥ १२. ॐ ह्रीँ अहं श्री उववाईसूत्राय नमः स्वाहा ॥ For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ १२१ ॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध अर्ह पूजन संग्रह ॥ १२२ ॥ अर्ह १३. ॐ ह्रीं अर्ह श्री रायपसेणीसूत्राय नमः स्वाहा ॥ १४. ॐ ह्रीं अर्ह श्री जिवाभिगमसूत्राय नमः स्वाहा ॥ श्री पन्नवणाउपांगसूत्राय नमः स्वाहा ॥ १६. ॐ हीं अहँ श्री जंबूद्वीपपन्नतिसूत्राय नमः स्वाहा ॥ श्री सूर्यपन्नतिसूत्राय नमः स्वाहा ॥ १८. ॐ ह्रीं अहँ श्री चंदपन्नतिसूत्राय नमः स्वाहा ॥ १९. ॐ ह्रीं अहँ श्री कप्पवडिंसयासूत्राय नमः स्वाहा ॥ २०. ॐ ह्रीं अहँ श्री निरियावलीसूत्राय नमः स्वाहा ॥ २१. ॐ ह्रीं अर्ह श्री पुष्फचूलियासूत्राय नमः स्वाहा ॥ ही अर्ह श्री वन्हिदशोपाङ्गसूत्राय नमः स्वाहा ॥ २३. ॐ ह्रीं अहँ श्री पुष्फचूलियाउपाङ्गसूत्राय नमः स्वाहा ॥ २४. ॐ ह्रीं अर्ह श्री चउसरणपयन्नासूत्राय नमः स्वाहा ॥ WWWN००० *hor her her the the ther ther the the श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१२२ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १२३ ॥ २५. ॐ ह्रीं अहँ श्री आउरपच्चखाणसूत्राय नमः स्वाहा ॥ २६. ॐ ह्रीं अहँ श्री भत्तपरिज्ञासूत्राय नमः स्वाहा ॥ २७. ॐ ह्रीं अहँ श्री संथारापयन्नासूत्राय नमः स्वाहा ॥ २८. ॐ ह्रीं अर्ह श्री तंदुलवेयालियसूत्राय नमः स्वाहा ॥ अर्ह श्री चंदपयन्नासूत्राय नमः स्वाहा ॥ ३०. ॐ ह्रीं अहँ श्री देविंदथुइपयन्नासूत्राय नमः स्वाहा ॥ ही अहँ श्री मरणसमाधिसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ह्रीं अहँ श्री महापच्चक्खाणसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ही अर्ह श्री गणिविज्जापयन्नासूत्राय नमः स्वाहा ॥ ३४. ॐ ह्रीं अर्ह श्री निशिथछेदसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ॐ ह्रीं अहँ श्री व्यवहारकल्पसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ३६. ॐ ह्रीं अहँ श्री दशाश्रुतस्कंधसूत्राय नमः स्वाहा ॥ hear the the dhee khee dhee hee kee the गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१२३ ॥ For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७. ॐ विविध पूजन संग्रह #crther the the ther ther the अर्ह ही अर्ह श्री पंचकल्पछेदसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ३८. ॐ ह्रीं अर्हं श्री जितकल्पछेदसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ३९. ॐ ह्रीं अहँ श्री महानिशीथछेदसूत्राय नमः स्वाहा ॥ श्री दशवैकालिकसूत्राय नमः स्वाहा ॥ श्री उत्तराध्ययनसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ४२. ॐ ह्रीं अहँ श्री ओघनियुक्तिसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ४३. ॐ ह्रीं अर्ह श्री आवश्यकसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ४४. ॐ ह्रीं अहँ श्री नंदीसूत्राय नमः स्वाहा ॥ ४५. ॐ ह्रीं अर्ह श्री अनुयोगद्वारसूत्राय नमः स्वाहा ॥ संकल्पविधि :ऋद्धि-सिद्धि कल्याणक मनोवांछित पूरक विशिष्ट विधान (मनोइच्छा धारण करना ।) ॥ १२४ ॥ श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ १२४॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १२५ ॥ , अस्मिन् जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे दक्षिणार्धभरते मध्यखंडे गुर्जरदेशे पालिताणानगरे श्री नीतिहर्ष-महेन्द्र-मंगलप्रभसूरी पुण्य प्रभाव साम्राज्ये गच्छाधिपति आ. देव अरिहंत सिद्धसूरीश्वरादि मुनि मण्डल शुभनिश्रायां सं. वर्षे..........मासे..........तिथौ........वासरे मम शरीरे रोगादि निवारणार्थे मनोकामना सिद्ध्यर्थे, व्यापारलाभार्थे, विजयार्थे , शत्रुकष्ट निवारणार्थे श्री गौतमस्वामिन् पूजन प्रभावात् अधिष्ठायक देव प्रसन्नार्थे सफली भवतु । संकल्प करने के बाद सभी को एक पीला रेशमी धागा देना और निम्नोक्त एक-एक मंत्र बोलकर धागे को कुल ३६ गांठे देने की और ३६ बार वासक्षेप फूल अक्षत के द्वारा पूजन करना । “ॐ ह्रीं नमो भगवओ गोयमस्स सिद्धस्स बुद्धस्स, अक्षीण महाणस्स, लब्धि संपन्नस्स भगवन् भास्कर मम वांछितं पूरय पूरय कल्याणं कुरु कुरु स्वाहा ॥" श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१२५ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १२६ ॥ फिर सजोडे खडे पग पर बैठकर हाथमें स्वस्तिक व कुसुमांजलि रखकर दोनों हाथ मिलाकर हाथमें बड़ा कलश रखकर नवकार उवस्सग्गहरं और बृहत्शांति बोलते बोलते अष्टमंगल घडा अखण्ड धारा से भरना । फिर घडा पर पांच पान नारियल, रखकर पीला वस्त्र (रेश्मी) से घड़ा बांधना उपर-चांदी व सोने का वरख लगाकर केसर-कुसुमांजलि से बधाकर फूल की माला चढ़ानातीन प्रदक्षिणा देकर मण्डल की बायीं दिशा में चावल की ढगली करके रखना । श्री गुरु गौतमस्वामी आरती जय जय आरति गौतमदेवा, सुरनर किन्नर करते सेवा ॥१॥ प्रथम आरति, विघ्न को चूरे, मनवांछित फल सघलो पूरे ॥२॥ दूसरी आरति मंगलकारी, विघ्न निवारी सुख दातारी ॥ ३॥ तीसरी आरति कर्ता भावें, दुःख दोहग सवि दूरे जावे ॥४॥ चोथी आरती महाप्रभावी, आशा पूरे देवो आवी ॥५॥ पंचम आरति पंच प्रकारी, केवलज्ञान देवे जयकारी ॥६॥ आत्म-कमलमें लब्धिदाता, गौतम आरति करे सुख शाता ॥ ७॥ फिर इरियावहिया पूर्वक पूर्ण चैत्यवंदन करना । श्री | गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ १२६॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १२७ ॥ अन्तमें विसर्जन ॐ आज्ञाहीनं क्रियाहीनं, मंत्रहीनं च यत्कृतम् । तत्सर्वकृपया देवाः, क्षमन्तु परमेश्वराः ॥ आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनम् । पूजार्चां नैव जानामि, प्रसीद परमेश्वर ॥ कुसुमांजलि से वधाना । ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा ॥ चैत्यवंदन ( १ ) नमो गणधर नमो गणधर लब्धि तणा भंडार । इन्द्रभूति महिमानीलो, वड वजीर महावीर केरो । गौतम गोत्रे उपन्यो, गण अग्यारमांहे वडेरो । केवलज्ञान लह्यं जिणे, दिवाली परभात । ज्ञानविमल कहे जेहना नाम थकी सुखशाता । (२) इन्द्रभूति पहेलो भणुं, गौतम जस नाम । गोबर गामे उपन्या, विद्याना धाम । पंचसया परिवारशुं, लेइ संयम भार । वरसपचासे गृहवस्या, व्रते वर्ष ज त्रीश । बार वरस केवलवर्या ए, बाणुं वरस सवि आय । नय कहे गौतम नामथी, नित्य-नित्य नव निधि थाय । For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ।। १२७ ।। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह स्तवन (१) गौतम गणधर नमीये हो । अहोनिश गौतम० नाम जपत नव निधि हि निधि पाइए। मनवांछित सुख लहिए। घर आंगन जो सुरतरु फलिओ । कहां काज वन भमीए । सरस सुरभि घृत जो होय घरमें । तो क्युं तेले जमीए, हो० तैसी श्रीगौतम गुरु सेवा । और ठौर क्युं रमीए, हो० गौतम नामे भवजल तरीए । कहां बहढत तन दमीए, हो० गुण अनंत गौतम के समरन । मिथ्यामति विष भमीए, हो० जस कहे गौतम गुण रस आगे । रुचत न है हम अमीए, हो० ॥ १२८ ॥ श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१२८॥ वीर मधुरी वाणी भाखे, जलधि जल गंभीर रे । इन्द्रभूति चित्त भ्रांति, रजकण हरण प्रवर समीर रे ॥ वीर० ॥१॥ पंचभूत थकी ज प्रगटे, चेतना विज्ञान रे । . तेहमां लयलीन थाये, न परभव संज्ञान रे ॥ वीर० ॥२॥ For Personal & Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १२९ ॥ Jain Education international थोय : इन्द्रभूति अनुपम गुण भर्या, जे गौतम गोत्रे अलंकर्या । पंच शत छात्रशुं परिवर्या, वीरचरण लही भवजलतर्या । श्री इंद्रभूतिं गणवृद्धिभूतिं, श्री वीर तीर्थाधिपमुख्यशिष्यम् । सुवर्णकांति कृतकर्मशांति, नमाम्यहं गौतम गोत्ररत्नम् । छंद जयो जयो गौतम गणधार, मोटी लब्धि तणो भंडार । समरे वंछित सुख दातार, जयो जयो गौतम गणधार ॥१॥ वीर वजीर वडो अणगार, चौद हजार मुनि शिरदार । जपतां नाम हढवे जयकार, जयो जयो ० ॥२॥ गय गमणी रमणी जगसार । आपे कनक कोडी विस्तार जयो जयो० ॥३॥ घेर धोडा पायक नहि पार, सुखासन पालखी उदार । वैरी विकट थाये विसराल, जयो जयो० ॥४॥ प्रह उठीये जपिये गणधार, ऋद्धि सिद्धि कमला दातार । रहे चंद ए सुमतगार, जयो जयो० ॥५॥ For Personal & Private Use Only श्री गौतमस्वामी पूजनविधि ॥ १२९ ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १३० ॥ वार्षिक ध्वजारोहण विधि चौतीसा यंत्र ५ १६ ३ १० श्री जिन मंदिर ध्वजादंड, कलश त्रिलोकनाथ, त्रिलोकमहिता, त्रिलोकपूज्या, त्रिलोकेश्वरा, त्रिलोकोद्योतकरा देवाधिदेव सर्वज्ञ तीर्थंकर परमात्मा For Personal & Private Use Only ४ ६ १५ १४ ७ १२ १ ११ २ १३ ८ ध्वजारोहण के लिए शुभ नक्षत्र त्रण उत्तरा, आर्द्रा श्रवण धनिष्ठाशतभिषा रोहिणी अने पुष्य नक्षत्रं छे. नक्षत्र न मिले तो शुभ चोघडिया लेना शुभ चोघडिया न मिले तो विजय मुहूर्त लेना ९ वार्षिक ध्वजारोहण ॥ १३० ॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तैयारी एवं सामग्री : ध्वजादंड जितनी ध्वजा लम्बी होनी चाहिए और लम्बाई का आठवां भाग चौड़ी होनी चाहिए या ध्वजा विविध |लटकाने वाली सरिया जितनी चौड़ाई होनी चाहिए। पूजन संग्रह परिकर के साथ भगवान विराजमान हो तो ध्वजा बीच में सफेद और किनारे दोनों लाल होने चाहिए। बिना परिकर के प्रतिमा जी हो तो बीच में लाल और साईड सफेद पट्टी होनी चाहिए । ॥ १३१ ॥ ध्वजा के उपर केसर से सूर्य, चन्द्र, ॐ ह्रीं श्रीं स्वाहा मंत्र लिखना । नीचे तीन साथिया और चौतिसा यंत्र बनाना एवं लिखना । विधि : सुबह स्नात्र पढ़ाना बाद में सत्तरभेदी पूजा पढ़ाते नौंवी ध्वजा पूजा पढ़ानी प.पू. गुरु भगवंत मौजूद हो तो उनके मुख से मंत्र उच्चारण करवाना और वासक्षेप करवाना । प.पू. न हो तो उत्तम श्रावक से सात बार | मंत्रोच्चारण करवाते हुए वासक्षेप करवाना । मंत्र :- मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं ठः ठः ठः स्वाहा ।। ध्वजा पूजा पढाकर अष्टप्रकारी पूजा करनी, गुरुदेव का वासक्षेप करना फिर सौभाग्यवती स्त्री ध्वजा को थाली में रखकर सिर पर धारण कर थाली डंका के नाद के साथ जिनालय को अथवा सिंहासन को तीन बार वार्षिक ध्वजारोहण ॥१३१ ॥ Jain Education interna For Personal & Private Use Only www.inneby.org Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १३२ ॥ प्रदक्षिणा देनी । बाद में ध्वजा, प्रक्षाल, जल, पंचामृत, अंगलूछना, चन्दन, वासक्षेप, धूप, दीपक, कुमकुम (सिन्दूर), फूल, सुपारी, घंटी, दर्पण, थाली, डंडा, बाकुला, ( सवा किलो पांच धान वाला), उड़द ( माह साबत), चना (काले छोले ), मग (मूंगी साबत), घऊं ( कनक), जुवार (सफेद रंग ), डांगर (छिलके वाले चावल ), जव, अबिल-गुलाल-बूंदी के लड्डू-मीढल - मरडाशींग, दर्भ घास (चौड़ी पत्ती वाली घास), नागरवेल पान पत्ता पांच दंडी सहित, फूल की दो माला, रुः/पैसे, चांवर, बरास, तीन धागे वाली मौली, मिट्टी के कुज्जे दो ( दशांग धूप धुखाने के लिए), दशांग धूप डालकर ऊपर तमाम सामग्री के साथ शिखर ऊपर जाना बाद में निम्न लिखित मंत्र बोलकर दश दिशाओं में बाकुला उछालना । १. २. ३. पूर्वदिशा सन्मुख : ॐ नमो इंद्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय अस्मिन्जम्बुद्वीपे भरतक्षेत्रे दक्षिणार्धभरते मध्यखण्डे...( भारत ) देशे ...( पंजाब ) राज्ये... ( लुधियाना ) नगरे ( श्री जिन मंदिर जी का नाम ) जिनप्रासादे ( स्नात्र पूजा में विराजमान भगवान जी का नाम श्री शांतिनाथ ) जिनमण्डपे श्रेष्ठिवर्य श्रीमान् परिवारकारिते वार्षिक वर्षगांठ ध्वजारोहण विधि महोत्सवे पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । अग्निकोना सन्मुख : ॐ नमो अग्नये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय... पूर्ववत मंत्र बोलना । दक्षिणदिशा सन्मुख : ॐ नमो यमाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय... पूर्ववत् मंत्र बोलना । For Personal & Private Use Only वार्षिक ध्वजारोहण ॥ १३२ ॥ Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। १३३ ॥ ४. नैऋत्यकोना सन्मुख : ॐ नमो नैऋत्ये सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय...पूर्ववत् मंत्र बोलना। पश्चिमदिशा सन्मुख : ॐ नमो वरुणाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय...पूर्ववत् मंत्र बोलना। वायव्यकोना सन्मुख : ॐ नमो वायवे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय...पूर्ववत् मंत्र बोलना। उत्तरदिशा सन्मुख : ॐ नमो धनाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय...पूर्ववत् मंत्र बोलना। ईशानकोना सन्मुख : ॐ नमो ईशानाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय...पूर्ववत् मंत्र बोलना। उर्ध्वदिशा सन्मुख : ॐ नमो ब्रह्मणे सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय...पूर्ववत् मंत्र बोलना। १०. अधोदिशा सन्मुख : ॐ नमो नागाय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय...पूर्ववत् मंत्र बोलना। पुरानी ध्वजा को उतारकर दंड एवं कलश को अभिषेक करना, प्रक्षाल पूजा करना, अंगलूछना करना, | केसर का छांटना करना, फूल चढ़ाना, धूप-दीपक करना, ध्वजादंड के मूल में स्वस्तिक बनाना, पुष्प-नैवेद्य, रु:/पैसा रखना बाद ध्वजादंड के पर्व पर मिंढल-मरढा सिंगी बांधना । दर्भ घास और नागर वेल के पांच पत्ते साथ में बांधना। ॐ पुण्याहं-२ प्रियंतां-२ का उच्चारण करना, ९ नवकार मंत्र गिनना । वार्षिक ध्वजारोहण For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १३४ ॥ ध्वजा चढ़ाना केसर का छांटना करना बाद में कलश एवं दण्ड को पुष्प माला पहनाना । अबिल, गुलाल, कुमकुम दशे दिशाओं में उडाना । नीचे आकर बड़ी शान्ति बोलनी । पूर्व दिशा सन्मुख खड़े होकर हाथ जोड़कर नीचे लिखा श्लोक बोलना - जिनेन्द्र भक्त्या जिन भक्तिभाजं, येषां च पूजा बलिपुष्पधूपैः । ग्रहागता ये प्रतिकुलतां च, ते सानुकूला वरदा भवंतु ॥१॥ आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनं । पूजाविधिं न जानामि, प्रसीद परमेश्वर ॥२॥ आज्ञाहिनं क्रियाहिनं, मंत्रहिनं च यत्कृतम् । तत्सर्वं कृपया देवाः, क्षमन्तु परमेश्वराः ॥३॥ खमासमण देकर अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं कहना । बाद में मंदिर जी में आकर शेष पूजा पढ़ाना। आरती, मंगलदीपक एवं शांति कलश करके चैत्यवंदन करना, बाद में खमासमण देकर अविधि आशातना मिच्छामि दुक्कडं कहना । वार्षिक ध्वजारोहण ॥१३४॥ www.janary.org Join Education in For Personal & Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधिः विविध पूजन संग्रह ॥ १३५ ॥ ॥ ॥ ॥ (१) मंगल _ नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणां, नमो लोए सव्व साहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवई मंगलम् ॥ (यह मंत्र त्रण दफे बोलना) नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणां, नमो लोए सव्व साहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलम् ॥ ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं, ॐ ह्रीं नमो सिद्धाणं, ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं नमो उवज्झायाणां, ॐ ह्रीं नमो लोए सव्व साहूणं, एसो पंच नमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलम् ॥ श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१३५ ॥ For Personal Price Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १३६ ॥ (२) बाद में मुख्य साधक से दीपक प्रगटाना । (३) मंत्र शोधन : पूजन करनेवालों को स्नान करके स्वच्छ लाल वस्त्र पहनकर बैठना चाहिए । फिर भी मंत्र की दृष्टि से शरीर और मन की विशेष शुद्धि करना जरुरी है । निम्न मंत्र २७ बार बोलना :__ "ॐ अरजे विरजे अशुद्धविशोधिनी मां शोधय शोधय स्वाहा ।" ___ यह मंत्र बोलते समय चिन्तन करना कि, मेरे शरीर और मन की विशुद्धि हो रही है। (४) अमृताभिषेक : निम्न मंत्र ३ बार बोलना "ॐ अमृते अमृतोद्भवे, अमृतवर्षिणी अमृतं स्रावय २ स्वाहा ।" इस मंत्र को बोलते समय यह चिंतन करना चाहिए, कि मेरे मस्तक पर अमृत की वर्षा हो रही है और मैं मंत्र स्नान कर रहा हूँ। इस मंत्र को बोलते समय थोड़ी-थोड़ी देर बाद दोनों हाथो से अमृत वर्षा की मुद्रा करते रहना । श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१३६ ॥ For Personal Price Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। १३७ ।। ( ५ ) कल्मष दहन : कल्मष याने पाप । इसका दहन करने के लिये जो क्रिया की जाती है । वह कल्मष दहन । निम्न मंत्र बोलकर दोनों भुजाओं के स्पर्श करना चाहिए । यह क्रिया तीन बार करना । "ॐ विद्युत्स्फुलिंगे महाविद्ये सर्व कल्मर्ष दह दह स्वाहा ।" (६) हृदय शुद्धि : डाबे (बाये) हाथ से हृदय को स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र तीन बार बोलना :"ॐ विमलाय विमलचित्ताय क्ष्वाँ क्ष्वीं स्वाहा ।" (७) पंच बीज की धारणा : डाबे (बाये) हाथ से स्पर्श करते हुए नीचे लिखे पंच बीज की धारणा करना :"हृदये हाँ कंठे ह्रीँ तालव्ये हूँ ललाटे हूँ शिखायां हूँ: । " For Personal & Private Use Only श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥ १३७ ॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १३८ ॥ (८) दिग् बंधन : जिमने (दाहिने) हाथ में पानी लेकर नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए प्रत्येक दिशा में पानी छांटने से दिग् बन्धन की क्रिया होती है। | पूर्व दिशा-क्षा, दक्षिण दिशा-क्षिं, पश्चिम दिशा-झू, उत्तर दिशा-क्षौं, उर्ध्व दिशा-क्षः । (९) अंगुली न्यास : नीचे लिखे बिजाक्षर तीन-तीन बार बोलकर डाबे हाथ (बाया हाथ ) की अनामिका अंगुली से जिमने हाथ (दाहिना हाथ) की अंगुलियों पर स्थापना करनी । प्रथम बीजाक्षर कनिष्ठिका अंगुली 4 पर फिर क्रमवार अंगुठे तक यह क्रिया करना । “हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हुः" इस न्यास के द्वारा अंगुलियाँ दैविक शक्ति से विभूषित हो रही है। - ऐसा समझना चाहिए। (१०) अंगन्यास : निम्न अनुसार अंगन्यास करना : श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१३८॥ JainEducation intemational For Personal & Price Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १३९ ॥ १) शिखा पर हाथ रखकर :- "ॐ नमो अरिहंताणं ड्रॉ शीर्षं रक्ष रक्ष स्वाहा: २) मुँह पर हाथ रखकर :- “ॐ नमो सिद्धाणं ह्रीं वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा: " ३) हृदय पर हाथ रखकर :- “ॐ नमो आयरियाणं हूँ हृदयं रक्ष रक्ष स्वाहा: " ४) पर हाथ रखकर :- “ॐ नमो उवज्झायाणं ह्रौं नाभीं रक्ष रक्ष स्वाहा: ' 77 ५) दोनों साथल पर हाथ रखकर :- “ॐ नमो लोए सव्व साहूणं हूः पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा: " ( ११ ) रक्षा बंधन :- मंत्र ॐ नमोऽर्हते रक्ष रक्ष हूँ फुट् स्वाहा । - फिर पूजन 'में बैठने वालों के हाथों में रक्षा पोटली बांधना (प्रथम पूजा करने वाले के हाथ में फिर उत्तर साधक के हाथ में बांधना ) । (१२) दिक्कुमारिकाओं को तिलक : लाल चंदन घीसकर एक कटोरी में लेना । फिर जीमने हाथ की तर्जनी अंगुली से निम्न मंत्र बोलते हुए दिक्कुमारीकाओं को तिलक करना । "ॐ ह्रीं नमः बोलते रहना ।” पहले - पूर्व, दक्षिण, उत्तर दिशा, फिर ईशान, अग्नि, नैऋत्य, वायव्य, फिर अधो (उपर ) फिर सबके बाद उर्ध्व ( नीचे ) । For Personal & Private Use Only श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ।। १३९ ॥ Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १४० ॥ (१३) तिलक विधि : इसके बाद भी पार्श्वनाथ भगवान और पद्मावती माताजी को दर्पण बताकर उसमें दर्शन करना । फिर “ॐ ह्रीं नमः" बोलकर स्वयं के ललाट पर लाल चंदन का तिलक करना । और बाद में उत्तर साधक के तिलक करना । पश्चात् पूजन में पधारे हुए भविकों को तिलक करना । (१४) श्री पार्श्वनाथ पूजन : तिलक विधि करने के बाद “ॐ ह्रीँ अर्हं श्री पार्श्वनाथाय नमः" यह मंत्र बोलकर भगवान पार्श्वनाथ का तीन बार वासक्षेप से पूजन करना । यही मंत्र बोलते हुए पाँच जाति के उत्तम पुष्प चढ़ाना । और फूलों का बढ़िया हार पहिनाना और साथ ही श्री पद्मावती माताजी को भी हार पहिनाना । (१५) साथीआ : फिर अग्रभाग के अधिकार से शुद्ध अच्छे-चावलों का नन्दावर्त्त अथवा स्वस्तिक करना । उस पर रूपा नाणां या सोना या फल नैवेद्य चढ़ाना । For Personal & Private Use Only श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥ १४० ॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। १४१ ॥ (१६) श्री पार्श्वनाथ स्तवना : . पश्चात् श्री पार्श्वनाथ भगवान का स्तोत्र या स्तवन बोलकर तीन बार उवसग्गहरं स्तोत्र का पाठ बोलना । उपसर्गहरस्मरणम् : उवस्सग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघणमुक्कं । विसहर विसनिन्नासं, मंगल कल्लाण आवासं ॥१॥ नानास, मंगल कला विसहर फुल्लिंग मंतं, कंठे धारेई जो सया मणुओ। तस्सग्गहरोगमारि, दुट्ठ जरा, जंति उवसामं ॥२॥ चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होई । नरतिरिएसु वि जीवा, पावंति न दुक्खदोगच्चं ॥३॥ तुह सम्मते लद्धे, चिन्तामणिकप्पपाय-वब्भहिए । पावंति अविग्घेणं जीवा, अयरामरं ठाणं ॥४॥ इह संथुओ महायस, भतिब्भरनिब्भरेण हियएण । ता देव दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास जिणचंद ॥५॥ श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१४१ ॥ in Education n ational For Personal & Private Use Only www.janebry.org Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १४२ ॥ (१७) यंत्र संस्कार : अगर पूजन में यंत्र की स्थापना की हो तो उसका संस्कार निम्न अनुसार करना :प्रथम :- दूध से पक्षाल करना । दूसरा :- पानी से पक्षाल करना । तीसरा :- अंगलूछन से साफ करना । चोथा :- थाली में रखकर पूजा के द्रव्यों से पूजन करना (पूजना) (१८) श्री पद्मावती पूजन :प्रथम नीचे लिखा मंत्र बोलकर (तीन बार ) आह्वान करना : "ॐ ह्रीं नमोस्तु भगवती पद्मावती एहि एहि संवोषट्" फिर निम्न मंत्र बोलकर (तीन बार) उनकी स्थापना करना :"ॐ ह्रीं नमोस्तु भगवती ! पद्मावती ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः" फिर निम्न मंत्र बोलकर (तीन बार) उनका सन्निधिकरण करना :"ॐ ह्रीं नमोस्तु भगवती पद्मावती मम सन्निहिता भव भव वषट्" फिर निम्न मंत्र बोलकर (तीन बार) पूजन प्रारंभ करना :"ॐ ह्रीं नमोस्तु भगवती पद्मावती इमां पूजां गृहाण गृहाण स्वाहा" . श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१४२॥ Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १४३ ॥ (१९) अष्ट प्रकारी पूजन : इस पूजन में प्रथम अष्ट प्रकारी पूजा, फिर वस्त्र आभूषण पूजन, भावपूजन के अधिकार से ध्यान, स्तोत्र, श्रवण आदि क्रियाए करनी चाहिए । इसमें अष्ट प्रकारी पूजन का क्रम इस प्रकार है :- (१) जलपूजा । (२) गंधपजा । (३) अक्षतपूजा । (४) पुष्पपूजा । (५) नैवेद्यपूजा । (६) दीपकपूजा । (७) धपपुजा । (८) फलपूजा । इन आठों ही पूजन में पूजन करने वालों को पूजा का द्रव्य (सामान) लेकर बैठना चाहिए । पूजा का मुख्य श्लोक सनना चाहिए । बाद में पूजा का द्रव्य (सामान) समर्पित (चढ़ाना) करना चाहिए । बाद में क्रिया कारक को १०८ आहूति देना चाहिए । (१) जलपूजा :ॐ ह्रीं श्रीं मंत्ररूपे विबध-जन-नुते देव देवेन्द्र वंद्ये । चञ्चच्चन्द्रावदाते, क्षपित कलिमले हारनिहार गौरे ॥ भीमे भीमाट्ट हासे, भवभय हरणे भैरवे भीम रूपे । हाँ ही हुँकार नादे, विशद जलभरैस्त्वां यजे देवी पद्मे ॥ श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१४३ ॥ Jain Education in For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १४४ ॥ "ॐ ह्रीं श्री मंत्र वाली, देवताओं से वंदित, देवों तथा देवेन्द्रों द्वारा वंदनीय, चमकते चंद्र की भांति सफेद कलिकाल के मल पाप को सदा सर्वदा दूर करने वाली, मुक्ताहार की तरह गौर वर्णवाली, विशाल और भव्य आकृति वाली, भयंकर अट्टहास करनेवाली, संसार के उग्र पापों को मिटानेवाली, भीषण रूप तथा हाँ ही हूँ ऐसे बीज मंत्रो का उच्चारण करनेवाली - हे माता पद्मावती ! मैं स्वयं आज निर्मल जल से तेरी पूजा करता हूँ।" फिर निम्न मंत्र बोलते हुए जल पंचामृत की १०८ आहूति देना : "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै जलं समर्पयामि स्वाहाः" (२) गंध-पूजा:क्षा, क्षी, झू, क्षः स्वरूपे हन विषमविषं स्थावरं जंगमं वा । संसारे संसृतानां तव चरण युगे सर्वकालान्तराले ॥ अव्यक्तव्यक्तरूपे, प्रणत नरवरे, ब्रह्मरूपे, स्वरूपे । पंक्तिर्योगीन्द्रगम्ये, सुरभि शुभ क्रमे, त्वां यजे देवि पद्ये ॥ श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१४४॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १४५ ॥ क्षा, क्षी, खू, क्षः बीज मंत्रों के स्वरूप वाली है माता ! इस संसार में तेरे चरण कमलों में, जीवों के शरीर में व्याप्त स्थावर और जंगम ऐसे विकार वाले विष को सदा सर्वदा नष्ट करने वाली, अप्रगट-प्रगट रूप वाली, श्रेष्ठ मनुष्यों द्वारा वंदित व पूजित ब्रह्म रूपिणी स्वरूप में सदा रहने वाली, योगेन्द्रों द्वारा प्राप्तव्य पद में भक्ति स्वरूप एवं सुरभित और सुन्दर चरणों वाली है माता पद्मावती ! आज मैं तेरी गंध सुगंधित द्रव्य से पूजा कर रहा हूँ।" फिर निम्न मंत्र बोलते हुए १०८ आहूति गंध की देना । "ॐ ह्रीं श्री पद्मावत्यै गंधं समर्पयामि स्वाहा:" (३) अक्षत-पूजा :"दैत्यै दैत्यारि नाथै मित-पद-युगे भक्तिपूर्वं त्रिसंध्यं । यक्षैः सिद्धेश्च नरहमहमिकया देह कान्त्याश्च कान्त्यै । आं इं उं तं अ आ ई मृड मृडने सस्वरे निःस्वरै । तैरेवं प्राहीयमाने क्षत धवल-भरैस्त्वां यजे देवि पद्ये ॥" श्री पार्थ पद्मावती महापूजन विधि ॥१४५।। For Personal Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। १४६ ।। "दैत्यों, देवेन्द्रों, यक्षों, एवं सिद्धो" के द्वारा अह अहमिका पूर्वक तेरे देह जैसी कांति को प्राप्त करने के लिये तीन संध्या में भक्ति पूर्वक नमन किया हो । ऐसी पवित्र चरणों वाली आं इं उं तं अ आ ई ऐसे स्वर युक्त स्वर सहित बीस अक्षरों से युक्त पापसमूह को नष्ट करने वाली उपरोक्त बीजाक्षरो के जाप के प्रभाव से समृद्ध होने वाली है देवी ! पद्मावती हमारे पापों का नाश कर । मैं श्वेत स्वच्छ अक्षत (चावल) से तेरी पूजा कर रहा हूँ । फिर निम्न मंत्र बोल कर १०८ आहूति अक्षत की देना । "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै अक्षतं समर्पयामि स्वाहा " (४) पुष्प-पूजा " हा पक्षी बीज गर्भे, सुरवर रमणीऽचर्चिते नेक रूपे । कोपं वं झं विधेयं, धरित वर करे, योगिनां योग-मार्गे ॥ हं हंसः स्वाङ्गजैश्च, प्रतिदिन नमिते, प्रस्तुताऽपाप-पट्टे । दैत्येद्वैर्थ्यायमाने ! विमल-सलिलजैस्त्वां यजे देवि पद्मे ॥ " For Personal & Private Use Only श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ।। १४६ ।। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १४७ ॥ . हा पक्षी ऐसे बीजाक्षरों को गर्भ में रखनेवाली उत्तम देव रमणीयों के द्वारा पूजित, अनेक रूप वाली को पं वं झं बीजाक्षरों के द्वारा आराध्य, योग मार्ग में विचरण करने वाली योगियों के लिये वरद मुद्रा को धारण करनेवाली, हं हंस ऐसे स्वयं के अंगो द्वारा उत्पन्न बीज मंत्रों से सदा सर्वदा वंदनीय पवित्र पाट पर बिराजने वाली तथा दैत्येन्द्रों के द्वारा ध्यायित है, ऐसी है पद्मावती! उत्तम पुष्पो द्वारा आज मैं तेरी पूजा कर रहा हूँ।" फिर निम्न मंत्र बोलते हुए १०८ पुष्पों से आहूति देना :"ॐ ह्रीँ श्री पद्मावत्यै पुष्पं समर्पयामि स्वाहाः" इस प्रकार १०८ कमलों (पुष्पों) को अर्पण करने के बाद ६ प्रकार के पुष्पों (फूलों) से भी पूजन करना चाहिए। (५) नैवेद्य-पूजा "पूर्णे, विज्ञान शोभे, शशधर धवले स्वास्यबिम्बं प्रसन्ने । रम्यैःस्वच्छैः स्व-कान्तै" र्द्विज-करनिकरश्चन्द्रिकाकार-भाषे ॥ श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥ १४७॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १४८ ॥ अस्मिन् किं नाम वयँ, दिन-मनु-सततं कल्मषं क्षालयन्ति । श्री श्री छू मंत्र रूपे, विमल-चरु-वरैरस्त्वां यजे देवि पद्मे ॥" "पूर्ण स्वरूप वाली विशिष्ठ ज्ञान से शोभायमान, चन्द्र के समान श्वेत स्वयं के मुख बिम्ब से प्रसन्न मुद्रावाली स्वच्छ एवं मनोहर ऐसे स्वयं के दन्त पंक्तियों द्वारा चंद्रिका जैसी कांतिवाली प्रतिदिन पापों का प्रक्षालन करनेवाली श्रां श्रीं श्रृं मंत्र बीज रूप हे पद्मावती मातेश्वरी ! इस संसार में कौन सी ऐसी वस्तु त्याज्य है । मैं नहीं जानता हूँ। ऐसे निर्मल नैवेद्य सामग्री द्वारा आज मैं तेरी पूजा कर रहा हूँ। फिर निम्न मंत्र बोलते हुए १०८ नैवेद्य चढ़ाना । "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा ।" . इसके पश्चात् खीर, कंसार, बडे, बाकुले, और आठ तरह की मिठाई माताजी के सामने चढ़ाकर बोलना - "माताजी आपकी कृपादृष्टि हमेशा बनी रहे ॥" और बाद में उसका प्रसाद बांटना ॥ श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१४८॥ Jain Education in For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १४९ ॥ (६) दीप-पूजा "भास्वत् पद्मासनस्थे, जिन-पद-निरते, पद्म-हस्ते प्रशस्ते । प्रां प्री पूँ प्रः पवित्रे, हर हर दुरितं, दुष्टजं दुष्ट चेष्टे ॥ वाचालं भाव भक्त्या त्रिदश-युवतभिः प्रत्यहं पूज्य पादे । चन्दे चंद्रांक भाले, मुनि गृहमणिभिस्त्वां यजे देवि पद्मे ॥" "विकसित आसन पर बिराजमान जिनेश्वर देवों की भक्तियुक्त भाव को धरनेवाली, दिव्य स्वरूपवाली प्रा प्री पूँ | प्रः ऐसे मंत्र बीजों से पवित्र, दुष्ट व्यक्तियों के लिये उस जैसी चेष्टा करनेवाली, मेरे दुरित की बार बार दूर कर, निवारण कर भाव भक्ति युक्त वाणी से अलंकृ, एवं देव रमणियों द्वारा नित्य चरण कमलों में पूजा को प्राप्त चन्द्ररूप चंद्रमा के चिन्ह को मुकुट को धारण करनेवाली हे देवि पद्मावती ! मुनियों के गृह में मणीरूप ऐसे मणि दीपकों से आज मैं तेरी पूजा कर रहा हूँ।" फिर निम्न मंत्र बोलते हुए १०८ दीपक प्रज्वलित करना । एक दीपक थाली में रखकर १०८ बार माताजी के सामने उतारना । "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै दीपं दर्शयामि स्वाहा" श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥ १४९॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १५० ॥ (७) धूप-पूजा "नम्री-भूत-क्षितीश,-प्रवर-मणितटोघृष्ट-पादारविन्दे । पद्माक्षे पद्मनेत्रे, गजपति गमने, हंस शुभ्रे विमाने ॥ कीर्ति श्री वृद्धि चक्रे, शुभ जय-विजये, गौरी गांधारी युक्ते । देवादीनां शरण्येऽगरु-सुरभि-भरैस्त्वां यजे देवि पद्मे ॥" "विनम्र उत्तम राजाओं के मुकुट में जड़े हुए मणियों से नमस्कार करने के समय उस पुनः पुनः स्पर्श घर्षण हुए चरणकमलों वाली, हंस के समान सफेद विमान वाली, उत्तम जय ad, सम जय और विजयरूप गौरी एवं गांधारी ऐसे नामों से स्तुति वाली हे पद्मावती ! देवि मैं आज अगरु जि दशांग धूप से आपकी धूप पूजा कर रहा हूँ।" । फिर निम्न मंत्र १०८ बार बोल कर प्रज्वलित अंगारे लेकर दशांग धूप की १०८ आहूति देना । ___ "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै धूपं आघ्रापयामि स्वाहा" श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥ १५०॥ Inn Education International For Personal & Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १५१ ॥ (८) फल-पूजा "विधुज्जवाला प्रदीपे, प्रवर मणि मयी, मक्ष-मालां कराब्जे । रम्ये वृतां धरन्ती, सतत् मनुदिनं, सांकुशे पाश हस्ते ॥ नागेन्द्रैरिन्द्रचंद्र, दिविपमनुजनै, संस्तुते देव-देवि । पद्येऽर्चे त्वां फलौधैर्दिशतु मम सदा निर्मला शर्म सिद्धिम् ॥" "विद्युत ज्वालाओं जैसी तेजस्वी स्वयं सुंदर कर कमलों में सर्वोत्तम मणियों से निर्मित गोल आकार वाली, अक्षमाला को सतत धारण करने वाली, हाथ में अंकुश व पाश को धारण करने वाली, योगेन्द्र इंद्र चंद्र देव एवं मनुष्यों द्वारा स्तुति की हुई है । हे देवि पद्मावती ! आज मैं आपकी फलों से पूजा कर रहा हूं। मुझे सदा निर्मल कल्याण युक्त सिद्धि प्रदान करें ।" फिर निम्न मंत्र बोलकर बादाम (१०८ मंत्र बोलकर) चढ़ाना "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै फलं समर्पयामि स्वाहा ।" श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१५१ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। १५२ ।। वस्त्र - पूजा "श्री मन् महाचीनदूकूलनेत्रे, सत्क्षौमकौशेयक चीन वस्त्रे । शुभांशुके स्येन मणि प्रभांगी, यजामहे पन्नगराजदेवि ॥” "अति उत्तम बहुमूल्य रेशमी वस्त्र जैसे नेत्रवाली, श्वेत वस्त्र धारण करने वाली, निलमणी के समान कांति जैसे अंगो वाली है पन्नगराज देवि पद्मावती ! आज मैं उत्तम रेशमी वस्त्रों के द्वारा आपकी पूजा कर रहा हूँ ।" यह श्लोक बोलकर साड़ी, चांदी का छत्र, तथा सवा पांच रूपये माताजी को समर्पित करना । "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । " ( अगर १६ शृंगार चढ़ाने हो तो उपरोक्त मंत्र नहीं बोल कर आगे लिखे अनुसार बोलना । ) आभूषण-पूजा "कांची सूत्र - विनुत-सार-निचितैः कैयूर - सत्कुण्डलै- । र्मञ्जीरांगदमुद्रिकादि मुकुट प्रालम्बिका वासकैः ॥ For Personal & Private Use Only श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ।। १५२ ।। Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १५३ ॥ 7 अञ्चच्चाटिक पट्टिकादि विलगद् ग्रैवेयकैर्भूषणैः । सिंदुरांगसुकांति वर्ष सुभगैः सम्पूजयामो वयम् ॥" "उत्तम मणि और माणिक्यों से जड़ी हुई कटि मेखला, केयूर, उत्तम कुण्डल पावों के पायजेब बाजुबंध, अंगुठी, मुकुट, चुंदडी और साड़ी, हार तथा अनेक तरह के आभूषण अंग की कांति बढ़ाने वाला सिंदुर आदि वस्तुओं के द्वारा हे माता पद्मावती ! आज मैं आपकी पूजा कर रहा हूँ।" फिर तैयार रखे हुए सोलह शृंगार भाव पूर्वक माताजी को समर्पित करना । निम्न मंत्र बोलना :“ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै आभरणं समर्पयामि स्वाहा" स्वरूप का ध्यान निम्न श्लोक तीन बार बोलना । "पाश-फल-वरद-गजवशकरण-करा पद्म विष्टरा पद्मा । सा मां पातु भगवती, त्रिलोचना रक्त-पुष्पाभा ॥" श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१५३॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १५४ ॥ "जिस पद्मावती माँ के हाथ में पाश है। एक हाथ में फल है । एक हाथ वरद मुद्रा से युक्त है । एक हाथ में गजांकुश को धारण किया है। जो कमलासन पर बिराजमान है । तीन नेत्रों वाली तथा लाल पुष्पों के समान कांति वाली है पद्मावती माता ! मेरी रक्षा कर ।" मनोरथ का संकल्प . फिर साधक के मन में जो भी संकल्प हो उसके अनुसार तीन बार दृढ संकल्प करके और निम्न मंत्र २७ बार बोलना, और प्रत्येक मंत्र पर लाल धागे पर १-१ गांठे लगाना : “ॐ पद्मावती, पद्मनेत्रे, पद्मासने लक्ष्मीदायिनि वांच्छापूर्णि रिद्धि सिद्धिं जयं जयं जयं कुरु कुरु स्वाहा" आशीर्वाद "लक्ष्मी सौभाग्य करा जगत सुखकरा वन्ध्या सुपुत्रार्पिता । नानारोग विनाशिनी अघहरा, पुण्यात्मानां रक्षिका । श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ।। १५४ ॥ For Personal Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देनेवाली, जाबों को धन स्वामिनी, विविध पूजन संग्रह ॥ १५५ ॥ रंकानां धनदायिका सुफलदा वांच्छार्थिचिंतामणी । त्रैलोक्याधिपतिर्भवार्णवतरी पद्मावती पातु वः ॥" "लक्ष्मी जैसा सुख देनेवाली, जगत को सुखी करनेवाली, वंध्याओं को पुत्र देनेवाली, अनेक प्रकार के रोगों को नष्ट करनेवाली, गरीबों को धन देनेवाली, उत्तम फल देनेवाली, इच्छानुसार इच्छित वस्तु देने में चिंतामणी के समान, तीन लोको की स्वामिनी, संसार समुद्र को पार करने के लिये नौका के समान है । माता पद्मावती आपकी रक्षा करे ।" "स्वस्ति-श्रीं ह्री-धृर्ति-मेघा क्षेमं कल्याणमस्तु वः । तावत् पद्मावती पूजा यावच्चंद्रदिवाकरौ ।" फिर थाली में १०८ दीपक की आरती तथा कपूर जलाकर रूपानाणां भेट रखकर श्री पद्मावती माताजी की आरती उतारना । श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१५५ ॥ For Personal Price Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १५६ ॥ - माँ पद्मावती देवी की आरती . देवी पद्मावती आरती तुमारी, मंगलकारी जय जयकारी ॥१॥ पार्श्व प्रभु छे शिर पर ताहरे, भक्ति करंता तुं भक्तोने तारे ॥ देवी० ॥२॥ उज्ज्वल वर्णी मूरति शुं सोहे निरखी हरखी सहुजन मोहे ॥ देवी० ॥३॥ कुर्कुट सर्पना वाहने बेठी, भद्रासनथी तुं शोभे छे रूडी ॥ देवी० ॥४॥ सप्त-फणा शोभे मनोहारी, नयन मनोहर परिकरधारी ॥ देवी० ॥५॥ कमल पाशाकुंश फल रुडु संगे, चारभुजामां कलामय अंगे ॥ देवी० ॥६॥ विविध स्वरूपे भिन्न-भिन्न नामे, जग पूजे सहु सिद्धि कामे ॥ देवी० ॥७॥ शिघ्र फला तुं संकट टाले, विघ्न विदारे वांछित आले ॥ देवी० ॥८॥ धरणेन्द्रदेवना देवी छो न्यारा, पार्श्व भक्तोना दुःख हरनारा ॥ देवी० ॥९॥ खीवान्दी भवने पार्श्वनाथ मंडपे, दर्शन करतां दुःख सहु विसरे ॥ देवी० ॥१०॥ धर्म प्रतापे आशिष देजो, सुयश सिद्धिने मंगल करजो ॥ देवी० ॥११॥ श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१५६ ॥ in Education n ational For Personal & Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १५७ ॥ क्षमा-प्रार्थना निम्न श्लोक बोलकर भूल चूक की क्षमा मांगना :"आह्वानं नैव जानामि, नैव जानामि पूजनम् । विसर्जनं न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी ॥" विसर्जन :निम्न मंत्र बोलकर विसर्जन करना । "ॐ नमोस्तु भगवति पद्मावती स्वस्थानं गच्छ गच्छ जः जः जः ॥ अन्तिम मंगल :____ सर्व-मंगल-मांगल्यं, सर्व कल्याण-कारणं । प्रधानं सर्व-धर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ तीन बार जोर से : श्री भगवान पार्श्वनाथ की जय । श्री पद्मावती माताजी की जय ॥ श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१५७॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह अन्तिम विधि : __ "ॐ ह्रीं नमः" बोलते हुए समर्पित किये हुए द्रव्य उतार लेना । फूल पान आदि वस्तुए नदी में प्रवाहित कर देना । पंचामृत, पक्षाल, जल वृक्ष के मूल में डाल देना । चढ़ाये गये रूपया मंदिर के भण्डार में डाल देना, आरती के रूपये पैसे पूजारी को दे देना । बादाम, मिश्री, फल, मिठाई वगैरह पूजारी ब्राह्मण नौकरों में बांट देना । बडबाकुला आदि गाय को खिला देना । साड़ी-छत्रआभूषण माताजी का स्थान हो वहाँ चढ़ा देना।। यह महापूजन अच्छे जानकार अथवा विधिकारक से पढ़वाना जिससे शुद्धता रहे। . -: सम्पूर्णम् : ॥ १५८ ॥ श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१५८॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १५९ ॥ स्तोत्र-पाठ (बाद में १०८ नाम वाले इस स्तोत्र का पाठ करना ।) श्री पार्श्वः पातु वो नित्यं, जिन परम शंकरः । नाथ परम शक्तिश्च, शरण्य सर्वकमद ॥१॥ सर्व विघ्न हर स्वामी, सर्व सिद्धि प्रदायक । सर्व सत्त्वहितो योगी, श्री करः परमार्थदः ॥२॥ देव देवः स्वयं सिद्धिश्चिदानंदमयः शिवः । परमात्मा पर ब्रह्म, परम परमेश्वरः ॥३॥ जगन्नाथ सुरज्येष्ठो, भूतेश पुरुषोत्तमः । सुरेन्द्रो नित्य धर्मश्च, श्री निवास सुधार्णवः ॥४॥ सर्वज्ञः सर्वदेवेशः, सर्वगः सर्वतो मुखः । सर्वात्मा सर्वदर्शीच, सर्वव्यापी जगद्गुरु ॥५॥ तत्त्वमूर्ति परादित्य, परब्रह्म प्रकाशकः । परमेंदुः पर प्राणः, परमातृतसिद्धिदः ॥६॥ अजः सनातनः शंभु रीश्वरश्च सदाशिवः । विश्वेश्वर प्रमोदात्मा, क्षेत्राधीशः शुभ प्रदः ॥७॥ साकारश्च निराकारः, सकलो निष्कलो व्ययः । निर्ममो निर्विकारश्चः निर्विकल्पोऽनिरामयः ॥८॥ अमरश्चारुजोऽनन्त, एकोनेक शिवात्मकः । अलक्ष्यश्चाप्रमेयश्च, ध्यानलक्ष्यो निरंजनः ॥९॥ ॐकाराकृतिव्यक्तो, व्यक्तरुपस्त्रीमयः । ब्रह्मद्वय प्रकाशात्माः निर्भयः परमाक्षरः ॥१०॥ दिव्यतेजोमयः शान्तः परमामृमयोऽच्युतः । आद्योऽनाद्यः परेशान: परमेष्ठि परः पुमान् ॥११॥ शुद्ध स्फटिक संकाश स्वयंभूः परमाद्युतिः । व्योमकार स्वरुपश्चः लोकालोकावभासकः ॥१२॥ ज्ञानात्मा परमानन्द प्राणारुढो मनःस्थिति । मनः साध्यो मनोध्येयो मनोदृशः परापरः ॥१३॥ सर्वतीर्थ-मयो नित्यः सर्व देवमयः प्रभुः । भगवान् सर्व सत्वेशः शिवः श्री सौख्यदायक ॥१४॥ इति पार्श्वनाथस्य सर्वज्ञस्य जगद्गुरोः । दिव्य मष्टोतरं नाम, शतमत्र प्रकीर्तितम् ॥१५॥ पवित्रं परम ध्येयं परमानन्ददायकम् । भुक्ति मुक्तिप्रदं नित्यं पठतां मंगल प्रदम् ॥१६॥ श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि ॥१५९॥ For Personal Price Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥१६० ॥ नाम पिता का नाम माता का नाम धर्मपत्नी सुपुत्र युवा विधिकारक मूल गांव वर्तमान कर्मस्थली अध्ययन सम्पादकीय परिचय : श्री चम्पकलाल सी. शाह : श्री चिभनलाल : श्रीमती शान्ताबेन : अ.सौ. प्रभावतीबेन : चि. विपुल, विरल, स्व. विजय .: विरलभाई सी. शाह : खीमाणा (बनासकांठा उ. गुजरात) : शिवगंज (राजस्थान जि. सिरोही) :: सार्थ पंचप्रति० प्रकरण, भाष्य, कर्मग्रन्थ, तत्त्वार्थधिगम, संस्कृत, प्राकृत काव्यादि । : ४० साल से महेसाणा, पीण्डवाडा, अभी ३५ वर्ष से शिवगंज में पू. साधु सम्पादकीय परिचय ॥ १६०॥ अध्ययनादि For Personal & Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादन विविध पूजन संग्रह ॥ १६१ ॥ -साध्वी, बालक-बालिकाओं को धार्मिक,संस्कृत, प्राकृतादि अध्ययन, आज तक अनेक मुमुक्षुओं को चरित्र मार्ग पर प्रयाण कराया है। : उत्तराध्ययन सूत्र सार्थ, अठारह अभिषेक, उवसग्गहरं, भक्तामर, शान्ति स्नात्र महापूजन सिद्धचक्र, गौतम स्वामी, पद्मावती, १०८ पार्श्वनाथ, ध्वजारोहण विधि, गुरुपदपूजन, आदि पूजन संग्रह पुस्तकें, स्वाध्याय संग्रह, स्तोत्रादि संग्रह, दो प्रति०-पंच प्रति० सार्थ, स्तवन-स्तुति-सज्झाय संग्रह आदि अनेक पुस्तकों का सम्पादन । : शान्तिस्नात्र, सिद्धचक्र, भक्तामर अनेक महापूजन एवं द्विशताधिक अंजनशलाका प्रतिष्ठादि । : प्रायः पंजाब के १०० से ज्यादा गाँवों एवं नगरों में प्रतिष्ठा, अंजनशलाका महापूजन, २० साल से प्रतिवर्ष पंजाब में दो चार दफे लुधियाना, चण्डीगढ़, जालन्धर, सामाना आदि क्षेत्रों में । तदुपरान्त राजस्थान के प्रायः सभी क्षेत्रों में, मद्रास, बम्बई, दिल्ली, विजयवाडा, अहमदाबाद, महापूजनों जैसे सम्पादकीय परिचय महापूजनों का क्षेत्र ॥१६१ ॥ in Educatio n For Personal & Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १६२ ॥ पूना, समेतशिखर, कलकत्ता व आसाम, हरियाणा, यू.पी., बिहार प्रायः हरेक प्रान्त में। पर्युषणापर्व की आराधना : दिल्ली, बम्बई, वालकेश्वर, होशीयारपुर, लुधीयाना, डोम्बीवली (बम्बई) आग्रा, मण्डया (कर्णाटक) सादडी, घाणेराव आदि ३५ गांवों में व्याख्यानादि आराधना । प्रतिष्ठा अंजनशलाका-महापूजन निम्नोक्त निश्रादाता गुरुदेव : प.पू. आचार्य श्री अरिहन्तसिद्धसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री सुशीलसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री अभयदेवसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. . प.पू. आचार्य श्री हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म. .. प.पू. आचार्य श्री नित्यानन्दसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री पद्मसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री नित्योदयसागरसूरीश्वरजी म.. प.पू. आचार्य श्री चन्दाननसागरसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री धर्मधुरन्धरसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री जयानन्दसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री जिनोत्तमसूरीश्वरजी म. - प.पू. जयरत्नविजयजी म.सा. सम्पादकीय परिचय ॥१६२॥ For Personal & Pre Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १६३ ॥ प.पू. आचार्य श्री विश्वकल्याणविजयजी म. प.पू. आचार्य श्री प्रबोधचन्द्रसूरीश्वरजी म. प. पू. उपाध्याय श्री मणिप्रभसागरजी म. प.पू. आचार्य श्री गुणरत्नसूरीश्वरजी म. प. पू. प. भद्रानन्दविजयजी म. प.पू. आचार्य श्री जयघोषसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री यशोविजयसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री श्रेयांसप्रभसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री आनन्दघनसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री मुनिचन्द्रसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री कीर्तियशसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री रत्नाकरसूरीश्वरजी म. प.पू. आचार्य श्री हेमप्रभसूरीश्वरजी म. आदि हरेक गच्छ के आचार्य, पन्यासजी एवं पूज्य सा. श्री ललितप्रभाश्रीजी म.सा. आदि साध्वीजी म.सा. की निश्रा में महापूजनों, प्रतिष्ठा, अंजनशलाका आदि शासन प्रभावक कार्यों में प्रायः वर्ष में ३०० दिन व्यतीत होते हैं । धार्मिकता एवं विद्वता से ओत-प्रोत पं. श्री चंपकलाल शाह काल क्रमेण जगतः परिवर्तमाना, चक्रार पंक्तिरिव गच्छति भाग्य पंक्तिः ॥ For Personal & Private Use Only सम्पादकीय परिचय ।। १६३ ।। Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १६४ ॥ यों तो संसार में अनेक जीव उत्पन्न होते हैं और पानी के परपोटे के समान नष्ट हो जाते हैं, किन्तु जीवन उन्हीं का सफल है जो स्व-पर दोनों का अध्यात्म भावों द्वारा जीवन सार्थक कर जाते हैं। उन्हीं परमार्थ व्यक्तियों में हमारे पंडितवर्य श्री चंपकलाल शाह है । जिन्होंने बचपन से अपने पिताश्री चीमनलाल व मातुश्री शान्ताबेन के द्वारा प्राप्त सुसंस्कारों व धार्मिक भावनाओं से अपने जीवन की साधना के साथ-साथ समाज, धर्म एवं सुसंस्कारों की जड़ हर एक बालक-बालिका व समाज के हर व्यक्ति के हृदय में जमा दी। साधु-साध्वीजी एवं चतुर्विध संघ के मानसपट पर जैन धर्म-वीतराग वाणी की अटूट श्रद्धा उत्पन्न कर दी । उन्हीं महान्, उपकारी एवं धर्मिक ज्ञानदाता का संक्षिप्त परिचय दे रहे है। जिन्होंने हमें अज्ञान-अंधकार से निकाल कर धार्मिक ज्ञान की तरफ अग्रसर किया, उन्हीं गुरु चरणों में कोटि-कोटि वन्दन । जन्म : आप श्री का एक छोटे से गाँव खीमाणा (भीलडीयाजी तीर्थ के समीप) में हुआ था । आप के पिताश्री का नाम चीमनलाल एवं माताजी का नाम शान्ताबहन है । आप जन्म से ही मनमोहक थे, लाड-प्यार से पलने लगे। "होनहार बिरबान के, होत चिकने पात" . सम्पादकीय परिचय ॥१६४॥ For Personal & Private Use Only Jano menal Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १६५ ॥ पूर्वभव के ज्ञान व धार्मिकता के संस्कारों द्वारा कुशाग्र बुद्धि, धार्मिक संस्कार जन्म से ही जागृत हो जाते हैं। आप का पूरा परिवार धार्मिकता एवं आध्यात्मिकता से सुसंस्कारी था। उनके प्रभाव ने आप पर बहुत असर किया । क्योंकि जिन व्यक्तियों के घर का वातावरण एवं रहन-सहन, आत्मिय भाव, खान पान का संतान पर असर गिरता है। बचपन से ही आप की व्यवहारिक एवं धार्मिक अभ्यास में भी ओर अधिक रुचि बढ़ी । बचपन में ही माता-पिताजी के साथ प्रभुदर्शन, पूजन एवं प्रतिक्रमण, गुरु वाणी श्रवण का विशेष प्रेम जगा । व्यवहारिक - धार्मिक एवं संस्कृत-प्राकृत अभ्यास का अपूर्व प्रेम : यों तो पूर्वभवों के संस्कारों का समय आने पर वे संस्कार शीघ्र ही जागृत हो जाते है । मात्र निमित्त चाहिए। द्रव्य-काल-क्षेत्र और भाव ये समय की परिपक्वता से उदीयमान हो जाते हैं । वाणी की विलासता, व्यक्तित्वपने की निखालसा, एवं बुद्धि की प्रखरता जीवन को अमर बना देती है। आप श्री जी व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करते ही धार्मिकता की ओर बढ़ गये और महेसाणा पाठशाला में जैन प्रकरण ग्रंथ, जीवविचार, नवतत्त्व, संघ्रयणी कर्मग्रंथ, भाष्य एवं तत्त्वार्थाधिगम संस्कृत-प्राकृत आदि का अध्ययन किया । डाचू ते साचूं . सभी विषय कंठस्थ चाहिए, मात्र पुस्तकों में पढ़ने से पंडित नहीं होता, गुरुगम द्वारा समझ पूर्वक कंठस्थ चाहिए । आप श्री ने गुरुगम द्वारा संस्कृत, प्राकृत का भी अध्ययन किया । सम्पादकीय परिचय ॥१६५ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १६६ ॥ आप की सेवाएं: आप श्री कई वर्षों से पीडवाडा शिवगंज में धार्मिक पाठशाला में धार्मिक अभ्यास करा रहे हैं । आप की पावन वाणी से एवं वीतराग के मार्ग का सही अध्यापन से कई बहनों के हृदय में वैराग्य भाव उत्पन्न कर दिये । उन्होंने नश्वर संसारिकता का त्याग कर चारित्र अंगीकार किया । शिवगंज एवं आस-पास गांवों में साधु-साध्वीओं जी के चातुर्मास एवं शेष काल में व्याकरणादि ग्रंथ एवं संस्कृत, प्राकृत का अभ्यास कराते रहते हैं । शुद्ध व स्पष्ट उच्चारण आप की विशेषता है। पूज्य आचार्य भगवतों एवं मुनिवरों का सदा आप को आशीर्वाद रहा । प्रत्येक विषय का अनुभव : आप ही एक ऐसे व्यक्ति है जो मात्र पढ़ना-पढ़ाना ही नहीं किन्तु प्रत्येक कार्य में आप का सुन्दर अनुभवित | ज्ञान है। पढ़ने-पढ़ाने के अतिरिक्त आपने बड़ी-बड़ी अंजनशलाकायें एवं प्रतिष्ठायें, पूजन आदि विधि विधान कराने में भी सक्षम है। "मन्यते-जायते आत्मा देशो अनेन इति मंत्र" अर्थात् जिसके द्वारा आत्मा का आदेश निजानुभव जाना जाये वह मंत्र । विधि विधानों में मंत्रों का सम्पादकीय परिचय ॥१६६॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ।। १६७ ।। उच्चारण सही शुद्ध होना चाहिए। मंत्र शक्ति में देवताधिष्ठित रहते हैं। इस की तरफ आप का विशेष लक्ष्य रहा है । आप के हाथों कई बड़े-बड़े कार्यक्रम हुए हैं। कई पुस्तकें प्रकाशित की है । स्वयं तप जप, सामायिक प्रतिक्रमण, पूजा एवं स्वाध्याय करने में भी अपूर्व भाव रखते हैं। पर्यूषण एवं धार्मिक पर्वो पर व्याख्यान वांचने जाते हैं। जहां साधु-साध्वी जी महाराज साहिबों का चातुर्मास नहीं होता है, वहां पर व्याख्यान वाणी, प्रतिक्रमण एवं त्याग-तपस्या कराने में अपना समय देते हैं। सही भावना वही जो दूसरों के हृदय में स्थान कर जाए । स्फूर्तिमय दिनचर्या : सुबह से शाम तक आप अपना समय प्रत्येक कार्य के लिए निर्धारित कर लेते हैं । पूजा, अध्यापन, स्वाध्याय एवं विधि विधान तथा व्यवहारिक कार्य । सर्व धर्म समन्वयवाद में आप की अधिक रूचि है। चाहें किसी भी सम्प्रदाय का हो जिज्ञासु को अच्छी तरह प्रत्युत्यर द्वारा उसे संतोष उत्पन्न करते हैं। सरल भाव, सादगी जीवन एवं शान्त वातावरण जीवन का लक्ष्य बना लिया है । धर्मकार्य : अपने गाँव में उपाश्रय में व्याख्यान हॉल, माताजी की स्मृति में स्मशानगृह, पालीताना में मूर्त्ति भराना, For Personal & Private Use Only - सम्पादकीय परिचय ।। १६७ ।। Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विविध पूजन संग्रह ॥ १६८॥ देव-गुरु-धर्म, साधर्मिक भक्ति, जीवदया और ज्ञानादि तीर्थयात्रा आदि कार्य में यशाशक्य दानादि, पू. साधु| साध्वीजी म.सा. की भक्ति एवं समेतशिखरादि अनेक तीर्थों की यात्रा । विधिकारक : अंजनशलाकाएं एवं प्रतिष्ठायें-पूजन आदि देवाधिष्ठित विधान है। इन अनुष्ठानों में मंत्र उच्चारण एवं सामग्री चढ़ाने में पूर्ण उपयोग एवं ध्यान रखना चाहिए, जिससे वह विधान फलदायक होता है । इस तरह आप का पूर्ण लक्ष्य रहता है । आपको भटिण्डा में प.पू. जयानन्दविजयजी म.सा. (अभी आचार्य) की निश्रा में जैन संघ भटिण्डा ने "विधिकार शिरोमणि" पद देकर सन्मान किया । हमारे जैन समाज में इस तरह धार्मिकता की आभा फैलाते रहें । इसी भावना से हम आप के विद्यार्थी | सदा शासन देवसे प्रार्थना करते हैं। आपने यह सम्पादन गोडवाड दिपिका सा. म. के आशीर्वाद से किया है। आपके हम आभारी है। पण्डितजी की अन्तिम इच्छा यही है कि जब तक महाविदेह में श्री सीमन्धर स्वामि भगवान का शरण प्राप्त न हो तब तक भवोभव एसा ही ज्ञानमार्ग और भक्तिमार्ग प्राप्त होता रहे। आप चिरायु हो . श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ धाम विरामी ढाणी मेनेजिंग ट्रस्टी श्रीमान् शा चन्द्रभाणजी सम्पादकीय परिचय ॥१६८॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ हीं अह नमः ॥ सकललब्धिनिधानाय श्रीगौतमस्वामिने नमः ॥ श्रीनीति-हर्ष-महेन्द्र-मंगलप्रभ-अरिहन्तसिद्ध-हेमप्रभसूरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादिविधि ॥ ॥१ ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ अथ वज्रपञ्जरस्तोत्रम् ॥ ॐ परमेष्ठिनमस्कारं, सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षाकरं वज्र-पञ्जराभं स्मराम्यहम् ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो (सव्व)सिद्धाणं,मुखे मुखपटं वरम्॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी। ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ॥३॥ ॐ नमो लोएसव्वसाहूणं,मोचके पादयोःशुभे। एसो पंचनमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले ॥४॥ सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः । मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिराङ्गारखातिका ॥५॥ ॥१ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ २ ॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलं । वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे ॥६॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रवनाशिनी । परमेष्ठिपदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा । तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ॥८॥ (१) अथ कुम्भस्थापनविधिः ॥ शुभ कार्यनी शरुआतमां कुम्भस्थापना करवामां आवे छे. कुम्भस्थापना करवानी होय ते | दिवसे कुम्भचक्र अवश्य जोइए. कुम्भस्थापनानो विधि आ प्रमाण छे - (१) प्रथम सर्व सामग्री एकठी करवी. सामग्री सर्व शुद्ध करवी. (२) कुम्भ स्थापना करनार अने करावनारे देहादि शुद्धि यतनापूर्वक जलादिथी अने मंत्रादिथी करवी. (३) एक माटीनो कुंभ काळा डाघ वगरनो अखंडित लेवो, तेने रंगावीने उपरना भागमां-कांठानी नीचेना भागमां-अष्टमंगल चीतराववा. (तांबानो अथवा चांदी-रूपानो अष्टमंगल चीतरेलो कुंभ पण उपयोगमा लई शकाय. छे) (४) कुंभने धोई-धूपीने कंठे नाडाछडी-ग्रीवासूत्र बांधीए. श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ २ ॥ www.ininelibrary.org For Personal & P Use Only Jain Education international Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३ ॥ (५) “ ॐ ह्रीं श्रीं सर्वोपद्रवान् नाशय नाशय स्वाहा” आ मंत्र केसरथी अधेडा अथवा सरेडानी लेखनथी कुंभ उपर लखवो. (६) कुंभमध्ये केसरनो स्वस्तिक (साथिओ ) करवो ने धूप देवो. पछी कुसुमांजलिए कुंभने वधाववो अने कंकुना छघंटा नाखवा. (७) कुंभनी अंदर चोखा, सोपारी, रूपियो अने पंचरत्ननी पोटली स्थापन करवी. (८) ऊभा थईने नवकार अथवा मोटी शांति भणतां अबोटजळनी अखंडधाराए कुम्भ परिपूर्ण भरवो. (९) कुम्भने कंठे नागरवेलना चार पान सवळा करवा ने उपर श्रीफळ मूकवं. (१०) लीलो अथवा रातो सवागजनो रेशमी ककडो ढांकीने (मींढळ, मरडासींगी, धरो, डाभ अने नाडु) ग्रीवासूत्र बांधवं. (११) पछी केसर अने पुष्पथी पूजा करवी, सोनारूपाना वरख छापवा, फूलनो हार पहेराववो. (१२) जे स्थळे कुम्भ स्थापवो होय त्यां कंकुनो साथियो करी चोखा-सोपारी पूरी उपर व्रीहि (डांगर ) शेर सवानो साथियो करवो. (बिंब जे स्थाने होय तेनी जमणी बाजुमां अथवा जे स्थळे बिंब स्थापवानां होय तेनी जमणी बाजुमां कुम्भ स्थापना करवी ) (१३) कुम्भ कुमारिका अथवा सौभाग्यवती स्त्रीने माथे मूकावी दहेरासर फरती ( शक्य न होय तो त्रिगडा फरती ) त्रण प्रदक्षिणा धूप दीप साथे वाजतेगाजते थाली वगाडतां देवी, (१४) पछी ज्यां साथिओ छे त्यां 'ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा' ए मंत्र सात वार गणीने श्वास स्थिर ( कुंभक) राखीने कुम्भने स्थिर स्थापना करवो. (१५) कुम्भने स्थानके बाजुमां अखंड दीप राखवो. त्रिकाळ धूप करवो. (१६) गुरुमहाराजश्री पासे वासक्षेप कराववो उपरना मंत्रपूर्वक बीजाए पण वासंक्षेपपूजा करवी. (१७) पछी नीचेनुं काव्य बोलवापूर्वक त्रण वार कुसुमांजलि करवी (काव्यम् - शार्दूलविक्रीडित वृत्तम् ) For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि || 3 || Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ ४ ॥ पूर्णं येन सुमेरुशृङ्गसदृशं, चैत्यं सुदेदीप्यते, यः कीर्तिं यजमानधर्मकथन-प्रस्फूर्जितां भाषते । यःस्पर्धा कुरुते जगत्त्रयमहा-दीपेनदोषारिणा,सोऽयं मङ्गलरूपमुख्यगणनः कुम्भश्चिरंनन्दतात् आ काव्य बोलीने कुम्भने वधाववो. (१८) कुम्भ आगळ त्रण टंक सौभाग्यवती स्त्री पासे गहुंली कराववी. मार्जार प्रमुख हिंसक जीवने त्यां आववा देवा नहीं. रजस्वला प्रमुख मलिन स्त्रीनी दृष्टि पडवा देवी नहीं. सुवासण स्त्रीओ पासे उत्तम धवल-मंगल गीत गवराववां. गानारी स्त्रीओने तंबोलादि देवां. श्रावक तथा श्राविकाओए त्यां नरकादि दुःखगर्भित, जिनमुनिना उपसर्गगर्भित, आलोयणना स्तवन, तथा राजीमती प्रमुखना विलापगर्भित गीता गावां नहीं, अनित्य अशरण भावनानां गीत वर्जवा. कुंभ पासे त्रण टंक सात स्मरण (१ नवकार, २ उवसग्गहरं, ३ संतिकरं, ४ तिजयपहुत्त (सवारनां) नमिऊण (बपोर तथा सांजे) ५ अजितशांति, ६ भक्तामर अने ७ बृहत्-(मोटी) शांति धूप दीप सहित गणवां. ॥ इति कुंभस्थापनविधिः ॥ (२) अथ दीपस्थापनविधि ॥ (१) तांबानुं दीपपात्र शेर सवा घी समाय एवं, जीभवालुं धोइधूपी तैयार करवं. तेने | कंकुथी पूजीने कुसुमांजलि अने चोखाथी वधावq. (२) तेमां रूपियो तथा पंचरत्नपोटली श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि PANYAN + For Personal & Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५॥ मूकवी. मीढळ-मरडाशिंगी बांधीने १०८ अथवा २७ तारनी दीवेट मूकीने नीचे प्रमाणे घृतमंत्र भणतां भणतां सौभाग्यवती स्त्री पासे घृत पूरावq. ॥ घृतपूरणमंत्र ॥ ॐ घृतमायुर्वृद्धिकरं भवति परं जैनदृष्टिसम्पर्कात् । तत्संयुक्तः प्रदीपः पातु सदा भावदुःखेभ्यः स्वाहा ॥ आ मंत्र त्रण वार कही घृत पूरावीए । (३) पछी दीप प्रगटाववो, तेनो मंत्र श्री अष्टोत्तरी व ॐ अहँ पञ्चज्ञानमहाज्योतिर्मयाय ध्वान्तघातिने । शान्तिस्नानादि द्योतनाय प्रतिमाया दीपो भूयात् सदाऽहत ॥ विधि आ मंत्र त्रण वार कही दीप प्रगटाववो. (४) पछी कुम्भनी जमणी बाजुए ज्यां दीपने स्थापवो छे त्यां कंकुनो साथियो करी तेना उपर पलाळेली माटीनुं स्थान करीए. तेना उपर दीप । स्थापी, नीचे प्रमाणे मंत्रपाठपूर्वक वासक्षेप करी अग्निशुद्धि करीए ॥ ५ ॥ Jain Education international For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥६ ॥ ॐ अग्नयोऽग्निकाया एकेन्द्रिया जीवा निरवद्यार्हत्पूजायां, निर्व्यथाः सन्तु, निष्पापाः सन्तु, सद्गगतयः सन्तु, न मे संघट्टनहिंसाऽर्हदर्चने । आ मंत्र त्रण वार भणी वासक्षेपथी दीप तथा अग्नि शुद्ध करीए. (५) दीप, कुंभ तथा प्रभुनी सन्मुख आवे ते प्रमाणे कुंभनी जमणी बाजुए स्थापन करवो. जीवजंतुनी जयणा जळवाय ए प्रमाणे उपर ढांकण राखq. घृत पूरवानी अने दीवेट बराबर करवानी काळजी राखवी. महोत्सव पूर्ण थाय त्यां सुधी दीपक अखंड रहवो जोइए. इति दीपस्थापनविधिः ॥ (३) अथ जुवारा वाववानो विधि ॥ (१) जुवारीया चार (वांसना जवारीय चार-सात सात खानांवाळा) शरावलां चार(कुंभस्थापना अथवा शांतिस्नात्र होय तो चार) आठ (-उपरनी साथे ध्वजदंड पूजन होय तो आठ) बार-(साथे साथे प्रतिष्ठ-बिम्बप्रवेश आदि होय तो बार) काळा डाघ विनानां लेवा. (२) तेने ' श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि Januationen For Personal Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ ७ ॥ धोळावी ते मध्ये १। रुपीयो सोपारी मूकी माटी अने अडाया छाणांनो भूको पूरी तेमां सात धान्य ववरावीए. (३) सात धान्य आ प्रमाणे समजवां. १ जव. २ जुवार. ३ वरी (डांगर). ४ चणा. ५ अडद. ६ मग अने ७ घउं. चार शरावला कुंभनी फरता चार बाजुए मूकवा. जुवारीयामां अने शरावलामां दररोज जोईए ते प्रमाणे पाणी सींचता रहेQ. ॥ इति जुवारा वाववानो विधिः ॥ (१) श्री शान्तिनाथजी अथवा श्री पार्श्वनाथजीना प्रतिमाजी नवग्रहयुक्त परिकरवाळा पालखीमां पधरावी खोड तथा डाग वगेरे रहित उत्तम स्नात्रीया पासे पालखी उपडावी महोत्सवपूर्वक छत्र, चामर, ध्वज, घोडा, हाथी, नाना प्रकारना वाजिंत्र वगाडतां वरघोडो चडावीए. पाछळ सधवा स्त्रीओ धवल मंगल गीत गाती गाती चाले. एक निर्दोष सधवा स्त्रीना हाथमा लामणदीवो आपीने वरघोडो शरु करवो. (२) मार्गमां चालतां जेटलां देवस्थानक आवे त्यां (गामनी प्रवृत्ति होय तो) एक एक श्रीफळ चडावQ. मार्गमां चालतां कोरा बलिबाकुला फूल मेवा सहित उछाळतां आ गाथा भणतां जवू - श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ७ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८ ॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासीविमाणवासी य । जे केवि दुटुदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम स्वाहा । उपरोक्त गाथा भणतां उद्यानादिकपवित्र स्थाने जq. (३) त्यां कुसुमांजलि, जन्माभिषेक, कळश विधिपूर्वक स्नात्र भणावq, विस्तारपूर्वक मालोद्घाटन करवं. (१) ॐ भूतश्रीभूतधात्रि विश्वाधारे नमः । ए मंत्र सात वार भणी वासपुष्पे भूमि पूजीए (इति भूमिशुद्धि मंत्र)(२) ॐ ह्रीं श्रीं अर्हत्पीठाय नमः आ मंत्र सात वार गणी पीठिकास्थापन | H भूमि शुद्ध करवी । (३) ॐ ह्रीं अस्मिनह्नि पृथ्वीमण्डलाय स्वाहा । आ मंत्र बोली नवकार गणी बाजोठ स्थापन करीए.(४) ॐ स्थिराय शाश्वताय निश्चलाय पीठाय नमः आ मंत्र त्रण वार भणी परनाळीयो बाजोठ स्थापन करवो. (५) ॐ ह्रीं क्षा सर्वोपद्रवाद् रक्ष रक्ष स्वाहा । आ मंत्र सात वार भणी भूमिशुद्धि करवी. (६) ॐ आपोऽप्काया एकेन्द्रिया श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥८॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ९ ॥ जीवा निरवद्यार्हत्पूजायां निर्व्यथाः सन्तु, निष्पापाः सन्तु, सद्गतयः सन्तु, न मेऽस्तु संघट्टनहिंसापापमर्हदर्चने स्वाहा । आ मंत्र वडे जलशुद्धि करीए. (४) पछी वासक्षेप अंजलिमध्ये लईने - ॐ सूर्यसोमाङ्गारकबुधगुरुशुक्रशनैश्चरराहुकेतुप्रमुखाग्रहा इह जिनपादाग्रे समायान्तु, पूजां प्रतीच्छन्तु । आ प्रमाणे बोलीने नव ग्रहनो पाटलो होय तो ते ठेकाणे, न होय तो प्रभुजी बेठा होय तो पट्ट उपर वासक्षेप करीए । पछी अष्टद्रव्यथी पूजा करवी ते आ प्रमाणे : १ आचमनमस्तु, २ गन्धोऽस्तु, ३ पुष्पमस्तु, ४ अक्षतोऽस्तु, ५ फलमस्तु, ६ नैवेद्यमस्तु, ७ धूपोऽस्तु, ८ दीपोऽस्तु । पछी हाथमां फूल लई - ॐ सूर्यसोमाङ्गारक बुधगुरुशुक्रशनैश्चरराहुकेतुप्रमुखा ग्रहाः सुपूजिताः सन्तु, सुग्रहाः सन्तु, पुष्टिदा सन्तु, तुष्टिदा: सन्तु, मङ्गलदा: सन्तु, महोत्सवदाः सन्तु । आ प्रमाणे कही ग्रहो उपर पुष्पो चडाववां । For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ९ ॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ १० ॥ (५) उपर प्रमाणे दशदिक्पालनी पूजा करवी. ॐ इन्द्राग्नियमनैर्ऋतवरुणवायुकुबेरेशाननागब्रह्मलोकपालाः सविनायकाः सक्षेत्रपाला इह जिनपादाग्रे समायान्तु, पूजां प्रतीच्छन्तु । एम कही पूजाना पाटला उपर लोकपालने वासक्षेपथी पूजीए. पछी अष्टप्रकारी पूजा वगेरे नवग्रह प्रमाणे करीए । छेवटे उपरनो मंत्र बोली पुष्पो चढावीए । (६) पछी ज्ञान, दर्शन चारित्र पूजीए. आरती- मंगलदीवो करीए. (७) पछी चैत्यवंदन करीए. नमुत्थुणं कही अरिहंत चेइयाणं० १ नवकारनो काउ० पारी, नमोऽर्हत्० कही स्तुति कहेवी ते आ अर्हस्नोतु स श्रेयः- श्रियं यद्ध्यानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सह सौच्यत ॥ लोगस्स० सव्वलोए० अन्नत्थ नव० १ काउ० करी स्तुति ओमिति मन्ता यच्छा-सनस्य नन्ता सदा यदहीँश्च । आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु । पुक्खरवर० वंदणवत्तिआए० अन्नत्थ० १ नव० काउ० स्तुति - नवतत्त्वयुता त्रिपदी श्रिता रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्या - नन्दास्या जैनगीर्जीयात् For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ १० ॥ Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि सिद्धाणं बुद्धाणं० श्री शान्तिनाथआराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं० वंदणवत्तियाए० अन्नत्थ० काउ० १ लोग० पारी० नमोऽर्हत्० स्तुति श्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः प्रशान्तिकोऽसावशान्तिमुपशान्तिम् । नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः सन्तु सन्ति जने ॥४॥ श्रीद्वादशाङ्गी आराधनार्थं करेमि काउ० वंदणवत्तियाए० अन्न० १ नव० काउ० नमोऽर्हत्० स्तुतिसकलार्थसिद्धिसाधन-बीजोपाङ्गासदास्फुरदुपाङ्गा। भवतादनुपहतमहा, तमोऽपहाद्वादशाङ्गी वः श्रीशान्तिदेवयाए करेमि काउ० अन्न० १ नव० नमोऽर्हत्, स्तुतिश्रीचतुर्विधसंघस्य,शासनोन्नतिकारणी।शिवशान्तिकरी भूया-च्छीमती शान्तिदेवता॥ श्रीशासनदेवयाए करेमि काउ० अन्न० १ नव० नमोऽर्हत्, स्तुति ॥११॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥११॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥१२॥ या पाति शासनं जैनं, सद्यः प्रत्यूहनाशिनी । साऽभिप्रेतसमृद्ध्यर्थं, भूयाच्छासनदेवता। खित्तदेवयाए करेमि काउ० अन्न० १ नव० नमोऽर्हत्, स्तुतियस्याः क्षेत्रंसमाश्रित्य,साधुभिःसाध्यते क्रिया।सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी। __अच्छुतादेवयाए करेमि काउ० अन्न० १ नव० नमोऽर्हत्, स्तुतिचतुर्भुजा तडिद्वर्णा, कमलाक्षी वरानना। भद्रं करोतु संघस्या-च्छुप्ता तुरगवाहना ॥९॥ समस्तवेयावच्चगराणं करेमि काउ० अन्न० १ नव० नमोऽर्हत्, स्तुतिसंघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैया-वृत्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुराः सुरीभिः, सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥१०॥ जलदेवयाए करेमि काउ० अन्न० १ नव० नमोऽर्हत्, स्तुतिमकरासनसमासीनः कुलिशाङ्कुशचक्रपाशपाणिशयः । आशामाशापालो, विकिरतु दुरितानि वरुणो वः ॥११॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥१२॥ Jain Education in For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥१३॥ त्यार पछी हाथ जोडीने आ श्लोक बोलवो. करोतु शान्तिं जलदेवताऽसौ, मम प्रतिष्ठाविधिमाचरिष्यतः । आदास्यते वा मम वारि तत्कृते, प्रसन्नचित्ता प्रदिशत्वनुज्ञाम् ॥१॥ त्यार पछी नमुत्थुणं यावत् जय वीयराय सुधी कहेवू. (८) पछी सर्व कळशोने ग्रीवासूत्र बांधवा. मंत्र वडे पवित्र करेला वासक्षेप, केशर तथा चंदनना छंटा नाखवा. पछी जल समीपे ते कुंभो स्थापन करी प्रतिष्ठाविधिने तथा स्नात्र करनारा श्रावकोए आ प्रमाणे न्यास करवा. "ॐ गुरुतत्त्वाय नमः, ही आत्मतत्त्वाय स्वाहा, ही विद्यातत्त्वाय स्वाहा, हीं पार्श्वतत्त्वाय स्वाहा, ॐ मुक्तितत्त्वाय स्वाहा ॥" आ प्रमाणे बोली त्रण वार आचमन करवं. (९) ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं, हाँ शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो | सिद्धाणं, ही वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं, हुँ हृदयं रक्ष रक्ष श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥१३॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो उवज्झायाणं, हैं नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो लोए । सव्वसाहणं, हौं पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ही नमो-ज्ञान-दर्शन-चारित्रेभ्यः (त्रान्) हुः सर्वाङ्गं रक्ष रक्ष स्वाहा ।आ प्रमाणे अंगन्यास करवा. अर्थात् उपर जे मंत्रो लख्या छे ते बोलतां अनुक्रमे मस्तक, मुख, हृदय, नाभि, पग अने सर्वांगने स्पर्श करवो. (१०) त्यारपछी आ प्रमाणे करन्यास करवा. ॐ ह्रीं अहँ अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ ह्रीं सिद्धास्तर्जनीभ्यां नमः । ॐ ह्रीँ आचार्या मध्यमाभ्यां नमः । ॐ ह्रीं उपाध्याया अनामिकाभ्यां नमः श्री । ॐ ह्रीं सर्वसाधवः कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ हाँ हाँ हुँ हूँ हूँ हूँ ह्रौं ह्रौं हुः अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि असिआउसा सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि धर्मः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । ए प्रमाणे करन्यास करवा । (११) पछी अंकुश मुद्रा वडे (तर्जनी आंगळी उभी राखीने वचली आंगळी अर्धी वांकी वाळीने राखवी ए अंकुशमुद्रा छे) जळ खेंचबुं. ॥१४॥ विधि ॥१४॥ For Personal Private Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि क्षीरोदधिः स्वयम्भूश्च, सरः पद्ममहाद्रहः । सीता सीतोदका कुण्डं,जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ॥ गंगे च यमुने चैव, गोदावरि सरस्वति । कावेरि नर्मदे सिन्धो, जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥ (१२) पछी नीचे प्रमाणे त्रण वार बोली 'कूर्ममुद्रा अने मत्स्यमुद्रा जळने देखाडीने जळ काढीने स्थापन करवू । “ॐ ह्रीं अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणी अमृतं स्रावय 7 स्रावय अमृतं में सें क्लीं क्लीं ब्लू ब्लूँ हाँ हाँ ह्रीं ह्रीं द्रावय द्रावय हाँ जलदेवीदेवता अत्र आगच्छत २ स्वाहा ।" (१३) पछी जलदेवतानी अष्टप्रकारी पूजा करवी, ते आ प्रमाणे अष्टोत्तरी व - ॐ ह्रीं क्ली ब्लू जलदेवताभ्यो नमः, जलं समर्पयामि, एज प्रमाणे चन्दनं, पुष्पं, शान्तिस्नानादि अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, दीपं, धूपं एम पूजा करी बलिविधानपूर्वक पुष्प नाळियेर जळमां नांखी विधि १. कूर्ममुद्रा - एक हाथनी चार आंगळीओ ऊधी राखी बीजा हाथनी चार आंगळो उपर ऊंधी मूकीने बे हाथना अंगूठा छूटा फरकाववा तेने कूर्म कच्छपमुद्रा कहे छे. २. मत्स्यमुद्रा - एक हाथनी त्रण आंगळीओ तर्जनी, मध्यमा अने अनामिका ऊंधी राखीने बीजा हाथनी ए जत्रण आंगळीओ उपर स्थापी बे बाजुए बे हाथनी कनिष्ठिकाओ तथा बे अंगूठा फरकावी देखाडवा तेने मत्स्यमुद्रा कहे छे. श्री ॥ १५ ॥ For Personal Private Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥१६॥ आ प्रमाणे बोलवू. ॐ आ क्रोर जलदेवि पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । (१४) त्यार पछी चार आठ वगेरे संख्यावाळा कुंभोने जळथी भरी जळनी समीपे मोदक, पूपिका (पूरी) वगेरे नैवेद्य मूकी नीचे प्रमाणे बोलवू-ॐ ही ऋषभाजितसंभवाभिनन्दनसुमतिमद्मप्रभसुपार्श्व चन्द्रप्रभसुविधिशीतलश्रेयांसवासुपूज्य-विमलानन्तधर्म-शान्तिकुंथुअरमल्लिमुनिसुव्रतनमिनेमिपार्श्ववर्धमानास्तीर्थकरपरमदेवास्तदधिष्ठायका देवाः शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं जयं मङ्गलं कुरु कुरु पां पां वां वां नमः स्वाहा । (१५) त्यार पछी धवल मंगल गातां वाजिंत्रना नादपूर्वक पवित्र अंग अने पवित्र वस्त्रवाळी स्त्रीओ मस्तक उपर ते कुंभो स्थापन करी साधर्मिकोना सन्मान करवापूर्वक मोटा महोत्सव वडे चैत्यने विषे अथवा घरने विषे आवी, त्रण प्रदक्षिणा आपी ते जळ भरेला कळशोने जिनचैत्यमां गभारा वगेरे पवित्र स्थानने विशे स्थापन करे. तथा प्रतिमाजीने पुंखणां करी गभारामां पधरावे. त्यारपछी धवलगीत गावा, वाजिंत्र वगाडवा, दान देवू, प्रभावना करवी. इत्यादि शासन-शोभा वधारवी. ॥ इति जलजात्राविधिः ॥ (१) नदी, सरोवर के कूवा आदि जळाशय उपर जई स्नान करी, चोक्खां वस्त्र पहेली श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥१६॥ For Personal Price Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ १७ ॥ सोनावाणी, वासचोखा वगेरे मंत्री त्यांथी ते बलिबाकुला सुधीना सर्वमन्त्रथी युक्त थई वीरडा के कूवा आदिक पासे जई चन्दन, धूप, दीप वगेरे अष्टप्रकारी पूजानी सामग्री लई प्रथम नीचे प्रमाणे बोलवुं - “ॐ वं वं वं नमो वरुणाय पाशहस्ताय सकलयादो ऽधीशाय सकलजलपक्षाय सकलनिलयाय सकलसमुद्रनदीसरोवरपल्लवनिर्झरकूपवासीस्वामिनेऽमृतकाय देवाय, अमृतं स्रावय, नमोऽस्तु ते स्वाहा ॥ " ( २ ) पछी अंकुशमुद्रा देखाडीने पूजा करवी. ते आ प्रमाणे – “ ॐ जलं गृहाण गृहाण | चंदनं गृ० २ । पुष्पं गृ० २ । धूपं गृ० २ । दीपं गृ० २ । अक्षतं तांबूलं नैवेद्यं फलं द्रव्यं समर्पयामि स्वाहा । बलिं गृहाण गृहाण स्वाहा ॥ " ( ३ ) पछी नीचे प्रमाणे बोली जळ ग्रहण करवु - “ ॐ आपोऽप्काया एकेन्द्रिया जीवा निरवद्यार्हत्पूजायां निर्व्यथाः सन्तु, सद्गतयः सन्तु, न मेऽस्तु संघट्टनहिंसापापमर्हदर्चने स्वाहा ॥ " ए प्रमाणे बोली जळ ग्रहण करवुं. ए प्रमाणे सर्व कूवा, वीरडा वगेरेमांथी पूजा वगेरे करी जळ ग्रहण करवुं. त्यारपछी जळाशय पासे For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ १७ ॥ Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि एक खाडो गाळी तेमां दीप नैवेद्य मूकवू. पछी नदी वगेरे जळाशयमां नवकारमन्त्र भणवापूर्वक श्रीफळने तरतुं मूकवू. ॥इति जलानयनविधिः ॥ (६) अथ नवग्रहपूजनविधिः । (१) शान्तिस्नात्रादि होय तेनी आगळना शुभ दिवसे नवग्रहादि पूजन करवू. वृद्ध श्रावक नवग्रह चीतरेलो सेवननो पाटलो धोई, वासफूले वासित करी, अगरधूपे करी धूपे. (२) अधेडानी के सरेडानी लेखणवडे सुखड, केशर, कस्तूरी, कपूर तथा हींगळो वडे ग्रहोने आलेखे, आचार्य पासे पहेले दिवसे प्रतिष्ठावे. (३) बीजे दिवसे प्रभाते वृद्ध श्रावक पूर्वोक्त विधिए स्नान करी भगवाननी जमणी बाजु पाटलो स्थापन करे. सर्व पूजोपकरण पासे राखी धूप, दीप समीपे करी, सर्व विधिकारक साथे वज्रपंजर करे. (वज्रपञ्जरस्तोत्र पृष्ठ १. उपर छे.) ॥१८॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥१८॥ १. अथ आदित्यपूजा । लाडूसूर्याय सहस्त्रकिरणाय नमो नमः स्वाहा । ए मंत्र बोली (१) प्रथम ॐ Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ १९ ॥ चोखा वासफूल वडे वधावीए. (२) रक्तचंदन वडे आदित्यमंडलनु तथा मंत्रनु आलेखन करQ. (३) आदित्यनुं आह्वान वगेरे करवू ते आ प्रमाणे - "ॐ नमः आदित्याय सवाहनाय सपरिकाय सायुधाय (अस्मिन् जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे दक्षिणार्धभरते मध्यखंडे अमकदेशे अमुकनगरे अमुकप्रासादे) 'बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ-आगच्छ स्वाहा ।" आ मंत्र वडे आह्वानमुद्राए आह्वान करवं. (४) उपरनो मंत्र बोली 'अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।' एम बोली स्थापनी मुद्राए स्थापन करवं. (५) उपरनो मंत्र बोली 'पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा' एम बोली अंजलि मुद्राए निमन्त्रण करवु. (६) पछी अष्टप्रकारी पूजा करवी, ते आ प्रमाणे - १. ॐ नमः आदित्याय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय चन्दन-गन्धादिकं समर्पयामि स्वाहा । एकला केसर वडे पूजीए (दरेक पूजनमा सायुधाय सुधीनो मंत्र बोलीने समर्पण वाक्य १. आ पूजनमा तथा आगळ उपर आवतां दरेक पूजनमां-अमुक गृहेने स्थाने 'अस्मिन् जम्बूद्वीपे' इत्यादि आखो पाठ बोलवो अने तेमां ज्या ज्या अमुक-शब्द मूक्यो छे त्या त्यां ते ते देश, नगर अने स्थळ वगेरे नाम बोलवं. २. आ स्थाने जे मुख्य प्रसंग होय ते सर्व उमेरवा. शान्तिस्नात्र होय तो शान्तिस्नात्रमहोत्सवे, अष्टोत्तरीशान्तिस्नात्र जिनबिम्बप्रवेश होय तो 'जिनबिम्बप्रवेशमहोत्सवे'-ए प्रमाणे ते ते प्रसंगने अनुरूप बोलवू. श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥१९॥ For Personal Price Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ २० ॥ बोलवु.) २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । कणवीरनां पुष्प चडाववां. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । रातुं कपडुं चडाववुं. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । द्राक्ष मूकवी. ५. धूपमाध्रापयामि स्वाहा । धूप उखेवीए. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप देखाडीए. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । गोळधाणीनो लाडु अथवा चुरमानो लाडु मूकवो. ८. अक्षतं तांबूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, कंकुवाळा चोखा, राती सोपारी तथा पैसो मूकवो । ( ७ ) ॐ ह्रीँ रत्नांकसूर्याय सहस्रकिरणाय नमो नमः स्वाहा । ए मंत्रनी परवाळानी एक नवकारवाळी गणवी. (८) पछी ते ज जपमंत्र बोली फूल, वासचोखा, जळ पसळीमां लई त्रण वार अर्ध्य देवो । (९) पछी बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - पद्मप्रभजिनेन्द्रस्य, नामोच्चारेण भास्कर ! शान्तिं तुष्टिं च पुष्टिं च, रक्षां कुरु जयश्रियम् ॥१॥ ॥ इति आदित्यपूजा १ ॥ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ २० ॥ Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ २१ ॥ २. अथ चन्द्रपूजा (१) ॐ रोहिणीपतये चन्द्राय ॐ ह्रीं द्राँ द्री चन्द्राय नमः स्वाहा । ए मंत्र वडे चोखा, वासफूले वधावीए. (२) एकली सुखड वडे आलेख करवो. (३) ॐ नमश्चन्द्राय सवाहनायसपरिकराय सायुधाय अमुकगृहे-बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा स्वाहा । ए मंत्र भणी आह्वान करवं. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापन करवू. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण करवू, मुद्रादि पूर्ववत् । (६) पूर्ववत् चन्द्रमंत्रपूर्वक अष्टप्रकारी पूजा करवी. १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । बरासयुक्त सुखड. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । श्वेतपुष्प. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । श्वेत कपडुं. ४. फलं | समर्पयामि स्वाहा । शेरडी. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । ममरानो लाडु. ८. अक्षतं तांबूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. ७. ॐ रोहिणी पतये श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ २१ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥२२॥ चन्द्राय ॐ ही द्रा द्री चन्द्राय नमः स्वाहा । ए मंत्रनी स्फटिकनी नवकारवाळी एक गणवी. ८. ए ज मंत्रे फूल वासचोखा अने पाणी पसलीमा राखी त्रण वार अर्ध्य देवो. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी :- चन्द्रप्रभजिनेन्द्रस्य नाम्ना तारागणाधिप! प्रसन्नो भव शान्तिं च, रक्षां कुरु जयश्रियम् ॥१॥ ॥ इति चन्द्रपूजा २ ॥ ३. अथ भौमपूजा । (१) ॐ नमो भूमिपुत्राय भूभृकुटिलनेत्राय वक्रवदनाय द्रः सः मङ्गलाय स्वाहा । ए मंत्र चोखा वासफूले वधावीए. (२) रतांजलि अथवा केसर वडे आलेख करवो. ॐ नमो भोमाय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ए मंत्र वडे आह्वान (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापन. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण मुद्रादि पूर्ववत् । (६) एज मंत्रे अष्टप्रकारी पूजा. अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥२२॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ २३ ॥ १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । एकलुं केसर. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । जासुदनुं फूल. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । रातुं कपडुं. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । राती सोपारी. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । गोळ धाणीनो लाडु. ८. अक्षतं ताम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, राता चोखा, राती सोपारी तथा पैसो. ( ७ ) ॐ नमो भूमिपुत्राय भूभृकुटिलनेत्राय वक्रवदनाय द्रः सः मङ्गलाय स्वाहा । ए मंत्र वडे राता परवाळानी नवकारवाळी एक गणवी । (८) एज मंत्र वडे पसलीमां फूल, वासचोखा, अने पाणी लइ त्रण वार अर्ध्य देवो ॥ बे हाथ जोडी प्रार्थना करवी ते आ - सर्वदा वासुपूज्यस्य, नाम्ना शान्तिं जयश्रियम् । रक्षां कुरु धरासुनो !, अशुभोऽपि शुभो भव ॥१॥ ॥ इति भौमपूजा ३॥ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ २३ ॥ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व अन्तिस्नात्रादि विधि ॥२४॥ ।४ अथ बुधपूजा । (१) ॐ नमो बुधाय श्रीँ श्री श्रः द्रः स्वाहा । ए मंत्र वडे चोखा वासफूले वधीवीए (२) सुखड, केसर, कस्तूरी वडे आलेख करवो. (३) ॐ नमो बुधाय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ए| मंत्रे आह्वान. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापन. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण, मुद्रादि पूर्ववत् । (६) ए ज मंत्रे अष्टप्रकारी पूजा-१. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । वासचूर्ण. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । चंपकनुं पुष्प अथवा मरवो. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । नीलवर्णनुं कपडं (लीली छींट.) ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । नारंगी अथवा सीताफळ. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । मगनी दाळनो लाडु अथवा मगनी दाळ फोतरावाळीनो लाडु. ८. अक्षतं ताम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥२४॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ २५ ॥ (७) ॐ नमो बुधाय श्री श्री श्रः द्रः स्वाहा । ए मंत्रनी केरबानी (नीलमणिनी) एक नवकारवाळी गणवी.(८)ए ज मंत्रे फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमा लई त्रण वार अर्ध्य देवो. (९)बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - विमलानन्तधर्माराः,शान्तिः कुन्थ मिस्तथा । महावीरश्च तन्नाम्ना, शुभो भव सदा बुध ! ॥१॥ ॥ इति बुधपूजा ४ ॥ । ५. अथ गुरुपूजा । ॐ ग्राँ ग्री D बृहस्पतये सुरपूज्याय नमः स्वाहा । ए मंत्र वडे चोखा वासफूले अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि वधावीए. (२) गोरुचंदन वडे आलेख करवो. (३) ॐ नमो बृहस्पतये सवाहनाय । विधि सपरिकराय सायुधाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ए मंत्रे आह्वान. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापन. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण, मुद्रादि पूर्ववत्. (६) पूर्ववत् मंत्रपूर्वक अष्टप्रकारी पूजा करवी. १. चंदनं श्री ॥२५॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥२६॥ समर्पयामि स्वाहा । वासचूर्ण. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । सेवंत्रां तथा सोवन चंबेली. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । पीळु कपडुं. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । मोसंबी. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीपं. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । चणानी दाळनो अथवा मोतियो लाईं. ८. अक्षतं ताम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो.(७) ॐ ग्राग्री यूं बृहस्पतये सुरपूज्याय नमः स्वाहा । ए मंत्रनी सुवर्णनी अथवा केरबानी नवकारवाळी एक गणवी. (८) फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमा लई उपरोक्त मंत्र वडे त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवीऋषभाजितसपार्वा-श्वाभिनन्दनशीतलौ।सुमतिः सम्भवः स्वामी, श्रेयांसश्च जिनोत्तमाः॥२॥ एतत्तीर्थकृतां नाम्ना, पूजया च शुभो भवः । शान्तिं तुष्टिं च पुष्टिंच, कुरु देवगणार्चित ! ॥२॥ ॥ इति गुरुपूजा ५ ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥२६॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥२७॥ ६. अथ शुक्रपूजा । (१) ॐ यः अमृताय अमृतवर्षणाय दैत्यगुरवे नमः स्वाहा । ए मंत्रे चोखा, वासफूल वडे वधावीए. (२) सुखड वडे आलेखन करवं.(३) ॐ नमः शुक्राय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ए मंत्र वडे आह्वान करवू. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापन करवू. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण करवं. (६) उपरोक्त मंत्रपूर्वक अष्टप्रकारी पूजा करीए. १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । सुखड. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । मोगरो अथवा जाइ. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । धोळु कपडुं. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । बीजोळं. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । ममरानो लाडु. ८. अक्षतं, ताम्बूलं, द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । | पान, चोखा, सोपारी, पैसो. (७) ॐ यः अमृताय अमृतवर्षणाय दैत्यगुरवे नमः श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥ २७॥ For Personal & Private Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ २८ ॥ स्वाहा । स्फटिकनी अथवा रूपानी नवकारवाळी एक गणवी. (८) उपरना मंत्रे फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमां लई त्रण वार अर्ध्य देवा. (९) बे हाथ जोडी प्रार्थना करवी (ॐ) पुष्पदन्तजिनेन्द्रस्य, नाम्ना दैत्यगणार्चित!, प्रसन्नो भव शान्तिं च रक्षां कुरु जयश्रियम् । ॥ इति शुक्रपूजा ६ ॥ ७ अथ शनिपूजा । ( १ ) ॐ शनैश्चराय ॐ क्रौं ह्रीं क्रौंडाय नमः स्वाहा । ए मंत्रे चोखा वासफूल वडे वधावीए. (२) चुवो, कस्तूरी मिश्र करी आलेखन करवु. ( ३ ) ॐ नमः शनैश्चराय सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ए मंत्र वडे आह्वान करवुं. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापन करवुं. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण करवुं. (६) उपरोक्त मंत्रे अष्टप्रकारीपूजा करीए. १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । कंकु. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । बोलसरी अथवा For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ २८ ॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥२९॥ दमणो. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । आस्मानी उदारंगजें कपडु. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । खारेक. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । अडदनी दाळनो लाडवो तथा तलनो लाडवो. ८. अक्षतं, ताम्बूलं, द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. (७) ॐ शनैश्चराय ॐ को ही क्रौंडाय नमः स्वाहा । ए मंत्रनी अकलबेरनी एक नवकारवाळी गणवी । (८) उपरना मंत्रे फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमा लई त्रण वार अर्ध्य देवो । (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - श्री सुव्रतजिनेन्द्रस्य, नाम्ना सूर्याङ्गसम्भव!। प्रसन्नो भव शान्तिं च, रक्षां कुरु जयश्रियम्।। ॥ इति शनिपूजा ७ ॥ ८. अथ राहुपूजा ॥ (१) ॐ ह्रौं ठाँ श्री व्रः वः वः पिङ्गलनेत्राय कृष्णरूपाय राहवे नमः श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥२९॥ For Personal Price Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३० ॥ 1 स्वाहा । ए मंत्र चोखा वासफूले वधावीए. (२) चुवो, कस्तूरी मिश्र करी आलेखन करवु. ( ३ ) ॐ नमो राहवे सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ए मंत्रे आह्वान. ( ४ ) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापन करवु. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण करवुं. ( ६ ) उपरोक्त मंत्रे अष्टप्रकारीपूजा करीए. १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । कंकु. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । मचकुंदना पुष्प. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । काळा रंगनुं कपडुं. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । श्रीफळ ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । अडदनी दाळनो लाडवो तथा तलनो लाडवो. ८. अक्षतं, ताम्बूलं, द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. (७) ॐ ह्रीँ ठाँ श्रीं व्रः व्रः व्रः पिङ्गलनेत्राय कृष्णरूपाय राहवे नमः स्वाहा । ए मंत्रनी अकलबेरनी एक नवकारवाळी गणवी. (८) उपरोक्त मंत्रे फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमां लई त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३० ॥ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनेमिनाथतीर्थेश-नाम्ना त्वं सिंहिकासुत!। प्रसन्नो भव शान्तिं च, रक्षां कुरु जयश्रियम् ।। ॥ इति राहुपूजा ८ ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥३१॥ श्री ९. अथ केतुपूजा ॥ . (१) ॐ काँ की कैंटः टः टः छत्ररूपाय राहुतनवे केतवे नमः स्वाहा । ए मंत्रे चोखा वासफूले वधावीए. (२) यक्षकर्दम वडे आलेख करवो. (३) ॐ नमो केतवे सवाहनाय सपरिकराय सायुधाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ए मंत्रे आह्वान. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापना. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण. (६) उपरोक्त मंत्रे अष्टप्रकारीपूजा करीए. १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा ।कंकु. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । पंचवर्णी पुष्प. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । श्याम सौसनी रंगनुं कपडुं. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । दाडम ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । अडदनी दाळनो लाडु. अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३२ ॥ ८. अक्षतं, ताम्बूलं, द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. ( १ ) ॐ काँ काँ कैं टः टः टः छत्ररूपाय राहुतनवे केतवे नमः स्वाहा । ए मंत्रन गोमेदकनी अथवा अकलबेरनी नवकारवाळी एक गणवी. (८) ए ज मंत्रे फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमा लई त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - राहोः सप्तमराशिस्थः, कारणे दृश्यतेऽम्बरे । श्री मल्लिपार्श्वयोर्नाम्ना, केतो ! शान्ति श्रियं कुरु ॥ ॥ इति केतुपूजा ९ ॥ (४) पछी एक थाळमां पंचपट्टा वस्त्र, श्रीफळ १, रूपयो १, सर्व जातना फूलो, फळो अने चोखा तथा पंचरत्ननी पोटली, मींढळ, नाडाछडी लई ऊभा थई नीचे प्रमाणे ग्रहशान्तिस्तोत्र भणवुं. ग्रहशान्तिस्तोत्रम् । जगद्गुरुं नमस्कृत्य श्रुत्वा सद्गुरुभाषितम् । ग्रहशान्तिं प्रवक्ष्यामि, भव्यानां सुखहेतवे ।१ । १. लोकानां (पाठा.) ॥ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३२ ॥ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३३ ॥ जिनेन्द्रैः खेचरा ज्ञेयाः, पूजनीया विधिक्रमात् ! पुष्पैर्विलेपनैर्धूपै-र्नैवेद्यस्तुष्टिहेतवे ।२। पद्मप्रभस्य मार्तण्ड-श्चन्द्रश्चन्द्रप्रभस्य च । वासुपूज्यस्य भूपुत्रो, 'बुधस्याष्टौ जिनेश्वराः ।३। विमलानन्तधर्माराः, शान्ति कुन्थुर्नमिस्तथा । वर्धमानस्तथैतेषां पादपद्मे बुधं न्यसेत् ॥४। ऋषभभाजितसुपार्श्वाश्चाभिनन्दनशीतलौ । सुमतिः सम्भवस्वामी, श्रेयांसश्चैषु गीष्पतिः ।५। सुविधेः कथितः शुक्रः, सुव्रतस्य शनैश्वरः । नेमिनाथे भवेद्राहुः, केतुः श्रीमल्लिपार्श्वयोः ।६ । 'जन्मलग्ने च राशौच, पीडयन्ति यदा ग्रहाः तदा सम्पूजयेद् धीमान्, खेचरैः सहितान् जिनान् ॥७॥ ॐ आदित्यसोममङ्गलबुधगुरुशुक्राः शनैश्चरो राहुः केतुप्रमुखाः खेटा, जिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु ॥८। पुष्पगन्धादिर्भिधूपैर्नैवेद्यैः फलसंयुतैः । वर्णसदृशदानैश्च, वस्त्रैश्च दक्षिणान्वितैः ॥९॥ ए प्रमाणे कही पंचवर्ण की कुसुमांजलि उछाळवी । १. बुधोऽप्यष्टजिनेषु च ॥ २. वर्धमानो जिनेन्द्राणां ॥ ३. श्रेयांसश्च बृहस्पतिः ॥ ४. नेमिनाथो भवद्राहोः ॥ ६. जनान्लग्ने च राशौ च यदा पीडन्ति खेचराः ॥ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३३ ॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि जिनानामग्रतः स्थित्वा, ग्रहाणां 'शान्तिहेतवे । नमस्कारशतं भक्त्या, जपेदष्टोत्तरं शतम्॥१०॥ भद्रबाहुरुवाचैवं, पञ्चमः श्रुतकेवली। विद्याप्रवादात् पूर्वाद्, 'ग्रहशान्तिरुदीरिता ॥११॥ इति ग्रहशान्तिस्तोत्रम् । | पछी नीचेनो श्लोक बोलवो-जिनेन्द्रभक्त्या जिनभक्तिभाजां, येषां च पूजाबलिपुष्पधूपान् । रेग्रहा गता ये प्रतिकुलभावं, ते मेऽनुकूला वरदाश्च सन्तु ॥१॥ आ प्रमाणे बोली श्रीफळ वगेरे पाटला पर मूकवू, ते पाटला उपर पंच पटानुं रेशमी वस्त्र तथा सुतराउ वस्त्र पाथरी, तेने मीढळ सहित नाडाछडी वींटी, केसर छांटी, सोना रूपाना वरख छापी प्रभुनी आगळ अथवा दक्षिण बाजु स्थापनो। ॥ इति नवग्रहपूजन विधिः ॥ ॥३४॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥३४॥ १. तुष्टिहेतवे नमस्कारस्तवं भक्त्या, जपेदष्टोत्तर शतम् ॥१०॥ २. ग्रहशान्तिविधिस्तवम् (विधिं शुभम्)। ३. ग्रहा गता ये प्रतिकूलतां च, ते सानुकूला वरदा भवन्तु ॥१॥ For Personal Private Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥३५ ॥ ७. अथ दशदिक्पालाह्वानविधिः । . (१)धर्मकार्यमां सहायक होवाथी दशदिक्पालनी पूजा पण पोतपोताना वर्णानुसारे विस्तारथी करवी. (२) तेमां पहेले दिवसे पूर्वोक्त विधिए सेवनने पाटले दिक्पालनो आलेख प्रतिष्ठा करावी बीजे दिवसे प्रभुजीनी डाबी बाजु स्थापी पछी छ श्रावक १ पाणी, २ चन्दन, ३ धूप, ४ दीप, ५ पुष्प अने ६ घंट लई चोक मध्ये आवी प्रथम जळ दईने चन्दनना छांटणां नांखे, पछी पुष्पे वधावे, धूप सन्मुख राखे, दीप देखाडे. घंट वगाड़े, ए रीते दश दिक्पालनी पूजा करे. (३) पछी बे श्रावक बे थाळमां कोरा बलि लई ॐ ह्रीं श्वी सर्वोपद्रवाद् बलिं रक्ष रक्ष स्वाहा । ए मंत्रे २१ वार मंत्री नीचेना मंत्रो वडे संक्षेपथी दशदिक्पालने वधावे-१ पूर्व दिशामां-ॐ नमः इन्द्राय स्वाहा । २ अग्निकोणमां-ॐ नमोऽग्नये स्वाहा । ३ दक्षिण दिशामां-ॐ नमो यमाय स्वाहा । ४ नैऋतकोणमां-ॐ नमो नैऋताय स्वाहा ।५ पश्चिम दिशामां-ॐ नमो वरुणाय स्वाहा । ६ वायव्यकोणमां-ॐ नमो वायवे स्वाहा । ७ उत्तर दिशामां-ॐ नमो धनदाय स्वाहा । ८ ईशानकोणमां-ॐ नम ईशानाय स्वाहा । ९ ऊर्ध्व दिशामां-ॐ नमो ब्रह्मणे स्वाहा । १० अधो दिशामां-ॐ नमो नागाय स्वाहा । ॥ इति दशदिकपालापानविधिः ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३६ ॥ ८. अथ पूर्वदिशाधिप इन्द्र पूजा । 1 एक दक्ष श्रावक सर्व पूजोपकरण पासे राखी ज्यां दिक्पालनो पट्टक स्थाप्यो छे, त्यां पवित्र पाटला उपर स्थिर आसन करे. पूजा-पूजनविधि ग्रहपूजनविधि माफक समजवो ॐ ह्रीं आँ हाँ हूँ हाँ यूँ हूँ क्षः वज्राधिपतये इन्द्र संवौषट् ( स्वाहा ) ए मंत्र भणी पसलीमां वासफूल, चोखा लई इन्द्रमंडळने वधावे. (२) गोरोचन्दन वडे मंडळ तथा मंत्र आलेखीए. ( ३ ) ॐ नमः इन्द्राय पूर्वदिगधिष्ठायकाय ऐरावणवाहनाय सहस्त्रनेत्राय वज्रायुधाय सपरिजनाय अमुकगृहे- बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । आह्वानमुद्राए आह्वान करीए । अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापनी मुद्राए स्थापन करीए । (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । अंजलि मुद्राए निमंत्रण करीए । ' ( ६ ) पछी उपरोक्त मंत्रे अष्टप्रकारी पूजा करीए. ते आ प्रमाणे - १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । केसर अथवा वासचूर्ण २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । चंपाना फूल. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । पीळु कपडुं. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । जंबीर. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । ७. नैवेद्यं For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३६ ॥ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥३७॥ समर्पयामि स्वाहा । ८. अक्षतं तम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, सोपारी, चोखा, पैसो. ७. ॐ हीं आ हा हूँ हा श्रू हूँ क्षः वज्राधिपतये इन्द्र संवौषट् (स्वाहा) । ए मंत्र वडे केरबानी नवकारवाळी एक गणवी (वर्तमानमां अंजनशलाकादि विशिष्ट विधान सिवाय शान्तिस्नात्रादि प्रसंगे दिक्पालनी नवकारवाळी गणवानी पद्धति प्रचलित नथी.) (८) ए ज मंत्रे हाथमां फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमा लई त्रण वार अर्ध्य देवा. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी. ऐरावतसमारूढः,शक्रः पूर्वदिशि स्थितः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु बलिपूजां प्रतिच्छतु ।१। ॥ इति इन्द्रपूजा ९ ॥ २. अथ अग्निपूजा । (१) ॐ ही रे रों रुरै रौं रः अग्नि संवौषट् (स्वाहा)। ए मंत्र वडे चोखा, वासफूलथी वधावीए. (२) रक्त चंदन वडे आलेख करवो. (३) ॐ नमो अग्नयेअग्निमूर्तये श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥३७॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३८ ॥ शक्तिहस्ताय मेषवाहनाय सपरिजनाय अमुकगृहे- बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । आह्वान. अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापना । (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण | मंत्रमुद्रादि पूर्ववत् । (६) उपरोक्त मंत्रपूर्वक अष्टप्रकारीपूजा करीए १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । एकलुं केसर २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । जासुद. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । रातुं कपडुं. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । राती सोपारी. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । चुरमानो लाडु. ८. अक्षतं तम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, सोपारी, चोखा, पैसो. (७) ॐ ह्रीँ मेँ रों रुँ रैं रौं रः अग्नि संवौषट् स्वाहा । (ए मंत्र वडे केरबानी नवकारवाळी एक गणवी ) ( ८ ) उक्त मंत्र वडे फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमां लई त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - सदा वह्निदिश नेता, पावको मेषवाहनः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥१॥ ॥ इति अग्निपूजा २ ॥ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ३८ ॥ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥३९ ॥ ... ३. अथ यमपूजा । (१) ॐ शुं हूँ हाँ क्षः यम सवौषट् (स्वाहा ) ए मंत्रे फूल, वासचोखा वधावीए. 2 (२) कस्तूरीमिश्रित चूआ वडे आलेखन करीए । ॐ नमो यमाय दक्षिणदिगधिष्ठाकाय महिषवाहनाय दण्डायुधाय कृष्णमूर्तये सपरिजनाय अमुकगृहे-बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । ए मंत्रे आह्वान. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापना । (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण । मंत्रमुद्रादि पूर्ववत् (६) उक्त मंत्रपूर्वक अष्टप्रकारीपूजा श्री अष्टोत्तरी व करीए. १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । कंकु. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । दमणो शान्तिस्नानादि (डमरानां) पुष्प. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । काळु कपडुं. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । विधि काळी सोपारी. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । अडदनो लाडु. ८. अक्षतं तम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् | समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. (७) ॐ शू हा क्षः यम सवौषट् ॥३९॥ hore Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥४०॥ स्वाहा । (माळा अकलबेरनी) (८) उक्त मंत्र वडे फूल, बासचोखा अने पाणी पसलीमां लई त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - दक्षिणस्यां दिशि(शः)स्वामी, यमो महिषवाहनः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु । ॥ इति यमपूजा ३ ॥ ४. अथ नैर्ऋताधिपपूजा । (१) ॐ ग्लौं हौँ नैर्ऋत संवोषट् स्वाहा । पुष्पवास चोखा वडे वधावे । (२) | आलेख-एकली कस्तूरी वडे । (३) ॐ नमो नैर्ऋताय खड्गहस्ताय शववाहनाय सपरिजनाय अमुकगृहे-बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । आह्वान. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापना. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण. (६) अष्टप्रकारीपूजा -१. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । चुवो सुखड मिश्रित. २. पुष्पं समर्पयामि श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥४० ॥ Jain Education international For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥४१॥ | स्वाहा । मालती, बोलसरि. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । उदारंगर्नु कपडुं. ४. फलं I समर्पयामि स्वाहा । दाडम, सीताफळ. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप.६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । तलवटनो लाडु.८. अक्षतं तम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. (७) ॐ ग्लौ हौ नैर्ऋत । संवोषट् स्वाहा । (माळा अकलबेरनी) (८) उक्त मंत्र वडे पसलीमा फूल, बासचोखा अने पाणी लई त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - | यमापरान्तरालोऽसौ नैर्ऋत:(तिः) शववाहनः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि ॥ इति नैर्ऋतपूजा ३ ॥ विधि ५. अथ पश्चिमाधिपवरूण पूजा । (१) ॐ श्री हौं वरुण संवौषट् (स्वाहा) । पुष्प, वासचोखा वडे वधावे. (२) कस्तूरी-चुवो मिश्रित करी आलेख । (३) ॐ नमो वरुणाय पश्चिमदिगधिष्ठायकाय श्री ॥४१॥ For Personal Private Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥४२॥ मकरवाहनाय पाशहस्ताय सपरिजनाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । आह्वान. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापना. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण. (६) अष्टप्रकारीपूजा -१. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । चुवो सुखडमिश्रित. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । दमणो, बोलसरि. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । आस्मानी रंगर्नु कपडुं. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । दाडम. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । तलवटनो लाडु. ८. अक्षतं ताम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. (७) ॐ श्री हो वरुण संवौषट् स्वाहा । (माळा अकलबेरनी) (८) उक्त मंत्र वडे पसलीमां फूल, वासचोखा अने पाणी लई त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - यः प्रतीचीदिशो नाथो, वरुणो मकरस्थितः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ ॥ इति वरुणपूजा ५ ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥४२॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.ord Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥४३॥ - ६. अथ वायव्याधिपपूजा । (१) ॐ क्ली हो वायु संवोषट् (स्वाहा) फूल, वासचोखा वडे वधावीए. (२) आलेख सुखड, केसर अने कस्तूरी मिश्रित । (३) ॐ नमो वायवे वायवीपतये ध्वजहस्ताय हरिणवाहनाय सपरिजनाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । आह्वान. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापना. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण. (६) अष्टप्रकारीपूजा -१. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । वासचुवो, कस्तूरी. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । चंपक, मरवो ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । नीलो तास्तो. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । नारंगी, केळा. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । मगदळनो लाडु. ८. अक्षतं तम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. (७) ॐ क्ली हो वायु संवोषट् स्वाहा ।(माळा केरबानी) (८) फूल, चोखा अने पाणी पसलीमा लई उक्त मंत्र वडे त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥४३॥ Jain Education in For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ४४ ॥ हरिणो वाहनं यस्य, वायव्याधिपतिर्मरुत् । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ ॥ इति वायव्याधिपपूजा ॥ ७. अथ उत्तरदिगधिप-कुबेर-पूजा । ( १ ) ॐ ब्लौं हीँ कुबेर संवौषट् (स्वाहा ) । पुष्प, वासचोखा वडे वधावीए. ( २ ) आलेख सुखड, केसर अने बरास मिश्र करी । ( ३ ) ॐ नमो धनदाय उत्तरदिगधिष्ठायकाय गदाहस्ताय नरवाहनाय सपरिजनाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । आह्वान. ( ४ ) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापना. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण. ( ६ ) अष्टप्रकारीपूजा - १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । सुखड बरासमिश्रित. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । जाई अथवा सेवंत्रा ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । श्वेत वस्त्र. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । बीजोरुं ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । पेंडा अथवा घेंसीदळ. ८. अक्षतं For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ४४ ॥ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * तम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. (७) ॐ ब्लौं हाँ कुबेर संवौषट् स्वाहा ।(माळा स्फटिकनी)(८) उक्त मंत्र वडे फूल, वासचोखा श्री अने पाणी लई पसलीमांत्रण वार अर्ध्य देवा. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि निधाननवकारूढःउत्तरस्यादिशि(शः प्रभुः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु । विधि ॥ इति नैर्ऋतपूजा ७ ॥ ८. अथ ईशानाधिपपूजा । (१) ॐ हाँ हूँ हौं हः ईशान संवौषट् (स्वाहा)। फूल, वासचोखा वडे वधावीए. (२) आलेख एकला चन्दन वडे । (३) ॐ नमः ईशानाय ऐशानीपतये त्रिशूलहस्ताय वृषभवाहनाय सपरिजनाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । आह्वान.(४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापना. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । ॥४५॥ अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥४५॥ For Personal Private Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥४६॥ निमंत्रण. (६) अष्टप्रकारीपूजा -१. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । सुखड. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । कुमुद. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । श्वेत वस्त्र. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । शेलडी. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं । समर्पयामि स्वाहा । ममरानो लाडु. ८. अक्षतं तम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. (७) ॐ हाँ हूँ हौं हः ईशान संवौषट् स्वाहा । (माळा स्फटीकनी)(८) उक्त मंत्र वडे पुष्प, वासचोखा अने पाणी पसलीमा लई त्रण वार अर्थ्य श्री देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - अष्टोत्तरी व सिते वृषेऽधिरूढश्च, ऐशान्याश्च दिशो विभुः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥ शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ इति ईशानाधिपपूजा ८ ॥ ९. अथ ऊर्ध्वलोकाधिपपूजा । (१) ॐ ह्रौं ब्लू च द्रः ब्रह्मन् संवौषट् स्वाहा । फूल, वासचोखा वडे ॥४६॥ For Personal Price Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥४७॥ वधावीए. (२) आलेख सुखडमिश्रित कपूर ।(३) ॐ नमो ब्रह्मणे ऊर्ध्वलोकाधिष्ठायकाय राजहंसवाहनाय सायुधाय सपरिजनाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ स्वाहा । आह्वान. (४) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापना. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण. (६) अष्टप्रकारीपूजा -१. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । एकली सुखड. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । सेवंत्रा. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । श्वेत वस्त्र. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । बीजोळं. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि श्री स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । घेबर.८. अक्षतं ताम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् । अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. (७) ॐ ह्रीं क्षू ब्लू च द्रः ब्रह्मन् विधि संवौषट् स्वाहा ।(माळा स्फटीकनी) (८) उक्त मंत्र वडे फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमां लई त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - ब्रह्मलोकविभुर्यस्तु, राजहंससमाश्रितः। संघस्य शान्तये सोऽस्तु, बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥१॥ ॥ इति ब्रह्मपूजा ९ ॥ ॥४७॥ Jain Education in For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि 1182 11 १०. अथ पातालाधिपपूजा । ( १ ) ॐ आँ ह्रीँ क्रौं ऐं ह्यौं पद्मावतीसहिताय धरणेन्द्र संवौषट् ( स्वाहा ) । फूल, वासचोखा वडे वधावीए. (२) आलेख - सुखड दूधमिश्रित ( ३ ) ॐ नमो नागाय पातालनिवासाय पद्मवाहनाय सायुधाय सपरिजनाय अमुकगृहे बृहत्स्नात्रमहोत्स आगच्छ आगच्छ स्वाहा । आह्वान. ( ४ ) अत्र तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । स्थापना. (५) पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । निमंत्रण. (६) अष्टप्रकारीपूजा - १. चन्दनं समर्पयामि स्वाहा । सुखड. २. पुष्पं समर्पयामि स्वाहा । मोगराना फूल. ३. वस्त्रं समर्पयामि स्वाहा । श्वेत वस्त्र. ४. फलं समर्पयामि स्वाहा । श्वेत बदाम. ५. धूपमाघ्रापयामि स्वाहा । धूप. ६. दीपं दर्शयामि स्वाहा । दीप. ७. नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा । पेडा. ८. अक्षतं तम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, चोखा, सोपारी, पैसो. (७) ॐ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ४८ ॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्तात्रादि विधि ॥४९॥ आँ ही क्रॉ ऐं ह्यौं पद्मावतीसहिताय धरणेन्द्र संवौषट् स्वाहा । (माळा स्फटिकनी) (८) उक्त मंत्र वडे फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमां लई त्रण वार अर्ध्य देवां. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी - . पातालाधिपतिर्यस्तु, सर्वदा पद्मवाहनः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु बलिपूजां प्रतीच्छतु ॥१॥ ॥ इति पातालधिपनागेन्द्रपूजा १० ॥ सर्वसाधारण अर्ध्य देवानो विधिः । अष्टोत्तरी व (१) पूजक श्रावक एक थाळमां श्रीफळ, अक्षत, बहुवर्णी पुष्पो, रुपियो एक, पीलुं वस्त्र | पुण्या, सापया एक, पालु वस्त्र शान्तिस्नानादि तथा बीजा फळो लइ ऊभा रही आ मंत्र बोले. ॐ इन्द्राग्नियमनैर्ऋतवरुणवायुकुबेरेशानब्रह्मनागेति दशदिक्पालाजिनपतिपुरतोऽवतिष्ठन्तु स्वाहा । ए प्रमाणे बोलीने श्रीफळ वगेरे पट्टक उपर मूकवा. (२)ते पट्टकने एक गज पीळा रेशमी वस्त्र वडे ढांकीए-वरख आदि छापीए अने | ते पट्टकने वस्त्र सहित नाडाछडी बडे बांधी प्रभुनी सन्मुख अथवा दक्षिण बाजु स्थापीए. (३) पूजकर विधि ॥४९॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥५०॥ श्रावक ग्रह पट्टक अने दिक्पालपट्ठकनी वच्चे ऊभो रही, बे हाथ जोडी कोशमुद्रा वडे नीचे प्रमाणे प्रार्थना करे - ॐ भो भो इन्द्रादयो दिक्पालाः आदित्यादयो ग्रहाश्च स्वस्वदिशि स्थिता विघ्नशान्तिकरा भवत भवत स्वाहा । (४) मुहूर्तथी पूर्वे दिक्पाल-ग्रहप्रतिष्ठा होय तो पहेलां दहेरासरे त्रण दिवस सुधी पूजीए. (५) मुहूर्त दिवसे प्रभाते वासे पूजीए. प्रतिमा पासे स्थापीए. पछी उक्त विधिए पूजीए. ॥ इति दशदिक्पालपूजनविधिः ॥ ९. अथ अष्टमंगलपूजनविधिः । (१) अष्टमंगलना पट्टकने यक्षकर्दम वडे आलेख करवो. (२) दरेक मंगल उपर पान, चोखा, सोपारी, सवा रुपीयो मूकीए. (३) नीचे प्रमाणे मंगलसूक्तो बोलीए. प्रथम नीचेना सूक्ते कुसुमांजलि करीए - मङ्गलं श्रीमदर्हन्तो, मङ्गलं जिनशासनम् । मङ्गलं सकलः संघो, मङ्गलं पूजका अमी ॥१॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥५०॥ For Personal & Private Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५१॥ स्वस्ति भूगगननागविष्टपे-घूदितं जिनवरोदये क्षणात् । स्वस्तिकं तदनुमानतो जिन-स्याग्रतो बुधजनैर्विलिख्यते ॥१॥ अन्तः परमज्ञानं यद् भाति जिनाधिनाथहृदयस्य । तच्छ्रीवत्सव्याजात्, प्रकटीभूतं बहिर्वन्दे ॥२॥ विश्वत्रये च स्वकुले जिनेशो, व्याख्यायते श्रीकलशायमानः । अतोऽत्र पूर्ण कलशं लिखित्वा, जिनार्चनाकर्म कृतार्थयामः ॥३॥ जिनेन्द्रपादैः परिपूज्य पुष्टै-रतिप्रभावैरतिसन्निकृष्टम् । भद्रासनं भद्रकरं जिनेन्द्र-पुरो लिखेन्मङ्गलसत्सयोगम् ॥४। त्वत्सेवकानां जिननाथ ! दिक्षु, सर्वासु सर्वे निधयः स्फुरन्ति । अतश्चतुर्धा नवकोणनन्द्या-वर्तः सतां वर्तयतां सुखानि ॥५॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥५१॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि पुण्यं यशः समुदयः प्रभुता महत्त्वं, सौभाग्यधीविनयशर्ममनोरथाश्च । वर्धन्त एव जिननायक ! ते प्रसादा-त्तद्वर्धमानयुगसंपुटमादधामः ॥६॥ त्वद्वध्यपञ्चशरकेतनभावक्लृप्तं, कर्तुं मुधा भुवननाथ ! निजापराधम् । सेवां तनोति पुरतस्तव मीनयुग्मं,श्राद्धैः पुरो विलिखितं निरुजाङ्गयुक्त्या ॥७॥ आत्मालोकविधौ जिनोऽपि सकल-स्तीवंतपोदुश्चरं, दानं ब्रह्म परोपकारकरणं, कुर्वन् परिस्फुर्जति । सोऽयं यत्र सुखेन राजति सवै,तीर्थाधिपस्याग्रतो,निर्मेयः परमार्थवृत्तिविदुरैःसंज्ञानिभिर्दर्पणः ॥८॥ (४) उपर प्रमाणे मंगलना श्लोको बोलीने पूजक श्रावक एक थालमां रेशमी सफेद वस्त्र, श्रीफल, पञ्चवर्णी फूल (फल, रुपियो एक) वगेरे राखी, ऊभो थई आ प्रमाणे बोले - नामजिणा जिणनामा, ठवणजिणा पुण जिणंदपडिमाओ । दव्वजिणा जिणजीवा, भावजिणा समवसरणत्था ॥१॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५२॥ Join Education International For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ए गाथा बोली श्रीफळ वगेरे सर्व पाटला पर मूकवू. ... (५)पछी ते पाटलाने उज्ज्वळ वस्त्र वडे ढांकी, नाडाछडी वडे बांधी नवग्रह अने दशदिक्पालनी वच्चे मूकवो. पछी वासक्षेप हाथमां लई अष्टमंगल स्थापन मंत्र आ प्रमाणे बोलवो. ॐ अर्ह-स्वस्तिक-श्रीवत्स-कुम्भ-भद्रासन-नन्द्यावर्त-वर्द्धमान-मत्स्ययुग्मदर्पणानाम् अत्र शान्तिस्नात्र (जे निमित्त होय ते) महोत्सवे सुस्थापितानि सुप्रतिष्ठानि अधिवासितानि लं लं लं ही नमः स्वाहा । ॥ इति अष्टमंगलपूजनविधिः ९ ॥ ॥५३॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५३॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥५४॥ ॥ अथ मंडपपीठ-पीठिका (वेदिका) स्थापन विधिः ॥ शुभ दिवसे चार अथवा एक कुंवारी कन्या द्वारा कंकु अथवा चोखाना चार साथीया बनावीने उपर वचला साथीया उपर नारीयेल-मिठाई ११ रुपियो मूकवो । पछी मिस्त्री- बहुमान करी २७ लं. x २७ प. - २५ (उंची) काची इंटोनी वेदिका बनाववी उपरना भागमां ९x ९ नो समचोरस उंडो खाडो कराववो । पछी चारे बाजु प्लास्टर करावी सफेद चूनाथी पोतावी पेन्टर बोलावी पीठिका मां भगवाननी सामे कलश, जमणी बाजु भु डाबी बाजुमां ही अने सामे सूंढथी पाणी सिंचता हाथी सहित कमल उपर लक्ष्मी बनावराववी, आ रीते तैयारी करावी, पूजनना आगला दिवसे बे कोडायामां सोपारी, पंचरत्नपोटली, ११ रुपियो मूकी संपुट बनावी "कूर्म निजपृष्ठे जिनबिम्बं धारय धारय स्वाहा" १०८ या २७ वार मंत्र बोली संपुट मूकी आठ जातनी माटीथी खाडो पूराववो, पछी ॐ नमो भगवति विश्वव्यापिनि ही सिंहासने स्वस्तिकं पूरयामिति स्वाहा" आ मंत्र ९ वार बोलीं पिठिका उपर स्वस्तिक तथा समवसरण स्वरुप त्रण गढ अष्टगंध द्वारा बनाववा पछी सिंहासन स्थापन करवू, पछी माणिभद्रवीर अथवा घंटाकर्ण महावीरनी थाळी यंत्र वाळी अथवा नाळीयेर अथवा आलेखन करी १०८ वार जेनी थाली करो तेनो मूल मंत्र बोली-सुखडी, फुल, वासक्षेप अगर आदि धूप द्वारा पूजन करी थाली बांधवी (वेदिकाने मिंढळ मरडाशींगी नाडाछडीथी मंत्री बांधवी) श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५४॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ५५ ॥ १०. अथ दशदिक्पाल आह्वान बृहद्विधिः । ( १ ) ग्रह-दिक्पालनो पट्टक स्थापी, प्रार्थना करी, चार शिखावाळा श्रावक शिखा छूटी मूकी (जो शिखा न होय तो ग्रीवासूत्र कंकणमंत्र वडे मंत्रीने करें ) तथा बीजा आठ श्रावक एम बार निर्दोष श्रावक मळी, सौभाग्यवथी पुत्रवती स्त्री पासे बलि रंधाव्यो होय ते खीर - १. लापसी २. गळ्यामोळा पुडला ३, वडां ४, ने कुर (भात) ५, ( अथवा विध्यन्तरे खीचडो, पोळी ने बाकुला. ) ए सर्व मळी शेर एकवीशनो एक मोटी कथरोटमां एकठो करी, हलावी भेगो करवो. (२) पछी तेने मंडळ मध्ये लावी बाजोठ उपर मूकीने शिखाबंध दक्ष श्रावक पूर्व अथवा उत्तर दिशा सन्मुख बेसी सवाशेर गायनुं घी तेमां फरतुं रेडे. बूरु-खांड शेर सवा ते उपर भभरावे. चंदनना छांटणां दे, उपर कणेरनां तथा बीजा पण फूल वेरे. (३) पछी वासमुष्टि लई नीचे प्रमाणेनो मंत्र गणी वासमुष्टि बलि उपर वेरे. ए प्रमाणे त्रण वार करे. पछी नीचे प्रमाणे मंत्र बोले ॐ नमो अरिहंताणं । ॐ नमो सिद्धाणं । ॐ नमो आयरियाणं । ॐ नमो उवज्झायाणं । ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं । ॐ नमो आगासगामीणं । ॐ नमो चारणाइलद्धीणं । जे इमे किन्नरकिंपुरिसमहोरगगरुलसिद्धगंधव्वजक्खरक्खसपि For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ५५ ॥ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि सायभूयपेयसाइणिडाइणिपभिइणो जिणधरनिवासिणो नियनियनिलयट्ठिया पवियारिणो सन्निहिया असन्निहिया य ते सव्वे इमं विलेवणधूवपुष्फफलपईवसणाहं बलिं पडिच्छंता तुट्टिकरा भवंतु, सिवंकरा भवंतु, संतिकरा भवंतु, सुत्थं जणं कुणंतु, सव्वजिणाण सन्निहाणप्पभावओ पासन्नभावत्तणेण सव्वत्थ रक्खं सव्वत्थ दुरियाणि नासंतु, सव्वासिवमुवसमंतु, संति तुट्ठि-पुट्ठि-सिव-सुत्थयकारिणो भवंतु । स्वाहा । (इति भूतबलि मंत्रः) । (४) पछी ते बलिनो अडधो भाग बीजा वासणमां लेवो. बाकी रहेलो अडधो भाग पवित्र स्थाने ढांकीने मूकवो. पछी शिखाबंध श्रावक बे हाथे बलि-भाजन ग्रहण करे. एक चंदन, एक कलश, एक फूल, एक धूप, एक दीप, एक चामर, एक घंट, एक आरिसो, एक थाळी वेलण, एक अक्षत फलादि ग्रहण करे. एक शिखाबंध श्रावक शुद्ध मन्त्रपाठ उच्चरे. (५)ए प्रमाणे बार श्रावक तथा बीजा पण स्नात्रियाओ वाजिंत्रादि ग्रही स्नानगृहने आगले भागे अने स्नानमंडपथी उंचे स्थानके अगासे रहे, प्रथम पूर्व सन्मुख ऊभा रही बलि-पोश भरी पाठकथन ऊंचा स्वरे दिक्पाल आह्वान श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५७॥ बलिदान पाठ कहे (पाठसमये वाजिंत्रो शांत राखवा, बलि उछाळती वखते वगाडवा.) ते आ प्रमाणे (१) ॐ नमः इन्द्राय पूर्वदिगधिष्ठायकाय ऐरावणवाहनाय सहस्त्रनेत्राय वज्रायुधाय सपरिजनाय अमुकगृहे वृद्धस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ बलिपूजां गृहाण गृहाण, शान्तिकरा भवन्तु, तुष्टिकरा भवन्तु, पुष्टिकरा भवन्तु, शिवंकरा भवन्तु स्वाहा । पूर्व सन्मुख बलि दे (उछाळे) अने बीजां सर्वे पोतपोताने योग्य विधि करे, चन्दनना छांटा जळधार, फूल, धूप, दीप, चामर, घंट, आरिसो, थाळीवादन, अक्षतफलादि । ए प्रमाणे आगल पण समजवू. (२) अग्निकोण सन्मुख-ॐ नमो अग्नये अग्निभूर्तये शक्तिहस्ताय मेषवाहनाय सपरिजनाय-आगळ पाठ पूर्ववत् । . (३) दक्षिण सन्मुख - ॐ नमो यमाय दक्षिणादिगधिष्ठायकाय महिषवाहनाय दंडायुधाय कृष्णमूर्तये सपरिजनाय - आगळ पाठ पूर्ववत् । श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५७॥ For Personal Private Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५८॥ (४) नैर्ऋत सन्मख- ॐ नमो नैर्ऋताय खडगहस्ताय शववाहनाय सपरिजनाय आगळ पाठ पूर्ववत् । (५) पश्चिम सन्मुख - ॐ नमो वरुणाय पश्चिमदिगधिष्ठायकाय मकरवाहनाय पाशहस्ताय सपरिजनाय - आगळ पाठ पूर्ववत् । (६) वायव्य सन्मुख - ॐ नमो वायवे वायवीपतये ध्वजहस्ताय हरिणवाहनाय सपरिजनाय-आगळ पाठ पूर्ववत् । (७) उत्तर सन्मुख - ॐ नमो धनदाय उत्तरदिगधिष्ठायकाय गदाहस्ताय नरवाहनाय सपरिजनाय-आगळ पाठ पूर्ववत् । (८) ईशान सन्मुख - ॐ नमः ईशानाय एशानीपतये त्रिशूलहस्ताय वृषभवाहनाय सपरिजनाय-आगळ पाठ पूर्ववत् ।। (९) उर्ध्वमुख - ॐ नमो ब्रह्मणे ऊर्ध्वलोकाधिष्टायकाय राजहंसवाहनाय सपरिजनाय-आगळ पाठ पूर्ववत् । श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५८॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५९॥ (१०) अधोमुख - ॐ नमो नागाय पातालाधिष्ठायकाय पद्मवाहनाय सपरिजनाय-आगळ पाठ पूर्ववत् । बलिक्षेप-चन्दनादि पूजन वगेरे दशे वखत करवं. ते ते दिशामां - ॥ इति दशदिक्पाल आह्वान बृहविधिः १० ॥ ११ अथ अष्टोत्तरशत (बृहत्) स्नात्रविधिः । (१) मुहूर्तने दिवसे प्रभाते अंग अवयवे करी पूर्ण, चक्षु प्रमुख खोड रहित, डाभ प्रमुख लांछन विनाना १०८ स्नात्रिया मेळववा. तेमांथी चार अति निपुण, स्पष्ट वक्ता, अखण्ड (चोटली) श्री अष्टोत्तरी व युक्त एवा वृद्ध श्रावक शुद्ध जळ हाथमां लई नीचेनो मन्त्र बोलो :- ॐ ह्रीं अमृते अमृतोद्भवे । शान्तिस्नानादि अमृतवर्षिणि अमृतं स्त्रावय स्त्रावय स्वाहा ।आ मंत्र वडे सात वार मंत्रीने जळ शुद्ध करो। विधि (२) ॐ ह्रीं यक्षाधिपतये नमः । ए मंत्र वडे सात वार दातण मंत्री दातण करे-मुखशुद्धि करे । ॥ ५९॥ (३) पछी मंत्रित जळे अंजलि भरी ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं कामदेवाधिपते ममाभीप्सितं पूरय पूरय स्वाहा । ए मंत्र सात वार भणी मुख प्रक्षालन करे । (४) पछी मंत्रित जळ लई, पूर्व सन्मुख For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THMARA श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥६०॥ बेसी, सुगंधी तेल तथा आमळा प्रमुखनु चूर्ण तथा उपलेट प्रमुख उगटणे विधिपूर्वक तैलमर्दनादिक करी मंत्रित जळे स्नान करे ॐ ही अमले विमले विमलोद्भवे सर्वतीर्थजलोपमे पापा पा अशचिः शुचिर्भवामि स्वाहा । आ मंत्र त्रण वार भणी हाथ वडे सर्वागने स्पर्श करे. आ प्रमाणे त्रण वार स्पर्श करी मंत्रस्नान करे । (५) पछी नवां, शुद्ध, धोयेला बे वस्त्र हाथमां लई ॐ ही आँ क्रौं नमः । ए मंत्र वडे त्रण वार मंत्रीने वस्त्र पहेरे । (१) पछी ते वृद्धस्नात्रिया श्रावक | बीजा त्रण श्रावक पासे जुदा जुदा केसर घसावे, तेनी त्रण जुदी वाटकी भरावे, तेमांथी एक देवपूजा माटे, एक तिलका दिने माटे अने एक ग्रहादिकने आलेखवाने माटे । तथा बीजा बे श्रावको पासे पीजेला शुद्ध रूनी २१४ दिवेट भेगी करावे, तथा बे मोटी ग्रेवासूत्रनी दिवेट एम कुल २१६ करावे । विध्यंतरे १०८ सुतरना तारवाळी बे दिवेट करावे । (७) सूत्रनो दडो लईने वृद्धस्नात्रिया, दक्षपुरुष कंकणमंत्रे १०८ वार अथवा २१ वार मंत्रे. कंकणमंत्र-ॐ ह्रीं अवतर अवतर सोमे सोमे कुरु कुरु वग्गु वग्गु सुमणे सोमणसे महमहुरे ॐ कविले कः क्षः स्वाहा । आ प्रमाणे मंत्रीने बधा स्नात्रियाने हाथे बांधे । बीजां स्नात्र उपयोगी सर्व उपकरणोने बांधे । कंकण बंधावे तेने जघन्यथी आठ दिवसना ब्रह्मचर्य- पच्चक्खाण करावे. (८) चार मुख्य श्रावक तिलकनुं केसर श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥६० ॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ६१ ॥ हाथमां लई ॐ आँ ह्रीँ क्लीँ अर्हते नमः । ए मंत्र सात वार कही, केसर मंत्री पोते अने बीजा सर्व स्नात्रियाने तिलक करे. (९) पछी चार वृद्धस्नात्रिया श्री आदिदेव प्रमुखनी चार प्रतिमाने देरासर राखी होय त्यां सामान्ये पूजी, चारे श्रावक एक एक प्रतिमा थाळमां लई ज्यां पीठस्थानक छे त्यां ॐ नमो अर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने दिक्कुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय त्रैलोक्यमहिताय अत्र पीठे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । मंत्र बोली त्रण वार भणी एक एक प्रतिमा अनुक्रमे थापे । पछी शुद्ध अख्याणा चार, श्रीफळ चार सहित ढोईए। प्रत्येक अख्याणामां पांच शेर चोखा लेवा, ते पंक्तिथी थापीए-अथवा विध्यंतरे परनाळीया बाजोठना चारे पाये थापीए । उत्तम धूप करीए । इति प्रतिमास्थापन । (१०) पछी माटीना अथवा त्रांबाना बे शरावला (रामपातर) कोरं लेवां अने ते दीपपात्रमां सधवा स्त्री पासे गायनुं घी पूराववुं अने पहेलां करावेली ग्रीवासूत्रनी वाट (दिवेट) तेमां मूकाववी । तेनी पासे दीवा अजवाळवा । पछी ते बे दीवाने वृद्ध स्नात्रीया श्रावक ॐ घृतमायुर्वृद्धिकरं भवति परं जैनदृष्टिसम्पर्कात् । तत्संयुक्तः प्रदीपः, पातु सदा भावदुःखेभ्यः ॥ १ ॥ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ६१ ॥ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥६२॥ स्वाहा । आ मंत्र त्रण वार भणीने स्थापना करे । पछी ते बे दीप एक सधवा स्त्री पासे एक जिनबिंबना जमणे पडखे अने एक डाबे पडखे दीवी पर मूकावीए । पछी केसर छंटावी दीपपूजन करीए । दीपपात्र खसे नहिं ते माटे दीवीना चाडा साथे गेवासूत्रे बांधी स्थिर करीए । पछी वृद्ध श्रावक अन्य स्नात्रीया बेने कंकणादिक बांधे । देवद्रव्यनी वृद्धि करावे । घी भरेली वाडी हाथमां आपे । ते बे श्रावक डाबा तथा जमणा दीवा पासे ऊभा रहे । स्नात्रनी क्षणे क्षणे घी पूरता जाय । एम जे जे उपकरण श्रावकना हाथमां आपवा ते ते श्रावक पासे देवद्रव्यनी वृद्धि करावीने आपवां । इति घृतस्थापन । (११) पछी वृद्ध श्रावक भगवंतना जमणे पासे पाटला उपर बेसी, कोठी धोई, धूपी कोठी बीजा श्रावक पासे रखावे । पछी तेमां वृद्ध श्रावक सुखड-केसरनो साथियो करे । ते उपर ॐ ह्रीं श्रीं सर्वोपद्रवान् नाशय नाशय स्वाहा । ए मंत्र लखे। (१२) पछी सुगंध जळ, पुष्प, चंदनथी अधिवासित रूपानाणुं अथवा पंचरत्ननी पोटली नीचेना मंत्रथी मंत्रेला वास वडे पूजीने माटलीमां मूकवी। मन्त्र :- ॐ ह्रौं नानारत्नौघसंयुतं सुगंधिपुष्पाधिवासितं नीरम् । पतताद्विचित्रवर्णं, मन्त्राढ्यं स्थापनाबिम्बे ॥१॥ स्वाहा । (१३) पछी कोठी अथवा पछेडीनी ईंढोणी श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥६२॥ Jain Education in For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥६३॥ करीने ते उपर मूकवी । त्यार पछी ॐ ह्रीं ठः ठः ठः स्वाहा । ए मंत्र सात वार भणी स्थापनीय मुद्राए गोळीने प्रतिमाजीनी जमणे पडखे स्थापन करे तथा वासफूले स्थापनमंत्र भणी पूजे । (१४) पछी पंचामृत एकठा करी नीचेनो मंत्र बोलेः ॐ ह्रीं जिनबिम्बोपरि नितपद्, घृतदधिदुग्धादिद्रव्यपरिपूतम् । गन्धोदकसन्मिश्र, पञ्चसुधं हरतु दुरितानि ॥१॥ आ मंत्रे त्रण वार मंत्रीने पंचामृत माटलीमा पधरावQ (तथा विध्यंतरे तांबाकुंडीमा सधवा स्त्री पासे पंचामृत एकळु करावी पछी माटलीमां पधरावे) (१५) ॐ ह्रीं सौषधिसंयुक्त्या, सुगन्ध्या घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैनबिम्बं, मन्त्रिततन्नीरनिवहेन ॥१॥ए मंत्र वडे मंत्री, वास वडे पूजी, सर्वोषधी माटलीमां मूके । (१६) पछी १०८ तीर्थना जल मंत्रित करवानो मंत्र :ॐ ह्रीं भः जलधिनदीद्रहकुण्डेषु, यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि शुद्ध्यर्थम् ॥१॥ स्वाहा । आ मंत्र वडे सात वार मंत्री वृद्ध श्रावक पोते अथवा सधवा स्त्री पासे कोठीमां पूरावे । (१७) पछी समूळो डाभ, मीढळ, मरडासिंगी, ऋद्धिवृद्धि साथे ग्रेवासूत्र वडे कंकणमंत्रे मंत्री माटलीने कांठे बांधीए । पछी ते माटली ऊपर पान श्रीफळ मूकीने श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥६३॥ For Personal Price Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DATION श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥६४॥ कोठीने ढांकीए । पछी ते माटलीने चंदन वडे पूजीए, फूलमाळा पहेरावीए । १०७ नवाण- पाणी जे वध्युं होय ते, लघु मंगळ कुंभने पूंजी तेमां भरी अणवरनी पेठे पडखे स्थापीए. (१८) पछी दक्ष श्रावक सात स्मरण गणे अने बीजो श्रावक पासे बेसी अगरनो धूप करे, सात स्मरण गणतां वच्चे बोलवू नहीं, स्थिरचित्ते गणवां । इति मंगलकलशस्थापन । (१९) आ पछी नवग्रह, दश | दिक्पाल, अष्टमंगल अने घंटाकर्णना पाटलाओ जे पूर्वे पूज्या छे ते, पीठ सन्मुख लावी मुहूर्तने दिवसे प्रभाते वासफूल वडे पूजी प्रतिमा पासे ऊंचे आसने स्थापीए । पछी दश दिक्पालनु पूर्वोक्त विधि वडे विस्तारती आह्वान करीए । (२०) पछी वृद्ध श्रावक, स्नात्रीया शुद्ध पुरुष सर्वे मुहपत्ती लई इरियावही० पडिक्कमे । चैत्यवंदन करी चार थोईथी देव वांदे, पछी नमुत्थुणं० कही स्तवनने ठेकाणे लघुशांति कहे, जय वीयराय० कहे । (२१) त्यार पछी एक तांबाकुंडी लई, पवित्र जल वडे धोई धूपी, गेवासूत्र बांधी तेमां यक्षकर्दम वडे अथवा केसर वडे ॐ ह्रीं नमः । ए मंत्र लखवो । ते उपर कुंकुम अने वासफूले पूजित नाळियेर मूकवं. पछी ते त्रांबाकुंडी परनाळियानी पीठ आगळ मूकवी । पछी स्नात्रीयाओने आभरण पहेराववां । आभरण न होय तो केसरनां करवां । (२२) पछी आठ दक्ष श्रावकने सकलीकरण करवू, ते आ प्रमाणे - लख्या प्रमाणे अंगोने स्पर्श करवो. श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥६४॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥६५॥ १. ॐ नमो अरिहंताणं हृदयाय नमः । हृदय । २. ॐ नमो सिद्धाणं, शिरसे नमः स्वाहा । मस्तक । ३. ॐ नमो आयरियाणं, शिखायै वौषट् । शिखा (चोटली)। ४. ॐ नमो उवज्झायाणं, कवचाय हुँ । सर्वांग । ५ ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं, अस्त्राय फट् । अस्त्रमुद्राए अस्त्र धारण करीए । (२३) पछी एक दक्ष श्रावक ऊंचे स्वरे वज्रपंजर स्तोत्र कहे अने बीजा सांभळे. (स्तोत्र पृ. १ उपर छापेल छे.) आ प्रमाणे सकलीकरण अने अंगरक्षा करीने मीढळ कंकण स्वमंत्रे मंत्री बांधे । (२४) पछी एक श्रावक हाथमां केसर पुष्प लई दिशिबंध करे, तेमां प्रथम अ आ पूर्वस्यां एम कही पूर्व सन्मुख केसरनां छांटा नाखवा, पुष्पो उडाडवां । (आ प्रमाणे दरेक शिा वखते करवू) इ ई दक्षिणस्यां । उ ऊ पश्चिमायां । ए ऐ उत्तरास्यां । ओ औ ऊर्चे । अं अः अधः । (२५) पछी ग्रीवासूत्र लई ॐ ह्री सर्वोपद्रवाद् बिम्बं रक्ष रक्ष स्वाहा । ए मंत्रे सात वार मंत्री चारे दिशाना थांभले अथवा पीठना चार पाटे बांधीए । पछी दीवाने केसर तथा पुष्प वडे पूजीए । पछी अग्रेसर चार पुरुषो हाथमां चार लघुकळश लई, धोई,धूपी, चंदने पूजी, कंकण बांधी, फूलमाळ पहेरावी, तेमां रूपामहोर मूकी, श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि वी Jain Education in For Personal & Private Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि एक जण मंगल कोठीमांथी पाणी लावी चार कळश भरे । ते चार श्रावक शांतिकविधिस्नात्र (कोई पण प्रकारना उपद्रवनी शांतिने माटे जे स्नात्र करवामां आवे तेने शांतिकविधिस्नात्र कहे छे) होय तो नमोऽर्हत्० कहीने नीचेनी चार गाथाओ बोले :ॐ वरकणयसंखविहुम-मरगयघणसन्निहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूईयं वंदे-स्वाहा । ॐ तं संतिं संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया ।संतिं थुणामि जिणं, संतिं विहेउमे-स्वाहा ॥२॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइंदगयरणभयाईं। पासजिणनामसंकित्तणेण पसमंतिसव्वाईंस्वाहा । ॐ भवणवइवाणमंतर-जोइसवासिविमाणवासिय । जेकेई दुट्ठदेवा, ते सव्वे उवसमन्तु मम स्वाहा ॥४॥ आ चारे गाथा भणी चारे श्रावक चारे प्रतिमाने साथे अभिषेक करे । (२६) जो पौष्टिकविधि स्नात्र होय तो ॐ नमोऽर्हते परमेश्वराय चतुर्मखाय परमेष्ठिने दिक्कुमारीपरिपूजिताय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय देवाधिदेवाय-अस्मिन् जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे दक्षिणार्धभरते मध्यखण्डे... देशे.... नगरे... प्रासादे... गहे... श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि For Personal Price Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ६७ ॥ (श्रीसंघगृहे) श्रीबृहत्स्नात्रमहोत्सवे स्नात्रस्य कर्तुः कारयितुश्च श्री संघस्य ऋद्धिंवृद्धिंकल्याणं कुरु कुरु स्वाहा । आ प्रमाणे बोलवु पछी क्रियाविधिकारक मनमां आ प्रमाणे बोले - विमलकेवलभासनभास्करं, जगति जन्तुमहोदयकारणम् । जिनवरं बहुमानजलौघतः शुचिमनाः स्नपयामि विशुद्धये ॥१॥ स्नात्र करतां जगद्गुरुशरीरे, सकलदेवे विमळकळशनीरे । आपणां कर्ममल दूर कीधा, तेणे ते विबुध ग्रन्थे प्रसिद्धा ॥ हर्ष धरी अप्सरावृंद आवे, स्नात्र करी एम आशिष पावे । जहां लगे सुरगिरि जंबूदीवो, अमतणा नाथ जीवानुजीवो ॥ ॐ ह्रीं श्रीं परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलादिकं यजामहे स्वाहा । For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ६७ ॥ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व भणी चारे कवीजा वाजिंत्रो वामान अंगलूछणा क श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥६८॥ (२७) आ अभिषेक मंत्र भणी चारे कळश वडे अभिषेक करे । अभिषेक करती वखते बे श्रावक बे बाजु चामर वींजे, बे श्रावक घंट वगाडे, बीजा वाजिंत्रो वगाडे, पाठ भणाय त्यारे मौन रहे । पाठ पूर्ण थया बाद अभिषेक करे । ते पछी बीजा चार श्रावक चारे प्रतिमाने अंगलूछणां करे । चार वृद्ध श्रावक पूजा करे । बे बाजु राखेला दीवामां बे श्रावक घी पूरे । एक श्रावक धूप करे । बीजा चार श्रावक एक मोटा बाजोठ उपर रातुं वस्त्र पाथरी ते उपर अखंड चोखानी ढगली करे, ते उपर पान मूके, ते उपर सोपारी तथा त्रांबानाणुं मूके । बीजो शुद्ध वस्त्र पाथरी फळ, मोदक एक एक सर्व जात- मूके तथा बे जातनुं सुखडी तथा मेवो वगेरे जे मेळव्यु होय तेनुं एक एक नंग चढावे । तथा एक श्रावक दरेक अभिषेक वखते यखाशक्ति लूंछणुं करी जैन याचकने आपे । (२८) आ प्रमाणे दरेक स्नात्र वखते करवू । पछी चंदन चढावीने चार सेवंत्राना फूल प्रतिमाने माथे मूके । स्नात्र समये पण शिरप्रदेश फूलथी शून्य न राखवो । आ प्रमाणे १०८ वार दरेक अभिषेके जुदी जुदी पूजा करवी । एम १०८ स्नात्र पूजा थया पछी जो कोठीमां पाणी वध्युं होय तो बीजा स्नात्रीयो पासे तथा १०८ नाळचा (वा) ना कळश वडे स्नात्र धणी पासे पखाल करावीए । पछी खांड तथा ऊना पाणी वडे प्रतिमा शुद्ध करीए । पछी संक्षेपे पूजी स्नात्रकार चैत्यवंदन करे, स्तवननी जग्याए अजितसंति कहे. (विध्यंतरे आठ थोय वडे देव वांदे) (२९) त्यार पछी अभिषेकना चार अथवा आठ कळश श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥६८॥ For Personal Price Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ६९ ॥ उगटी, धोई धूपी शुद्ध करीए । पछी तेमां सुगंधी पाणी भरी उत्तम फूल मूके । केसरना छछंटा नाखे । अंगलूंछ्णे ढांके । वृद्ध श्रावक कुसुमांजलि सात भणावे । पछी आदिनाथ, अजितनाथ, शान्तिनाथ अने पार्श्वनाथ चार कळश क्रमसर भणावे अथवा बे स्नात्र भणावी सुगंधी जळथी भरेला कळशथी स्नात्र करे । विशेषे पूजा करे । कोरुं भाणुं एक मूके । पछी रांध्यं नैवेद्य सौभाग्यवती स्त्री पासे वाजतेगाजते लावीने ढोवरावे । पछी विशेष दीवा अजवाळे । प्रभुने सिंहासने पधरावी, पूर्वे पूजित अष्टमंगल थापे. (अहीं विध्यंतरे दिक्पाल पूज्या पछी अष्टमंगल थापे छे) पछी पुष्पवृद्धि करे । पछी विधिपूर्वक लूण पाणी उतारी, आरती तथा मंगलदीवो उतारवो । पछी चैत्यवंदन करवुं । स्तवनना स्थाने तिजयपहुत्त० कही जयवीयराय कहेवा । (३०) पछी अष्टोत्तरी स्नात्र करावनारने अथवा जेने आदेश मळ्यो होय तेने स्त्री सहित पीठ आगळ ऊभा राखी स्नात्रकारकना हाथ उपर कुंभ मूकवो । स्त्री स्वामीना खभा उपर हाथ अडाडीने ऊभी रहे । ( अहीं कोई गामे स्त्री भर्तारना छेडाछेडी बांधे छे) ब्रह्मचारी होय तो एकलाना हाथ उपर पण थापे । ( ३१ ) ते कुंभमां सुखडनो साथियो करी ऊपर रूपानाणुं मूके । कुंभने कंठे ग्रीवासूत्र, ऋद्धि, वृद्धि प्रमुख बांधे, फूलमाळा पहेरावे । पछी एक मोटा नाळवाळो कळश नवण जळ वडे भरी अखंड धाराए, स्नात्रकारकना हाथमां रहेला कुंभने भरे । अहीं बीजा बे श्रावक बे बाजु बे कळश वडे स्नात्रजळ मोटा कळशमां एवी रीते रेडता जाय के जेथी For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ६९ ॥ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७०॥ मोटा खळशनी धारा खंडित न थाय । (३२) धारा देवा मांडे एटले एक श्रावक मोटी शांतिनो पाठ पद-वर्ण शुद्ध रीते भणे । जेटलीवारे कुंभ भराय अने शांतिपाठ पूरो थाय त्यां सुधी एक श्रावक नासिका चिंतवणीनो उपयोग देवरावे । पछी कुंभ उपर पूजित श्रीफळ मूके, ते उपर रांतु अथवा पीळु वस्त्र ढांके । पछी शक्ति होय तो कुंभने बे हाथमा झाले, नहीं तो मस्तके धारण करे । (३३) पछी पूर्वे जे बार श्रावके ग्रह-दिक्पाल नोतर्या होय ते बारे श्रावक ग्रहदिक्पाल विसर्जन करे । तेमा प्रथम एक पूजक श्रावक ग्रहपट्टक पासे आवी विसर्जन मुद्रा करी-ॐ नम आदित्याय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । आ प्रमाणे नवे ग्रहनु पोतपोतानुं नाम लईने उपरना मंत्र वडे विसर्जन करवू । (३४) पछी दिक्पालना पट्ट आगळ पण एक एक पूजक पुरुष पोतपोताना विसर्जन मंत्र वडे विसर्जन करे ते आ प्रमाणे - ॐ नमः इन्द्राय सायुधाय सवाहनाय सपरिकराय पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । आ प्रमाणे दशे दिक्पाल- जुदुं जुदुं नाम लईने विसर्जन करवू । (३५) त्यारपछी चार श्रावक, पूर्वे जे अर्धबलि राखेल छे तेमांथी दशमो भाग नोखो पाडी, ए थाळ उपाडी जळ धूप, दीप वगेरे सर्व उपकरण लई पूर्वे नोतर्या होय ते स्थानके आवी जे विधि वडे नोतर्या होय श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७०॥ For Personal Price Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७१ ॥ ते विधिए विसर्जन करवू, पण तेमां एटलो फेर समजवो के आह्वानने स्थाने गच्छ गच्छ बोलq. जेम के - ॐ नमः इन्द्राय पूर्वदिगधिष्ठायकाय ऐरावणवाहनाय सहस्त्रनेत्राय वज्रायुधाय संपरिजनाय पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । ए प्रमाणे अग्नि वगेरेमां पण समजवू ॥ इति विसर्जनविधिः ॥ (३५) पछी धवलमंगळ गातां, वाजिंत्र वगाडतां, दान आपतां घरमां ऊँचे आसने कुंभने पधरावी धूपदीप करीए, वधेलुं न्हवणर्नु पाणी आखा घरमा छांटीए । बधा श्रावक माथे चडावे अने बीजा श्रावकोने वहेंची आपे । त्यारपछी बे श्रावको भूतबलि मंत्रथी मंत्रेलो, रांधेला बलिनो जे दशमो भाग राख्यो छे ते बलि घरमां अने बहार सघळे भूतबलिमंत्र भणतां भणतां वधावे (ऊठाळे), स्नात्रकारक कुंभ घरमा लई जाय । (३६) पछी बीजा स्नात्रीया चार थोयथी देव वांदे । स्तवनमा संतकरं० स्तोत्र कहे । पछी संघभक्ति करवी । प्रभावना करवी । याचकने वस्त्रादिक आपवां । नैवेद्यनी रांधनारी बहेनोने पटकुलादि आपवां । ते वखते स्नात्रकारकना सगा संबंधी होय ते स्त्रीभर्तारने पहेरामणी करे । पछी गुरु सहित संघ साथे, पीछ आगळ आवी हाथ जोडी नीचे प्रमाणे बोले: श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७१ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७२॥ ॐ आह्वानं नैवं जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजार्चा नैव जानामि, त्वं गतिः परमेश्वरि ! ॐआज्ञाहीनं क्रियाहीनं,मन्त्रहीनंच यत् कृतम्।तत् सर्वं क्षमतां देवि! प्रसीद परमेश्वरि ।२। सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥३॥ ॥ इति श्री अष्टोत्तरशतस्नात्र विधिः ॥११॥ १२. अथ श्री शान्तिस्नात्रविधिः । (१) अथ प्रतिष्ठायां वा यात्रायां वा क्षुद्रोपद्रवशमनार्थमष्टाह्निकादौ शान्तिधारा | कार्या । (प्रतिष्ठामां, तीर्थयात्रा अवसरे अने अष्टाह्निका वगेरे प्रसंगे क्षुद्रउपद्रवोनी शान्तिने अर्थे शान्तिस्नात्र करवू.) (२) शुभ दिवसे विधिपूर्वक जळयात्रा करवी, पछी मुहूर्तने दिवसे प्रभाते स्नात्रकारक गृहस्थ अने डाभप्रमुखलांछन रहित एवा स्नात्रीया चार (जघन्यथी) विधिपूर्वक स्नान करे. जळशुद्धि, दंतशुद्धि, मुखशुद्धि, मंत्रस्नान, वस्त्रशुद्धि, तिलक, कंकण मंत्र ए सर्व अष्टोत्तरीस्नात्रविधि पृ०५८-५९ प्रमाणे समजवा । (३) पछी प्रभुनी अष्टप्रकारी पूजा करवी, ते आ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥७२॥ Join Education International For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ७३ ॥ प्रमाणे :- ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमात्मने अनन्तानन्तशक्तये जन्मजरामृत्यु - निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय १ जलं, २ चन्दनं ३ पुष्पं, ४ धूपं, ५ दीपम्, ६ अक्षतं, ७ नैवेद्यं, ८ फलताम्बूलं यजामहे स्वाहा । ( ४ ) पछी वृद्ध श्रावक विधिपूर्वक भूमिपीठे, गृहे वा चैत्य पासे पवित्र जळ- सोनावाणीए (सोनाना वरख सहित पाणी) भूमि शुद्ध करे, तेनो मंत्र :- ॐ ह्रीँ श्रीँ श्रीजीराउलीपार्श्वनाथ रक्षां कुरु कुरु स्वाहा । व मंत्र फूल गुंथणी (वाराफरती ) सात वार गणी सर्वत्र सोनावाणी छांटवं. (५) पछी वासचोखा अने पुष्प लई नीचेना मंत्र वडे भूमि शुद्ध करवी - ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं भूर्भुवः स्वधाय स्वाहा । (६) पछी पूर्व दिशाए अथवा उत्तर दिशाए पीठ मांडीए अने ॐ ह्रीँ अर्हत्पीठाय नमः । ए मंत्रे सात वार मंत्री पीठनी पूजा करीए । पछी शान्तिनाथ भगवाननी प्रतिमा स्थापीए तेनो मंत्र - ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने दिक्कुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय त्रैलोक्यमहिताय अत्र पीठे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । आ मंत्र त्रण वार भणी श्री शान्तिनाथ भगवाननी पंचतीर्थी प्रतिमा स्थापीए. (७) श्री शांतिनाथ भगवाननी प्रतिमाना अभावमां बीजा For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ।। ७३ ।। Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥७४ ॥ भगवाननी प्रतिमामां श्री शान्तिनाथ भगवानी कल्पना नीचे प्रमाणे मंत्रपूर्वक करवी. ॐ नमोऽर्हद्भ्यस्तीर्थकरेभ्यो जिनेभ्यो ऽनाद्यनन्तेभ्यः समबलेभ्यः समतेभ्यः समप्रभावेभ्यः समकेवलेभ्यः समतत्त्वोपदेशेभ्यः समपूजितेभ्यः समकल्पनेभ्यः समस्ततीर्थकंराणां पंचदशकर्मभूमिभवस्तीर्थकरो यो यत्राराध्यते सोऽत्र प्रतिष्ठाया सन्निहितोऽस्तु । आ मंत्र वडे त्रण वार मंत्रीने जिनप्रतिमामां बीजा तीर्थंकर भगवाननी कल्पना (स्थापना) करवामां आवे छे. (८) पछी कोरा शरावलामां सधवा स्त्री पासे गोघृत पूरावीए. तेनो मंत्र - ॐ घृतमायुर्वृद्धिकरं भवति परं जैनदृष्टिसम्पर्कात् । तत्संयुतः प्रदीपः, पातु सदा भावदुःखेभ्यः ॥१॥ स्वाहा ।आ मंत्र त्रण वार भणी धी पूरीए । पछी दीप प्रगट करीए । तेनो मंत्र :- ॐ अर्ह, पञ्चज्ञानमहाज्योति-र्मयाय ध्वान्तघातिने । द्योतनाय प्रतिमाया, दीपो भूयात् सदाऽऽर्हतः ॥१॥ ए मंत्र त्रण वार बोली दीप प्रगटाववो । श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७४॥ Jan Education international For Personal & Private Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि 11 94 11 (९) पछी तांबानी एक माटली धोई धूपी ते मध्ये केसर सुखडनो साथीयो करी ते उपर नीचेनो मंत्र लखवो :- ॐ ह्रीं श्रीं सर्वोपद्रवान्नाशय नाशय स्वाहा । ए मंत्र लखी तेना कंठे ग्रीवासूत्र, मींढळ, मरडाशींगी, समूल डाभ बांधीए । तेमां रूपीयो एक तथा पंचरत्ननी पोटली मूकीए, तेनो मंत्र :- ॐ ह्रीँ श्रीँ, नानारत्नौघसंयुतं, सुगन्धि- पुष्पाधिवासितं नीरम् । पतताद्विचित्रवर्णं मन्त्राढ्यं स्थापनाबिम्बे ॥१ ॥ स्वाहा । ए मंत्र वडे मंत्री पंचरल मूकीए । पछी ॐ ह्रीँ ठः ठः ठः स्वाहा । ए मंत्रे सात वार मंत्री ते माटली प्रभुजीने जमणे पासे स्थापीए । वासपुष्पे पूजीए । (१०) पछी पंचामृत- घृत १, दुध २, दहीं ३, साकर ४, पाणी ५ - ए पांच एकठां करी - ॐ ह्रीँ, जिनबिम्बोपरि निपतद् घृतदधिदुग्धादि - द्रव्यपरिपूतम् । गन्धोदकसम्मिश्रं पञ्चसुधं हरतु दुरितानि ॥१॥ स्वाहा । ए मंत्रे त्रण वार मंत्री माटली | मध्ये पंचामृत रेडीए । पछी तेमां तीर्थजळ तथा कूवानां पाणी नांखीए. तेनो मंत्र : ॐ ह्रीँ भूः (भः ) जलधिनदीद्रहकुण्डेषु यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि शुद्ध्यर्थम् ॥ १॥ स्वाहा । ए मंत्रे सात वार मंत्री माटली मध्ये जळ रेडीए । पछी For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ।। ७५ ।। Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७६ ॥ तेमां सवौषधि नांखीए तेनो मंत्र :- ॐ ही, सर्वौषधिसंयुक्त्या, सुगन्धया घर्षितं सुगतिहेतोः । स्नपयामि जैनबिम्बं, मन्त्रिततन्नीरनिवहेन ॥१॥ स्वाहा । ए मंत्रे मंत्री माटली मध्ये सौंषधम नांखीए । चंदनना छांटा नांखीए । दरीयाइ तास्तो (लीलुं वस्त्र) ढांकीए पछी दक्ष श्रावक धूप दीप सहित माटली पर हाथ राखी नवकार १, उवसग्गहरं २, संतिकरं ३, तिजयपहुत्त ४, नमिऊण ५, अजितशांति ६ अने भक्तामर ७-ए सात स्मरण शुद्ध पाठपूर्वक गणे । (११) पछी विधिथी स्नात्रपीठ उपर श्री शान्तिनाथ तथा श्री ऋषभदेवनी पंचतीर्थी मूर्ति सिद्धचक्रयुक्त स्थापवी । पछी सुवर्णना, रूपाना तथा अन्य धातुना कळश धोई धूपी पंचामृत भरी श्री शांतिनाथ- स्नात्र भणावीए । तेमां चार कुमार कुमारिका पवित्र श्वेत वस्त्र आभरणादिक पहेरे । पछी अष्टप्रकारी पूजा भणावे । विमलकेवलभासनभास्करं,जगति जन्तुमहोदयकारणम् । जिनवरं बहुमानजलौघतः, शुचिमनाः स्नपयामि विशुद्धये ॥ स्नात्र करतां जगतगुरु शरीरे, सकलदेवे विमलकलश नीरे । आपणां कर्ममळ दूर कीधा, तिणे ते विबुध ग्रंथे प्रसिद्धा ॥१॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि For Personal & Private Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७७॥ हर्ष धरी अप्सरावृंद आवे, स्नात्र करी एम आसीस पावे । जिहां लगे सुरगिरि जंबूदीवो, अमतणा नाथ जीवानुजीवो ॥२॥ श्री मन्मन्दरमस्तके शुचिजलैधौते सदर्भाक्षतैः, पीठे मुक्तिवरं विधाय रचितं तत्पादपुष्पस्त्रजा। इन्द्रोऽहं निजभूषणार्थममलं यज्ञोपवीतं दधे, मुद्राकंकणशेखराण्यपि तथा जैनाभिषेकोत्सवे ॥१॥ विश्वैश्वर्यैकवर्यास्त्रिदशपतिशिरःशेखरस्पृष्टपादाः, प्रक्षीणाशेषदोषाःसकलगुणगणग्रामधामान एव । जायन्ते जन्तवो यच्चरणसरसिजद्वन्द्वपूजान्विताः श्री अर्हन्तं स्नात्रकाले । श्री कलशजलभृतैरेभिराप्लावयेत्तम् । अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि ___ ॐ ह्रीं श्री परमपुरुषाय ॐ हाँ ही हूँ हूँ हौं हूँः अर्हते तीर्थोदकेन । विधि | अष्टोत्तरशतौषधिना सह षष्टिलक्षकौट्यैकप्रमाणकलशैः स्नपयामि, शान्तिं तुष्टिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ आ मंत्र उच्चरतां स्नात्र करीए ॥ इति जलपूजा ॥१॥ ॥७७॥ For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥७८ ॥ जिनतनु चर्चतां सकल नाकी, कहे कुग्रह उष्णता आज थाकी । सफळ अनिमेषता आज माकी, भव्यता अमतणी आज पाकी ॥३॥ - इति चन्दनपूजा ॥२॥ जगधणी पूजतां विविध फूले, सुरवरा ते गणे खीण अमूले । खंत धरी मानवा जिनप पूजे, तसतणा पापसंताप धुजे ॥४॥ - इति पुष्पपूजा ॥३॥ जिनगृहे वासतां धूप पूरे, मिच्छत्त दुर्गन्धता जाय दूरे । धूप जिम सहज ऊरध (गति) सभावे, कारका उञ्चगतिभाव पावे ॥५॥- इति धूपपूजा ॥४॥ जे जना दीपमाला प्रकाशे, तेहथी तिमिर अज्ञान नासे । निज घटे ज्ञान जोति विकासे, जेहथी जगतना भाव भासे ॥६॥ - इति दीपपूजा ॥५॥ स्वस्तिक पूरतां जिनप जागे, स्वचेतसि (स्वस्तिश्री) भद्रकल्याण जागे । जन्मजरामरणादि अशुभ भागे, नियत-शिवशर्म रहे तास आगे ॥७॥-इति स्वस्तिक पूजा ॥६॥ ढोकतां भोज्य परभाव त्यागे, भविजना निजगुण भोग्य मागे।। हम भणी हम तणुं स्वरूप भोज्यं, आपजो तातजी जगतपूज्यं ॥ - इति नैवेद्यपूजा ॥७॥ फळ भरे पूजतां जगतस्वामी, मनुजगति वेल होय सफळ पामी । सकळ मुनि ध्येयगति भेद रंगे, ध्यावतां फळ समाप्ति प्रसंगे ॥ - इति फलपूजा ॥८॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७८॥ Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७९॥ (१२) अष्टप्रकारी पूजा करी, पछी प्रभुने जमणे पडखे श्रीशान्तिदेवीनो कुंभ स्थापीए (कुंभस्थापननी पेठे) पछी ग्रहस्थापन, दिक्पालस्थापन तथा नंद्यावर्तसाथिया प्रमुख अष्टमंगळनी स्थापना करवी, पछी दशदिक्पाल अने ग्रहोने पवित्र बलिबाकळा देवा । (दिक्पाल बृहद् आह्वान विधि प्रमाणे जुओ !) (१३) प्रथम शान्तिस्नात्र भणावे-तेमां सोनावाणी १, फूल २,कंकु ३,चंदन ४, हाथमध्ये राखी वाजते-गाजते 'ॐक्षा क्षेत्रपालाय नमः ।' ए प्रमाणे कही पूर्वदिशा तरफ उछाळवू । ॐ ही दिक्पालाय नमः । ए प्रमाणे कही दक्षिण दिशा तरफ उछाळवू । ॐ ह्रीं षोडशमहादेवीभ्यो नमः । ए प्रमाणे कही पश्चिम दिशा तरफ उछाळवू । ॐ हीं जिनशासनदेवीभ्यो नमः । ए प्रमाणे कही उत्तर दिशा तरफ उछाळवू । आ प्रमाणे क्षेत्रपालादिक पूजीए। (१४) पछी चार कळश सोनावाणी पाणीए क्षीरोदक भरी, पंचामृते शान्तिघोषणापूर्वक (उच्चरते) स्नात्र करीए । गाथा यथा :रोगशोकादिभिर्दोषै-रजिताय जितारये । नमः श्रीशान्तये तस्मै, विहिताशिवशान्तये ॥१॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७९॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८० ॥ श्रीशान्तिजिनभक्ताय, भव्याय सुखसम्पदाम्। श्रीशान्तिदेवता देया-दशान्तिमपनीयताम्॥२॥ अम्बा निहितडिम्भा मे सिद्धिबुद्धिसमन्विता ।सिते सिंहे स्थितागौरी, वितनोतु समीहितम् ॥३॥ धराधिपतिपत्नी या, देवी पद्मावती सदा ।क्षुद्रोपद्रवतः सा मां, पातु फुल्लत्फणावली ॥४॥ चञ्चच्चक्रधरा चारु-प्रवालदलदीधितिः।चिरं चक्रेश्वरीदेवी, नन्दतादवताच्च माम्॥५॥ खङ्गखेटककोदण्ड-बाणपाणिस्तडिद्युतिः तुरङ्गगमनाऽच्छुप्ता, कल्याणानि करोतु मे ॥६॥ मथुरायां सुपार्श्वश्रीः,सुपार्श्वस्तूपरक्षिका । श्रीकुबेरा नरारूढा, सुताङ्काऽवतु वो भयात् ॥७॥ ब्रह्मशान्ति स मां पाया-दपायाद्वीरसेवकः । श्रीमद्वीरपुरे सत्या, येन कीर्तिः कृतानिजा ॥८॥ श्रीशक्रप्रमुखा यक्षा, जिनशासनसंस्थिताः। देवीदेवास्तदन्येऽपि,संघं रक्षन्त्वपायतः ॥९॥ श्रीमद्विमानमारूढा,मातङ्ग्यक्षसङ्गता ।सा मां सिद्धायिका पातु, चक्रचापेषुधारिणी ॥१०॥ (१५) पछी ग्रीवासूत्रनो २१ तारनो दडो हाथमां लईने फूलगुंथणीए नवकार १, उवसग्गहरं २, लोगस्स ३, सात वार गणी मंत्रीए । दोरो मण्डप अथवा मन्दिर उपर वीटीए । पछी वज्रपञ्चर करवू (जुओ पृ. १) श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८०॥ For Personal Private Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ८१ ॥ (१६) पछी अष्टप्रकारी पूजानो सामान मेळवीए । १०८ नाळचावाळा कळश क्षीरोदके पंचामृते भरी शुभ श्रावक स्नात्र करे, अथवा आठ कळशे-नीचेनी गाथा भणीने स्नात्र करीए :( १ ) नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । ॐ शान्तिं शान्तिनिशान्तं, शान्तं शान्ताशिवं नमस्कृत्य । स्तोतुः शान्तिनिमित्तं, मन्त्रपदैः शान्तये स्तौमि ॥ १ ॥ - ह्रीं स्वाहा ॐ नमो जिणाणं सरणाणं मंगलाणं लोगुत्तमाणं ह्रां ह्रीं हूँ हूँ ह्रीँ हूँ: असिआउसा त्रैलोक्यललामभूताय क्षुद्रोपद्रवशमनाय (नाशाय ) अर्हते नमः स्वाहा । ॐ तं संति संतिकरं, संतिण्णं सव्वभया । संतिं थुणामि जिणं, संतिं विउ मे ॥१॥ ह्रीं स्वाहा ॥ ॐ रोगजलजलणविसहर-चोरारिमइँदगयरणभयाइँ । पासजिणनामसंकित्तणेण, पसमंति सव्वाइँ ॥२॥ ह्रीं स्वाहा ॥ ॐ वरकणयसंखविद्दुम- मरगयघणसंनिहं विगयमोहं । सत्तरिसयं जिणाणं, सव्वामरपूइयं वंदे ॥३॥ ह्रीं स्वाहा ॥ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ८१ ॥ Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥८२ ॥ ॐ भवणवइवाणवंतर-जोइसवासी विमाणवासी य ।। जे केइ दुट्टदेवा, ते सव्वे उवसमंतु मम ॥४॥ ह्रीं स्वाहा ॥ 'एम भणी अभिषेक करवो ॥१॥ दरेक स्नात्रनी शरुआतमा 'नमोऽर्हत्' बोलवू अने पछी स्नातनी गाथा बोलवी । पछी ॐ नमो जिणाणं इत्यादि पाठ अने चार गाथा भणी अभिषेक करवो ॥१॥ स्नात्र २ - ॐ ओमितिनिश्चितवचसे, नमो नमो भगवतेऽर्हते पूजाम् । शान्तिजिनाय जयवते, यशस्विने स्वामिने दमिनाम् ॥२॥ हा ॥ १. ॐ नमोऽर्हते परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने दिक्कुमारीपरिपूजिताय दिव्यशरीराय त्रैलोक्यमहिताय देवाधिदेवाय अस्मिन् जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे दक्षिणार्धभरते मध्यखण्डे अमुकदेशे-अमुकग्रामे अमुकजिनप्रासादे अमुकगृहे शान्ति-स्नात्रविधिमहोत्सवे स्नात्रस्य कर्तुः कारयितुश्च श्रीसंघस्य ऋद्धिं वृद्धिं कल्याणं कुरु कुरु स्वाहा । आ पाठ कोई कोई पूजा वखते बोलाय छ। विमल केवल भासन भास्कर, जगति जन्ममहोदयकारणम् । जिनवरं बहुमानजलौघतः, शुचिमनाः स्नपयामि विशुद्धये ॥१॥ स्नात्र करतां जगद्गुरु शरीरे, सकलदेवे विमलकळश नीरे । आपणां कर्ममळ दूर कीधा, तेणे ते विबुध ग्रंथे प्रसिद्धा ॥२॥ हर्ष धरी अप्सरा वृंद आवे, स्नात्र करी एम आसीस भावे । जिहां लगी सुरगिरि जंबूदीवो, अमतणां नाथ जीवानुजीयो ॥३॥ ॐ ह्री श्री परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलादिकं यजामहे स्वाहा ।। ( आ पाठ दरेक स्नात्र वखते विधिकारक पण बोले), श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥८२ ॥ Join Education International For Personal & Private Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री ॥८३॥ __ ॐ सकलातिशेषकमहा-सम्पत्तिसमन्विताय शस्याय। त्रैलोक्यपूजिताय च, नमो नमः शान्तिदेवाय ॥३॥ ह्रीं स्वाहा ॥ 12 स्नात्र ४- ॐ सवामरसुसमूह-स्वामिकर ॐ सर्वामरसुसमूह-स्वामिकसंपूजिताय न जिताय । अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि भुवनजनपालनोद्यत-तमाय सततं नमस्तस्मै ॥४॥ ही स्व विधि स्नात्र ५ - ॐ सर्वदुरितौघनाशन-कराय सर्वाशिवप्रशमनाय । दुष्टग्रहभूतपिशाच-शाकिनीनां प्रमथनाय ॥५॥ ही स्वाहा ॥ स्नात्र ॐ यस्येति नाममंत्र-प्रधानवाक्योपयोगकृततोषा । विजया कुरुते जनहित-मिति न नुता नमत तं शान्तिम् ॥६॥हीं स्वाहा ॥ स्नात्र ७- ॐ भवत् नमस्ते भगवति ! विजये सजये परापरैरजिते । अपराजिते जगत्यां, जयतीति जयावहे भवति ? ॥७॥ ह्रीं स्वाहा ॥ ॐ सर्वस्यापि च संघस्य, भद्रकल्याणमङ्गलप्रददे । साधूनां च सदा शिव-सुतुष्टिपुष्टिप्रदे जीयाः ॥८॥ ह्रीं स्वाहा ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८३॥ in Education n ational For Personal & Private Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥८४॥ ॐ भव्यानां कृतसिद्धे, निर्वृतिनिर्वाणजननि सत्त्वानाम् । अभयप्रदाननिरते, नमोऽस्तु स्वस्तिप्रदे तुभ्यम् ॥९॥ ह्रीं स्वाहा ॥ स्नात्र १० - ॐ भक्तानां जन्तूनां, शुभावहे नित्यमुद्यते देवी !। सम्यग्दृष्टिनां धृति-रतिमतिबुद्धिप्रदानाय ॥१०॥ ह्रीं स्वाहा ॥ स्नात्र ११ - ॐ जिनशासननिरतानां शान्तिनतानां च जगति जनतानाम् । श्रीसम्पत्कीर्तियशो-वर्द्धनि जय देवि विजयस्व ॥११॥ ही स्व हा ॥ स्नात्र १२ - ॐ सलिलानलविषविषधर-दुष्टग्रहराजरोगरणभयतः । राक्षसरिपुगणमारी-चौरतिश्वापदादिभ्यः ॥१२॥ ही स्वाहा ॥ ॐ अथ रक्ष रक्ष सुशिवं, कुरु कुरु शान्तिं च कुरु कुरु सदेति । तुष्टिं कुरु कुरु, पुष्टिं कुरु कुरु, स्वस्तिं च कुरु कुरु त्वम्॥१३॥हीं स्वाहा ॥ १४ - ॐ भगवति गुणवति शिवशान्ति-तुष्टि पुष्टि स्वस्तीह कुरुकुरु जनानाम् । ओमिति नमो नमो हा ही हु हः यःक्षः ही फुट फुट् स्वाहा ॥१४॥ही स्वाहा ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८४॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८५॥ स्नात्र १५ - ॐ एवं यन्नामाक्षर-पुरस्सरं संस्तुता जया देवी । कुरुते शान्तिं नमतां, नमो नमः शान्तये तस्मै ॥१५॥ ह्रीं स्वाहा ॥ स्नात्र १६ - ॐ इतिपूर्वसूरिदर्शित-मन्त्रपदविदर्भितः स्तवः शान्तेः । सलिलादिभयविनाशी शान्त्यादिकरश्च भक्तिमताम् ॥१६॥ ह्रीं स्वाहा ॥ स्नात्र १७ - ॐ यश्चैनं पठति सदा, श्रृणोति भावयति वा यथायोगम् । स हि शान्तिपदं यायात्, सूरिः श्रीमानदेवश्च ॥१७॥ ह्रीं स्वाहा ॥ १८ - ॐ सनमो विप्पोसहि-पत्ताणं संतिसामिपायाणं । झौं-स्वाहा-मंतेणं, सव्वासिवदुरियहरणाणं ॥१८॥ ह्रीं स्वाहा ॥ १९ - ॐ संतिनमुक्कारो, खेलोसहिमाइलद्धिपत्ताणं । सौं ही नमो सव्वोसहि-पत्ताणं च देइ सिरिं ॥१९॥ ही स्वाहा २० - ॐ पणवीसा य असीया, पणरस पन्नासजिणवरसमूहो । नासेउ सयलदुरियं, भवियाणं भत्तिजुत्ताणं ॥२०॥ ह्रीं स्वाहा ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८५॥ Jan Education International For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८६॥ स्नात्र २१ - ॐ वीसा पणयाला वि य, तीसा पन्नत्तरी जिणवरिंदा । गहभूअरक्खसाइणी, घोरुवसग्गं पणासंतु ॥२१॥ ही स्वाहा ॥ स्नात्र २२ - ॐ सत्तरि पणतीसा विय, सट्टी पंचे व जिणगणो एसो । वाहिजलजलणहरिकरि-चोरारिमहाभयं हरउ ॥२२॥ ही स्वाहा ॥ स्नात्र २३ - ॐ पणपन्ना य, दसेव य, पन्नट्ठी तहय चेव चालीसा । रक्खंतु मे सरीरं, देवासुरपणमिया सिद्धा ॥२३॥ ही स्वाहा ॥ स्नात्र २४ - ॐ श्रीमते शान्तिनाथाय, नमः शान्तिविधायिने । त्रैलोक्यस्यामराधीश-मुकुटाभ्यर्चितांघ्रये ॥२४॥ ह्रीं स्वाहा स्नात्र २५ - ॐ शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान्, शान्तिं दिशतुं मे गुरुः । शान्तिरेव सदा तेषां, येषां शान्तिर्गृहे गृहे ॥२५॥ ही स्वाहा ॐ उन्मृष्टरिष्टदुष्ट-ग्रहगतिदुःस्वप्नदुर्निमित्तादि । सम्पादितहितसंप-नामग्रहणं जयति शान्तेः : ॥ स्वाहा श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८६॥ For Personal & Private Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥८७॥ स्नात्र २७ - ॐ श्री संघजगज्जनपद-राजाधिपराजसन्निवेशानाम् । गोष्ठिकपुरमुख्याणां, व्याहरणैाहरेच्छान्तिम् ॥२७॥ ही स्वाहा ॥ श्रीश्रमणसंघस्य शान्तिर्भवतु ।१। श्रीजनपदानां शान्तिर्भवतु ।२।श्रीराजाधिपानांशान्तिर्भवतु ।।श्रीराजसन्निवेशानांशान्तिर्भवतु।४। श्रीगोष्ठिकानांशान्तिर्भवतु ।५।श्रीपौरमुख्याणां शान्तिर्भवतु ।६।श्रीपौरजनस्य शान्तिर्भवतु ।७। श्रीब्रह्मलोकस्य शान्तिर्भवतु ।८। ॐ हीं स्वाहा । ॐ स्वाहा । ॐ स्वाहा । ॐ श्री पार्श्वनाथाय स्वाहा। ॐ नमो तुह दंसणेण सामिय पणासए रोगसोगदोहग्गं । कप्पहुमेव जायइ, तुह दंसण पसमस्स फलहेउ ॥१॥ ही स्वाहा ॥ ॐ नमः एव पणवसहियं, मायाबीएण धरणनागिंदं । श्रीकामरायकलियं, पासजिणिंदं नमसामि ॥२॥ ही स्वाहा ॥ . १. आ बीजा पदने स्थाने सातमुं पण बोलाय छे, बाकी क्रम छ ए ज प्रमाणे । श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥८७॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥८८॥ ॐ अट्ठेव य अट्ठसया, अट्ठसहस्सा य अट्ठकोडीओ । रक्खंतु मे सरीरं, देवासुरपणमिया सिद्धा ॥३॥ ही स्वाहा ॥ ॐ थंभेडं जलजलणं, चिंतियमित्तो वि पंचनमक्कारो। अरिमारिचोरराउल-घोरुवसग्गं मम निवारेइ ॥४॥ ही स्वाहा ॥ ॐ क्षेमं भवतु सुभिक्षं शस्यं निष्पद्यतॉ जयतु धर्मः ।। शाम्यन्तु सर्वरोगाः, ये केचिदुपद्रवा लोके ॥५॥ ह्रीं स्वाहा ॥ (१७) पछी स्नात्रपूजा करी अष्टप्रकारी पूजा विशेष प्रकारे करे । आरती, मंगलदीवो करे । नैवेद्य ढांके । पछी नीचे प्रमाणे देव वांदे । . प्रथम इरियावहि०।खमा० इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदन करूं ? इच्छं कही चैत्यवंदन बोलवू । नमुत्थुणं, अरिहंतचेइआणं अन्नत्थ० कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी, पारी नमोऽर्हत्० कही स्तुति कहे, ते आ प्रमणे - अहँ स्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद्ध्यानतो नरैः। अप्यन्द्री सकलाऽत्रैहिं, रंहसा सह सौच्यत ॥१॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८८॥ Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि | पछी लोगस्स० सव्वलोए वंदणवत्तिआए अन्नत्थ० कही एक नवकारनो काउ० करी, पारी नीचेनी स्तुति कहे ओमिति मन्ता यच्छा-सनस्य नन्ता सदा यदंहीश्च । आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु । पछी पुक्खरवरदी० सुअस्स० वंदणवत्तिआए० अन्नत्थ० कही एक नव० काउ० पारी स्तुति कहे, ते आस्व नवतत्त्वयुता त्रिपदी-श्रितारुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता-वरधर्मकीर्तिविद्या-नन्दास्या जैनगीर्जीयात् । पछी सिद्धाणं वृद्धाणं० श्रीशान्तिनाथआराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं, वंदणवत्तिआए० अन्नत्थ कही एक लोगस्सनो काउस्सग्ग करी, पारी, नमोऽर्हत् कही, स्तुति कहेवी, ते आ श्रीशान्तिः श्रुतशान्तिः, प्रशान्तिकोऽसावशान्तिमुपशान्तिम् । नयतु सदा यस्य पदाः, सुशान्तिदाः सन्तु सन्ति जने ॥४॥ . पछी श्रीद्वादशांगी आराधनार्थं करेमि काउ० वंदणवत्तिआए० अन्नत्थ० कही एक नवकारनो काउ० करी, पारी नमोऽर्हत् कही, स्तुति कहे, ते आ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८९ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥९० ॥ सकलार्थसिद्धिसाधन-बीजोपाङ्गा सदा स्फुरदुपाङ्गा । भवतादनुपहतमहा-तमोऽपहा द्वादशांगी वः । पछी श्रुतदेवताआराधनार्थं करेमि० काउ० अन्नत्थ० कही एक नवकारनो काउ० करी, पारी नमोऽर्हत् कही स्तुति कहेवद वदति न वाग्वादिनि, भगवति कः श्रुतसरस्वति गमेच्छुः । रङ्गत्तरङ्गमतिवर-तरणिस्तुभ्यं नम इतीह ॥६॥ पछी शासनदेवताआराधनार्थं करेमि काउ० अन्नत्थ० कही एक नवकारनो काउ० करी पारी | नमोऽर्हत् कही स्तुति कहे उपसर्गवलयविलयन-निरता जिनशासनावनैकरताः। द्रुतमिह समीहितकृते, स्युः शासनदेवता भवताम् ॥ पछी समस्तवेयावच्चगराणं संतिगराणं सम्मदिट्ठिसमाहिगराणं करेमि काउ० अन्नत्थ कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी, पारी नमोऽर्हत् कही स्तुति कहे, ते आ - संघेऽत्र ये गुरुगुणौघनिधे सुवैया-वृत्त्यादिकृत्यकरणैकनिबद्धकक्षाः । ते शान्तये सह भवन्तु सुरा सुरीभिः सदृष्टयो निखिलविघ्नविघातदक्षाः ॥८॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥९० ॥ Jain Education Internation For Personal & Private Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥९१ ॥ पछी प्रकट एक नवकार बोली नमुत्थुणं० जावंति चेइआइं० खमा० जावंत केवि साहू० नमोऽर्हत्० कही स्तवनने स्थाने अजियसंति अथवा संतिकरं कही जय वीयराय बोलवा । (१८) पछी छेवटे जे बलिबाकळा राख्या छे ते उछाळवा, पछी पहेला स्थापन करेला शान्तिदेवीना कुंभ आगळ बीजा चार कुंभ डाघरहित घाटवंता लईने ते दरेकमां चोखा शेर सवा, रूपानाj, सोपारी ५ मूकी श्रीफळ एक लीला पीळा वस्त्र वडे ढांकी, ग्रीवासूत्र बांधी, फूलमाळ पूजीने शुभ श्रावक कुमारिकाना माथे स्थापी वाजते-गाजते गीत गाते शान्तिकुंभ पासे आवी स्थापे । पछी शान्तिदेवीने योग्य नैवेद्य धरीए, ते आ प्रमाणे :- खीर करंबो, बाट-लापसी, सुंवाली २१, वडा २१, पंचधारी-लापसी, लाडवा मगदळना ९, दहीं एक पात्रमा नांखी मूकीए. पछी त्यां मंगलदीवो उतारीए। पछी शान्ति उद्घोषणापूर्वक क्षेत्रदेवी-देवता पूजीए । (१९) पछी नीचे प्रमाणे देव वांदीए :- इरियावहि० अन्नत्थ० कही एक लोगस्सनो काउ० करी प्रकट लोगस्स कही पछी चैत्यवंदन, नमुत्थुणं० वगेरे कही स्तवन संतिकरंगें कही जय वीयराय० कहेवा । पछी अरिहंतचेइयाणं कही अन्नत्थ एक नव० काउ० पारी नमोऽर्हत् कही स्तुति कल्लाणकंदं० नी कहेवी. श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥११॥ Jain Education international For Personal & Private Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ९२ ॥ पछी इच्छाकारेण संदिसह भगवन्, क्षेत्रदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थं० कही एक लोगस्सनो काउ० करी पारी नमोऽर्हत् कही स्तुति कहेवी. ते आ यस्याःक्षेत्रं समाश्रित्य, साधुभिः साध्यते क्रिया । सा क्षेत्रदेवता नित्यं, भूयान्नः सुखदायिनी ॥१॥ पछी भुवणदेवयाए करेमि काउ० अन्नत्थ० कही एक लोगस्सनो काउ० पारी, नमोऽर्हत् कही स्तुति कहेवी. ज्ञानादिगुणयुतानां नित्यं स्वाध्यायसंयमरतानाम् । विदधातु भुवनदेवी, शिवं सदा सर्वसाधूनाम् । पछी शान्तिदेवतायै करेमि काउ० अन्नत्थ० कही एक नवकारनो काउ० करी पारी, नमोऽर्हत् कही स्तुति कहेवी. श्री चतुर्विधसंघस्य, शासनोन्नतिकारिणी । शिवशान्तिकरी भूया - च्छ्रीमती शान्तिदेवता ।१ । श्री क्षुद्रोपद्रवोपशमावणी करेमि काउंस्सग्गं अन्नत्थ० कही एक नवकार, एक उवसग्गहरं, एक लोगस्स ए त्रणेनो काउस्सग्ग करी, पारी नमोऽर्हत् कही स्तुति कहेवी, ते आसर्वे यक्षाम्बिकाद्या ये वैयावृत्यकरा जिने । क्षुद्रोपद्रवसंघातं, ते द्रुतं द्रावयन्तु न: ।१ । पछी एक नवकार कहेवो । For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ।। ९२ ।। Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥९३॥ (२०) पछी नवणना पाणीए बृहत्शान्तिनो पाठ उच्चरते शान्तिकळश भरवो । ते उपर नाळियेर मूकी लीलुं वस्त्र सौभाग्यवती स्त्री तेने माथे ले अने वाजतेगाजते गृहस्थने घेर पधरावे । पछी विसर्जन करे । नवण- पाणी मंत्रित कळशमां भरी घरमां, घरफरती अथवा गामफरती धारावाडी वाजतगाजते देवी। इति शान्तिस्नात्रविधिः ॥ (सकलभद्रगणिकृतः) १३. अथ विसर्जनविधिः प्रथम जुवारनी धाणी शेर पांचनी करवी । पछी लाडु शेर सवाबेनो करवो, तेमां रूपानाj अने विंध्या वगरनुं मोती नाखवू । पछी ते लाडवो धाणी उपर मूकी पतासा, धूप, कुसुमांजलि पासे राखीने विसर्जन करवू. ते आ प्रमाणे - (१) कुंभविसर्जन - कुंभनी पासे जईने ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । एम बोलवू. (२) अखंडदीपविसर्जन - अखंड दीपनी सामे जईने ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । एम बोलवू. श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥१३॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि (४) नवग्रहनुं विसर्जन- (१) ॐ नमः आदित्याय सायुधाय सवाहनाय सपरिजनाय पूजांबलिं गृहाण गृहाण स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । (२) ॐ नमश्चन्द्राय-बाकी पूर्ववत् (३) ॐ नमो भौमाय-बाकी पूर्ववत् (४) ॐ बुधाय-बाकी पूर्ववत् (५) ॐ नमो बृहस्पतये-बाकी पूर्ववत् (६) ॐ नमः शुक्राय-बाकी पूर्ववत् (७) ॐ नमः शनैश्चराय-बाकी पूर्ववत् (८) ॐ नमो राहवे-बाकी पूर्ववत् (९) ॐ नमः केतवे-बाकी पूर्ववत् (५) दशदिक्पाल विसर्जन-(१) ॐ नमः इन्द्राय-बाकी पूर्ववत्। (२) ॐ नमो अग्नये-बाकी पूर्ववत्। (३) ॐ नमो यमाय-बाकी पूर्ववत्। (४) ॐ नमो नैऋताय-बाकी पूर्ववत्। (५) ॐ नमो वरुणाय-बाकी पूर्ववत्। (६) ॐ नमो वायवे-बाकी पूर्ववत्। (७) ॐ नम धनदाय-बाकी पूर्ववत्। (८) ॐ नमो ईशानायबाकी पूर्ववत्। (९) ॐ नमो ब्रह्मणे-बाकी पूर्ववत्। (१०) ॐ नमो नागाय-बाकी पूर्ववत्। ॥९४ ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥९४॥ Jain Education n ational For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि (६) अष्टमंगलविसर्जन-अष्टमंगलना पाटला आगळ ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा । (७) घंटाकर्ण के माणिभद्र वीरनुं विसर्जन-घंटाकर्णना पाटला आगळ ॐ विसर विसर स्वस्थानं गच्छ गच्छ स्वाहा। (बीजे स्थले एम पण छ के-ॐ नम आदितेभ्यः सवाहनेभ्यः सपरिकरेभ्यः सायुधेभ्यः सर्वोपद्रवाद् रक्षत रक्षत स्वस्थानं गच्छत गच्छत स्वाहा । ए प्रमाणे सर्वत्र) पछी विसर्जन मुद्रापूर्वक हाथ जोडी आ प्रमाणे बोलवू - जिनेन्द्रभक्त्या जिनभक्तिभाजां, येषां च पूजाबलिपुष्पधूपान् । ग्रहा गता ये प्रतिकूलताञ्च, ते सानुकूला वरदा भवन्तु ॥१॥ देवदेवार्चनार्थाय( Vतु )पुराऽऽहूता हिये सुराः । ते विधायार्हतां पूजां, यान्तु सर्वे यथागतम् ।। या पाति शासनं जैनं, सद्यः प्रत्यूहनाशिनी ।सा ह्यभिप्रेतसिद्ध्यर्थं, भूयाच्छासनदेवता ।३। ॥ ९५ ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥९५ ॥ For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ।। ९६ ।। कीर्तिं श्रियो राज्यपदं सुरत्वं, न प्रार्थये किञ्चन देव ! यत्त्वाम् । मत्प्रार्थनीयं भगवन् ! प्रदेयं, स्वदास्यतां मां नय सर्वदाऽपि ॥४॥ भूस्खलितपादानां, भूमिरेवावलम्बनम् । त्वयि जिनापराद्धानां त्वमेव शरणं मम ॥५॥ आह्वानं नैव जानामि, न जानामि विसर्जनम् । पूजार्चां नैव जानामि, त्वं गति परमेश्वरी ! |६| आज्ञाहीनं क्रियाहीनं, मन्त्रहीनं च यत् कृतम् । तत् सर्वं क्षमतां देवि ! प्रसीद परमेश्वरी ! |७| उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥८॥ सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥९॥ ॥ इति विसर्जनविधिः १३ ॥ For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ९६ ॥ Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गरुतवत MONNRNAL NANAVAAAAAAA YOTOYOTOYOOOOY शा फतेचन्दजी मीठालालजी सुराणा श्रीमती अशीबाई फलेचन्दजी मुराणा शा. फतेचन्दजी मीठालालजी सुराणा सपत्र किरणकुमार - जितेन्द्रकुमार पौत्र- दर्शन-चिराग, पौत्री- रितीका - रूचिता - सलोनी पुत्री जमाई-कान्ता उत्तमचन्दजी संचेती खौड रेखा मनोजजी कोठारी धाणेराव एवं सुराणा परिवार बालराई (राजस्थान) निवासी BHARAT GRAPHICS - Armedabad-1 Ph- 079-22136178,ME9925020100KOY ચિત્રકૂટ-વતાદિ તીર્થોદ્ધારક प.पू.मा.ना. श्री नीतिसूरीश्चरण म.सा. Eduout For Personica Privaletuswenlys CAahetiye