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________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ९४ ॥ नाकनदीनदविहितैः, पयोभिरम्भोजरेणुभिः सुभगैः । श्रीमज्जिनेन्द्रपादौ, समर्चयेत् सर्वशान्त्यर्थम् ॥२॥ (आर्या) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-तीर्थोदकेन स्नापयामीति स्वाहा । ॥ इति षोडश स्नात्रम् ॥ सत्तरमी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ.....................बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ हाँ ह्रीं हूँ हैं हौं हः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ।। सत्तरमुं (कर्पूर) स्नात्र - नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः . शशिकर-तुषारधवला, उज्ज्वलगन्धा सुतीर्थ-जलमिश्रा कर्पूरोदकधारा, सुमन्त्रपूता पततु जिनबिम्बे ॥१॥ (आर्या) कनक-करकनाली-मुक्तधाराभिरद्भिः, मिलित-निखिलगन्धैः केलि-कर्पूरभाभिः । अखिल-भुवन-शान्तिं शान्तिधारां जिनेन्द्र-क्रमसरसिज-पीठे स्नापयेद्वीतरागान् ॥२॥(मालिनी) श्री अठारह अभिषेक ॥१४॥ Jain Education national For Personal & Private Use Only
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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