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विविध पूजन संग्रह
॥ १४५ ॥
क्षा, क्षी, खू, क्षः बीज मंत्रों के स्वरूप वाली है माता ! इस संसार में तेरे चरण कमलों में, जीवों के शरीर में व्याप्त स्थावर और जंगम ऐसे विकार वाले विष को सदा सर्वदा नष्ट करने वाली, अप्रगट-प्रगट रूप वाली, श्रेष्ठ मनुष्यों द्वारा वंदित व पूजित ब्रह्म रूपिणी स्वरूप में सदा रहने वाली, योगेन्द्रों द्वारा प्राप्तव्य पद में भक्ति स्वरूप एवं सुरभित
और सुन्दर चरणों वाली है माता पद्मावती ! आज मैं तेरी गंध सुगंधित द्रव्य से पूजा कर रहा हूँ।"
फिर निम्न मंत्र बोलते हुए १०८ आहूति गंध की देना । "ॐ ह्रीं श्री पद्मावत्यै गंधं समर्पयामि स्वाहा:"
(३) अक्षत-पूजा :"दैत्यै दैत्यारि नाथै मित-पद-युगे भक्तिपूर्वं त्रिसंध्यं । यक्षैः सिद्धेश्च नरहमहमिकया देह कान्त्याश्च कान्त्यै ।
आं इं उं तं अ आ ई मृड मृडने सस्वरे निःस्वरै । तैरेवं प्राहीयमाने क्षत धवल-भरैस्त्वां यजे देवि पद्ये ॥"
श्री पार्थ पद्मावती महापूजन विधि ॥१४५।।
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