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विविध पूजन संग्रह
॥ १४४ ॥
"ॐ ह्रीं श्री मंत्र वाली, देवताओं से वंदित, देवों तथा देवेन्द्रों द्वारा वंदनीय, चमकते चंद्र की भांति सफेद कलिकाल के मल पाप को सदा सर्वदा दूर करने वाली, मुक्ताहार की तरह गौर वर्णवाली, विशाल और भव्य आकृति वाली, भयंकर अट्टहास करनेवाली, संसार के उग्र पापों को मिटानेवाली, भीषण रूप तथा हाँ ही हूँ ऐसे बीज मंत्रो का उच्चारण करनेवाली - हे माता पद्मावती ! मैं स्वयं आज निर्मल जल से तेरी पूजा करता हूँ।"
फिर निम्न मंत्र बोलते हुए जल पंचामृत की १०८ आहूति देना : "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै जलं समर्पयामि स्वाहाः"
(२) गंध-पूजा:क्षा, क्षी, झू, क्षः स्वरूपे हन विषमविषं स्थावरं जंगमं वा । संसारे संसृतानां तव चरण युगे सर्वकालान्तराले ॥ अव्यक्तव्यक्तरूपे, प्रणत नरवरे, ब्रह्मरूपे, स्वरूपे । पंक्तिर्योगीन्द्रगम्ये, सुरभि शुभ क्रमे, त्वां यजे देवि पद्ये ॥
श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि
॥१४४॥
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