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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥१६॥ आ प्रमाणे बोलवू. ॐ आ क्रोर जलदेवि पूजाबलिं गृहाण गृहाण स्वाहा । (१४) त्यार पछी चार आठ वगेरे संख्यावाळा कुंभोने जळथी भरी जळनी समीपे मोदक, पूपिका (पूरी) वगेरे नैवेद्य मूकी नीचे प्रमाणे बोलवू-ॐ ही ऋषभाजितसंभवाभिनन्दनसुमतिमद्मप्रभसुपार्श्व चन्द्रप्रभसुविधिशीतलश्रेयांसवासुपूज्य-विमलानन्तधर्म-शान्तिकुंथुअरमल्लिमुनिसुव्रतनमिनेमिपार्श्ववर्धमानास्तीर्थकरपरमदेवास्तदधिष्ठायका देवाः शान्तिं तुष्टिं पुष्टिं ऋद्धिं वृद्धिं जयं मङ्गलं कुरु कुरु पां पां वां वां नमः स्वाहा । (१५) त्यार पछी धवल मंगल गातां वाजिंत्रना नादपूर्वक पवित्र अंग अने पवित्र वस्त्रवाळी स्त्रीओ मस्तक उपर ते कुंभो स्थापन करी साधर्मिकोना सन्मान करवापूर्वक मोटा महोत्सव वडे चैत्यने विषे अथवा घरने विषे आवी, त्रण प्रदक्षिणा आपी ते जळ भरेला कळशोने जिनचैत्यमां गभारा वगेरे पवित्र स्थानने विशे स्थापन करे. तथा प्रतिमाजीने पुंखणां करी गभारामां पधरावे. त्यारपछी धवलगीत गावा, वाजिंत्र वगाडवा, दान देवू, प्रभावना करवी. इत्यादि शासन-शोभा वधारवी. ॥ इति जलजात्राविधिः ॥ (१) नदी, सरोवर के कूवा आदि जळाशय उपर जई स्नान करी, चोक्खां वस्त्र पहेली श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥१६॥ For Personal Price Only
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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