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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ १७ ॥ Jain Education International सोनावाणी, वासचोखा वगेरे मंत्री त्यांथी ते बलिबाकुला सुधीना सर्वमन्त्रथी युक्त थई वीरडा के कूवा आदिक पासे जई चन्दन, धूप, दीप वगेरे अष्टप्रकारी पूजानी सामग्री लई प्रथम नीचे प्रमाणे बोलवुं - “ॐ वं वं वं नमो वरुणाय पाशहस्ताय सकलयादो ऽधीशाय सकलजलपक्षाय सकलनिलयाय सकलसमुद्रनदीसरोवरपल्लवनिर्झरकूपवासीस्वामिनेऽमृतकाय देवाय, अमृतं स्रावय, नमोऽस्तु ते स्वाहा ॥ " ( २ ) पछी अंकुशमुद्रा देखाडीने पूजा करवी. ते आ प्रमाणे – “ ॐ जलं गृहाण गृहाण | चंदनं गृ० २ । पुष्पं गृ० २ । धूपं गृ० २ । दीपं गृ० २ । अक्षतं तांबूलं नैवेद्यं फलं द्रव्यं समर्पयामि स्वाहा । बलिं गृहाण गृहाण स्वाहा ॥ " ( ३ ) पछी नीचे प्रमाणे बोली जळ ग्रहण करवु - “ ॐ आपोऽप्काया एकेन्द्रिया जीवा निरवद्यार्हत्पूजायां निर्व्यथाः सन्तु, सद्गतयः सन्तु, न मेऽस्तु संघट्टनहिंसापापमर्हदर्चने स्वाहा ॥ " ए प्रमाणे बोली जळ ग्रहण करवुं. ए प्रमाणे सर्व कूवा, वीरडा वगेरेमांथी पूजा वगेरे करी जळ ग्रहण करवुं. त्यारपछी जळाशय पासे For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ १७ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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