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श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि
एक खाडो गाळी तेमां दीप नैवेद्य मूकवू. पछी नदी वगेरे जळाशयमां नवकारमन्त्र भणवापूर्वक श्रीफळने तरतुं मूकवू.
॥इति जलानयनविधिः ॥
(६) अथ नवग्रहपूजनविधिः । (१) शान्तिस्नात्रादि होय तेनी आगळना शुभ दिवसे नवग्रहादि पूजन करवू. वृद्ध श्रावक नवग्रह चीतरेलो सेवननो पाटलो धोई, वासफूले वासित करी, अगरधूपे करी धूपे. (२) अधेडानी के सरेडानी लेखणवडे सुखड, केशर, कस्तूरी, कपूर तथा हींगळो वडे ग्रहोने आलेखे, आचार्य पासे पहेले दिवसे प्रतिष्ठावे. (३) बीजे दिवसे प्रभाते वृद्ध श्रावक पूर्वोक्त विधिए स्नान करी भगवाननी जमणी बाजु पाटलो स्थापन करे. सर्व पूजोपकरण पासे राखी धूप, दीप समीपे करी, सर्व विधिकारक साथे वज्रपंजर करे. (वज्रपञ्जरस्तोत्र पृष्ठ १. उपर छे.)
॥१८॥
श्री
अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि
विधि
॥१८॥
१. अथ आदित्यपूजा । लाडूसूर्याय सहस्त्रकिरणाय नमो नमः स्वाहा । ए मंत्र बोली
(१) प्रथम ॐ
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