________________
श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि
क्षीरोदधिः स्वयम्भूश्च, सरः पद्ममहाद्रहः । सीता सीतोदका कुण्डं,जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु ॥ गंगे च यमुने चैव, गोदावरि सरस्वति । कावेरि नर्मदे सिन्धो, जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु ॥
(१२) पछी नीचे प्रमाणे त्रण वार बोली 'कूर्ममुद्रा अने मत्स्यमुद्रा जळने देखाडीने जळ काढीने स्थापन करवू । “ॐ ह्रीं अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणी अमृतं स्रावय 7 स्रावय अमृतं में सें क्लीं क्लीं ब्लू ब्लूँ हाँ हाँ ह्रीं ह्रीं द्रावय द्रावय हाँ जलदेवीदेवता अत्र आगच्छत २ स्वाहा ।" (१३) पछी जलदेवतानी अष्टप्रकारी पूजा करवी, ते आ प्रमाणे
अष्टोत्तरी व - ॐ ह्रीं क्ली ब्लू जलदेवताभ्यो नमः, जलं समर्पयामि, एज प्रमाणे चन्दनं, पुष्पं,
शान्तिस्नानादि अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, दीपं, धूपं एम पूजा करी बलिविधानपूर्वक पुष्प नाळियेर जळमां नांखी
विधि १. कूर्ममुद्रा - एक हाथनी चार आंगळीओ ऊधी राखी बीजा हाथनी चार आंगळो उपर ऊंधी मूकीने बे हाथना अंगूठा छूटा फरकाववा तेने कूर्म कच्छपमुद्रा कहे छे. २. मत्स्यमुद्रा - एक हाथनी त्रण आंगळीओ तर्जनी, मध्यमा अने अनामिका ऊंधी राखीने बीजा हाथनी ए जत्रण आंगळीओ उपर स्थापी बे बाजुए बे हाथनी कनिष्ठिकाओ तथा बे अंगूठा फरकावी देखाडवा तेने मत्स्यमुद्रा कहे छे.
श्री
॥ १५ ॥
For Personal Private Use Only