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________________ विविध पूजन संग्रह ॥ २४ ॥ Jain Education International पूजा शरु करवी. तेमां सौथी प्रथम मंडलमां क्षेत्रपालने स्थानके एक नाळियेर स्थापन करवुं ने तेना उपर चमेलीना तेलना छांटणा करवा ॥ ॐ अत्रस्थ क्षेत्रपालाय स्वाहा ॥ ए मंत्र बोली क्षेत्रपालनी अनुज्ञा करवी । पछी सात वार नीचेनो मंत्र बोली सरसव रक्षा मंत्रवी ॥ ॐ हूँ (क्षू ) क्षू फुट् किरिटि किरिटि घातय घातय, परकृतविघ्नान् स्फेटय स्फेटय, सहस्रखण्डान् कुरु कुरु, परमुद्रां छिन्द छिन्द, परमन्त्रान् भिन्द भिन्द हूँ क्षः फुट् फुट् स्वाहा ॥ ॐ नमोऽर्हते रक्ष रक्ष हुँ फुट् स्वाहा ॥ ए मंत्र बोलीने पूजन करनाराओने हाथे राखडी बांधवी । ॐ ह्रीं अर्ह श्रीसिद्धचक्र अत्र मेरुनिश्चले वेदिकापीठे तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा ।। ए मंत्र बोली जे पीठ उपर श्री सिद्धचक्र यंत्र स्थापन कर्यो छे ते पीठने हस्तस्पर्श करवो । ॐ ह्रीं अर्ह सिद्धाधिपतये नमः ॥ ए मंत्र बोली श्रीसिद्धचक्रयंत्रने हस्तस्पर्श करवो ॥ पछीथी मधुर स्वरे (पं. श्री वीरविजयजीकृत ) स्नात्रपूजा भणाववी । For Personal & Private Use Only श्री सिद्धचक्र पूजन विधि ॥ २४ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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