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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥८८॥ ॐ अट्ठेव य अट्ठसया, अट्ठसहस्सा य अट्ठकोडीओ । रक्खंतु मे सरीरं, देवासुरपणमिया सिद्धा ॥३॥ ही स्वाहा ॥ ॐ थंभेडं जलजलणं, चिंतियमित्तो वि पंचनमक्कारो। अरिमारिचोरराउल-घोरुवसग्गं मम निवारेइ ॥४॥ ही स्वाहा ॥ ॐ क्षेमं भवतु सुभिक्षं शस्यं निष्पद्यतॉ जयतु धर्मः ।। शाम्यन्तु सर्वरोगाः, ये केचिदुपद्रवा लोके ॥५॥ ह्रीं स्वाहा ॥ (१७) पछी स्नात्रपूजा करी अष्टप्रकारी पूजा विशेष प्रकारे करे । आरती, मंगलदीवो करे । नैवेद्य ढांके । पछी नीचे प्रमाणे देव वांदे । . प्रथम इरियावहि०।खमा० इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदन करूं ? इच्छं कही चैत्यवंदन बोलवू । नमुत्थुणं, अरिहंतचेइआणं अन्नत्थ० कही एक नवकारनो काउस्सग्ग करी, पारी नमोऽर्हत्० कही स्तुति कहे, ते आ प्रमणे - अहँ स्तनोतु स श्रेयः-श्रियं यद्ध्यानतो नरैः। अप्यन्द्री सकलाऽत्रैहिं, रंहसा सह सौच्यत ॥१॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८८॥ Jain Education international For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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