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श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि
॥१३॥
त्यार पछी हाथ जोडीने आ श्लोक बोलवो. करोतु शान्तिं जलदेवताऽसौ, मम प्रतिष्ठाविधिमाचरिष्यतः । आदास्यते वा मम वारि तत्कृते, प्रसन्नचित्ता प्रदिशत्वनुज्ञाम् ॥१॥ त्यार पछी नमुत्थुणं यावत् जय वीयराय सुधी कहेवू.
(८) पछी सर्व कळशोने ग्रीवासूत्र बांधवा. मंत्र वडे पवित्र करेला वासक्षेप, केशर तथा चंदनना छंटा नाखवा. पछी जल समीपे ते कुंभो स्थापन करी प्रतिष्ठाविधिने तथा स्नात्र करनारा श्रावकोए आ प्रमाणे न्यास करवा.
"ॐ गुरुतत्त्वाय नमः, ही आत्मतत्त्वाय स्वाहा, ही विद्यातत्त्वाय स्वाहा, हीं पार्श्वतत्त्वाय स्वाहा, ॐ मुक्तितत्त्वाय स्वाहा ॥" आ प्रमाणे बोली त्रण वार आचमन
करवं. (९) ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं, हाँ शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो | सिद्धाणं, ही वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा । ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं, हुँ हृदयं रक्ष रक्ष
श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि
॥१३॥
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