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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि जिनानामग्रतः स्थित्वा, ग्रहाणां 'शान्तिहेतवे । नमस्कारशतं भक्त्या, जपेदष्टोत्तरं शतम्॥१०॥ भद्रबाहुरुवाचैवं, पञ्चमः श्रुतकेवली। विद्याप्रवादात् पूर्वाद्, 'ग्रहशान्तिरुदीरिता ॥११॥ इति ग्रहशान्तिस्तोत्रम् । | पछी नीचेनो श्लोक बोलवो-जिनेन्द्रभक्त्या जिनभक्तिभाजां, येषां च पूजाबलिपुष्पधूपान् । रेग्रहा गता ये प्रतिकुलभावं, ते मेऽनुकूला वरदाश्च सन्तु ॥१॥ आ प्रमाणे बोली श्रीफळ वगेरे पाटला पर मूकवू, ते पाटला उपर पंच पटानुं रेशमी वस्त्र तथा सुतराउ वस्त्र पाथरी, तेने मीढळ सहित नाडाछडी वींटी, केसर छांटी, सोना रूपाना वरख छापी प्रभुनी आगळ अथवा दक्षिण बाजु स्थापनो। ॥ इति नवग्रहपूजन विधिः ॥ ॥३४॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥३४॥ १. तुष्टिहेतवे नमस्कारस्तवं भक्त्या, जपेदष्टोत्तर शतम् ॥१०॥ २. ग्रहशान्तिविधिस्तवम् (विधिं शुभम्)। ३. ग्रहा गता ये प्रतिकूलतां च, ते सानुकूला वरदा भवन्तु ॥१॥ For Personal Private Use Only
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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