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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥३५ ॥ ७. अथ दशदिक्पालाह्वानविधिः । . (१)धर्मकार्यमां सहायक होवाथी दशदिक्पालनी पूजा पण पोतपोताना वर्णानुसारे विस्तारथी करवी. (२) तेमां पहेले दिवसे पूर्वोक्त विधिए सेवनने पाटले दिक्पालनो आलेख प्रतिष्ठा करावी बीजे दिवसे प्रभुजीनी डाबी बाजु स्थापी पछी छ श्रावक १ पाणी, २ चन्दन, ३ धूप, ४ दीप, ५ पुष्प अने ६ घंट लई चोक मध्ये आवी प्रथम जळ दईने चन्दनना छांटणां नांखे, पछी पुष्पे वधावे, धूप सन्मुख राखे, दीप देखाडे. घंट वगाड़े, ए रीते दश दिक्पालनी पूजा करे. (३) पछी बे श्रावक बे थाळमां कोरा बलि लई ॐ ह्रीं श्वी सर्वोपद्रवाद् बलिं रक्ष रक्ष स्वाहा । ए मंत्रे २१ वार मंत्री नीचेना मंत्रो वडे संक्षेपथी दशदिक्पालने वधावे-१ पूर्व दिशामां-ॐ नमः इन्द्राय स्वाहा । २ अग्निकोणमां-ॐ नमोऽग्नये स्वाहा । ३ दक्षिण दिशामां-ॐ नमो यमाय स्वाहा । ४ नैऋतकोणमां-ॐ नमो नैऋताय स्वाहा ।५ पश्चिम दिशामां-ॐ नमो वरुणाय स्वाहा । ६ वायव्यकोणमां-ॐ नमो वायवे स्वाहा । ७ उत्तर दिशामां-ॐ नमो धनदाय स्वाहा । ८ ईशानकोणमां-ॐ नम ईशानाय स्वाहा । ९ ऊर्ध्व दिशामां-ॐ नमो ब्रह्मणे स्वाहा । १० अधो दिशामां-ॐ नमो नागाय स्वाहा । ॥ इति दशदिकपालापानविधिः ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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