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________________ विविध पूजन संग्रह ॥७३॥ Sil ॐ नमो लोए-सव्व-साहूणं, मोचके पादयोः शुभे, एसो पंच नमुक्कारो, शिला वज्रमयी तले ॥४॥ सव्वपावप्पणासणो, वप्रो वज्रमयो बहिः, मंगलाणं च सव्वेसिं, खादिरांगार-खातिका ॥५॥ स्वाहान्तं च पदं ज्ञेयं, पढमं हवइ मंगलम्, वप्रोपरि वज्रमयं, पिधानं देह-रक्षणे ॥६॥ महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रव-नाशिनी, परमेष्ठि-पदोद्भूता, कथिता पूर्वसूरिभिः ॥७॥ यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठिपदैः सदा, तस्य न स्याद् भयं व्याधि-राधिश्चापि कदाचन ॥८॥ अठारह अभिषेक की विधि प्रारम्भ कुसुमांजलि नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः नानासुगन्धि-पुष्पौध-रञ्जिता चञ्चरीक-कृतनादा, धूपामोद-विमिश्रा, पततात्पुष्पाञ्जलि-बिम्बे ॥१॥ (आर्या) ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह्रौं हुः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा । यह मंत्र बोलकर पुष्पांजलि पूजन करना । श्री अठारह अभिषेक ॥७३॥ Jain contentional For Personal Private Use Only
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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