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________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ७४ ॥ पहेलु (हिरण्योदक) स्नात्र (स्वर्ण चूर्ण) नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः पवित्रतीर्थनीरेण, गन्धपुष्पादिसंयुतैः, पतज्जलं बिम्बोपरि, हिरण्यं मन्त्रपूतनम् ॥१॥(आर्या) सुवर्णद्रव्यसम्पूर्ण चूर्णं कुर्यात्सुनिर्मलम्, ततः प्रक्षालनं वाभिः, पुष्पचन्दनसंयुतैः ॥२॥(अनुष्टुप) ॐ हाँ ह्रीं परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पाक्षत-धूप-संमिश्र-स्वर्ण-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा । इस मंत्रोच्चारण के साथ स्नात्र करें, अंगलूछना करें, बिंबने तिलक, पुष्प, वास, धूप वगेरे से पूजन करें। इस प्रकार प्रत्येक बार स्नात्र अभिषेक करवाना । ॥ इति प्रथम स्नात्रम् ॥ बीजी कुसुमांजलि नानासुगन्धि-पुष्पौघ..................बिम्बे ॥१॥ (पूर्व अनुसार) ॐ हाँ ह्रीं हूँ हूँ ह्रौं हः परमार्हते परमेश्वराय पुष्पाञ्जलिभिरर्चयामीति स्वाहा ॥ श्री अठारह अभिषेक ॥ ७४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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