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________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ७२ ॥ अंगशुद्धि जब हम मंदिर जी में पूजा करने के लिये आते हैं तो अवश्य ही स्नान करके आते हैं, जिससे शरीर की शुद्धि होती है उसे द्रव्यशुद्धि कहते हैं । अब हम शरीर की विशेष शुद्धि के लिये मंत्रों द्वारा भाव शुद्धि करेंगे । जैसे-जैसे मंत्र बोला जाये वैसे-वैसे सभी को जांघ, नाभि, हृदय, मुख, ललाट (मस्तक) को क्रमशः आरोह-अवरोह तीन बार स्पर्श करना है। मंत्र :- क्षि स्वा हा (जांघ) (नाभि) (हृदय) (मुख) (ललाट) श्री आत्मरक्षा नवकार मंत्र (श्री वज्रपंजर स्तोत्र) ॐ परमेष्ठि नमस्कारं, सारं नवपदात्मकम्, आत्मरक्षाकरं वज्र-पंजराभं स्मराम्यहम् ॥१॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम्, ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् ॥२॥ ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षाऽतिशायिनी, ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढम् ॥३॥ श्री अठारह अभिषेक ॥७२॥ For Personal Price Use Only
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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