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विविध पूजन संग्रह
॥ १४८ ॥
अस्मिन् किं नाम वयँ, दिन-मनु-सततं कल्मषं क्षालयन्ति ।
श्री श्री छू मंत्र रूपे, विमल-चरु-वरैरस्त्वां यजे देवि पद्मे ॥" "पूर्ण स्वरूप वाली विशिष्ठ ज्ञान से शोभायमान, चन्द्र के समान श्वेत स्वयं के मुख बिम्ब से प्रसन्न मुद्रावाली स्वच्छ एवं मनोहर ऐसे स्वयं के दन्त पंक्तियों द्वारा चंद्रिका जैसी कांतिवाली प्रतिदिन पापों का प्रक्षालन करनेवाली श्रां श्रीं श्रृं मंत्र बीज रूप हे पद्मावती मातेश्वरी ! इस संसार में कौन सी ऐसी वस्तु त्याज्य है । मैं नहीं जानता हूँ। ऐसे निर्मल नैवेद्य सामग्री द्वारा आज मैं तेरी पूजा कर रहा हूँ।
फिर निम्न मंत्र बोलते हुए १०८ नैवेद्य चढ़ाना । "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै नैवेद्यं समर्पयामि स्वाहा ।" .
इसके पश्चात् खीर, कंसार, बडे, बाकुले, और आठ तरह की मिठाई माताजी के सामने चढ़ाकर बोलना - "माताजी आपकी कृपादृष्टि हमेशा बनी रहे ॥" और बाद में उसका प्रसाद बांटना ॥
श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि
॥१४८॥
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