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विविध पूजन संग्रह
॥ १४९ ॥
(६) दीप-पूजा "भास्वत् पद्मासनस्थे, जिन-पद-निरते, पद्म-हस्ते प्रशस्ते । प्रां प्री पूँ प्रः पवित्रे, हर हर दुरितं, दुष्टजं दुष्ट चेष्टे ॥ वाचालं भाव भक्त्या त्रिदश-युवतभिः प्रत्यहं पूज्य पादे ।
चन्दे चंद्रांक भाले, मुनि गृहमणिभिस्त्वां यजे देवि पद्मे ॥" "विकसित आसन पर बिराजमान जिनेश्वर देवों की भक्तियुक्त भाव को धरनेवाली, दिव्य स्वरूपवाली प्रा प्री पूँ | प्रः ऐसे मंत्र बीजों से पवित्र, दुष्ट व्यक्तियों के लिये उस जैसी चेष्टा करनेवाली, मेरे दुरित की बार बार दूर कर, निवारण कर भाव भक्ति युक्त वाणी से अलंकृ, एवं देव रमणियों द्वारा नित्य चरण कमलों में पूजा को प्राप्त चन्द्ररूप चंद्रमा के चिन्ह को मुकुट को धारण करनेवाली हे देवि पद्मावती ! मुनियों के गृह में मणीरूप ऐसे मणि दीपकों से आज मैं तेरी पूजा कर रहा हूँ।"
फिर निम्न मंत्र बोलते हुए १०८ दीपक प्रज्वलित करना । एक दीपक थाली में रखकर १०८ बार माताजी के सामने उतारना ।
"ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै दीपं दर्शयामि स्वाहा"
श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि
॥ १४९॥
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