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विविध पूजन संग्रह
॥ १५० ॥
(७) धूप-पूजा "नम्री-भूत-क्षितीश,-प्रवर-मणितटोघृष्ट-पादारविन्दे । पद्माक्षे पद्मनेत्रे, गजपति गमने, हंस शुभ्रे विमाने ॥ कीर्ति श्री वृद्धि चक्रे, शुभ जय-विजये, गौरी गांधारी युक्ते । देवादीनां शरण्येऽगरु-सुरभि-भरैस्त्वां यजे देवि पद्मे ॥"
"विनम्र उत्तम राजाओं के मुकुट में जड़े हुए मणियों से नमस्कार करने के समय उस पुनः पुनः स्पर्श घर्षण हुए चरणकमलों वाली, हंस के समान सफेद विमान वाली, उत्तम जय
ad, सम जय और विजयरूप गौरी एवं गांधारी ऐसे नामों से स्तुति वाली हे पद्मावती ! देवि मैं आज अगरु
जि दशांग धूप से आपकी धूप पूजा कर रहा हूँ।" ।
फिर निम्न मंत्र १०८ बार बोल कर प्रज्वलित अंगारे लेकर दशांग धूप की १०८ आहूति देना । ___ "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै धूपं आघ्रापयामि स्वाहा"
श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन विधि
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