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________________ श्री ॥८३॥ __ ॐ सकलातिशेषकमहा-सम्पत्तिसमन्विताय शस्याय। त्रैलोक्यपूजिताय च, नमो नमः शान्तिदेवाय ॥३॥ ह्रीं स्वाहा ॥ 12 स्नात्र ४- ॐ सवामरसुसमूह-स्वामिकर ॐ सर्वामरसुसमूह-स्वामिकसंपूजिताय न जिताय । अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि भुवनजनपालनोद्यत-तमाय सततं नमस्तस्मै ॥४॥ ही स्व विधि स्नात्र ५ - ॐ सर्वदुरितौघनाशन-कराय सर्वाशिवप्रशमनाय । दुष्टग्रहभूतपिशाच-शाकिनीनां प्रमथनाय ॥५॥ ही स्वाहा ॥ स्नात्र ॐ यस्येति नाममंत्र-प्रधानवाक्योपयोगकृततोषा । विजया कुरुते जनहित-मिति न नुता नमत तं शान्तिम् ॥६॥हीं स्वाहा ॥ स्नात्र ७- ॐ भवत् नमस्ते भगवति ! विजये सजये परापरैरजिते । अपराजिते जगत्यां, जयतीति जयावहे भवति ? ॥७॥ ह्रीं स्वाहा ॥ ॐ सर्वस्यापि च संघस्य, भद्रकल्याणमङ्गलप्रददे । साधूनां च सदा शिव-सुतुष्टिपुष्टिप्रदे जीयाः ॥८॥ ह्रीं स्वाहा ॥ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥८३॥ in Education n ational For Personal & Private Use Only
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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