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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७२॥ ॐ आह्वानं नैवं जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजार्चा नैव जानामि, त्वं गतिः परमेश्वरि ! ॐआज्ञाहीनं क्रियाहीनं,मन्त्रहीनंच यत् कृतम्।तत् सर्वं क्षमतां देवि! प्रसीद परमेश्वरि ।२। सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं, सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥३॥ ॥ इति श्री अष्टोत्तरशतस्नात्र विधिः ॥११॥ १२. अथ श्री शान्तिस्नात्रविधिः । (१) अथ प्रतिष्ठायां वा यात्रायां वा क्षुद्रोपद्रवशमनार्थमष्टाह्निकादौ शान्तिधारा | कार्या । (प्रतिष्ठामां, तीर्थयात्रा अवसरे अने अष्टाह्निका वगेरे प्रसंगे क्षुद्रउपद्रवोनी शान्तिने अर्थे शान्तिस्नात्र करवू.) (२) शुभ दिवसे विधिपूर्वक जळयात्रा करवी, पछी मुहूर्तने दिवसे प्रभाते स्नात्रकारक गृहस्थ अने डाभप्रमुखलांछन रहित एवा स्नात्रीया चार (जघन्यथी) विधिपूर्वक स्नान करे. जळशुद्धि, दंतशुद्धि, मुखशुद्धि, मंत्रस्नान, वस्त्रशुद्धि, तिलक, कंकण मंत्र ए सर्व अष्टोत्तरीस्नात्रविधि पृ०५८-५९ प्रमाणे समजवा । (३) पछी प्रभुनी अष्टप्रकारी पूजा करवी, ते आ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥७२॥ Join Education International For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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