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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ ७३ ॥ Jain Education International प्रमाणे :- ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमात्मने अनन्तानन्तशक्तये जन्मजरामृत्यु - निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय १ जलं, २ चन्दनं ३ पुष्पं, ४ धूपं, ५ दीपम्, ६ अक्षतं, ७ नैवेद्यं, ८ फलताम्बूलं यजामहे स्वाहा । ( ४ ) पछी वृद्ध श्रावक विधिपूर्वक भूमिपीठे, गृहे वा चैत्य पासे पवित्र जळ- सोनावाणीए (सोनाना वरख सहित पाणी) भूमि शुद्ध करे, तेनो मंत्र :- ॐ ह्रीँ श्रीँ श्रीजीराउलीपार्श्वनाथ रक्षां कुरु कुरु स्वाहा । व मंत्र फूल गुंथणी (वाराफरती ) सात वार गणी सर्वत्र सोनावाणी छांटवं. (५) पछी वासचोखा अने पुष्प लई नीचेना मंत्र वडे भूमि शुद्ध करवी - ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं भूर्भुवः स्वधाय स्वाहा । (६) पछी पूर्व दिशाए अथवा उत्तर दिशाए पीठ मांडीए अने ॐ ह्रीँ अर्हत्पीठाय नमः । ए मंत्रे सात वार मंत्री पीठनी पूजा करीए । पछी शान्तिनाथ भगवाननी प्रतिमा स्थापीए तेनो मंत्र - ॐ नमोऽर्हत्परमेश्वराय चतुर्मुखाय परमेष्ठिने दिक्कुमारीपरिपूजिताय देवाधिदेवाय त्रैलोक्यमहिताय अत्र पीठे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा । आ मंत्र त्रण वार भणी श्री शान्तिनाथ भगवाननी पंचतीर्थी प्रतिमा स्थापीए. (७) श्री शांतिनाथ भगवाननी प्रतिमाना अभावमां बीजा For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ।। ७३ ।। www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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