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विविध पूजन संग्रह
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पूर्वभव के ज्ञान व धार्मिकता के संस्कारों द्वारा कुशाग्र बुद्धि, धार्मिक संस्कार जन्म से ही जागृत हो जाते हैं। आप का पूरा परिवार धार्मिकता एवं आध्यात्मिकता से सुसंस्कारी था। उनके प्रभाव ने आप पर बहुत असर किया । क्योंकि जिन व्यक्तियों के घर का वातावरण एवं रहन-सहन, आत्मिय भाव, खान पान का संतान पर असर गिरता है। बचपन से ही आप की व्यवहारिक एवं धार्मिक अभ्यास में भी ओर अधिक रुचि बढ़ी । बचपन में ही माता-पिताजी के साथ प्रभुदर्शन, पूजन एवं प्रतिक्रमण, गुरु वाणी श्रवण का विशेष प्रेम जगा । व्यवहारिक - धार्मिक एवं संस्कृत-प्राकृत अभ्यास का अपूर्व प्रेम :
यों तो पूर्वभवों के संस्कारों का समय आने पर वे संस्कार शीघ्र ही जागृत हो जाते है । मात्र निमित्त चाहिए।
द्रव्य-काल-क्षेत्र और भाव ये समय की परिपक्वता से उदीयमान हो जाते हैं । वाणी की विलासता, व्यक्तित्वपने की निखालसा, एवं बुद्धि की प्रखरता जीवन को अमर बना देती है। आप श्री जी व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करते ही धार्मिकता की ओर बढ़ गये और महेसाणा पाठशाला में जैन प्रकरण ग्रंथ, जीवविचार, नवतत्त्व, संघ्रयणी कर्मग्रंथ, भाष्य एवं तत्त्वार्थाधिगम संस्कृत-प्राकृत आदि का अध्ययन किया ।
डाचू ते साचूं . सभी विषय कंठस्थ चाहिए, मात्र पुस्तकों में पढ़ने से पंडित नहीं होता, गुरुगम द्वारा समझ पूर्वक कंठस्थ चाहिए । आप श्री ने गुरुगम द्वारा संस्कृत, प्राकृत का भी अध्ययन किया ।
सम्पादकीय परिचय
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