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________________ विविध पूजन संग्रह 11 2 11 Jain Education Internati एक साथ में ३० सिद्धचक्र पूजन कराने वाले के. पी. संघवी परिवार पावापुरी में, ऐसे अनेकानेक श्रेष्ठिवर्यो चाहें धजा का दिन हो - दीपावली पर्व हो, या कोई व्यावहारिक प्रसंग लेकर प्रतिवर्ष पूजन पढाने का आग्रह रखते है । प.पू.आ.भ. श्री सुशीलसूरीश्वरजी म.सा., प.पू. जिनोत्तमसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में एक साथ में सलंग सात सात प्रतिष्ठाएँ अंजनशलाका एवं प.पू. नित्यानन्दसूरीश्वरजी म.सा. आदि की निश्रा में पंजाब में अमृतसर - लुधीयाना, जलंधर, सामाना आदि जगह एक साथ में दो दो महिना तक सलंग अंजनशलाका प्रतिष्ठा पूजनादि एवं नाकोडाजी में प्रत्येक मास में प्रायः चार चार महापूजन में ऐसे कितनेय आचार्य भगवन्त पू. साधु-साध्वी भगवन्त की निश्रा में प्रतिवर्ष एक साथ में चाहे ओलीजी की आराधना या गुरुदेव की पुण्यतिथि हो तो नव नव महापूजन होते है । कैसी अनुपम परमात्मा की भक्ति का भाव है । वैसे ही "लहेरा म." के हुलामणा नाम से राजस्थान के बालगोपाल से लगाकर युवा - वृद्ध तक जिनका नाम कंठ पर है वे पू.सा. श्री ललितप्रभाश्रीजी म. ( लहेरा म.) का भी प्रतिवर्ष अनेक पूजन कराने का प्रसंग उपस्थित होता है। जिसका निमित्त उनकी मंत्री समान उदारमना गुरु के लिए पूर्ण समर्पणभाववाले पू. श्री दक्षरत्नाश्रीजी म. को जाता है। जिन्होंने आज तक अनेक दानवीरों को उपदेश देकर गुरु का ऋण चुकाया है और एसे अनेकानेक पुस्तको द्वारा ज्ञानमार्ग की अनुपम भक्ति की है । इस विविध पूजन संग्रह द्वारा परमात्म-देव- गुरु और धर्म की आराधना द्वारा जल्दी से जल्दी महाविदेह क्षेत्र के पथिक बनें यही अभ्यर्थना । For Personal & Private Use Only चम्पकलाल चिमनलाल शाह खिमाणावाले, हाल शिवगंज (राज.) संपादकीय कलम से 11 2 11 www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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