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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥६५॥ १. ॐ नमो अरिहंताणं हृदयाय नमः । हृदय । २. ॐ नमो सिद्धाणं, शिरसे नमः स्वाहा । मस्तक । ३. ॐ नमो आयरियाणं, शिखायै वौषट् । शिखा (चोटली)। ४. ॐ नमो उवज्झायाणं, कवचाय हुँ । सर्वांग । ५ ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं, अस्त्राय फट् । अस्त्रमुद्राए अस्त्र धारण करीए । (२३) पछी एक दक्ष श्रावक ऊंचे स्वरे वज्रपंजर स्तोत्र कहे अने बीजा सांभळे. (स्तोत्र पृ. १ उपर छापेल छे.) आ प्रमाणे सकलीकरण अने अंगरक्षा करीने मीढळ कंकण स्वमंत्रे मंत्री बांधे । (२४) पछी एक श्रावक हाथमां केसर पुष्प लई दिशिबंध करे, तेमां प्रथम अ आ पूर्वस्यां एम कही पूर्व सन्मुख केसरनां छांटा नाखवा, पुष्पो उडाडवां । (आ प्रमाणे दरेक शिा वखते करवू) इ ई दक्षिणस्यां । उ ऊ पश्चिमायां । ए ऐ उत्तरास्यां । ओ औ ऊर्चे । अं अः अधः । (२५) पछी ग्रीवासूत्र लई ॐ ह्री सर्वोपद्रवाद् बिम्बं रक्ष रक्ष स्वाहा । ए मंत्रे सात वार मंत्री चारे दिशाना थांभले अथवा पीठना चार पाटे बांधीए । पछी दीवाने केसर तथा पुष्प वडे पूजीए । पछी अग्रेसर चार पुरुषो हाथमां चार लघुकळश लई, धोई,धूपी, चंदने पूजी, कंकण बांधी, फूलमाळ पहेरावी, तेमां रूपामहोर मूकी, श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि वी Jain Education in For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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