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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ १० ॥ Jain Education International (५) उपर प्रमाणे दशदिक्पालनी पूजा करवी. ॐ इन्द्राग्नियमनैर्ऋतवरुणवायुकुबेरेशाननागब्रह्मलोकपालाः सविनायकाः सक्षेत्रपाला इह जिनपादाग्रे समायान्तु, पूजां प्रतीच्छन्तु । एम कही पूजाना पाटला उपर लोकपालने वासक्षेपथी पूजीए. पछी अष्टप्रकारी पूजा वगेरे नवग्रह प्रमाणे करीए । छेवटे उपरनो मंत्र बोली पुष्पो चढावीए । (६) पछी ज्ञान, दर्शन चारित्र पूजीए. आरती- मंगलदीवो करीए. (७) पछी चैत्यवंदन करीए. नमुत्थुणं कही अरिहंत चेइयाणं० १ नवकारनो काउ० पारी, नमोऽर्हत्० कही स्तुति कहेवी ते आ अर्हस्नोतु स श्रेयः- श्रियं यद्ध्यानतो नरैः । अप्यैन्द्री सकलाऽत्रैहि, रंहसा सह सौच्यत ॥ लोगस्स० सव्वलोए० अन्नत्थ नव० १ काउ० करी स्तुति ओमिति मन्ता यच्छा-सनस्य नन्ता सदा यदहीँश्च । आश्रीयते श्रिया ते, भवतो भवतो जिनाः पान्तु । पुक्खरवर० वंदणवत्तिआए० अन्नत्थ० १ नव० काउ० स्तुति - नवतत्त्वयुता त्रिपदी श्रिता रुचिज्ञानपुण्यशक्तिमता । वरधर्मकीर्तिविद्या - नन्दास्या जैनगीर्जीयात् For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥ १० ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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