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सर्वप्रथम स्नात्रपूजा का विधान सम्पन्न करना चाहिए। आरती, मंगलदीपक एवं शांति कलश अठारह अभिषेक के सम्पन्न होने के बाद करने चाहिए ।
(स्नात्र पूजा के पश्चात् मंगलाचरण से अठारह अभिषेक का विधान प्रारम्भ किया जाता है।)
विविध पूजन संग्रह
॥ ७० ॥
मंगलाचरण आदिमं पृथिवीनाथमादिमं निष्परिग्रहम्, आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः ॥१॥ श्रीमते शान्तिनाथाय नमः शान्तिविधायिने त्रैलोक्य स्यामराधीश-मुकुटाभ्य-चिंताङ्ग्रये ॥२॥ या शान्तिः शान्तिजिने, गर्भगतेऽथाजनिष्ट वा जाते, सा शान्तिरत्रभूयात् सर्वसुखोत्पादनाहेतुः ॥३॥ कमठे धरणेन्द्रे च स्वोचितं कर्म कुर्वति, प्रभुस्तुल्यमनोवृत्तिः पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः ॥४॥ श्रीमते वीरनाथाय सनाथायाद्भुतश्रियाः, महानन्दसरोराज मरालायार्हते नमः ॥५॥ मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतम प्रभुः, मंगलं स्थूलभद्राद्याः, जैनधर्मोस्तु मंगलं ॥६॥ .
श्री अठारह अभिषेक
॥ ७०॥
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