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________________ विविध पूजन संग्रह ॥ ६९ ॥ मंदिर जी में गुटका, पान, मद्यपान आदि का सेवन करके नहीं आना चाहिए । उससे भयंकर आशातना होती है। किसी भी प्रकार की चमड़े की वस्तु धारण करके नहीं आना चाहिए । जैसे टोपी, पर्स एवं पेटी आदि । जब हम परमात्मा के श्री चरणों को मस्तक झुकाकर हाथ से स्पर्श करते हैं तब सिर के बाल स्पर्श नहीं होने चाहिए । उससे भयंकर आशातना होती है। परमात्मा की पूजा-सेवा परमात्मा की आज्ञा के अनुसार ही करनी चाहिए, अपनी मन-मर्जी से नहीं । हमें परमात्मा स्वरूप बनना है इसीलिए परमात्मा की पूजा-सेवा की जाती है। वैसे तो हम से मंदिर जी में विधि करते हुए, परमात्मा की पूजा करते हुए बहुत सारी भूलें अविधि हो जाती है। जिससे हमें आशातना का दोष लगता है। अविधि आशातनाओं के निवारण हेतु शुद्धिकरण स्वरूप परमात्मा के अठारह अभिषेक का विधान पूर्वाचार्यों द्वारा बताया गया है। आज के दुषमकाल में वर्ष में एक बार अवश्य ही श्री जिन मंदिर जी में अठारह अभिषेक का विधान करवाया जाना चाहिए । अठारह अभिषेक मिनी (छोटी) अंजनशलाका कहलाती है। श्री अठारह अभिषेक ॥६९॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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