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________________ विविध पूजन संग्रह ।। १६७ ।। Jain Education International उच्चारण सही शुद्ध होना चाहिए। मंत्र शक्ति में देवताधिष्ठित रहते हैं। इस की तरफ आप का विशेष लक्ष्य रहा है । आप के हाथों कई बड़े-बड़े कार्यक्रम हुए हैं। कई पुस्तकें प्रकाशित की है । स्वयं तप जप, सामायिक प्रतिक्रमण, पूजा एवं स्वाध्याय करने में भी अपूर्व भाव रखते हैं। पर्यूषण एवं धार्मिक पर्वो पर व्याख्यान वांचने जाते हैं। जहां साधु-साध्वी जी महाराज साहिबों का चातुर्मास नहीं होता है, वहां पर व्याख्यान वाणी, प्रतिक्रमण एवं त्याग-तपस्या कराने में अपना समय देते हैं। सही भावना वही जो दूसरों के हृदय में स्थान कर जाए । स्फूर्तिमय दिनचर्या : सुबह से शाम तक आप अपना समय प्रत्येक कार्य के लिए निर्धारित कर लेते हैं । पूजा, अध्यापन, स्वाध्याय एवं विधि विधान तथा व्यवहारिक कार्य । सर्व धर्म समन्वयवाद में आप की अधिक रूचि है। चाहें किसी भी सम्प्रदाय का हो जिज्ञासु को अच्छी तरह प्रत्युत्यर द्वारा उसे संतोष उत्पन्न करते हैं। सरल भाव, सादगी जीवन एवं शान्त वातावरण जीवन का लक्ष्य बना लिया है । धर्मकार्य : अपने गाँव में उपाश्रय में व्याख्यान हॉल, माताजी की स्मृति में स्मशानगृह, पालीताना में मूर्त्ति भराना, For Personal & Private Use Only - सम्पादकीय परिचय ।। १६७ ।। www.jainelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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