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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥३७॥ समर्पयामि स्वाहा । ८. अक्षतं तम्बूलं द्रव्यं सर्वोपचारान् समर्पयामि स्वाहा । पान, सोपारी, चोखा, पैसो. ७. ॐ हीं आ हा हूँ हा श्रू हूँ क्षः वज्राधिपतये इन्द्र संवौषट् (स्वाहा) । ए मंत्र वडे केरबानी नवकारवाळी एक गणवी (वर्तमानमां अंजनशलाकादि विशिष्ट विधान सिवाय शान्तिस्नात्रादि प्रसंगे दिक्पालनी नवकारवाळी गणवानी पद्धति प्रचलित नथी.) (८) ए ज मंत्रे हाथमां फूल, वासचोखा अने पाणी पसलीमा लई त्रण वार अर्ध्य देवा. (९) बे हाथ जोडी नीचे प्रमाणे प्रार्थना करवी. ऐरावतसमारूढः,शक्रः पूर्वदिशि स्थितः । संघस्य शान्तये सोऽस्तु बलिपूजां प्रतिच्छतु ।१। ॥ इति इन्द्रपूजा ९ ॥ २. अथ अग्निपूजा । (१) ॐ ही रे रों रुरै रौं रः अग्नि संवौषट् (स्वाहा)। ए मंत्र वडे चोखा, वासफूलथी वधावीए. (२) रक्त चंदन वडे आलेख करवो. (३) ॐ नमो अग्नयेअग्निमूर्तये श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥३७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ininelibrary.org
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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