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________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५७॥ बलिदान पाठ कहे (पाठसमये वाजिंत्रो शांत राखवा, बलि उछाळती वखते वगाडवा.) ते आ प्रमाणे (१) ॐ नमः इन्द्राय पूर्वदिगधिष्ठायकाय ऐरावणवाहनाय सहस्त्रनेत्राय वज्रायुधाय सपरिजनाय अमुकगृहे वृद्धस्नात्रमहोत्सवे आगच्छ आगच्छ बलिपूजां गृहाण गृहाण, शान्तिकरा भवन्तु, तुष्टिकरा भवन्तु, पुष्टिकरा भवन्तु, शिवंकरा भवन्तु स्वाहा । पूर्व सन्मुख बलि दे (उछाळे) अने बीजां सर्वे पोतपोताने योग्य विधि करे, चन्दनना छांटा जळधार, फूल, धूप, दीप, चामर, घंट, आरिसो, थाळीवादन, अक्षतफलादि । ए प्रमाणे आगल पण समजवू. (२) अग्निकोण सन्मुख-ॐ नमो अग्नये अग्निभूर्तये शक्तिहस्ताय मेषवाहनाय सपरिजनाय-आगळ पाठ पूर्ववत् । . (३) दक्षिण सन्मुख - ॐ नमो यमाय दक्षिणादिगधिष्ठायकाय महिषवाहनाय दंडायुधाय कृष्णमूर्तये सपरिजनाय - आगळ पाठ पूर्ववत् । श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥५७॥ For Personal Private Use Only
SR No.600250
Book TitleVividh Pujan Sangraha
Original Sutra AuthorChampaklal C Shah, Viral C Shah
Author
PublisherAnshiben Fatehchandji Surana Parivar
Publication Year2009
Total Pages266
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size21 MB
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