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विविध पूजन संग्रह
॥ १०२ ॥
"स्वा"-वायु-नील-मुखपर
"प"-जल-श्वेत-नाभिपर "हा"-आकाश-श्याम-ललाट पर। "क्षि"-पृथ्वि-पीत-दोनों पैर की जांघ पर
(इस मंत्रबीज के द्वारा क्रमानुसार आरोह एवं अवरोह क्रम में तीन बार अंग स्पर्श करके आत्म रक्षा करनी ।) | (१०) आत्मरक्षा (वज्रपंजर स्तोत्र)
इस स्तोत्र के द्वारा नवकार महामंत्र के एक-एक पद को हमारे शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों के उपर स्थापन करते हैं । एवं कल्पना की जाती है कि शरीर के चारों तरफ एक खाई बनी हढई है । और उसके उपर लोहे की किलेबंदी की जा रही है । आत्म-रक्षा करने से पंच परमेष्ठि भगवंतों की महान् कृपा व आधि-व्याधि और उपाधिओं में समभाव की प्राप्ति एवं आसुरी तत्त्वों का विनाश होता है । ॐ परमेष्ठि नमस्कारं , सारं नवपदात्मकम् । आत्मरक्षा करं वज्र-पञ्जराभं स्मराम्यहम् ॥ १॥ ॐ नमो अरिहंताणं, शिरस्कं शिरसि स्थितम् । ॐ नमो सव्वसिद्धाणं, मुखे मुखपटं वरम् । ॐ नमो आयरियाणं, अंगरक्षातिशायिनी । ॐ नमो उवज्झायाणं, आयुधं हस्तयोर्दृढं । ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं, मोचके पादयोः शुभे, एसो पंच नमुक्कारो, शिलावजमयीतले ।
गौतमस्वामी पूजनविधि ॥१०२॥
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